"कृष्ण (कवि)": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
No edit summary
No edit summary
 
(3 सदस्यों द्वारा किए गए बीच के 3 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
*[[रीति काल]] के कवि '''कृष्ण''' माथुर चौबे थे और [[बिहारी लाल|बिहारी]] के पुत्र के रूप में प्रसिद्ध हैं।  
*[[रीति काल]] के कवि '''कृष्ण''' माथुर चौबे थे और [[बिहारी लाल|बिहारी]] के पुत्र के रूप में प्रसिद्ध हैं।  
*इन्होंने बिहारी के आश्रयदाता महाराज जयसिंह के मंत्री राजा आयामल्ल की आज्ञा से 'बिहारी सतसई' की जो टीका की उसमें महाराज के लिए वर्तमान कालिक क्रिया का प्रयोग किया है और उनकी प्रशंसा भी की है। अत: यह निश्चित है कि यह टीका जयसिंह के जीवनकाल में ही बनी।  
*इन्होंने बिहारी के आश्रयदाता महाराज जयसिंह के मंत्री राजा आयामल्ल की आज्ञा से '[[बिहारी सतसई]]' की जो टीका की उसमें महाराज के लिए वर्तमान कालिक क्रिया का प्रयोग किया है और उनकी प्रशंसा भी की है। अत: यह निश्चित है कि यह टीका जयसिंह के जीवनकाल में ही बनी।  
*महाराज जयसिंह संवत 1799 तक वर्तमान थे। अत: यह टीका संवत 1785 और 1790 के बीच की होगी। इस टीका में कृष्ण ने दोहों के भाव पल्लवित करने के लिए सवैये लगाए हैं और वार्तिक में काव्यांग स्फुट किए हैं।
*महाराज जयसिंह संवत 1799 तक वर्तमान थे। अत: यह टीका संवत 1785 और 1790 के बीच की होगी। इस टीका में कृष्ण ने दोहों के भाव पल्लवित करने के लिए सवैये लगाए हैं और वार्तिक में काव्यांग स्फुट किए हैं।
* काव्यांग इन्होंने अच्छी तरह दिखाए हैं और वे इस टीका के प्रधान अंग हैं, इसी से ये रीति काल के प्रतिनिधि कवियों के बीच ही रखे गए हैं।
* काव्यांग इन्होंने अच्छी तरह दिखाए हैं और वे इस टीका के प्रधान अंग हैं, इसी से ये रीति काल के प्रतिनिधि कवियों के बीच ही रखे गए हैं।
पंक्ति 18: पंक्ति 18:
जानि परी तुमहू हरि जू! कलिकाल के दानिन की गति लीनी</poem>
जानि परी तुमहू हरि जू! कलिकाल के दानिन की गति लीनी</poem>
</blockquote>
</blockquote>
 
{{लेख प्रगति|आधार= |प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक=|पूर्णता=|शोध=}}
{{प्रचार}}
{{लेख प्रगति|आधार=आधार1|प्रारम्भिक=|माध्यमिक=|पूर्णता=|शोध=}}
{{संदर्भ ग्रंथ}}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
<references/>
==सम्बंधित लेख==
==सम्बंधित लेख==
{{भारत के कवि}}
{{भारत के कवि}}
[[Category:रीति काल]][[Category:मुग़ल साम्राज्य]]
[[Category:रीति काल]][[Category:रीतिकालीन कवि]]
[[Category:कवि]][[Category:साहित्य_कोश]]
[[Category:कवि]][[Category:साहित्य_कोश]]
__INDEX__
__INDEX__

13:47, 19 जनवरी 2015 के समय का अवतरण

  • रीति काल के कवि कृष्ण माथुर चौबे थे और बिहारी के पुत्र के रूप में प्रसिद्ध हैं।
  • इन्होंने बिहारी के आश्रयदाता महाराज जयसिंह के मंत्री राजा आयामल्ल की आज्ञा से 'बिहारी सतसई' की जो टीका की उसमें महाराज के लिए वर्तमान कालिक क्रिया का प्रयोग किया है और उनकी प्रशंसा भी की है। अत: यह निश्चित है कि यह टीका जयसिंह के जीवनकाल में ही बनी।
  • महाराज जयसिंह संवत 1799 तक वर्तमान थे। अत: यह टीका संवत 1785 और 1790 के बीच की होगी। इस टीका में कृष्ण ने दोहों के भाव पल्लवित करने के लिए सवैये लगाए हैं और वार्तिक में काव्यांग स्फुट किए हैं।
  • काव्यांग इन्होंने अच्छी तरह दिखाए हैं और वे इस टीका के प्रधान अंग हैं, इसी से ये रीति काल के प्रतिनिधि कवियों के बीच ही रखे गए हैं।
  • इनकी भाषा सरल और सरस है तथा अनुप्रास आदि की ओर बहुत कम झुकी है। दोहों पर जो सवैये इन्होंने लगाए हैं उनसे इनकी सहृदयता, रचना कौशल और भाषा पर अधिकार अच्छी तरह प्रमाणित होता है। इनके सवैये इस प्रकार हैं -

सीस मुकुट कटि काछनी, कर मुरली उर माल।
यहि बानिक मो मन सदा, बसौ बिहारी लाल
छबि सों फबि सीस किरीट बन्यो रुचिसाल हिए बनमाल लसै।
कर कंजहि मंजु रली मुरली, कछनी कटि चारु प्रभा बरसै
कबि कृष्ण कहैं लखि सुंदर मूरति यों अभिलाष हिए सरसै।
वह नंद किसोर बिहारी सदा यहि बानिक मों हिय माँझ बसै

थोरेई गुन रीझते बिसराई वह बानि।
तुमहू कान्ह मनौ भए आजुकाल के दानि
ह्वै अति आरत मैं बिनती बहु बार करी करुना रस भीनी।
कृष्ण कृपानिधि दीन के बंधु सुनी असुनी तुम काहे को कीनी
रीझते रंचक ही गुन सों वह बानि बिसारि मनो अब दीनी।
जानि परी तुमहू हरि जू! कलिकाल के दानिन की गति लीनी

पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

सम्बंधित लेख