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| '''बाहुदा''' का उल्लेख [[महाभारत]] में एक पवित्र नदी और [[तीर्थ]] के रूप में आया है। महर्षि 'शंख' और 'लिखित' दो भाई इस नदी तट पर अपने आश्रम में रहते थे। एक दिन लिखित ने शंख की अनुपस्थिति में आश्रम में रखे [[फल]] खा लिये। राजा ने दण्डस्वरूप उसकी दोनों भुजाएँ कटवा दीं। इस नदी में [[स्नान]] से लिखित की दोनों बाहुऐं फिर से जुड़ गईं। तभी से यह नदी 'बाहुदा' नाम से प्रसिद्ध हुई। बाद के दिनों में यह स्थान एक प्रसिद्ध स्थान भी बना।<ref>[[महाभारत]], वनपर्व, अध्याय 84, 88, 95.</ref>
| | #REDIRECT [[बाहुदा नदी]] |
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| *गंगापुत्र [[भीष्म]] के विनाश के लिए काशीराज कन्या [[अम्बा]] ने एक अंगूठे पर खड़े होकर यहाँ द्वादश वर्ष तक घोर तप किया था।
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| *महर्षि [[अष्टावक्र]] ने भी इस तीर्थ की यात्रा कर पुण्य लाभ अर्जित किया था।
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| *वृषप्रस्थ [[पर्वत]] पर वास करते हुए अपनी तीर्थयात्रा के समय [[पांडव|पांडवों]] ने इस बाहुदा नदी में स्नान किया था।
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| *इसके उपरान्त पांडवों ने [[प्रयाग]] वास किया। अत: यह बाहुदा वृषप्रस्थ और प्रयाग के मध्य अवस्थित थी।<ref>[[महाभारत]], आदिपर्व, अध्याय 49-50, अनुशासनपर्व, अध्याय 13.</ref>
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| *[[अमरकोश]] में बाहुदा का पर्याय सेतवाहनी है। [[शिवपुराण]] के अनुसार [[मांधाता]] की मातामही गौरी ने अपने पति प्रसेन के शाप से बाहुदा का रूप धारण किया था।
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| *[[वामनपुराण]] के अनुसार युवनाश्च के शाप से उसकी पत्नी बाहुदा नदी बन गई थी। [[महाभारत]] में युवनाश्च मांधाता के पुत्र थे।<ref>[[अमरकोश]], [[शिवपुराण]], [[वामनपुराण]]</ref>
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| *'[[मज्झिमनिकाय]]' के ‘वत्थ सुतंत’ में इसे बाहुका कहा गया है।<ref>काणे: हिस्ट्री ऑफ़ धर्मशास्त्राज, भा. 4, पृ. 46.</ref>
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| {{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध=}}
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| ==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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| {{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय संस्कृति कोश, भाग-2|लेखक=|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=यूनिवर्सिटी पब्लिकेशन, नई दिल्ली-110002|संकलन= |संपादन=प्रोफ़ेसर देवेन्द्र मिश्र|पृष्ठ संख्या=531|url=}}
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| <references/>
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| ==संबंधित लेख==
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| [[Category:]]
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