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| '''आचार्य चन्द्रकीर्ति बौद्धाचार्य'''<br />
| | #REDIRECT [[चंद्रकीर्ति]] |
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| *आचार्य चन्द्रकीर्ति प्रासंगिक माध्यमिक मत के प्रबल समर्थक रहे हैं। आचार्य [[भावविवेक बौद्धाचार्य|भावविवेक]] ने बुद्धपालित द्वारा केवल प्रसंगवाक्यों का ही प्रयोग किया जाने पर अनेक आक्षेप किये। उन (भावविवेक) का कहना है कि केवल प्रसंगवाक्यों के द्वारा परवादी को शून्यता का ज्ञान नहीं कराया जा सकता, अत: स्वतन्त्र अनुमान का प्रयोग नितान्त आवश्यक है। इस पर चन्द्रकीर्ति का कहना है कि असली माध्यमिक को स्वतन्त्र अनुमान का प्रयोग नहीं ही करना चाहिए।
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| *स्वतन्त्र अनुमान का प्रयोग तभी सम्भव है, जबकि व्यवहार में वस्तु की स्वलक्षणसत्ता स्वीकार की जाए। चन्द्रकीर्ति के मतानुसार स्वलक्षणसत्ता व्यवहार में भी नहीं है। यही [[नागार्जुन बौद्धाचार्य|नागार्जुन]] का भी अभिप्राय है। उनका कहना है कि परमार्थत: शुन्यता मानते हुए व्यवहार में स्वलक्षणसत्ता मानकर भावविवेक ने नागार्जुन के अभिप्राय के विपरीत आचरण किया है। चन्द्रकीर्ति के अनुसार भावविवेक नागार्जुन के सही मन्तव्य को नहीं समझ सके।
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| *चन्द्रकीर्ति प्रसंगवाक्यों का प्रयोजन परवादी को अनुमान विरोध दिखलाना मात्र मानते हैं। प्रतिवादी जब अपने मत में विरोध देखता है तो स्वयं उससे हट जाता है। यदि विरोध दिखलाने पर भी वह नहीं हटता है तो स्वतन्त्र हेतु के प्रयोग से भी उसे नहीं हटाया जा सकता, अत: स्वतन्त्र अनुमान का प्रयोग व्यर्थ है। स्वतन्त्र अनुमान नहीं मानने पर भी चन्द्रकीर्ति प्रसिद्ध अनुमान मानते हैं, जिसके धर्मी, पक्षधर्मता आदि प्रतिपक्ष को मान्य होते हैं।
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| *न्याय परम्परा के अनुसार पक्ष-प्रतिपक्ष दोनों द्वारा मान्य उभयप्रसिद्ध अनुमान का प्रयोग उचित माना जाता है। अर्थात दृष्टान्त आदि वादी एवं प्रतिवादी दोनों को मान्य होना चाहिए। किन्तु चन्द्रकीर्ति यह आवश्यक नहीं मानते। उनका कहना है कि यह उभय प्रसिद्धि स्वतन्त्र हेतु मानने पर निर्भर है।
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| *स्वतन्त्र हेतु स्वलक्षणसत्ता मानने पर निर्भर है। स्वलक्षणसत्ता मानना ही सारी गड़बड़ी का मूल है। अत: चन्द्रकीर्ति के अनुसार भवविवेक ने स्वलक्षणसत्ता मानकर नागार्जुन के दर्शन को विकृत कर दिया है। केवल प्रसंग का प्रयोग ही पर्याप्त है और उसी से परप्रतिज्ञा का निषेध हो जाता है।
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| *विद्वानों की राय में चन्द्रकीर्ति ने आचार्य नागार्जुन के अभिप्राय को यथार्थरूप में प्रस्तुत किया।
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| *आचार्य चन्द्रकीर्ति की अनेक रचनाएँ हैं, जिनमें नागार्जुन- प्रणीत मुलमाध्यमिककारिका की टीका प्रसन्नपदा, [[आर्यदेव बौद्धाचार्य|आर्यदेव]] के चतु:शतक की टीका, मध्यमकावतार और उसकी स्ववृत्ति प्रमुख है। इन रचनाओं के द्वारा चन्द्रकीर्ति ने नागार्जुन के माध्यमिक दर्शन की सही समझ पैदा की है।
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| {{प्रचार}}
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| ==संबंधित लेख==
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| {{बौद्ध धर्म}}
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| [[Category:दर्शन कोश]][[Category:बौद्ध दर्शन]]
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| [[Category:बौद्ध धर्म]]
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| [[Category:बौद्ध धर्म कोश]]
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