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{'अनिल' का [[पर्यायवाची शब्द]] क्या है? | {'अनिल' का [[पर्यायवाची शब्द]] क्या है? | ||
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{'कठिन काव्य | {'कठिन काव्य का प्रेत' किस कवि के लिए कहा गया है? | ||
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-[[सूर्यकांत त्रिपाठी निराला|निराला]] | -[[सूर्यकांत त्रिपाठी निराला|निराला]] | ||
-[[बिहारी]] | -[[बिहारी]] | ||
-[[अज्ञेय]] | |||
+[[केशवदास]] | |||
||[[चित्र: | ||[[चित्र:Keshavdas.jpg|right|100px|right]][[हिन्दी]] में सर्वप्रथम केशवदास जी ने ही काव्य के विभिन्न अंगों का शास्त्रीय पद्धति से विवेचन किया। यह ठीक है कि उनके काव्य में भाव पक्ष की अपेक्षा कला पक्ष की प्रधानता है और पांडित्य प्रदर्शन के कारण उन्हें 'कठिन काव्य का प्रेत' कहकर पुकारा जाता है, किंतु उनका महत्त्व बिल्कुल समाप्त नहीं हो जाता। भाव और [[रस]] कवित्व की [[आत्मा]] है। केशव अपने रचना-चमत्कार द्वारा श्रोता और पाठकों को चमत्कृत करने के प्रयास में रहे हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[केशवदास]] | ||
{'मुख रूपी | {'मुख रूपी चाँद पर राहु भी धोखा खा गया', इन पंक्तियों में कौन-सा अलंकार है? | ||
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-[[श्लेष अलंकार|श्लेष]] | -[[श्लेष अलंकार|श्लेष]] | ||
-वक्रोक्ति | -[[वक्रोक्ति अलंकार|वक्रोक्ति]] | ||
+[[रूपक अलंकार|रूपक]] | +[[रूपक अलंकार|रूपक]] | ||
-[[उपमा अलंकार|उपमा]] | -[[उपमा अलंकार|उपमा]] | ||
{वियोगी हरि जी का पूर्ण नाम क्या था? | {[[वियोगी हरि]] जी का पूर्ण नाम क्या था? | ||
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-श्री रामप्रसाद द्विवेदी | -श्री रामप्रसाद द्विवेदी | ||
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|type="()"} | |type="()"} | ||
-[[ब्रजभाषा|ब्रज बोली]] | -[[ब्रजभाषा|ब्रज बोली]] | ||
-खड़ी बोली | -[[खड़ी बोली]] | ||
-[[बुंदेली भाषा|बुंदेली बोली]] | -[[बुंदेली भाषा|बुंदेली बोली]] | ||
+[[बघेली बोली]] | +[[बघेली बोली]] | ||
||बघेले [[राजपूत|राजपूतों]] के आधार पर [[रीवा]] तथा आसपास का क्षेत्र बघेलखंड कहलाता है, और वहाँ की बोली को 'बघेलखंडी' या [[बघेली बोली|बघेली]] कहते हैं। बघेली का उद्भव अर्धमागधी अपभ्रंश के ही एक क्षेत्रीय रूप से हुआ है। यद्यपि जनमत इसे अलग बोली मानता है, किंतु [[भाषा]] वैज्ञानिक स्तर पर पर यह [[अवधी भाषा|अवधी]] की ही उपबोली ज्ञात होती है, और इसे दक्षिणी अवधी कह सकते हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[बघेली बोली]] | ||बघेले [[राजपूत|राजपूतों]] के आधार पर [[रीवा]] तथा आसपास का क्षेत्र बघेलखंड कहलाता है, और वहाँ की बोली को 'बघेलखंडी' या [[बघेली बोली|बघेली]] कहते हैं। बघेली का उद्भव अर्धमागधी अपभ्रंश के ही एक क्षेत्रीय रूप से हुआ है। यद्यपि जनमत इसे अलग बोली मानता है, किंतु [[भाषा]] वैज्ञानिक स्तर पर पर यह [[अवधी भाषा|अवधी]] की ही उपबोली ज्ञात होती है, और इसे दक्षिणी अवधी कह सकते हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[बघेली बोली]] | ||
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12:39, 5 नवम्बर 2016 के समय का अवतरण
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- इस विषय से संबंधित लेख पढ़ें:- भाषा प्रांगण, हिन्दी भाषा
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