"भद्रबाहू": अवतरणों में अंतर

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'''भद्रबाहू''' श्रुत केवली [[जैन]] [[मुनि|मुनियों]] में अन्तिम अंतिम आचार्य थे, जो सम्राट [[चंद्रगुप्त मौर्य]] के समकालीन थे। अपने शासनकाल में पड़े भीषड़ अकाल और प्रजा की द्रवित अवस्था से व्याकुल होकर चन्द्रगुप्त ने गद्दी त्याग दी थी और वह 'भद्रबाहू' के नेतृत्व में [[दक्षिण भारत]] चला गया था।
#REDIRECT [[भद्रबाहु]]
 
*चंद्रगुप्त मौर्य के शासन की अन्तिम अवधि में बारह वर्षीय अकाल पड़ा, जिससे सारे साम्राज्य में त्राहि-त्राहि मच गयी।
*चंद्रगुप्त मौर्य ने सिंहासन त्याग दिया और वह भद्रबाहू के नेतृत्व में अन्य जैन मुनियों के साथ [[कर्नाटक]] देशस्थ [[श्रवणबेलगोला मैसूर|श्रवण बेलगोला]] नामक स्थान पर चला गया।
*भद्रबाहू ने पूर्णायु का भोग कर अन्त में पण्डित मरण की जैन विधि के अनुसार अनशन करके देह त्याग किया।
*भद्रबाहू ने दक्षिण भारत में [[जैन धर्म]] का सर्वाधिक व अच्छा प्रचार कार्य किया था।
*श्रीरंगपट्टम में प्राप्त लगभग 900 ई. के दो शिलालेखों में भद्रबाहू का उल्लेख मिलता है।
*श्रवण बेलगोला स्थित जैन मठ के गुरु, जो [[दक्षिण भारत]] के सभी जैन साधुओं के आचार्य माने जाते हैं, अपने को भद्रबाहू की शिष्य परम्परा में बतलाते हैं।
 
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{{संदर्भ ग्रंथ}}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय इतिहास कोश |लेखक= सच्चिदानन्द भट्टाचार्य|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान |संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=315|url=}}
<references/>
==संबंधित लेख==
 
[[Category:इतिहास कोश]]
[[Category:मौर्य काल]]
[[Category:जैन तीर्थंकर]]
[[Category:जैन धर्म]]
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