"बृहदारण्यकोपनिषद अध्याय-5 ब्राह्मण-3 से 4": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replace - "Category:उपनिषद" to "Category:उपनिषदCategory:संस्कृत साहित्य") |
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replacement - "अर्थात " to "अर्थात् ") |
||
(एक दूसरे सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
*इन दोनों ब्राह्मणों में 'हृदय' और 'सत्य' का विश्लेषण संक्षिप्त रूप से किया है। | *इन दोनों ब्राह्मणों में 'हृदय' और 'सत्य' का विश्लेषण संक्षिप्त रूप से किया है। | ||
*यह हृदय प्रजापति है। | *यह हृदय प्रजापति है। | ||
*इसके तीन अक्षरों का अर्थ- 'हृ' से हरणशील है, | *इसके तीन अक्षरों का अर्थ- 'हृ' से हरणशील है, अर्थात् यह कहीं से भी अभीष्ट पदार्थ का हरण करता है। | ||
*'द' अक्षर का अर्थ दान से है और 'यम्' अक्षर का अर्थ गाति से हैं यह जानने वाला स्वर्ग को प्राप्त करता है। | *'द' अक्षर का अर्थ दान से है और 'यम्' अक्षर का अर्थ गाति से हैं यह जानने वाला स्वर्ग को प्राप्त करता है। | ||
*यह हृदय ही सत्य-स्वरूप 'ब्रह्म' है। | *यह हृदय ही सत्य-स्वरूप 'ब्रह्म' है। | ||
*जो इस प्रकार जानता है, वह समस्त लोकों को जीत लेता है। | *जो इस प्रकार जानता है, वह समस्त लोकों को जीत लेता है। | ||
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} | |||
{{लेख प्रगति|आधार= | |||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
<references/> | <references/> | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{बृहदारण्यकोपनिषद}} | {{बृहदारण्यकोपनिषद}} | ||
[[Category:बृहदारण्यकोपनिषद]] | [[Category:बृहदारण्यकोपनिषद]][[Category:हिन्दू दर्शन]] | ||
[[Category:दर्शन | [[Category:उपनिषद]][[Category:संस्कृत साहित्य]] [[Category:दर्शन कोश]] | ||
[[Category:उपनिषद]][[Category:संस्कृत साहित्य]] | |||
__INDEX__ | __INDEX__ | ||
__NOTOC__ |
07:53, 7 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण
- बृहदारण्यकोपनिषद के अध्याय पांचवाँ का यह तीसरा और चौथा ब्राह्मण है।
मुख्य लेख : बृहदारण्यकोपनिषद
- इन दोनों ब्राह्मणों में 'हृदय' और 'सत्य' का विश्लेषण संक्षिप्त रूप से किया है।
- यह हृदय प्रजापति है।
- इसके तीन अक्षरों का अर्थ- 'हृ' से हरणशील है, अर्थात् यह कहीं से भी अभीष्ट पदार्थ का हरण करता है।
- 'द' अक्षर का अर्थ दान से है और 'यम्' अक्षर का अर्थ गाति से हैं यह जानने वाला स्वर्ग को प्राप्त करता है।
- यह हृदय ही सत्य-स्वरूप 'ब्रह्म' है।
- जो इस प्रकार जानता है, वह समस्त लोकों को जीत लेता है।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख