"जियो जियो अय हिन्दुस्तान -रामधारी सिंह दिनकर": अवतरणों में अंतर

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|चित्र का नाम=रामधारी सिंह दिनकर
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|कवि=[[रामधारी सिंह दिनकर]]
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|जन्म=[[23 सितंबर]], सन 1908
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|जन्म स्थान=सिमरिया, ज़िला मुंगेर ([[बिहार]])  
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हम शकारि विक्रमादित्य हैं अरिदल को दलने वाले,
हम शकारि विक्रमादित्य हैं अरिदल को दलने वाले,
रण में ज़मीं नहीं, दुश्मन की लाशों पर चलने वाले।
रण में ज़मीं नहीं, दुश्मन की लाशों पर चलने वाले।
हम अर्जुन, हम भीम, शान्ति के लिये जगत में जीते हैं
हम अर्जुन, हम भीम, शान्ति के लिये जगत् में जीते हैं
मगर, शत्रु हठ करे अगर तो, लहू वक्ष का पीते हैं।
मगर, शत्रु हठ करे अगर तो, लहू वक्ष का पीते हैं।
हम हैं शिवा - प्रताप रोटियाँ भले घास की खाएंगे,
हम हैं शिवा - प्रताप रोटियाँ भले घास की खाएंगे,
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जियो, जियो अय देश! कि पहरे पर ही जगे हुए हैं हम।
जियो, जियो अय देश! कि पहरे पर ही जगे हुए हैं हम।
वन, पर्वत, हर तरफ़ चौकसी में ही लगे हुए हैं हम।
वन, पर्वत, हर तरफ़ चौकसी में ही लगे हुए हैं हम।
हिन्द-सिन्धु की कसम, कौन इस पर जहाज ला सकता।
हिन्द-सिन्धु की कसम, कौन इस पर जहाज़ ला सकता।
सरहद के भीतर कोई दुश्मन कैसे आ सकता है ?
सरहद के भीतर कोई दुश्मन कैसे आ सकता है ?
पर कि हम कुछ नहीं चाहते, अपनी किन्तु बचायेंगे,
पर कि हम कुछ नहीं चाहते, अपनी किन्तु बचायेंगे,

13:56, 30 जून 2017 के समय का अवतरण

जियो जियो अय हिन्दुस्तान -रामधारी सिंह दिनकर
रामधारी सिंह दिनकर
रामधारी सिंह दिनकर
कवि रामधारी सिंह दिनकर
जन्म 23 सितंबर, सन् 1908
जन्म स्थान सिमरिया, ज़िला मुंगेर (बिहार)
मृत्यु 24 अप्रैल, सन् 1974
मृत्यु स्थान चेन्नई, तमिलनाडु
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
रामधारी सिंह दिनकर की रचनाएँ

जाग रहे हम वीर जवान,
जियो जियो अय हिन्दुस्तान!
हम प्रभात की नई किरण हैं, हम दिन के आलोक नवल,
हम नवीन भारत के सैनिक, धीर, वीर, गंभीर, अचल।
हम प्रहरी उँचे हिमाद्रि के, सुरभि स्वर्ग की लेते हैं।
हम हैं शान्तिदूत धरणी के, छाँह सभी को देते हैं।
वीर - प्रसू माँ की आँखों के हम नवीन उजियाले हैं
गंगा, यमुना, हिन्द महासागर के हम रखवाले हैं।
तन मन धन तुम पर कुर्बान,
जियो जियो अय हिन्दुस्तान!

हम सपूत उनके जो नर थे अनल और मधु मिश्रण,
जिसमें नर का तेज प्रखर था, भीतर था नारी का मन!
एक नयन संजीवन जिनका, एक नयन था हालाहल,
जितना कठिन खड्ग था कर में उतना ही अंतर कोमल।
थर-थर तीनों लोक काँपते थे जिनकी ललकारों पर,
स्वर्ग नाचता था रण में जिनकी पवित्र तलवारों पर
हम उन वीरों की सन्तान,
जियो जियो अय हिन्दुस्तान!

हम शकारि विक्रमादित्य हैं अरिदल को दलने वाले,
रण में ज़मीं नहीं, दुश्मन की लाशों पर चलने वाले।
हम अर्जुन, हम भीम, शान्ति के लिये जगत् में जीते हैं
मगर, शत्रु हठ करे अगर तो, लहू वक्ष का पीते हैं।
हम हैं शिवा - प्रताप रोटियाँ भले घास की खाएंगे,
मगर, किसी ज़ुल्मी के आगे मस्तक नहीं झुकायेंगे।
देंगे जान, नहीं ईमान,
जियो जियो अय हिन्दुस्तान।

जियो, जियो अय देश! कि पहरे पर ही जगे हुए हैं हम।
वन, पर्वत, हर तरफ़ चौकसी में ही लगे हुए हैं हम।
हिन्द-सिन्धु की कसम, कौन इस पर जहाज़ ला सकता।
सरहद के भीतर कोई दुश्मन कैसे आ सकता है ?
पर कि हम कुछ नहीं चाहते, अपनी किन्तु बचायेंगे,
जिसकी उँगली उठी उसे हम यमपुर को पहुँचायेंगे।
हम प्रहरी यमराज समान,
जियो जियो अय हिन्दुस्तान!

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