"आह ! वेदना मिली विदाई -जयशंकर प्रसाद": अवतरणों में अंतर

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आह ! वेदना मिली विदाई
आह ! वेदना मिली विदाई
मैंने भ्रमवश जीवन संचित,
मैंने भ्रमवश जीवन संचित,
मधुकरियों की भीख लुटाई
मधुकरियों की भीख लुटाई।


छलछल थे संध्या के श्रमकण
छलछल थे संध्या के श्रमकण,
आँसू-से गिरते थे प्रतिक्षण
आँसू-से गिरते थे प्रतिक्षण,
मेरी यात्रा पर लेती थी
मेरी यात्रा पर लेती थी
नीरवता अनंत अँगड़ाई
नीरवता अनंत अँगड़ाई।


श्रमित स्वप्न की मधुमाया में
श्रमित स्वप्न की मधुमाया में,
गहन-विपिन की तरु छाया में
गहन-विपिन की तरु छाया में,
पथिक उनींदी श्रुति में किसने
पथिक उनींदी श्रुति में किसने
यह विहाग की तान उठाई
यह विहाग की तान उठाई?


लगी सतृष्ण दीठ थी सबकी
लगी सतृष्ण दीठ थी सबकी,
रही बचाए फिरती कब की
रही बचाए फिरती कब की,
मेरी आशा आह ! बावली
मेरी आशा आह ! बावली
तूने खो दी सकल कमाई
तूने खो दी सकल कमाई।


चढ़कर मेरे जीवन-रथ पर
चढ़कर मेरे जीवन-रथ पर,
प्रलय चल रहा अपने पथ पर
प्रलय चल रहा अपने पथ,
मैंने निज दुर्बल पद-बल पर
मैंने निज दुर्बल पद-बल पर
उससे हारी-होड़ लगाई
उससे हारी-होड़ लगाई।


लौटा लो यह अपनी थाती
लौटा लो यह अपनी थाती,
मेरी करुणा हा-हा खाती
मेरी करुणा हा-हा खाती,
विश्व ! न सँभलेगी यह मुझसे
विश्व ! न सँभलेगी यह मुझसे
इसने मन की लाज गँवाई
इसने मन की लाज गँवाई।
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==संबंधित लेख==
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14:01, 6 मार्च 2012 के समय का अवतरण

आह ! वेदना मिली विदाई -जयशंकर प्रसाद
जयशंकर प्रसाद
जयशंकर प्रसाद
कवि जयशंकर प्रसाद
जन्म 30 जनवरी, 1889
जन्म स्थान वाराणसी, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 15 नवम्बर, सन् 1937
मुख्य रचनाएँ चित्राधार, कामायनी, आँसू, लहर, झरना, एक घूँट, विशाख, अजातशत्रु
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
जयशंकर प्रसाद की रचनाएँ

आह ! वेदना मिली विदाई
मैंने भ्रमवश जीवन संचित,
मधुकरियों की भीख लुटाई।

छलछल थे संध्या के श्रमकण,
आँसू-से गिरते थे प्रतिक्षण,
मेरी यात्रा पर लेती थी
नीरवता अनंत अँगड़ाई।

श्रमित स्वप्न की मधुमाया में,
गहन-विपिन की तरु छाया में,
पथिक उनींदी श्रुति में किसने
यह विहाग की तान उठाई?

लगी सतृष्ण दीठ थी सबकी,
रही बचाए फिरती कब की,
मेरी आशा आह ! बावली
तूने खो दी सकल कमाई।

चढ़कर मेरे जीवन-रथ पर,
प्रलय चल रहा अपने पथ,
मैंने निज दुर्बल पद-बल पर
उससे हारी-होड़ लगाई।

लौटा लो यह अपनी थाती,
मेरी करुणा हा-हा खाती,
विश्व ! न सँभलेगी यह मुझसे
इसने मन की लाज गँवाई।

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