"रात यों कहने लगा मुझसे गगन का चाँद -रामधारी सिंह दिनकर": अवतरणों में अंतर
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|चित्र का नाम=रामधारी सिंह दिनकर | |चित्र का नाम=रामधारी सिंह दिनकर | ||
|कवि=[[रामधारी सिंह दिनकर]] | |कवि=[[रामधारी सिंह दिनकर]] | ||
|जन्म=[[23 सितंबर]], | |जन्म=[[23 सितंबर]], सन् 1908 | ||
|जन्म स्थान=सिमरिया, ज़िला मुंगेर ([[बिहार]]) | |जन्म स्थान=सिमरिया, ज़िला मुंगेर ([[बिहार]]) | ||
|मृत्यु= [[24 अप्रैल]], | |मृत्यु= [[24 अप्रैल]], सन् 1974 | ||
|मृत्यु स्थान= [[चेन्नई]], [[तमिलनाडु]] | |मृत्यु स्थान= [[चेन्नई]], [[तमिलनाडु]] | ||
|मुख्य रचनाएँ= | |मुख्य रचनाएँ= | ||
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आग में उसको गला लोहा बनाती हूँ, | आग में उसको गला लोहा बनाती हूँ, | ||
और उस पर नींव रखती हूँ नये घर की, | और उस पर नींव रखती हूँ नये घर की, | ||
इस तरह दीवार | इस तरह दीवार फ़ौलादी उठाती हूँ। | ||
मनु नहीं, मनु-पुत्र है यह सामने,जिसकी | मनु नहीं, मनु-पुत्र है यह सामने, जिसकी | ||
कल्पना की जीभ में भी धार होती है, | कल्पना की जीभ में भी धार होती है, | ||
बाण ही होते विचारों के नहीं केवल, | |||
स्वप्न के भी हाथ में तलवार होती है। | स्वप्न के भी हाथ में तलवार होती है। | ||
स्वर्ग के सम्राट को जाकर खबर कर दे, | स्वर्ग के सम्राट को जाकर खबर कर दे, | ||
"रोज ही आकाश चढ़ते जा रहे हैं वे, | "रोज ही आकाश चढ़ते जा रहे हैं वे, | ||
रोकिये, जैसे बने इन | रोकिये, जैसे बने इन स्वप्न वालों को, | ||
स्वर्ग की ही ओर बढ़ते आ रहे हैं वे।" | स्वर्ग की ही ओर बढ़ते आ रहे हैं वे।" | ||
13:03, 27 मई 2012 के समय का अवतरण
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रात यों कहने लगा मुझसे गगन का चाँद, |
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