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*गृहस्थाश्रम महिमा, सन्ध्यावंदन विधि नित्यकर्म, धन सम्पत्ति का दान, सदुपयोग, आतिथ्य-सत्कार, करणीय एवं अकरणीय कर्म, अध्यात्म, योग | *गृहस्थाश्रम महिमा, सन्ध्यावंदन विधि नित्यकर्म, धन सम्पत्ति का दान, सदुपयोग, आतिथ्य-सत्कार, करणीय एवं अकरणीय कर्म, अध्यात्म, योग निरूपण की विवेचना मिलती है। | ||
*वह कहते हैं मात्र योग से ही सम्पूर्ण लोक को वश में किया जा सकता है- लोको वशीकृतो येन येनचात्मा वशीकृत:/इन्द्रियार्थों जितो येन तं योगं प्रब्रवीम्यहम।<ref>7/1</ref> | *वह कहते हैं मात्र योग से ही सम्पूर्ण लोक को वश में किया जा सकता है- लोको वशीकृतो येन येनचात्मा वशीकृत:/इन्द्रियार्थों जितो येन तं योगं प्रब्रवीम्यहम।<ref>7/1</ref> | ||
*उन्होंने [[पतंजलि]] योग के षड्गंयोग का उपदेश दिया है। | *उन्होंने [[पतंजलि]] योग के षड्गंयोग का उपदेश दिया है। | ||
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== |
07:52, 6 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण
- सात अध्यायों में निबद्ध दक्ष स्मृति मुख्य रूपेण गृहस्थधर्म, सदाचार एवं अध्यात्म ज्ञान का निरूपण करता है।
- गृहस्थाश्रम महिमा, सन्ध्यावंदन विधि नित्यकर्म, धन सम्पत्ति का दान, सदुपयोग, आतिथ्य-सत्कार, करणीय एवं अकरणीय कर्म, अध्यात्म, योग निरूपण की विवेचना मिलती है।
- वह कहते हैं मात्र योग से ही सम्पूर्ण लोक को वश में किया जा सकता है- लोको वशीकृतो येन येनचात्मा वशीकृत:/इन्द्रियार्थों जितो येन तं योगं प्रब्रवीम्यहम।[1]
- उन्होंने पतंजलि योग के षड्गंयोग का उपदेश दिया है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 7/1