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बलभद्र मिश्र [[ओरछा]] के सनाढय ब्राह्मण पं. काशीनाथ के पुत्र और प्रसिद्ध कवि [[केशवदास]] के बड़े भाई थे।  
*बलभद्र मिश्र [[ओरछा]] के सनाढय ब्राह्मण पं. काशीनाथ के पुत्र और प्रसिद्ध कवि [[केशवदास]] के बड़े भाई थे।  
*बलभद्र मिश्र का जन्मकाल संवत 1600 के लगभग माना जा सकता है।  
*बलभद्र मिश्र का जन्मकाल संवत 1600 के लगभग माना जा सकता है।  
*बलभद्र मिश्र का 'नखशिख' श्रृंगार का एक प्रसिद्ध ग्रंथ है जिसमें इन्होंने नायिका के अंगों का वर्णन उपमा, उत्प्रेक्षा, संदेह आदि अलंकारों के प्रचुर विधान द्वारा किया है।  
*बलभद्र मिश्र का 'नखशिख' श्रृंगार का एक प्रसिद्ध ग्रंथ है जिसमें इन्होंने नायिका के अंगों का वर्णन [[उपमा अलंकार|उपमा]], [[उत्प्रेक्षा अलंकार|उत्प्रेक्षा]], [[संदेह अलंकार|संदेह]] आदि अलंकारों के प्रचुर विधान द्वारा किया है।  
*बलभद्र मिश्र केशवदास जी के समकालीन या पहले के उन कवियों में थे जिनके चित्त में रीति के अनुसार काव्यरचना की प्रवृत्ति हो रही थी।  
*बलभद्र मिश्र केशवदास जी के समकालीन या पहले के उन कवियों में थे जिनके चित्त में रीति के अनुसार काव्यरचना की प्रवृत्ति हो रही थी।  
*कृपाराम ने जिस प्रकार रसरीति का अवलंबन कर नायिकाओं का वर्णन किया उसी प्रकार बलभद्र नायिका के अंगों को एक स्वतंत्र विषय बनाकर चले थे।  
*कृपाराम ने जिस प्रकार रसरीति का अवलंबन कर नायिकाओं का वर्णन किया उसी प्रकार बलभद्र नायिका के अंगों को एक स्वतंत्र विषय बनाकर चले थे।  
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08:53, 17 जुलाई 2017 के समय का अवतरण

  • बलभद्र मिश्र ओरछा के सनाढय ब्राह्मण पं. काशीनाथ के पुत्र और प्रसिद्ध कवि केशवदास के बड़े भाई थे।
  • बलभद्र मिश्र का जन्मकाल संवत 1600 के लगभग माना जा सकता है।
  • बलभद्र मिश्र का 'नखशिख' श्रृंगार का एक प्रसिद्ध ग्रंथ है जिसमें इन्होंने नायिका के अंगों का वर्णन उपमा, उत्प्रेक्षा, संदेह आदि अलंकारों के प्रचुर विधान द्वारा किया है।
  • बलभद्र मिश्र केशवदास जी के समकालीन या पहले के उन कवियों में थे जिनके चित्त में रीति के अनुसार काव्यरचना की प्रवृत्ति हो रही थी।
  • कृपाराम ने जिस प्रकार रसरीति का अवलंबन कर नायिकाओं का वर्णन किया उसी प्रकार बलभद्र नायिका के अंगों को एक स्वतंत्र विषय बनाकर चले थे।
  • इनका रचनाकाल संवत 1640 के पहले माना जा सकता है।
  • बलभद्र मिश्र की रचना बहुत प्रौढ़ और परिमार्जित है, सम्भवत: नखशिख के अतिरिक्त इन्होंने और पुस्तकें भी लिखी होंगी।
  • संवत 1891 में गोपाल कवि ने बलभद्र कृत नखशिख की एक टीका लिखी जिसमें उन्होंने बलभद्र कृत तीन और ग्रंथों का उल्लेख किया है -
  1. बलभद्री व्याकरण,
  2. हनुमन्नाटक और
  3. गोवर्धन सतसई टीका।
  • पुस्तकों की खोज में इनका 'दूषणविचार' नाम का एक और ग्रंथ मिला है जिसमें काव्य के दोषों का निरूपण है।
  • नखशिख के दो कवित्त इस प्रकार हैं -

पाटल नयन कोकनद के से दल दोऊ,
बलभद्र बासर उनीदी लखी बाल मैं।
सोभा के सरोवर में बाड़व की आभा कैंधौं,
देवधुनी भारती मिली है पुन्यकाल मैं
काम-कैवरत कैधौं नासिकर उडुप बैठो,
खेलत सिकार तरुनी के मुख ताल मैं।
लोचन सितासित में लोहित लकीर मानो,
बाँधो जुग मीन लाल रेशम की डोर मैं

मरकत के सूत कैधौं पन्नग के पूत अति
राजत अभूत तमराज कैसे तार हैं।
मखतूल गुनग्राम सोभित सरस स्याम,
काम मृग कानन कै कुहू के कुमार हैं
कोप की किरन कै जलज नाल नील तंतु,
उपमा अनंत चारु चँवर सिंगार हैं।
कारे सटकारे भींजे सोंधो सों सुगंधा बास,
ऐसे बलभ्रद नवबाला तेरे बार हैं


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