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अम्बिका चक्रवर्ती ([[अंग्रेज़ी]]: ''Ambika Chakrabarty'', जन्म: [[1892]] - मृत्यु: [[6 मार्च]], [[1962]]) प्रसिद्ध क्रान्तिकारी और नेता थे। | |||
==जीवन परिचय== | ==जीवन परिचय== | ||
चटगाँव ([[बंगाल]]) शस्त्रागार केस के प्रसिद्ध क्रान्तिकारी और कम्युनिस्ट नेता अंबिका चक्रवर्ती का जन्म 1892 ई. में म्यांमार (बर्मा) में हुआ था। बाद में उनका परिवार चटगाँव में आकर रहने लगा। अंबिका के ऊपर उस समय के क्रान्तिकारियों और [[स्वामी विवेकानन्द]] के विचारों का बड़ा प्रभाव पड़ा। उनके विचार और कार्य क्रान्तिकारी थे, पर प्रकट रूप से उन्होंने कांग्रेस संगठन से भी निकट का सम्बन्ध रखा। शीघ्र ही वे क्रान्तिकारियों के चटगाँव समूह के नेता बन गए। [[1924]] में उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया और [[1928]] तक वे जेल में रहे। | चटगाँव ([[बंगाल]]) शस्त्रागार केस के प्रसिद्ध क्रान्तिकारी और कम्युनिस्ट नेता अंबिका चक्रवर्ती का जन्म [[1892]] ई. में [[म्यांमार]] (बर्मा) में हुआ था। बाद में उनका परिवार [[चटगाँव]] में आकर रहने लगा। अंबिका के ऊपर उस समय के क्रान्तिकारियों और [[स्वामी विवेकानन्द]] के विचारों का बड़ा प्रभाव पड़ा। उनके विचार और कार्य क्रान्तिकारी थे, पर प्रकट रूप से उन्होंने कांग्रेस संगठन से भी निकट का सम्बन्ध रखा। शीघ्र ही वे क्रान्तिकारियों के चटगाँव समूह के नेता बन गए। [[1924]] में उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया और [[1928]] तक वे जेल में रहे। | ||
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अंबिका ने बाद में अपने कुछ अन्य साथियों के साथ चटगाँव को अंग्रेज़ों से स्वतंत्र कराने की योजना बनाई। इसके लिए दो दलों का गठन किया गया। एक दल ने टेलीफ़ोन और तारघर पर क़ब्ज़ा कर लिया और दूसरे ने शस्त्रागार को अपने क़ब्ज़े में ले लिया। लेकिन दुर्भाग्य से अंग्रेज़ों ने कारतूस कहीं और छिपाकर रखे थे। अत: क़ब्ज़े में आए हथियार बेकार साबित हुए। ऐसी स्थिति में दल को पुर्नसंगठित करने के इरादे से अंबिका अपने साथियों को लेकर जलालाबाद की पहाड़ियों में चले गए। पर शीघ्र ही इस पहाड़ी पर अंग्रेज़ों ने आक्रमण कर दिया। उनके अन्य साथी तो बच निकले किन्तु पुलिस की गोली से अंबिका घिसटते हुए एक गाँव में पहुँचे और वहाँ के सहानुभूतिशील लोगों के इलाज से स्वास्थ्य लाभ करके भूमिगत हो गए। | अंबिका ने बाद में अपने कुछ अन्य साथियों के साथ चटगाँव को अंग्रेज़ों से स्वतंत्र कराने की योजना बनाई। इसके लिए दो दलों का गठन किया गया। एक दल ने टेलीफ़ोन और तारघर पर क़ब्ज़ा कर लिया और दूसरे ने शस्त्रागार को अपने क़ब्ज़े में ले लिया। लेकिन दुर्भाग्य से अंग्रेज़ों ने कारतूस कहीं और छिपाकर रखे थे। अत: क़ब्ज़े में आए हथियार बेकार साबित हुए। ऐसी स्थिति में दल को पुर्नसंगठित करने के इरादे से अंबिका अपने साथियों को लेकर जलालाबाद की पहाड़ियों में चले गए। पर शीघ्र ही इस पहाड़ी पर अंग्रेज़ों ने आक्रमण कर दिया। उनके अन्य साथी तो बच निकले किन्तु पुलिस की गोली से अंबिका घिसटते हुए एक गाँव में पहुँचे और वहाँ के सहानुभूतिशील लोगों के इलाज से स्वास्थ्य लाभ करके भूमिगत हो गए। | ||
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04:56, 29 मई 2015 के समय का अवतरण
अम्बिका चक्रवर्ती
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पूरा नाम | अम्बिका चक्रवर्ती |
जन्म | 1892 |
मृत्यु | 6 मार्च, 1962 |
मृत्यु कारण | सड़क दुर्घटना |
नागरिकता | भारतीय |
विशेष योगदान | उनके विचार और कार्य क्रान्तिकारी थे, पर प्रकट रूप से उन्होंने कांग्रेस संगठन से भी निकट का सम्बन्ध रखा। शीघ्र ही वे क्रान्तिकारियों के चटगाँव समूह के नेता बन गए। 1924 में उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया और 1928 तक वे जेल में रहे। |
पार्टी | कम्युनिस्ट पार्टी |
अम्बिका चक्रवर्ती (अंग्रेज़ी: Ambika Chakrabarty, जन्म: 1892 - मृत्यु: 6 मार्च, 1962) प्रसिद्ध क्रान्तिकारी और नेता थे।
जीवन परिचय
चटगाँव (बंगाल) शस्त्रागार केस के प्रसिद्ध क्रान्तिकारी और कम्युनिस्ट नेता अंबिका चक्रवर्ती का जन्म 1892 ई. में म्यांमार (बर्मा) में हुआ था। बाद में उनका परिवार चटगाँव में आकर रहने लगा। अंबिका के ऊपर उस समय के क्रान्तिकारियों और स्वामी विवेकानन्द के विचारों का बड़ा प्रभाव पड़ा। उनके विचार और कार्य क्रान्तिकारी थे, पर प्रकट रूप से उन्होंने कांग्रेस संगठन से भी निकट का सम्बन्ध रखा। शीघ्र ही वे क्रान्तिकारियों के चटगाँव समूह के नेता बन गए। 1924 में उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया और 1928 तक वे जेल में रहे।
स्वतंत्रता में योगदान
अंबिका ने बाद में अपने कुछ अन्य साथियों के साथ चटगाँव को अंग्रेज़ों से स्वतंत्र कराने की योजना बनाई। इसके लिए दो दलों का गठन किया गया। एक दल ने टेलीफ़ोन और तारघर पर क़ब्ज़ा कर लिया और दूसरे ने शस्त्रागार को अपने क़ब्ज़े में ले लिया। लेकिन दुर्भाग्य से अंग्रेज़ों ने कारतूस कहीं और छिपाकर रखे थे। अत: क़ब्ज़े में आए हथियार बेकार साबित हुए। ऐसी स्थिति में दल को पुर्नसंगठित करने के इरादे से अंबिका अपने साथियों को लेकर जलालाबाद की पहाड़ियों में चले गए। पर शीघ्र ही इस पहाड़ी पर अंग्रेज़ों ने आक्रमण कर दिया। उनके अन्य साथी तो बच निकले किन्तु पुलिस की गोली से अंबिका घिसटते हुए एक गाँव में पहुँचे और वहाँ के सहानुभूतिशील लोगों के इलाज से स्वास्थ्य लाभ करके भूमिगत हो गए।
कम्युनिस्ट पार्टी
1930 में पुलिस ने अन्तत: अंबिका को खोज निकाला और आजीवन क़ैद की सज़ा देकर उनको अंडमान भेज दिया गया। अंडमान में साम्यवादी साहित्य के अध्ययन से उनके विचारों में परिवर्तन हुआ और 1946 में जेल से बाहर आने पर वे कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य बन गए। कम्युनिस्ट पार्टी के कार्यकर्ता के रूप में भी उन्होंने 1949 से 1951 तक जेल की सज़ा काटी। 1952 में कम्युनिस्ट उम्मीदवार के रूप में अंबिका पश्चिम बंगाल की विधान सभा के सदस्य चुने गए।
मृत्यु
अम्बिका चक्रवर्ती जैसे वीर और साहसी देशभक्त का 6 मार्च, 1962 को एक सड़क दुर्घटना में निधन हो गया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
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