"तोरु दत्त": अवतरणों में अंतर
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तोरु दत्त (जन्म- [[4 मार्च]], 1856 [[बंगाल]],मृत्यु- [[5 जुलाई]], [[1877]]) [[अंग्रेज़ी भाषा]] की सर्वश्रेष्ठ प्रतिभान्वित कवयित्री थी। | |चित्र=Toru-dutt.jpg | ||
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'''तोरु दत्त अथवा तरु दत्त''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Toru Dutt'', जन्म- [[4 मार्च]], 1856 [[अखण्डित बंगाल|बंगाल]], मृत्यु- [[5 जुलाई]], [[1877]]) [[अंग्रेज़ी भाषा]] की सर्वश्रेष्ठ प्रतिभान्वित कवयित्री थी। | |||
==जीवन परिचय== | ==जीवन परिचय== | ||
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05:36, 5 जुलाई 2018 के समय का अवतरण
तोरु दत्त
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पूरा नाम | तोरु दत्त |
अन्य नाम | तरु दत्त |
जन्म | 4 मार्च, 1856 |
जन्म भूमि | बंगाल |
मृत्यु | 5 जुलाई, 1877 |
अभिभावक | पिता- गोविंद चंद्र दत्त |
कर्म भूमि | भारत |
प्रसिद्धि | अंग्रेज़ी भाषा की श्रेष्ठ प्रतिभावान कवयित्री |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | यदि 21 वर्ष की अल्प आयु में तोरु का देहांत न होता तो वह अवश्य ही पूर्व और पश्चिम की संस्कृति के बीच साहित्यिक-सेतु का काम करती। |
इन्हें भी देखें | कवि सूची, साहित्यकार सूची |
तोरु दत्त अथवा तरु दत्त (अंग्रेज़ी: Toru Dutt, जन्म- 4 मार्च, 1856 बंगाल, मृत्यु- 5 जुलाई, 1877) अंग्रेज़ी भाषा की सर्वश्रेष्ठ प्रतिभान्वित कवयित्री थी।
जीवन परिचय
तोरु दत्त का जन्म 4 मार्च, 1856 को बंगाल में एक हिन्दू परिवार में हुआ था। तोरु दत्त जब केवल 6 वर्ष की थी, इनके परिवार ने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया। कुछ का मत है कि तोरु के जन्म से पूर्व ही उनका परिवार ईसाई बन चुका था। इनके पिता गोविंद चंद्र दत्त इन्हें संस्कृत और प्राचीन भारतीय संस्कृति की शिक्षा दिलाने में बड़ी रुचि लेते थे।
विदेश यात्रा
1868 ई. में तोरु के परिवार ने यूरोप की यात्रा की। फ्रांस में तोरु को फ्रेंच भाषा सीखने का अवसर मिला। तोरु ने कैम्ब्रिज में अंग्रेज़ी का अध्ययन किया। तोरु दत्त विदेश में ही वह अंग्रेज़ी में कविताएँ लिखने लगी थीं। 1873 में तोरु का परिवार कोलकाता वापस आ गया।
ख्याति
तोरु दत्त की ख्याति भारत की अंग्रेज़ी भाषा की श्रेष्ठ प्रतिभावान कवयित्री के रूप में है। इन्होंने साहित्य को अपने जीवन का मुख्य लक्ष्य बनाया। ये संस्कृत साहित्य के आधार पर सीता, सावित्री, लक्ष्मण, ध्रुव, प्रह्लाद आदि की कथाओं को अपनी प्रतिभा का पुट देकर अंग्रेज़ी काव्य में व्यक्त करने लगीं।
मृत्यु
तोरु दत्त की मृत्यु 5 जुलाई, 1877 में हुई थी। यदि 21 वर्ष की अल्प आयु में तोरु का देहांत न होता तो वह अवश्य ही पूर्व और पश्चिम की संस्कृति के बीच साहित्यिक-सेतु का काम करती।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
लीलाधर, शर्मा भारतीय चरित कोश (हिन्दी)। भारतडिस्कवरी पुस्तकालय: शिक्षा भारती, 352।
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख