"अलका नगरी": अवतरणों में अंतर
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या व: काले वहति सलिलोद्गारमुच्चैर्विमानैर्मुक्ताजाल ग्रथितमलकं कामिनीवाभ्रवृन्दम्।<ref>मेघदूत, पूर्वमेघ, 65</ref></poem> | या व: काले वहति सलिलोद्गारमुच्चैर्विमानैर्मुक्ताजाल ग्रथितमलकं कामिनीवाभ्रवृन्दम्।<ref>मेघदूत, पूर्वमेघ, 65</ref></poem> | ||
*यहाँ 'तस्योत्संगे' का अर्थ है - उस पर्वत | *यहाँ 'तस्योत्संगे' का अर्थ है - उस पर्वत अर्थात् कैलास<ref> पूर्वमेघ, 60-64</ref> की गोदी में स्थित है। | ||
*कैलास के निकट ही कालिदास ने मानसरोवर का वर्णन भी किया है - '''हेमाम्भोजप्रसविसलिलं मानसस्याददान:।'''<ref>पूर्वमेघ, 64</ref> संभव है कालिदास के समय में या उससे पूर्व कैलास के क्रोड़ में<ref> वर्तमान तिब्बत में</ref> किसी पार्वतीय जाति अथवा यक्षों की नगरी वास्तव में ही बसी हो। | *कैलास के निकट ही कालिदास ने मानसरोवर का वर्णन भी किया है - '''हेमाम्भोजप्रसविसलिलं मानसस्याददान:।'''<ref>पूर्वमेघ, 64</ref> संभव है कालिदास के समय में या उससे पूर्व कैलास के क्रोड़ में<ref> वर्तमान तिब्बत में</ref> किसी पार्वतीय जाति अथवा यक्षों की नगरी वास्तव में ही बसी हो। | ||
*कालिदास का अलका - वर्णन<ref> उत्तरमेघ के प्रारंभ में</ref> बहुत कुछ काल्पनिक होते हुए भी | *कालिदास का अलका - वर्णन<ref> उत्तरमेघ के प्रारंभ में</ref> बहुत कुछ काल्पनिक होते हुए भी किन्हीं अंशो में तथ्य पर आधारित है - यह अनुमान असंगत नहीं कहा जा सकता। उपर्युक्त पद्य में कालिदास ने [[गंगा नदी]] का उल्लेख अलका के निकट ही किया है। | ||
*वर्तमान भौगोलिक स्थिति के अनुसार गंगा ही का एक स्त्रोत - [[अलकनंदा]] कैलास के पास प्रवाहित होता है और अलका की स्थिति अलकनंदा के तट पर ही रही होगी जैसा संभवत: नाम - साम्य से इंगित होता है। | *वर्तमान भौगोलिक स्थिति के अनुसार गंगा ही का एक स्त्रोत - [[अलकनंदा]] कैलास के पास प्रवाहित होता है और अलका की स्थिति अलकनंदा के तट पर ही रही होगी जैसा संभवत: नाम - साम्य से इंगित होता है। | ||
*अलकनंदा गंगा ही की सहायक बदी है, दूसरे यह भी संभव है कि कालिदास ने क्रौंचरंध्र के उस पार भी [[हिमालय]] श्रेणियों को सामान्य रूप से कैलास कहा हो<ref> पूर्वमेघ 64</ref> न कि केवल मानसरोवर के निकटस्थ पर्वत को जैसा कि आजकल कहा जाता है। | *अलकनंदा गंगा ही की सहायक बदी है, दूसरे यह भी संभव है कि कालिदास ने क्रौंचरंध्र के उस पार भी [[हिमालय]] श्रेणियों को सामान्य रूप से कैलास कहा हो<ref> पूर्वमेघ 64</ref> न कि केवल मानसरोवर के निकटस्थ पर्वत को जैसा कि आजकल कहा जाता है। | ||
*यह उपकल्पना [[मेघदूत]]<ref> उत्तरमेघ, 10</ref> से भी पुष्ट होती है जिसमें वर्णित है कि अलका में स्थित यक्ष के घर की वापी में रहने वाले हंस बरसात में भी मानसरोवर नहीं जाते है। हंसों के लिए अलका से मानसरोवर पर्याप्त दूर होगा नहीं तो इन पक्षियों के प्रव्रजन की बात कवि न कहता। इसलिए अलका की पहाड़ी के नीचे गंगा की स्थिति इस प्रकार स्पष्ट हो जाती है कि [[कालिदास]] के अनुसार [[कैलास]] [[हिमालय]] को पार करने के | *यह उपकल्पना [[मेघदूत]]<ref> उत्तरमेघ, 10</ref> से भी पुष्ट होती है जिसमें वर्णित है कि अलका में स्थित यक्ष के घर की वापी में रहने वाले हंस बरसात में भी मानसरोवर नहीं जाते है। हंसों के लिए अलका से मानसरोवर पर्याप्त दूर होगा नहीं तो इन पक्षियों के प्रव्रजन की बात कवि न कहता। इसलिए अलका की पहाड़ी के नीचे गंगा की स्थिति इस प्रकार स्पष्ट हो जाती है कि [[कालिदास]] के अनुसार [[कैलास]] [[हिमालय]] को पार करने के पश्चात् अर्थात् [[गंगोत्री]] के उत्तर में मिलने वाली पर्वत श्रेणी का सामान्य नाम है, न कि आजकल की भांति केवल मानसरोवर के निकट स्थित पहाड़ों का, जैसा कि भूगोलविद जानते हैं। | ||
*गंगा का मूलस्त्रोत गंगोत्री के | *गंगा का मूलस्त्रोत गंगोत्री के काफ़ी उत्तर में, दुर्गम हिमालय की पहाड़ियों से प्रवाहित होता है। यह संभव है कि ये ही पर्वत श्रेणियां कालिदास के समय में कैलास स्थित [[शिव]] की जटाजुट में ही प्रथम गंगा अवतरित हुई थी। | ||
*[[अलकावती]] नामक यक्षों की नगरी का उल्लेख [[बुद्धचरित]] <ref>बुद्धचरित, 21,63</ref> में भी है जिसका भावार्थ यह है कि 'तव अलकावती नामक नगरी में 'तथागत' ने मद्र नाम के एक सदाशय यक्ष को अपने धर्म में प्रव्रजित किया'। | *[[अलकावती]] नामक यक्षों की नगरी का उल्लेख [[बुद्धचरित]] <ref>बुद्धचरित, 21,63</ref> में भी है जिसका भावार्थ यह है कि 'तव अलकावती नामक नगरी में 'तथागत' ने मद्र नाम के एक सदाशय यक्ष को अपने धर्म में प्रव्रजित किया'। | ||
07:54, 7 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण
अलका | एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- अलका (बहुविकल्पी) |
- कालिदास ने मेघदूत में जिस 'अलकापुरी' का वर्णन किया है। वह कैलास पर्वत के निकट अलकनंदा के तट पर ही बसी होगी जैसा कि नाम - साम्य से प्रकट भी होता है। कालिदास ने मेघदूत में इस नगरी को यक्षों के राजा कुबेर की राजधानी माना है|[1] कवि के अनुसार अलकापुरी की स्थिति कैलास पर्वत पर थी और गंगा इसके निकट प्रवाहित होती थी -
'तस्योत्संगे प्रणयनिड्व स्नस्तगंगादुकूलं, न त्वं दृष्टवा न पुनरलकां ज्ञास्यसे कामचारिन।
या व: काले वहति सलिलोद्गारमुच्चैर्विमानैर्मुक्ताजाल ग्रथितमलकं कामिनीवाभ्रवृन्दम्।[2]
- यहाँ 'तस्योत्संगे' का अर्थ है - उस पर्वत अर्थात् कैलास[3] की गोदी में स्थित है।
- कैलास के निकट ही कालिदास ने मानसरोवर का वर्णन भी किया है - हेमाम्भोजप्रसविसलिलं मानसस्याददान:।[4] संभव है कालिदास के समय में या उससे पूर्व कैलास के क्रोड़ में[5] किसी पार्वतीय जाति अथवा यक्षों की नगरी वास्तव में ही बसी हो।
- कालिदास का अलका - वर्णन[6] बहुत कुछ काल्पनिक होते हुए भी किन्हीं अंशो में तथ्य पर आधारित है - यह अनुमान असंगत नहीं कहा जा सकता। उपर्युक्त पद्य में कालिदास ने गंगा नदी का उल्लेख अलका के निकट ही किया है।
- वर्तमान भौगोलिक स्थिति के अनुसार गंगा ही का एक स्त्रोत - अलकनंदा कैलास के पास प्रवाहित होता है और अलका की स्थिति अलकनंदा के तट पर ही रही होगी जैसा संभवत: नाम - साम्य से इंगित होता है।
- अलकनंदा गंगा ही की सहायक बदी है, दूसरे यह भी संभव है कि कालिदास ने क्रौंचरंध्र के उस पार भी हिमालय श्रेणियों को सामान्य रूप से कैलास कहा हो[7] न कि केवल मानसरोवर के निकटस्थ पर्वत को जैसा कि आजकल कहा जाता है।
- यह उपकल्पना मेघदूत[8] से भी पुष्ट होती है जिसमें वर्णित है कि अलका में स्थित यक्ष के घर की वापी में रहने वाले हंस बरसात में भी मानसरोवर नहीं जाते है। हंसों के लिए अलका से मानसरोवर पर्याप्त दूर होगा नहीं तो इन पक्षियों के प्रव्रजन की बात कवि न कहता। इसलिए अलका की पहाड़ी के नीचे गंगा की स्थिति इस प्रकार स्पष्ट हो जाती है कि कालिदास के अनुसार कैलास हिमालय को पार करने के पश्चात् अर्थात् गंगोत्री के उत्तर में मिलने वाली पर्वत श्रेणी का सामान्य नाम है, न कि आजकल की भांति केवल मानसरोवर के निकट स्थित पहाड़ों का, जैसा कि भूगोलविद जानते हैं।
- गंगा का मूलस्त्रोत गंगोत्री के काफ़ी उत्तर में, दुर्गम हिमालय की पहाड़ियों से प्रवाहित होता है। यह संभव है कि ये ही पर्वत श्रेणियां कालिदास के समय में कैलास स्थित शिव की जटाजुट में ही प्रथम गंगा अवतरित हुई थी।
- अलकावती नामक यक्षों की नगरी का उल्लेख बुद्धचरित [9] में भी है जिसका भावार्थ यह है कि 'तव अलकावती नामक नगरी में 'तथागत' ने मद्र नाम के एक सदाशय यक्ष को अपने धर्म में प्रव्रजित किया'।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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