"चौधरी देवी लाल": अवतरणों में अंतर
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}}'''चौधरी देवी लाल''' (जन्म- [[25 सितंबर]], [[1914]] - मृत्यु- [[6 अप्रॅल]], [[2001]]) [[भारत]] के पूर्व [[उप प्रधानमंत्री]] एवं भारतीय राजनीति के पुरोधा, किसानों के मसीहा, महान् स्वतंत्रता सेनानी, [[हरियाणा]] के जन्मदाता, राष्ट्रीय राजनीति के भीष्म-पितामह, करोड़ों भारतीयों के जननायक थे। आज भी चौधरी देवी लाल का महज नाम-मात्र लेने से ही, हज़ारों की संख्या में बुजुर्ग एवं नौजवान उद्वेलित हो उठते हैं। उन्होंने आजीवन किसान, मुजारों, मज़दूरों, ग़रीब एवं सर्वहारा वर्ग के लोगों के लिए लड़ाई लड़ी और कभी भी पराजित नहीं हुए। आज उनका क़द भारतीय राजनीति में बहुत ऊंचा है। उन्हें लोग भारतीय राजनीति के अपराजित नायक के रूप में जानते हैं। उन्होंने भारतीय राजनीतिज्ञों के सामने अपना जो चरित्र रखा वह वर्तमान दौर में बहुत प्रासंगिक है। | |||
==जन्म== | ==जन्म== | ||
चौधरी देवी लाल का जन्म [[25 सितंबर]], [[1914]] को हरियाणा के सिरसा ज़िले में हुआ। इनके पिता का नाम चौधरी लेखराम, माँ का नाम श्रीमती शुंगा देवी और पत्नी का नाम श्रीमती हरखी देवी है। | चौधरी देवी लाल का जन्म [[25 सितंबर]], [[1914]] को हरियाणा के सिरसा ज़िले में हुआ। इनके पिता का नाम चौधरी लेखराम, माँ का नाम श्रीमती शुंगा देवी और पत्नी का नाम श्रीमती हरखी देवी है। | ||
==आरंभिक जीवन== | ==आरंभिक जीवन== | ||
चौधरी देवी लाल ने अपने स्कूल की दसवीं की पढ़ाई छोड़कर | चौधरी देवी लाल ने अपने स्कूल की दसवीं की पढ़ाई छोड़कर सन् [[1929]] से ही राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेना शुरू कर दिया था। चौ. देवीलाल ने सन् 1929 में लाहौर में हुए [[कांग्रेस]] के ऐतिहासिक अधिवेशन में एक सच्चे स्वयं सेवक के रूप में भाग लिया और फिर सन् [[1930]] में आर्य समाज ने नेता स्वामी केशवानन्द द्वारा बनाई गई नमक की पुड़िया ख़रीदी, जिसके फलस्वरूप देशी नमक की पुड़िया ख़रीदने पर चौ. देवीलाल को हाईस्कूल से निकाल दिया गया। इसी घटना से प्रभाविक होकर देवी लाल जी स्वाधीनता संघर्ष में शामिल हो गए। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। देवी लाल जी ने देश और प्रदेश में चलाए गए सभी जन-आन्दोलनों एवं स्वतंत्रता संग्राम में बढ़-चढ़कर भाग लिया। इसके लिए इनको कई बार जेल यात्राएं भी करनी पड़ीं। | ||
==राजनीतिक जीवन== | ==राजनीतिक जीवन== | ||
चौ. देवीलाल में बचपन से ही संघर्ष का मादा कूट-कूट भरा हुआ था। परिणामत: बचपन में उन्होंने जहाँ अपने स्कूली जीवन में मुजारों के बच्चों के साथ रहकर नायक की भूमिका निभाई। इसके साथ ही [[महात्मा गांधी]], [[लाला लाजपत राय]], [[भगत सिंह]] के जीवन से प्रेरित होकर [[भारत]] की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कर राष्ट्रीय सोच का परिचय दिया। 1962 से 1966 तक हरियाणा को पंजाब से अलग राज्य बनवाने में निर्णायक भूमिका निभाई। उन्होंने | चौ. देवीलाल में बचपन से ही संघर्ष का मादा कूट-कूट भरा हुआ था। परिणामत: बचपन में उन्होंने जहाँ अपने स्कूली जीवन में मुजारों के बच्चों के साथ रहकर नायक की भूमिका निभाई। इसके साथ ही [[महात्मा गांधी]], [[लाला लाजपत राय]], [[भगत सिंह]] के जीवन से प्रेरित होकर [[भारत]] की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कर राष्ट्रीय सोच का परिचय दिया। 1962 से 1966 तक हरियाणा को पंजाब से अलग राज्य बनवाने में निर्णायक भूमिका निभाई। उन्होंने सन् 1977 से 1979 तथा [[1987]] से [[1989]] तक हरियाणा प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में जनकल्याणकारी नीतियों के माध्यम से पूरे देश को एक नई राह दिखाई। इन्हीं नीतियों को बाद में अन्य राज्यों व केन्द्र ने भी अपनाया। इसी प्रकार केन्द्र में [[प्रधानमंत्री]] के पद को ठुकरा कर भारतीय राजनीतिक [[इतिहास]] में त्याग का नया आयाम स्थापित किया। वे ताउम्र देश एवं जनता की सेवा करते रहे और किसानों के मसीहा के रूप में उनका महत्त्वपूर्ण योगदान रहा। | ||
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चौधरी देवी लाल अक्सर कहा करते थे कि [[भारत]] के विकास का रास्ता खेतों से होकर गुजरता है, जब तक ग़रीब किसान, मज़दूर इस देश में सम्पन्न नहीं होगा, तब तक इस देश की उन्नति के कोई मायने नहीं हैं। इसलिए वो अक्सर यह दोहराया करते थे- हर खेत को पानी, हर हाथ को काम, हर तन पे कपड़ा, हर सिर पे मकान, हर पेट में रोटी, बाकी बात खोटी। अपने इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए चौ. देवीलाल जीवन पर्यंत संघर्ष करते रहे। उनकी सोच थी कि सत्ता सुख भोगने के लिए नहीं, अपितु जन सेवा के लिए होती है। चौ. देवीलाल के संघर्षमय जीवन की तस्वीर आज भारतीय जन-मानस के पटल पर साफ़ दिखाई देती है। भारतीय राजनीति के इतिहास में चौ. देवीलाल जैसे संघर्षशील नेता का मादा किसी अन्य राजनीतिक नेता में दिखलाई नहीं पड़ता। वर्तमान समय में जन मानस के पटल पर चौ. देवीलाल के संघर्षमय जीवन की जो तस्वीर अंकित है, वह आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा स्रोत का काम करती रहेगी। चौ. देवीलाल आज हमारे मध्य नहीं हैं, लेकिन उनका बुजुर्गाना अंदाज, मीठी झिड़कियां सही रास्ते की विचारधारा की सीख के रूप में जो कुछ वो देकर गए हैं, वह सदैव हमारे बीच रहेगा। चौ. देवीलाल अपने स्वभावनुसार पूरे ठाठ के साथ, झुझारूपन एवं अनोखी दबंग अस्मिता के साथ जीये। आज अपनी मिट्टी से जुड़े तन-मन के दिलो-दिमाग पर राज करने वाले देवीलाल जैसे जननायक ढूंढने से भी नहीं मिल सकते। जनहित के कार्यों के रूप में स्व. देवीलाल जन-जन के अंत: पटल पर जो कुछ अंकित कर गए हैं, वो लम्बे समय तक उनकी याद जो ताजा कराता रहेगा। जन-मानस बर्बस स्मरण करता रहेगा कि [[हरियाणा]] की पुण्य भूमि ने ऐसे नर- केसरी को जन्म दिया था, जिसने अपने त्याग, संघर्ष और जुझारूपन से परिवार के मुखिया ताऊ के दर्जे को, राष्ट्रीय ताऊ के सम्मानजनक एवं श्रद्धापूर्ण पद के रूप में अलंकृत किया। | |||
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चौधरी देवी लाल
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पूरा नाम | चौधरी देवी लाल |
जन्म | 25 सितंबर, 1914 |
जन्म भूमि | ज़िला सिरसा, हरियाणा |
मृत्यु | 6 अप्रॅल, 2001 |
अभिभावक | चौधरी लेखराम (पिता), श्रीमती शुंगा देवी (माता) |
पति/पत्नी | श्रीमती हरखी देवी |
नागरिकता | भारतीय |
प्रसिद्धि | किसानों के मसीहा, हरियाणा के जन्मदाता और राजनीति के भीष्म पितामह के रूप में ख्याति प्राप्त हैं। |
पद | भूतपूर्व मुख्यमंत्री, हरियाणा |
भाषा | हिन्दी |
जेल यात्रा | जन आन्दोलन और स्वतंत्रता संग्राम के दौरान जेल यात्राएँ कीं। |
अन्य जानकारी | देवी लाल जी ने सन् 1977 से 1979 तथा 1987 से 1989 तक हरियाणा प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में जनकल्याणकारी नीतियों के माध्यम से पूरे देश को एक नई राह दिखाई। केन्द्र में प्रधानमंत्री के पद को ठुकरा कर भारतीय राजनीतिक इतिहास में त्याग का नया आयाम स्थापित किया। |
चौधरी देवी लाल (जन्म- 25 सितंबर, 1914 - मृत्यु- 6 अप्रॅल, 2001) भारत के पूर्व उप प्रधानमंत्री एवं भारतीय राजनीति के पुरोधा, किसानों के मसीहा, महान् स्वतंत्रता सेनानी, हरियाणा के जन्मदाता, राष्ट्रीय राजनीति के भीष्म-पितामह, करोड़ों भारतीयों के जननायक थे। आज भी चौधरी देवी लाल का महज नाम-मात्र लेने से ही, हज़ारों की संख्या में बुजुर्ग एवं नौजवान उद्वेलित हो उठते हैं। उन्होंने आजीवन किसान, मुजारों, मज़दूरों, ग़रीब एवं सर्वहारा वर्ग के लोगों के लिए लड़ाई लड़ी और कभी भी पराजित नहीं हुए। आज उनका क़द भारतीय राजनीति में बहुत ऊंचा है। उन्हें लोग भारतीय राजनीति के अपराजित नायक के रूप में जानते हैं। उन्होंने भारतीय राजनीतिज्ञों के सामने अपना जो चरित्र रखा वह वर्तमान दौर में बहुत प्रासंगिक है।
जन्म
चौधरी देवी लाल का जन्म 25 सितंबर, 1914 को हरियाणा के सिरसा ज़िले में हुआ। इनके पिता का नाम चौधरी लेखराम, माँ का नाम श्रीमती शुंगा देवी और पत्नी का नाम श्रीमती हरखी देवी है।
आरंभिक जीवन
चौधरी देवी लाल ने अपने स्कूल की दसवीं की पढ़ाई छोड़कर सन् 1929 से ही राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेना शुरू कर दिया था। चौ. देवीलाल ने सन् 1929 में लाहौर में हुए कांग्रेस के ऐतिहासिक अधिवेशन में एक सच्चे स्वयं सेवक के रूप में भाग लिया और फिर सन् 1930 में आर्य समाज ने नेता स्वामी केशवानन्द द्वारा बनाई गई नमक की पुड़िया ख़रीदी, जिसके फलस्वरूप देशी नमक की पुड़िया ख़रीदने पर चौ. देवीलाल को हाईस्कूल से निकाल दिया गया। इसी घटना से प्रभाविक होकर देवी लाल जी स्वाधीनता संघर्ष में शामिल हो गए। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। देवी लाल जी ने देश और प्रदेश में चलाए गए सभी जन-आन्दोलनों एवं स्वतंत्रता संग्राम में बढ़-चढ़कर भाग लिया। इसके लिए इनको कई बार जेल यात्राएं भी करनी पड़ीं।
राजनीतिक जीवन
चौ. देवीलाल में बचपन से ही संघर्ष का मादा कूट-कूट भरा हुआ था। परिणामत: बचपन में उन्होंने जहाँ अपने स्कूली जीवन में मुजारों के बच्चों के साथ रहकर नायक की भूमिका निभाई। इसके साथ ही महात्मा गांधी, लाला लाजपत राय, भगत सिंह के जीवन से प्रेरित होकर भारत की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कर राष्ट्रीय सोच का परिचय दिया। 1962 से 1966 तक हरियाणा को पंजाब से अलग राज्य बनवाने में निर्णायक भूमिका निभाई। उन्होंने सन् 1977 से 1979 तथा 1987 से 1989 तक हरियाणा प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में जनकल्याणकारी नीतियों के माध्यम से पूरे देश को एक नई राह दिखाई। इन्हीं नीतियों को बाद में अन्य राज्यों व केन्द्र ने भी अपनाया। इसी प्रकार केन्द्र में प्रधानमंत्री के पद को ठुकरा कर भारतीय राजनीतिक इतिहास में त्याग का नया आयाम स्थापित किया। वे ताउम्र देश एवं जनता की सेवा करते रहे और किसानों के मसीहा के रूप में उनका महत्त्वपूर्ण योगदान रहा।
हरियाणा निर्माता
संयुक्त पंजाब के समय वर्तमान हरियाणा जो उस समय पंजाब का ही हिस्सा था, विकास के मामले में भारी भेदभाव हो रहा था। उन्होंने इस भेदभाव को न सिर्फ पार्टी मंच पर निरंतर उठाया बल्कि विधानसभा में भी आंकड़ों सहित यह बात रखीं और हरियाणा को अलग राज्य बनाने के लिए संघर्ष किया। जिसके परिणामस्वरूप 1 नवम्बर, 1966 को अलग हरियाणा राज्य अस्तित्व में आया और प्रदेश के निर्माण के लिए संघर्ष करने वाले चौधरी देवीलाल को हरियाणा निर्माता के तौर पर जाना जाने लगा।
जीवन शैली
चौधरी देवी लाल अक्सर कहा करते थे कि भारत के विकास का रास्ता खेतों से होकर गुज़रता है, जब तक ग़रीब किसान, मज़दूर इस देश में सम्पन्न नहीं होगा, तब तक इस देश की उन्नति के कोई मायने नहीं हैं। इसलिए वो अक्सर यह दोहराया करते थे- हर खेत को पानी, हर हाथ को काम, हर तन पे कपड़ा, हर सिर पे मकान, हर पेट में रोटी, बाकी बात खोटी।
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चौधरी देवी लाल अक्सर कहा करते थे कि भारत के विकास का रास्ता खेतों से होकर गुजरता है, जब तक ग़रीब किसान, मज़दूर इस देश में सम्पन्न नहीं होगा, तब तक इस देश की उन्नति के कोई मायने नहीं हैं। इसलिए वो अक्सर यह दोहराया करते थे- हर खेत को पानी, हर हाथ को काम, हर तन पे कपड़ा, हर सिर पे मकान, हर पेट में रोटी, बाकी बात खोटी। अपने इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए चौ. देवीलाल जीवन पर्यंत संघर्ष करते रहे। उनकी सोच थी कि सत्ता सुख भोगने के लिए नहीं, अपितु जन सेवा के लिए होती है। चौ. देवीलाल के संघर्षमय जीवन की तस्वीर आज भारतीय जन-मानस के पटल पर साफ़ दिखाई देती है। भारतीय राजनीति के इतिहास में चौ. देवीलाल जैसे संघर्षशील नेता का मादा किसी अन्य राजनीतिक नेता में दिखलाई नहीं पड़ता। वर्तमान समय में जन मानस के पटल पर चौ. देवीलाल के संघर्षमय जीवन की जो तस्वीर अंकित है, वह आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा स्रोत का काम करती रहेगी। चौ. देवीलाल आज हमारे मध्य नहीं हैं, लेकिन उनका बुजुर्गाना अंदाज, मीठी झिड़कियां सही रास्ते की विचारधारा की सीख के रूप में जो कुछ वो देकर गए हैं, वह सदैव हमारे बीच रहेगा। चौ. देवीलाल अपने स्वभावनुसार पूरे ठाठ के साथ, झुझारूपन एवं अनोखी दबंग अस्मिता के साथ जीये। आज अपनी मिट्टी से जुड़े तन-मन के दिलो-दिमाग पर राज करने वाले देवीलाल जैसे जननायक ढूंढने से भी नहीं मिल सकते। जनहित के कार्यों के रूप में स्व. देवीलाल जन-जन के अंत: पटल पर जो कुछ अंकित कर गए हैं, वो लम्बे समय तक उनकी याद जो ताजा कराता रहेगा। जन-मानस बर्बस स्मरण करता रहेगा कि हरियाणा की पुण्य भूमि ने ऐसे नर- केसरी को जन्म दिया था, जिसने अपने त्याग, संघर्ष और जुझारूपन से परिवार के मुखिया ताऊ के दर्जे को, राष्ट्रीय ताऊ के सम्मानजनक एवं श्रद्धापूर्ण पद के रूप में अलंकृत किया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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