"मुफ़्तखोर मेहमान": अवतरणों में अंतर
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'''मुफ़्तखोर मेहमान''' [[पंचतंत्र]] की प्रसिद्ध कहानियों में से एक है जिसके रचयिता [[विष्णु शर्मा|आचार्य विष्णु शर्मा]] हैं। | |||
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एक राजा के शयनकक्ष में मंदरीसर्पिणी नाम की जूं ने डेरा डाल रखा था। रोज रात को जब राजा जाता तो वह चुपके से बाहर निकलती और राजा का | एक राजा के शयनकक्ष में मंदरीसर्पिणी नाम की जूं ने डेरा डाल रखा था। रोज रात को जब राजा जाता तो वह चुपके से बाहर निकलती और राजा का ख़ून चूसकर फिर अपने स्थान पर जा छिपती। | ||
संयोग से एक दिन अग्निमुख नाम का एक खटमल भी राजा के शयनकक्ष में आ पहुंचा। जूं ने जब उसे देखा तो वहां से चले जाने को कहा। उसने अपने अधिकार-क्षेत्र में किसी अन्य का दख़ल सहन नहीं था। | |||
संयोग से एक दिन अग्निमुख नाम का एक खटमल भी राजा के शयनकक्ष में आ पहुंचा। जूं ने जब उसे देखा तो वहां से चले जाने को कहा। उसने अपने अधिकार-क्षेत्र में किसी अन्य का | लेकिन खटमल भी कम चतुर न था, बोलो, ‘‘देखो, मेहमान से इस तरह बर्ताव नहीं किया जाता, मैं आज रात तुम्हारा मेहमान हूं।’’ जूं अततः खटमल की चिकनी-चुपड़ी बातों में आ गई और उसे शरण देते हुए बोली, | ||
‘‘ठीक है, तुम यहां रातभर रुक सकते हो, लेकिन राजा को काटोगे तो नहीं उसका ख़ून चूसने के लिए।’’ | |||
लेकिन खटमल भी कम चतुर न था, बोलो, ‘‘देखो, मेहमान से | खटमल बोला, ‘‘लेकिन मैं तुम्हारा मेहमान है, मुझे कुछ तो दोगी खाने के लिए। और राजा के ख़ून से बढ़िया भोजन और क्या हो सकता है।’’ | ||
‘‘ठीक है।’’ जूं बोली, ‘‘तुम चुपचाप राजा का ख़ून चूस लेना, उसे पीड़ा का आभास नहीं होना चाहिए।’’ | |||
‘‘ठीक है, तुम यहां रातभर रुक सकते हो, लेकिन राजा को काटोगे तो नहीं उसका | |||
खटमल बोला, ‘‘लेकिन मैं तुम्हारा मेहमान है, मुझे कुछ तो दोगी खाने के लिए। और राजा के | |||
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‘‘जैसा तुम कहोगी, बिलकुल वैसा ही होगा।’’ कहकर खटमल शयनकक्ष में राजा के आने की प्रतीक्षा करने लगा। | ‘‘जैसा तुम कहोगी, बिलकुल वैसा ही होगा।’’ कहकर खटमल शयनकक्ष में राजा के आने की प्रतीक्षा करने लगा। | ||
रात ढलने पर राजा वहां आया और बिस्तर पर पड़कर सो गया। उसे देख खटमल सबकुछ भूलकर राजा को काटने लगा, ख़ून चूसने के लिए। ऐसा स्वादिष्ट ख़ून उसने पहली बार चखा था, इसलिए वह राजा को जोर-जोर से काटकर उसका ख़ून चूसने लगा। इससे राजा के शरीर में तेज खुजली होने लगी और उसकी नींद उचट गई। उसने क्रोध में भरकर अपने सेवकों से खटमल को ढूंढकर मारने को कहा। | |||
यह सुनकर चतुर खटमल तो पंलग के पाए के नीचे छिप गया लेकिन चादर के कोने पर बैठी जूं राजा के सेवकों की नजर में आ गई। उन्होंने उसे पकड़ा और मार डाला। | |||
;सीख- अजनबियों पर कभी विश्वास न करो। | |||
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13:54, 31 जुलाई 2014 के समय का अवतरण
मुफ़्तखोर मेहमान पंचतंत्र की प्रसिद्ध कहानियों में से एक है जिसके रचयिता आचार्य विष्णु शर्मा हैं।
कहानी
एक राजा के शयनकक्ष में मंदरीसर्पिणी नाम की जूं ने डेरा डाल रखा था। रोज रात को जब राजा जाता तो वह चुपके से बाहर निकलती और राजा का ख़ून चूसकर फिर अपने स्थान पर जा छिपती।
संयोग से एक दिन अग्निमुख नाम का एक खटमल भी राजा के शयनकक्ष में आ पहुंचा। जूं ने जब उसे देखा तो वहां से चले जाने को कहा। उसने अपने अधिकार-क्षेत्र में किसी अन्य का दख़ल सहन नहीं था।
लेकिन खटमल भी कम चतुर न था, बोलो, ‘‘देखो, मेहमान से इस तरह बर्ताव नहीं किया जाता, मैं आज रात तुम्हारा मेहमान हूं।’’ जूं अततः खटमल की चिकनी-चुपड़ी बातों में आ गई और उसे शरण देते हुए बोली,
‘‘ठीक है, तुम यहां रातभर रुक सकते हो, लेकिन राजा को काटोगे तो नहीं उसका ख़ून चूसने के लिए।’’
खटमल बोला, ‘‘लेकिन मैं तुम्हारा मेहमान है, मुझे कुछ तो दोगी खाने के लिए। और राजा के ख़ून से बढ़िया भोजन और क्या हो सकता है।’’
‘‘ठीक है।’’ जूं बोली, ‘‘तुम चुपचाप राजा का ख़ून चूस लेना, उसे पीड़ा का आभास नहीं होना चाहिए।’’
‘‘जैसा तुम कहोगी, बिलकुल वैसा ही होगा।’’ कहकर खटमल शयनकक्ष में राजा के आने की प्रतीक्षा करने लगा।
रात ढलने पर राजा वहां आया और बिस्तर पर पड़कर सो गया। उसे देख खटमल सबकुछ भूलकर राजा को काटने लगा, ख़ून चूसने के लिए। ऐसा स्वादिष्ट ख़ून उसने पहली बार चखा था, इसलिए वह राजा को जोर-जोर से काटकर उसका ख़ून चूसने लगा। इससे राजा के शरीर में तेज खुजली होने लगी और उसकी नींद उचट गई। उसने क्रोध में भरकर अपने सेवकों से खटमल को ढूंढकर मारने को कहा।
यह सुनकर चतुर खटमल तो पंलग के पाए के नीचे छिप गया लेकिन चादर के कोने पर बैठी जूं राजा के सेवकों की नजर में आ गई। उन्होंने उसे पकड़ा और मार डाला।
- सीख- अजनबियों पर कभी विश्वास न करो।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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