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[[त्रिपुरा]]
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! '''त्रिपुरा प्रदेश के ज़िले'''
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[[District::उत्तर त्रिपुरा ज़िला]] '''.'''
[[District::दक्षिण त्रिपुरा ज़िला]] '''.'''
[[District::धलाई ज़िला]] '''.'''
[[District::पश्चिम त्रिपुरा ज़िला]]
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{| class="wikitable"
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!कहावत लोकोक्ति मुहावरे
!अर्थ
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| style="width:30%"|
1- जो बोये गेहूं पांच पसेरी, मटर के बीघा तीन सेर,<br />
बोये चना पसेरी तीन, सेर तीन जुबारी कीन्ह,<br />
दो सेर मेथी अरहर माल, डेढ सेर बीघा बीज कपास,<br />
पांच पसेरी बीघा धान, खूब उपज भर कोटिला धान।
| style="width:70%"|
अर्थ - एक बीघा में पांच सेर गेहूं,  मटर तीन सेर, चना तीन पसेरी,  ज्वार तीन सेर, अरहर और उड़द दो दो सेर बोना चाहिए। डेढ़ सेर कपास और धान पांच पसेरी बोया जाए तो अनाज की इतनी उपज होगी कि आपके भंडार भर जायेंगे।
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|2- जो हल जोतै खेती वाकी, और नहीं तो जाकी ताकी।
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अर्थ -
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|3- जब बरखा चित्रा में होय। सगरी खेती जावै खोय।।
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अर्थ - चित्रा नक्षत्र की वर्षा प्राय: सारी खेती नष्ट कर देती है।
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|4- जो बरसे पुनर्वसु स्वाती। चरखा चलै न बोलै तांती।।
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अर्थ - पुनर्वसु और स्वाति नक्षत्र की बारिश से किसान सुखी रहते है, उन्हें और तांत(चरखा) चलाकर जीवन निर्वाह करने की जरूरत नहीं पड़ती।
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|5- जो कहुं मग्घा बरसै जल। सब नाजों में होगा फल।।
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अर्थ - मघा नक्षत्र में पानी बरसने से सब अनाज अच्छी तरह पैदा होते हैं।
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|6- जब बरसेगा उत्तरा। नाज न खावै कुत्तरा।।
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अर्थ - यदि उत्तरा नक्षत्र बरसेगा तो अन्न इतना अधिक होगा कि उसे कुत्ते भी नहीं खाएंगे।
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|7- जंगल में मोर नाचा किसने देखा।
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अर्थ - ऐसे स्थान पर गुण प्रदर्शन न करें जहाँ कद्र न हो।
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|8- जड़ काटते जाएं, पानी देते जाएं।
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अर्थ -  भीतर से शत्रु ऊपर से मित्र।
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|9- जने–जने की लकड़ी, एक जने का बोझ।
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अर्थ - सबसे थोड़ा-थोड़ा मिले तो काम पूरा हो जाता है।
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|10- जब चने थे दाँत न थे, जब दाँत भये तब चने नहीं।
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अर्थ - कभी वस्तु  है तो उसका भोग करने वाला नहीं और कभी भोग करने वाला है तो वस्तु  नहीं।।
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|11- जब तक जीना तब तक सीना।
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अर्थ - जीते-जी कोई न कोई काम करना पड़ता है।
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|12- जब तक साँस तब तक आस।
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अर्थ - अंत समय तक उम्मीद बनी रहती है।
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|13- जबरदस्ती का ठेंगा सिर पर।
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अर्थ - जबरदस्ती आदमी दबाव डाल कर काम लेता है ।
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|14- जबरा मारे रोने न दे।
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अर्थ - जवरदस्त आदमी का अत्याचार चुपचाप सहना पड़ता है।
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|15- ज़बान को लगाम चाहिए।
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अर्थ - सोच-समझकर बोलना चाहिए।
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|16- ज़बान ही हाथी चढ़ाए, ज़बान ही सिर कटाए।
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अर्थ - मीठी बोली से आदर और कड़वी बोली से निरादर होता है।
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|17- ज़र का ज़ोर पूरा है, और सब अधूरा है।
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अर्थ - धन सबसे बलवान है।
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|18- ज़र है तो नर, नहीं तो खंडहर।
|
अर्थ - पैसे से ही आदमी का सम्मान है।
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|19- जल में रहकर मगर से बैर।
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अर्थ - जहाँ रहना हो वहाँ के मुखिया से बैर ठीक नहीं होता ।
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|20- जस दूल्हा तस बनी बराता।
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अर्थ - जैसे आप वैसे साथी।
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|21- जहं जहं चरण पड़े संतन के, तहं तहं बंटाधार।
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अर्थ - अभागा व्यक्ति जहाँ जाता है, बुरा होता है। 
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|22- जहाँ गुड़ होगा, वहीं मक्खियाँ होंगी।
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अर्थ - आकर्षक जगह पर लोग जमा होते हैं।
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|23- जहाँ चार बासन होगें, वहाँ खटकेगें भी।
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अर्थ - जहाँ कुछ व्यक्ति होते है वहाँ कभी-कभी झगड़ा हो ही जाता है।
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|24- जहाँ चाह वहाँ राह।
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अर्थ - इच्छा हो तो काम करने का रास्ता निकल ही आता है।
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|25- जहाँ देखे तवा परात, वहीं गुजारी सारी रात।
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अर्थ - जहाँ कुछ प्राप्ति होती हो, वहाँ लालची आदमी जम जाता है।
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|26- जहाँ न पहुँचे रवि वहाँ पहुँचे कवि।
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अर्थ - कवि अपनी  कल्पना से सब जगह पहुँच जाता है।
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|27- जहाँ फूल वहाँ काँटा।
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अर्थ - अच्छाई के साथ बुराई भी लगी होती है।
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|28- जहाँ मुर्गा नहीं होता क्या वहाँ सवेरा नहीं होता।
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अर्थ - किसी के बिना काम रुकता नहीं है।
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|29- जाके पैर न फटी बिवाई, सो क्या जाने पीर पराई।
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अर्थ - दु:ख को भुक्ता भोगी ही जानता है उसे अन्य  कोई नहीं जान सकता है।
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|30- जागेगा सो पावेगा,सोवेगा सो खोएगा।
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अर्थ - लाभ इसमें है कि आदमी सतर्क रहे।
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|31- जादू वह जो सिर पर चढ़कर बोले।
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अर्थ - असरदार आदमी की बात माननी ही पड़ती है।
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|32- जान मारे बनिया पहचान मारे चोर।
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अर्थ - बनिया और चोर जान पहचान वालों को भी ठगते हैं।
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|33- जाएं लाख, रहे साख।
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अर्थ - धन भले ही चला जाए, इज्जत बचनी चाहिए।
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|34- जितना गुड़ डालो, उतना ही मीठा।
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अर्थ - जितना खर्चा करोगे चीज़ उतनी ही अच्छी मिलेगी।
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|35- जितनी चादर देखो, उतने ही पैर पसारो।
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अर्थ - आमदनी के हिसाब से खर्च करो।
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|36- जितने मुँह उतनी बातें।
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अर्थ - अनेक प्रकार की अफवाहें।
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|37- जिन खोजा तिन पाइयाँ, गहरे पानी पैंठ।
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अर्थ - जितना कठिन परिश्रम उतना ही लाभ होता है।
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|38- जिस तन लगे वही तन जाने।
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अर्थ - जिसको कष्ट  होता है वही उसका अनुभव कर सकता है।
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|39- जिस थाली में खाना, उसी में छेद करना।
|
अर्थ - जो उपकार करे, उसका ही अहित करना।
|-|}
|40- जिसका काम उसी को साजै।
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अर्थ - जो काम जिसका है वही उसे भली प्रकार से कर सकता है।
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|41- जिसका खाइए उसका गाइए।
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अर्थ - जिससे लाभ हो उसी का पक्ष लो।
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|42- जिसकी जूती उसी के सिर।
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अर्थ - जिसकी करनी उसी को फल मिलता है।
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|43- जिसकी लाठी उसी की भैंस।
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अर्थ - शक्ति संपन्न आदमी का रौब चलता है और वह अपना काम बना लेता है।
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|44- जिसके ह‍ाथ डोई, उसका सब कोई।
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अर्थ - धनी आदमी के सब मित्र हैं।
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|45- जिसको पिया चाहे, वहीं सुहागिन।
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अर्थ - जिसको अफ़सर माने,वहीं योग्य है।
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|46- जी का बैरी जी।
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अर्थ - मनुष्य ही मनुष्य का शत्रु है।
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|47- जीभ भी जली और स्वाद भी न आया।
|
अर्थ - कष्ट सहकर भी सुख न मिला।
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|48- जूँ के डर से गुदड़ी नहीं फेंकी जाती
|
अर्थ - थोड़ी सी कठिनाई के कारण कोई काम छोड़ा नहीं जाता।




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|49- कुँए की मिट्टी कुँए में ही लगती है।
 
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==हिंदी विश्वकोश पर बने लेखों की सूची==
अर्थ - लाभ जहाँ से होता है वहीं खर्च भी हो जाता है।
<poem>
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अंग्रेज़ी भाषा
|50- कुतिया चोरों से मिल जाए तो पहरा कौन दे।
अक्षरअनन्य
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अज्ञेय, सच्चिदानंद हीरानन्द वात्स्यायन
अर्थ - जब रक्षक ही बेईमान हो जाए तो क्या रास्ता है ?
अतिशयोक्ति अलंकार
|-
अनुप्रास अलंकार
|51-  कुत्ता भी दुम हिलाकर बैठता है।
अनूप शर्मा
|
अपभ्रंश भाषा
अर्थ - सफ़ाई सब को पसंद होती है।
अमरेश
|-
अमीर ख़ुसरो
|52- कुत्ते की दुम बारह बरस नली में रखो तो भी टेढ़ी की टेढ़ी।
अमृता प्रीतम
|
अयोध्याप्रसाद खत्री
अर्थ - लाख प्रयत्न  करो, कुटिल व्यक्ति अपनी कुटिलता नहीं छोड़ता।
अयोध्यासिंह उपाध्याय
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अरबिंदो घोष
|53- कुत्ते को घी नहीं पचता।
अरबी भाषा
|
अर्जुनदास केडिया
अर्थ - नीच आदमी उच्चे पद पाकर दूसरों को बेवकूफ समझने लगता है।
अर्थालंकार
|-
अलंकार
|54- कुत्ते के भौकनें से हाथी नहीं डरते।
अली मुहिब खाँ
|
अवधी भाषा
अर्थ - महापुरूष  नीच व्यक्ति के द्वारा निंदा करने से नहीं घबराते हैं।
अवहट्ट
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अविकारी शब्द
|55- कुम्हार अपना ही घड़ा सराहता है।
अश्वघोष
|
अष्टछाप कवि
अर्थ - हर कोई अपनी वस्तु की प्रशंसा करता है।
असमिया भाषा
|-
आंडाल
|56- कै हंसा मोती चुगे, कै भूखा मर जाय।
आठवीं अनुसूची
|
आदि शंकराचार्य
अर्थ - प्रतिष्ठित व्यक्ति अपनी मर्यादा में रहता है। स्वाभिमान को छोड़कर नहीं जीना पसंद करता।
आधुनिक हिंदी
|-
आरमाइक भाषा
|57- कोई मरे कोई जीवे, सुथरा घोल बताशा गावे।
आरमाइक लिपि
|
आरसी प्रसाद सिंह
अर्थ - सबको अपने सुख-दु:ख से मतलब होता है। दूसरों के दु:ख की कोई चिन्ता नहीं करता।
आलम
|-
उड़िया भाषा
|58- कोई माल मस्तख़, कोई हाल मस्तत।
उत्प्रेक्षा अलंकार
|
उदय प्रकाश
अर्थ - कोई अमीरी से संतुष्ट, कोई गरीबी में भी संतुष्ट है।
उद्धरण चिह्न
|-
उपमा अलंकार
|59- कोठी वाला रोवे, छप्पर वाला सोवे।
उपमेयोपमा अलंकार
|
उपवाक्य
अर्थ - धनवान धन होने पर भी चिंतित रहता है, गरीब धन ना होने पर भी निश्चिंत रहता है।
उपसर्ग
|-
उर्दू भाषा
|60- कोयल होय न उजली, सौ मन साबुन लाइ।
उल्लेख अलंकार
|
उसमान
अर्थ - कोशिश करने पर भी स्वभाव नहीं बदलता है।
कन्नड़ भाषा
|-
कन्नौजी बोली
|61- कोयलों की दलाली में हाथ काले।
कबीर
|
कलकतिया हिंदी
अर्थ -  बुरों की संगत से भले आदमी को भी कलंक लग जाता है।
कलिंग लिपि
|-
कल्हण
|62- कौड़ी नहीं गाँठ, चले बाग की सैर।
कवींद्र
|
कश्मीरी भाषा
अर्थ - पूरे साधन नहीं और काम शुरू कर दिया।
क़ादिर बख्श
|-
काका हाथरसी सम्मान
|63- कौन कहे राजा जी नंगे हैं।
कारक
|
काल
अर्थ - बड़े लोगों की बुराई करने कि हिम्मत किसी की नहीं होती।
कालिदास
|-
कालिदास त्रिवेदी
|64- कौआ चला हंस की चाल, भूल गया अपनी भी चाल।
कासिमशाह
|
कुतबन
अर्थ - दूसरों की नकल करने से व्यक्ति अपना व्यक्तित्व भी खो बैठता है।
कुमायूँनी बोली
|-
कुमार मणिभट्ट
|65- क्या पिद्दी और क्या पिद्दी का शोरबा।
कुम्भनदास
|
कुरुख भाषा
अर्थ - तुच्छ वस्तु या व्यक्ति से बड़ा काम नहीं हो सकता है।
कुलपति मिश्र
|-
कृपाराम
|66- का वर्षा  जब कृषि सुखानी।
कृष्ण (कवि)
|
कृष्णदास
अर्थ - अवसर निकलने जाने पर सहायता मिलना व्यर्थ होता है।
केशव
|-
कोंकणी भाषा
|67- कच्ची गोली नहीं खेलना।
कोष्ठक चिह्न
|
कौरवी बोली
अर्थ - अनुभवहीन नही होना , पारंगत होना।
क्रिया
|-
क्रियाविशेषण
|68- कट जाना।
खड़ी बोली
|
खरोष्ठी
अर्थ - शर्मिंदा होना, शर्मिंदा होकर सामने ना पड़ना।
गंग
|-
गंजन
|69- कटे पर नमक छिड़कना।
गढ़वाली बोली
|
गदाधर भट्ट
अर्थ -  दु:खी व्यक्ति को और अधिक दु:खी करना।
गुजराती भाषा
|-
गुयानी हिंदी
|70- कढ़ी का सा उबाल।
गुरुमुखी लिपि
|
गोविंदस्वामी
अर्थ - मामूली से जोश में आना।
ग्रन्थ लिपि
|_
घनानन्द
|71- कदम उखड़ना।
चंदबरदाई
|
चतुर्भुजदास
अर्थ - भाग खड़े होना।
चिंतामणि त्रिपाठी
|-
चौपाई
|72- कन्नी काटना।
छत्तीसगढ़ी बोली
|
छन्द
अर्थ - सामने ना पड़ना, कतरा कर निकल जाना।
छीतस्वामी
|-
छीहल
|73- कमर कसना।
जगजीवनदास
|
जमाल
अर्थ - पूरी तरह तैयार हो जाना।
जयदेव
|-
जयशंकर प्रसाद
|74- कलम का धनी।
टोडरमल
|
डिंगल
अर्थ - अच्छा लेखक होना, भाषा पर पकड़ होना।
डोगरी भाषा
|-
तमिल भाषा
|75- कलम तोड़ना।
तमिल लिपि
|
ताजुज़्बेकी हिंदी
अर्थ - बहुत बढ़िया लिखना।
तुकाराम
|-
तुलसीदास
|76- कली खिलना।
तेलुगु एवं कन्नड़ लिपि
|
तेलुगु भाषा
अर्थ - बहुत खुश होना।
तोरु दत्त
|-
तोषनिधि
|77- कलेजा ठंडा होना।
त्रिनिदादी हिंदी
|
त्रुटिबोधक चिह्न
अर्थ - मन को सुख, शांति और सकून मिलना।
दंडी
|-
दक्खिनी हिंदी
|78- कलेजा धक से रह जाना।
दक्षिण अफ़्रीक़ी हिंदी
|
दलपतराम
अर्थ - डर जाना, घबरा जाना।
दलपति राय
|-
दशकुमारचरित
|79- कलेजा मुँह को आना।
दूलह
|
दृष्टान्त अलंकार
अर्थ - दु:ख होना, परेशान होना।
देव
|-
देवनागरी लिपि
|80- कलेजा का टुकड़ा।
देवनागरी लिपि का विकास
|
देवनागरी लिपि के गुण और दोष
अर्थ - बहुत प्यारा बेटा होना।
दोहा
|-
धर्मदास
|81- कलेजे पर साँप लोटना।
धर्मवीर भारती
|
ध्रुवदास
अर्थ - डाह से कुढ़ना, जलन होना।
नंददास
|-
नरोत्तमदास
|82- कहा-सुनी होना।
नवोदित लेखक पुरस्कार
|
नागरीप्रचारिणी सभा
अर्थ - लड़ाई झगड़ा होना।
नागार्जुन
|-
नाभादास
|83- काँटा दूर होना।
निरर्थक शब्द (व्याकरण)
|
निर्मल वर्मा
अर्थ - बाधा दूर होना, रूकावटें हट जाना।
नूर मुहम्मद
|-
नेपाली भाषा
|84- काँटे बिछाना।
नेपाली हिंदी
|
नेवाज
अर्थ - रूकावटें और अड़चने पैदा करना।
पंजाबी भाषा
|-
परमानंद दास
|85- काँटों पर लेटना।
पश्चिमी पहाड़ी बोली
|
पहलवी भाषा
अर्थ - बेचैन होना, परेशान होना।
पहाड़ी बोली
|-
पालि भाषा
|86- काँटों पर घसीटना।
पुल्लिंग
|
पुष्पदंत
अर्थ - संकट, मुसीबत में डालना।
पुहकर कवि
|-
प्रत्यय
|87- कागजी घोड़े दौड़ाना।
प्रश्नवाचक चिह्न
|
प्राकृत भाषा
अर्थ - केवल लिखा-पढ़ी करते रहना।
प्राणचंद चौहान
|-
प्रेमचन्द
|88- काजल की कोठरी।
फणीश्वरनाथ रेणु
|
फ़ारसी भाषा
अर्थ - कलंक लगने का स्थान।
फिजी हिंदी
|-
बंसीधर
|89- काठ का उल्लू।
बघेली बोली
|
बनारसी दास
अर्थ - महामूर्ख होना, बुद्धि ना होना।
बलभद्र मिश्र
|-
बांग्ला भाषा
|90- काठ मार जाना।
बांग्ला लिपि
|
बाणभट्ट
अर्थ - हतप्रभ हो जाना, अचम्भित होना।
बाल भारत
|-
बालकृष्ण शर्मा नवीन
|91- कान कतरना।
बिहारी भाषा
|
बिहारी लाल
अर्थ - मात देना, बेवकूफ बनाना।
बीर
|-
बीरबल
|92- कान खड़े होना।
बुन्देली बोली
|
बेनी
अर्थ -  चौकन्ना  होना।
बैरीसाल
|-
बैसवाड़ी बोली
|93- कान खोलना।
बोडो भाषा
|
ब्रजभाषा
अर्थ -  सावधान  कर देना।
ब्राह्मी लिपि
|-
भक्तिकाल
|94- कान गरम करना।
भगवतीचरण वर्मा
|
भट्टोजिदीक्षित
अर्थ - पिटाई करना।
भवभूति
|-
भारत रत्न
|95- कान देना।
भारतेन्दु हरिश्चंद्र
|
भारवि
अर्थ - ध्यान से सुनना।
भास
|-
भिखारी दास
|96- कान पकड़ना।
भूपति राज गुरुदत्त सिंह
|
भूषण
अर्थ -  गलती मान लेना।
भोजपुरी भाषा
|-
मंखक
|97- कान पर जूँ तक न रेंगना।
मंझन
|
मंडन
अर्थ - कुछ भी परवाह न करना।
मगही बोली
|-
मणिपुरी भाषा
|98- कान भरना।
मतिराम
|
मनोहर
अर्थ - चुगली करना।
मराठी भाषा
|-
मलयालम भाषा
|99- कान में बात डाल देना।
मलूकदास
|
महात्मा गाँधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय
अर्थ -  सुना देना, कह देना।
महादेवी वर्मा
|-
महापात्र नरहरि बंदीजन
|100- कान में तेल डालकर बैठना।
महावीर प्रसाद द्विवेदी
|
माखन लाल चतुर्वेदी
अर्थ -  सुनकर भी सुनी हुई बात पर ध्यान न देना।
मागधी भाषा
|-
माघ कवि
|101- कान में फूँकना।
मारवाड़ी बोली
|
मीरां
अर्थ - चुपचाप से कह देना।
मुक्तिबोध गजानन माधव
|-
मुम्बईया हिंदी
|102- कान लगाना।
मृच्छकटिकम
|
मैथिली भाषा
अर्थ - ध्यान देकर सुनना।
मैथिलीशरण गुप्त
|-
मैथिलीशरण गुप्त की रचनाएँ
|103- काफूर होना।
मॉरिशसी हिंदी
|
मोहन राकेश
अर्थ - गायब हो जाना।
यमक अलंकार
|-
यशपाल
|104- काम आना।
योजक चिह्न
|
रंगलाल बनर्जी
अर्थ - शत्रु के हाथों मारा जाना।
रघुनाथ (कवि)
|-
रघुवीर सहाय
|105- काम तमाम करना।
रस
|
रसखान
अर्थ -  मार डालना। 
रसलीन
|-
रसिक सुमति
|106- काया पलट जाना।
रहीम
|
राजभाषा हिंदी
अर्थ - बदल कर दूसरा ही रूप हो जाना।
राजशेखर
|-
राजस्थानी भाषा
|107- काल कवलित होना।
राजेश जोशी
|
राम (कवि)
अर्थ -  मर जाना।
रामकुमार वर्मा
|-
रामचन्द्र शुक्ल
|108- काल के गाल में जाना।
रामधारी सिंह दिनकर
|
रामनरेश त्रिपाठी
अर्थ - मर जाना।
रामविलास शर्मा
|-
राय कृष्णदास
|109- काला नाग।
राष्ट्रभाषा हिंदी
|
रूपक अलंकार
अर्थ - खोटा या घातक व्यक्ति ।
रूपसाहि
|-
रेखांकन चिह्न
|110- काला मुँह करना।
रैदास
|
लाघव चिह्न
अर्थ - बदनामी करना, नाम खराब करना।
लालच दास
|-
लालचंद
|111- काले कोसों।
लिंग
|
लिपि
अर्थ -  बहुत दूर।
लोप चिह्न
|-
वचन (हिंदी)
|112- क़िताबी कीड़ा होना।
वट्टेळुत्तु लिपि
|
वर्णमाला (व्याकरण)
अर्थ - केवल पढ़ने में ही लगे रहना।
वर्तनी (हिंदी)
|-
विकारी शब्द
|113- किरकिरी हो जाना।
विद्यालय हिन्दी शिक्षक सम्मान
|
विराम चिह्न
अर्थ - विघ्न पड़ना।
विरोधाभास अलंकार
|-
विशाखदत्त
|114- किस दर्द या मर्ज़ की दवा।
विशेषण
|
विश्व हिंदी दिवस
अर्थ - किसी भी काम का न होना।
विष्णु प्रभाकर
|-
विस्मयसूचक चिह्न
|115- किस्मत फूटना।
विस्मयादिबोधक
|
व्यंजन (व्याकरण)
अर्थ - बुरे दिन आना।
व्याकरण
|-
व्यास जी
|116- कीचड़ उछालना।
शंकरदेव
|
शंभुनाथ मिश्र
अर्थ -  निंदा करना।
शती
|-
शब्द (व्याकरण)
|117- कुआँ खोदना।
शलाका सम्मान
|
शारदा लिपि
अर्थ - किसी को हानि पहुँचाने की कोशिश करना।
शिलांगी हिंदी
|-
शिवसहाय दास
|118- कुएँ में गिरना।
शूद्रक
|
शेख नबी
अर्थ -  विपत्ति में पड़ जाना।
शौरसेनी
|-
श्रीधर
|119- कुएँ में भाँग पड़ना।
श्रीपति (कवि)
|
श्रीभट्ट
अर्थ - सबकी बुद्धि मारी जाना।
श्रीलाल शुक्ल
|-
श्रीहर्ष
|120- कुछ उठा न रखना।
श्लेष अलंकार
|
संज्ञा
अर्थ - कोई कसर या कमी न छोड़ना।
संथाली भाषा
|-
संधि
|121- कुत्ते की दुम।
संवत
|
संस्कृत भाषा
अर्थ - जैसा है वैसा ही रहना, बदलाव ना आना।
समुच्यबोधक
|-
सम्बन्धबोधक
|122- कुत्ते की मौत मरना।
सरोजिनी नायडू
|
सर्वनाम
अर्थ -  बुरी तरह मरना। 
सार्थक शब्द (व्याकरण)
|-
साहित्यकार सम्मान
|123- कूच कर जाना।
साहित्यिक कृति सम्मान
|
सिंधी भाषा
अर्थ -  चले जाना।
सिंहली
|-
सिन्धु लिपि
|124- कूप मंडूक होना।
सुंदर दास
|
सुखदेव मिश्र
अर्थ -  सीमित ज्ञान या अनुभव वाला होना।
सुन्दरदास खण्डेलवाल
|-
सुभद्रा कुमारी चौहान
|125- कोई दम भर का मेहमान होना।
सुमित्रानंदन पंत
|
सूरति मिश्र
अर्थ -  मरने के क़रीब होना।
सूरदास
|-
सूरदास मदनमोहन
|126- कोढ़ में खाज होना।
सूरीनामी हिंदी
|
सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
अर्थ - दु:ख में और दु:ख होना।
सेनापति
|-
सैय्यद मुबारक़ अली बिलग्रामी
|127- कोर दबना।
सोमनाथ माथुर
|
स्त्रीलिंग
अर्थ - दबाव में होना।
स्वयंभू देव
|-
स्वर (व्याकरण)
|128- कोल्हू का बैल।
स्वामी अग्रदास
|
स्वामी हरिदास
अर्थ -  दिन रात काम में लगे रहने वाला।
हड़प्पा लिपि
|-
हरियाणवी बोली
|129- कौए उड़ाना।
हरिवंश राय बच्चन
|
हरिषेण
अर्थ -  घटिया या छोटे काम करना।
हिंदी
|-
हिंदी अकादमी
|130- कौड़ी-कौड़ी पर जान देना।
हिंदी अकादमी की संचालन समिति
|
हिंदी अकादमी के सम्मान और पुरस्कार
अर्थ - कंजूस होना।
हिंदी अकादमी: योजनाएँ एवं कार्यक्रम
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हिंदी का मानकीकरण
|131- कंधे से कंधा छिलना।
हिंदी की अखिल भारतीयता का इतिहास
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अर्थ - भारी भीड़ का होना, मेलों में यात्रियों का कंधे से कंधे छिलता है।  
हिंदी के अर्थ और नाम
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|132- ककड़ी-खीरा समझना।
हिंदी वर्णमाला (व्याकरण)
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हिंदी साहित्य
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हितहरिवंश
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हृदयराम
|133- कच्चा चिट्ठा खोलना।
हॉलैंडी हिंदी
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</poem>
अर्थ - सबके सामने सब भेद खोल देना।
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पेज - 117
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228 - देखकर मक्खी  नहीं निगली जाती,
* महाभारत का फारसी अनुवाद अकबर के काल में हुआ जिसे 'रज्मनामा' के नाम से जाना गया।
`अर्थ - कहावत - अहित सामने देखकर चुप नहीं रहा जाता।
* रामचरितमानस को ग्रियर्सन ने  'करोड़ों लोगों की बाइबिल' कहा है।
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* कॉबेल ने मुकुंद राम को ' बंगाल का क्रेव' कहा है।
* अकबर ने  बीरबल को 'कविप्रिय' कहा है।
* नरहरि को 'महापात्र' की उपाधि दी गयी थी।
* मीर सैयद अली व ख्वाजा अब्दुस्समद कोप 'सिरिकलम' की उपाधि से विभूषित किया गया था।
* मुहम्मद हुसैन को 'जरींकलम' की उपाधि से विभूषित किया गया था।
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
 
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06:11, 27 नवम्बर 2024 के समय का अवतरण


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  • महाभारत का फारसी अनुवाद अकबर के काल में हुआ जिसे 'रज्मनामा' के नाम से जाना गया।
  • रामचरितमानस को ग्रियर्सन ने 'करोड़ों लोगों की बाइबिल' कहा है।
  • कॉबेल ने मुकुंद राम को ' बंगाल का क्रेव' कहा है।
  • अकबर ने बीरबल को 'कविप्रिय' कहा है।
  • नरहरि को 'महापात्र' की उपाधि दी गयी थी।
  • मीर सैयद अली व ख्वाजा अब्दुस्समद कोप 'सिरिकलम' की उपाधि से विभूषित किया गया था।
  • मुहम्मद हुसैन को 'जरींकलम' की उपाधि से विभूषित किया गया था।

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