"केशवदास": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
(केशव को अनुप्रेषित)
No edit summary
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
#REDIRECT[[केशव]]
{{बहुविकल्प|बहुविकल्पी शब्द=केशवदास|लेख का नाम=केशवदास (बहुविकल्पी)}}
'''केशव''' या '''केशवदास''' [[हिन्दी साहित्य]] के [[रीति काल]] की कवि-त्रयी के एक प्रमुख स्तंभ हैं। वे [[संस्कृत]] काव्यशास्त्र का सम्यक् परिचय कराने वाले [[हिंदी]] के प्राचीन आचार्य और कवि थे।
 
*केशवदास रचित प्रामाणिक ग्रंथ नौ हैं- रसिकप्रिया, कविप्रिया, नखशिख, छंदमाला, रामचंद्रिका, वीरसिंहदेव चरित, रतनबावनी, विज्ञानगीता और जहाँगीर जसचंद्रिका।
*रसिकप्रिया केशवदास की प्रौढ़ रचना है, जो काव्यशास्त्र संबंधी ग्रंथ हैं। इसमें [[रस]], वृत्ति और काव्य दोषों के लक्षण उदाहरण दिए गए हैं।
*केशवदास [[अलंकार]] सम्प्रदायवादी आचार्य कवि थे। इसलिये स्वाभाविक था कि वे भामह, उद्भट और दंडी आदि अलंकार सम्प्रदाय के आचार्यों का अनुसरण करते। इन्होंने अलंकारों के दो भेद माने हैं- साधारण और विशिष्ट। साधारण के अन्तर्गत वर्णन, वर्ण्य, भूमिश्री-वर्णन और राज्यश्री-वर्णन आते हैं, जो काव्यकल्पलतावृत्ति और अलंकारशेखर पर आधारित हैं। इस तरह वे अलंकार्य और अलंकार में भेद नहीं मानते।
*अलंकारों के प्रति विशेष रुचि होने के कारण काव्यपक्ष दब गया है और सामान्यत: केशवदास सहृदय कवि नहीं माने जाते। अपनी क्लिष्टता के कारण ये '''कठिन काव्य के प्रेत''' कहे गए हैं।<br />
<br />
{{main|केशव}}<br />
<br />
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक3 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
==संबंधित लेख==
{{भारत के कवि}}
[[Category:कवि]][[Category:सगुण भक्ति]][[Category:साहित्य कोश]][[Category:रीति काल]][[Category:रीतिकालीन कवि]][[Category:केशवदास]]
__INDEX__

08:45, 6 मई 2020 के समय का अवतरण

केशवदास एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- केशवदास (बहुविकल्पी)

केशव या केशवदास हिन्दी साहित्य के रीति काल की कवि-त्रयी के एक प्रमुख स्तंभ हैं। वे संस्कृत काव्यशास्त्र का सम्यक् परिचय कराने वाले हिंदी के प्राचीन आचार्य और कवि थे।

  • केशवदास रचित प्रामाणिक ग्रंथ नौ हैं- रसिकप्रिया, कविप्रिया, नखशिख, छंदमाला, रामचंद्रिका, वीरसिंहदेव चरित, रतनबावनी, विज्ञानगीता और जहाँगीर जसचंद्रिका।
  • रसिकप्रिया केशवदास की प्रौढ़ रचना है, जो काव्यशास्त्र संबंधी ग्रंथ हैं। इसमें रस, वृत्ति और काव्य दोषों के लक्षण उदाहरण दिए गए हैं।
  • केशवदास अलंकार सम्प्रदायवादी आचार्य कवि थे। इसलिये स्वाभाविक था कि वे भामह, उद्भट और दंडी आदि अलंकार सम्प्रदाय के आचार्यों का अनुसरण करते। इन्होंने अलंकारों के दो भेद माने हैं- साधारण और विशिष्ट। साधारण के अन्तर्गत वर्णन, वर्ण्य, भूमिश्री-वर्णन और राज्यश्री-वर्णन आते हैं, जो काव्यकल्पलतावृत्ति और अलंकारशेखर पर आधारित हैं। इस तरह वे अलंकार्य और अलंकार में भेद नहीं मानते।
  • अलंकारों के प्रति विशेष रुचि होने के कारण काव्यपक्ष दब गया है और सामान्यत: केशवदास सहृदय कवि नहीं माने जाते। अपनी क्लिष्टता के कारण ये कठिन काव्य के प्रेत कहे गए हैं।




पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख