"बृहस्पति -लौक्य": अवतरणों में अंतर

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11:16, 14 अक्टूबर 2011 के समय का अवतरण

बृहस्पति एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- बृहस्पति (बहुविकल्पी)
  • बृहस्पति भारतीय समाज में देवताओं के गुरु के रूप में मान्य हैं। परन्तु भारतीय साहित्य में बृहस्पति एक नहीं हैं। चार्वाक दर्शन के प्रवर्तक आचार्य बृहस्पति कौन हैं, यह निर्णय कर पाना अत्यन्त कठिन कार्य है। आङिगरस एवं लौक्य रूप में दो बृहस्पतियों का समुल्लेख ऋग्वेद में प्राप्त होता है। अश्वघोष के अनुसार आङिगरस बृहस्पति राजशास्त्र के प्रणेता हैं। लौक्य बृहस्पति[1] के मत में सत पदार्थ की उत्पत्ति असत से मानी जाती है। इसी प्रकार असत पदार्थ की उत्पत्ति सत से मानी गयी है। जड़ पदार्थों को ही असत कहा जाता है। चेतन पदार्थों को इस मान्यता के अनुसार सत कहा जाता हैं।



टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ब्रह्मणस्पतिरेता सं कर्मार इवाधमत्। देवानां पूर्वे युगेऽसत: सदजायत। देवानां युगे प्रथमेऽसत: सदजायत। ऋग्वेद, 10 मण्डल, 72 सूक्त, 2 मन्त्र (ब्रह्मण: पति: एता कर्मार: इव सं अधमत्) बृहस्पति या अदिति ने लोहार के समान इन देवों को उत्पन्न किया। (देवानां पूर्वे युगे असत: सत् अजायत) देवों के पूर्व युग में-आदि सृष्टि में असत से सत उत्पन्न हुआ (अव्यक्त ब्रह्म से व्यक्त देवादि उत्पन्न हुए) पृ0 148 ऋग्वेद भाग 4, हिन्दी व्याख्या-सातवलेकर।

बाहरी कड़ियाँ

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