"पंचजन (पाँच व्यक्ति)": अवतरणों में अंतर

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'''पंचजन''' का अभिप्राय पाँच व्यक्तियों से है। [[ऋग्वेद]] में पाँच व्यक्तियों के [[यज्ञ]] में सम्मिलित होने का प्रसंग आता है। यास्क ने अर्थ किया कि [[शूद्र]] और [[निषाद]] ([[धर्मसूत्र]] में जिन्हें [[ब्राह्मण]] और शूद्र स्त्री से उत्पन्न वर्ण संस्कार माना गया है) यज्ञभागी थे।
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'''पंचजन''' का अभिप्राय पाँच व्यक्तियों से है। [[ऋग्वेद]] में पाँच व्यक्तियों के [[यज्ञ]] में सम्मिलित होने का प्रसंग आता है। [[यास्क]] ने अर्थ किया कि [[शूद्र]] और [[निषाद]] ([[धर्मसूत्र]] में जिन्हें [[ब्राह्मण]] और शूद्र स्त्री से उत्पन्न वर्ण संस्कार माना गया है) यज्ञभागी थे।


*निरुक्त के अनुसार पंचजना शब्द का अर्थ है, चार [[वर्ण व्यवस्था|वर्ण]] और निषाद।
*[[निरुक्तम|निरुक्त]] के अनुसार पंचजना शब्द का अर्थ है, चार [[वर्ण व्यवस्था|वर्ण]] और निषाद।
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पंचजन एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- पंचजन (बहुविकल्पी)

पंचजन का अभिप्राय पाँच व्यक्तियों से है। ऋग्वेद में पाँच व्यक्तियों के यज्ञ में सम्मिलित होने का प्रसंग आता है। यास्क ने अर्थ किया कि शूद्र और निषाद (धर्मसूत्र में जिन्हें ब्राह्मण और शूद्र स्त्री से उत्पन्न वर्ण संस्कार माना गया है) यज्ञभागी थे।

  • निरुक्त के अनुसार पंचजना शब्द का अर्थ है, चार वर्ण और निषाद।
  • ऋग्वेद में जातियाँ नहीं थीं, जो थीं सब समान थीं, और सभी यज्ञ में निर्बाध हवि चढ़ाते थे।
  • विश्वजित यज्ञ में कहा गया कि याजक को तीन रात तक निषाद और वैश्य तथा राजन्य के साथ ठहरना होगा।
  • निषाद स्पष्टत: अप्रत्यक्ष रूप से यज्ञयाग के भाग थे।
  • इस प्रकार आर्य समुदाय के निषाद आर्येत्तर थे।
  • यास्क के अनुसार समस्त शूद्र यज्ञ के पात्र थे।[1]
  • गन्धर्व, पितर, देव, असुर-राक्षस भी पंचजन कहे गए हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

भारतीय संस्कृति कोश, भाग-2 |प्रकाशक: यूनिवर्सिटी पब्लिकेशन, नई दिल्ली-110002 |संपादन: प्रोफ़ेसर देवेन्द्र मिश्र |पृष्ठ संख्या: 458 |

  1. ऋग्वेद 10.53.4, निरुक्त, 3.8, जैमिनीय ब्राह्मण, 2.84, रामशरण शर्मा : शूद्रों का इतिहास, पृष्ठ 69

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