"इतिहास सामान्य ज्ञान 3": अवतरणों में अंतर

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{किस भारतीय ने सर्वप्रथम अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा लागू करने के लिए सदन में विधेयक प्रस्तुत किया था?
|type="()"}
-[[मदन मोहन मालवीय]]
-[[महात्मा गाँधी]]
+[[गोपाल कृष्ण गोखले]]
-[[जवाहर लाल नेहरू]]
||[[चित्र:Gopal-Krishna-Gokhle.jpg|right|100px|गोपाल कृष्ण गोखले]]महादेव गोविंद रानाडे के शिष्य [[गोपाल कृष्ण गोखले]] को वित्तीय मामलों की अद्वितीय समझ और उस पर अधिकारपूर्वक बहस करने की क्षमता से उन्हें [[भारत]] का 'ग्लेडस्टोन' कहा जाता है। 1905 ई. में गोखले ने 'भारत सेवक समाज' की स्थापना की, ताकि नौजवानों को सार्वजनिक जीवन के लिए प्रशिक्षित किया जा सके। उनका मानना था कि, वैज्ञानिक और तकनीकी शिक्षा भारत की महत्त्वपूर्ण आवश्यकता है। इसीलिए इन्होंने सबसे पहले प्राथमिक शिक्षा लागू करने के लिये सदन में विधेयक भी प्रस्तुत किया था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[गोपाल कृष्ण गोखले]]
{'गोत्र' व्यवस्था प्रचलन में कब आई?
|type="()"}
-ऋग्वैदिक काल में
+[[उत्तर वैदिक काल]] में
-सैन्धव काल में
-सूत्रकाल में
||उत्तर वैदिक काल में [[आर्य|आर्यो]] ने [[यमुना]], [[गंगा]] एवं [[गण्डक नदी|गण्डक]] नदियों के मैदानों को जीतकर अपने अधिकार में कर लिया। दक्षिण में आर्यो का फैलाव [[विदर्भ]] तक हुआ। उत्तर वैदिक कालीन सभ्यता का मुख्य केन्द्र '[[मध्य प्रदेश]]' था, जिसका प्रसार [[सरस्वती नदी|सरस्वती]] से लेकर गंगा दोआब तक था। यहीं से आर्य [[संस्कृति]] पूर्वी ओर प्रस्थान कर [[कोशल]], [[काशी]] एवं [[विदेह]] तक फैली। गोत्र व्यवस्था का प्रचलन भी उत्तर वैदिक काल से ही प्रारम्भ हुआ माना जाता है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[उत्तर वैदिक काल]]
{[[मलिक काफ़ूर]] को हज़ार दीनारी कहा गया था, क्योंकि-
{[[मलिक काफ़ूर]] को हज़ार दीनारी कहा गया था, क्योंकि-
|type="()"}
|type="()"}
+उसे 1000 दीनार में ख़रीदा गया था।
+उसे 1000 [[दीनार]] में ख़रीदा गया था।
-वह 1000 सैनिकों का प्रधान था।
-वह 1000 सैनिकों का प्रधान था।
-उसके पास 1000 गाँवों का स्वामित्व था।
-उसके पास 1000 गाँवों का स्वामित्व था।
-वह 1000 दीनार प्रतिदिन दान करता था।
-वह 1000 [[दीनार]] प्रतिदिन दान करता था।
||मलिक काफ़ूर मूलतः [[हिन्दू]] जाति का एक किन्नर था। उसे नुसरत ख़ाँ ने एक हज़ार दीनार में ख़रीदा था, जिस कारण उसका एक अन्य नाम 'हज़ार दीनारी' पड़ गया। नुसरत ख़ाँ ने उसे ख़रीदकर 1298 ई. में [[गुजरात]] विजय से वापस जाने पर सुल्तान [[अलाउद्दीन ख़िलजी]] के समक्ष तोहफ़े के रूप में प्रस्तुत किया था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[मलिक काफ़ूर]]
||'मलिक काफ़ूर' मूलतः [[हिन्दू]] जाति का एक किन्नर था। उसे नुसरत ख़ाँ ने एक हज़ार [[दीनार]] में ख़रीदा था, जिस कारण उसका एक अन्य नाम 'हज़ार दीनारी' पड़ गया। नुसरत ख़ाँ ने [[मलिक काफ़ूर]] को ख़रीदकर 1298 ई. में [[गुजरात]] विजय से वापस जाने पर सुल्तान [[अलाउद्दीन ख़िलजी]] के समक्ष तोहफ़े के रूप में प्रस्तुत किया। 1316 ई. में अलाउद्दीन ख़िलजी की मृत्यु के बाद मलिक काफ़ूर ने सुल्तान के नाबालिग लड़के को सिंहासन पर बैठाकर राज्य की सम्पूर्ण शक्ति को अपने हाथ में केंद्रित कर लिया। - अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[मलिक काफ़ूर]]


{[[हड़प्पा]] वासियों को निम्नलिखित में से किसका ज्ञान नहीं था?
{[[हड़प्पा]] वासियों को निम्नलिखित में से किसका ज्ञान नहीं था?
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-नालियों का निर्माण
-नालियों का निर्माण
+मेहराबों का निर्माण
+मेहराबों का निर्माण
||[[चित्र:Well-And-Bathing-Platforms-Harappa.jpg|right|100px|सिंधु घाटी सभ्यता में स्थित एक कुआँ और स्नान घर]]'हड़प्पा' [[पाकिस्तान]] के पंजाब प्रान्त में स्थित माण्टगोमरी ज़िले में [[रावी नदी]] के बायें तट पर स्थित पुरास्थल है। यहाँ पर 6:6 की दो पंक्तियों में निर्मित कुल बारह कक्षों वाले अन्नागार के [[अवशेष]] प्राप्त हुए हैं, जिनके आकार 50x20 मीटर और कुल क्षेत्रफल 2,745 वर्ग मीटर से अधिक हैं। [[हड़प्पा]] से प्राप्त अन्नागार नगरमढ़ी के बाहर [[रावी नदी]] के निकट स्थित थे। हड़प्पा के 'एफ' टीले में पकी हुई ईटों से निर्मित 18 वृत्ताकार चबूतरे मिले हैं। इन चबूतरों में ईटों को खड़े रूप में जोड़ा गया है। प्रत्येक चबूतरे का व्यास 3.20 मीटर है। हर चबूतरे में सम्भवतः [[ओखली]] लगाने के लिए छेद था। इन चबूतरों के छेदों में राख, जले हुए [[गेहूँ]] तथा [[जौ]] के दाने एवं भूसा के तिनके मिले है। 'मार्टीमर ह्रीलर' का अनुमान है कि इन चबूतरों का उपयोग अनाज पीसने के लिए किया जाता रहा होगा। - अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[हड़प्पा]]


{निम्न में से किस व्यक्ति को ‘बिना ताज का बादशाह’ कहा जाता है?
{निम्न में से किस व्यक्ति को ‘बिना ताज का बादशाह’ कहा जाता है?
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-[[राजा राममोहन राय]]
-[[राजा राममोहन राय]]
-[[महात्मा गाँधी]]
-[[महात्मा गाँधी]]
||[[चित्र:Surendranath-Banerjee.jpg|right|120px|सुरेन्द्रनाथ बनर्जी]]सुरेन्द्रनाथ बनर्जी ने [[बंगाल]] के विभाजन का घोर विरोध किया और उसके विरोध में ज़बर्दस्त आंदोलन चलाया, जिससे वे बंगाल के निर्विवाद रूप से नेता मान लिये गये। वे बंगाल के 'बिना ताज़ के बादशाह' कहलाने लगे थे। बंगाल का विभाजन 1911 ई. में रद्द कर दिया गया, जो [[सुरेन्द्रनाथ बनर्जी]] की एक बहुत बड़ी जीत थी। लेकिन इस समय तक देशवासियों में एक नया वर्ग पैदा हो गया था, जिसका विचार था कि, [[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]] के वैधानिक आंदोलन विफल सिद्ध हुए हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[सुरेन्द्रनाथ बनर्जी]]
||[[चित्र:Surendranath-Banerjee.jpg|right|100px|सुरेन्द्रनाथ बनर्जी]]'सुरेन्द्रनाथ बनर्जी' ने '[[बंगाल विभाजन]]' का घोर विरोध किया था। विभाजन के विरोध में [[सुरेन्द्रनाथ बनर्जी]] ने ज़बर्दस्त आंदोलन चलाया, जिससे वे बंगाल के निर्विवाद रूप से नेता मान लिये गये। वे बंगाल के '''बिना ताज़ के बादशाह''' कहलाने लगे थे। [[बंगाल का विभाजन]] 1911 ई. में रद्द कर दिया गया, जो सुरेन्द्रनाथ बनर्जी की एक बहुत बड़ी जीत थी। लेकिन इस समय तक देशवासियों में एक नया वर्ग पैदा हो गया था, जिसका विचार था कि '[[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]]' के वैधानिक आंदोलन विफल सिद्ध हुए हैं और [[भारत]] में स्वराज्य प्राप्ति के लिए और प्रभावपूर्ण नीति अपनाई जानी चाहिए। - अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[सुरेन्द्रनाथ बनर्जी]]


{[[हड़प्पा]] काल में [[ताँबा|ताँबे]] के रथ की खोज हुई थी-
{[[हड़प्पा]] काल में [[ताँबा|ताँबे]] के रथ की खोज किस स्थान से हुई थी?
|type="()"}
|type="()"}
-कुनाल में
-कुनाल
-[[राखीगढ़ी]] में
-[[राखीगढ़ी]]
+[[दैमाबाद]] में
+[[दैमाबाद]]
-बनवाली में
-[[बनवाली (हरियाणा)|बनवाली]]
||दैमाबाद [[महाराष्ट्र]] के [[अहमदनगर ज़िला|अहमदनगर ज़िले]] से [[गोदावरी नदी]] की सहायक नदी प्रवरा की घाटी पर स्थित है। यह [[सिन्धु सभ्यता]] का अंतिम दक्षिणी स्थल है। दैमाबाद में [[ताँबा|ताँबे]] की चार वस्तुएँ मिली हैं। रथ चलाते हुए मनुष्य, साँड़, गेंडे और [[हाथी]] की आकृतियाँ, जिनमें प्रत्येक [[ठोस]] [[धातु]] की बनी हैं, उनका वजन कई किलो है। परंतु ये वस्तुएँ उत्खनित स्तरीकृत संदर्भ की हैं, इसमें संदेह है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[दैमाबाद]]
||'दैमाबाद' [[महाराष्ट्र]] के [[अहमदनगर ज़िला|अहमदनगर ज़िले]] में [[गोदावरी नदी]] की सहायक [[प्रवरा नदी|नदी प्रवरा]] की घाटी पर स्थित है। यह [[सिन्धु सभ्यता]] का अंतिम दक्षिणी स्थल है। [[दैमाबाद]] से उत्तर-हड़प्पा के बाद के ताम्रपाषाणयुगीन जीवन-यापन के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं। इस स्थान का इसलिए विशेष महत्त्व है, क्योंकि [[महाराष्ट्र]] के आद्य इतिहास सम्बन्धी जीवन-यापन का आधारभूत अनुक्रम यहीं से प्राप्त हुआ है। दैमाबाद में [[ताँबा|ताँबे]] की चार वस्तुएँ मिली हैं- 'रथ चलाते हुए मनुष्य', 'साँड़', 'गेंडे' और '[[हाथी]] की आकृतियाँ', जिनमें प्रत्येक [[ठोस]] [[धातु]] की बनी हैं, इनका वजन कई किलो है। परंतु ये वस्तुएँ उत्खनित स्तरीकृत संदर्भ की हैं, इसमें संदेह है। - अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[दैमाबाद]]
 
{'[[राजगृह]]' में [[महावीर|महावीर स्वामी]] ने सर्वाधिक निवास किस ऋतु में किया?
|type="()"}
-ग्रीष्म ऋतु
+वर्षा ऋतु
-शीत ऋतु
-बसन्त ऋतु
 
{[[जैन धर्म]] के पहले तीर्थंकर के रूप में किसे जाना जाता है?
|type="()"}
-[[महावीर|महावीर स्वामी]] को
+[[ऋषभदेव]] को
-[[तीर्थंकर पार्श्वनाथ|पार्श्वनाथ]] को
-अजितनाथ को
||[[चित्र:Seated-Rishabhanath-Jain-Museum-Mathura-38.jpg|right|100px|आसनस्थ ऋषभनाथ]]ऋषभदेव के [[पिता]] का नाम 'नाभिराय' होने से इन्हें ‘नाभिसूनु’ भी कहा गया है। इनकी माता का नाम 'मरुदेवी' था। ये आसमुद्रान्त सारे [[भारत]] (वसुधा) के अधिपति थे। इन्हें [[जैन धर्म]] का प्रथम तीर्थंकर माना गया है। [[जैन साहित्य]] में इन्हें प्रजापति, आदिब्रह्मा, आदिनाथ, बृहद्देव, पुरुदेव, नाभिसूनु और वृषभ नामों से भी समुल्लेखित किया गया है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[ऋषभदेव]]


{[[महावीर|महावीर स्वामी]] 'यती' कब कहलाए?
{[[महावीर|महावीर स्वामी]] 'यती' कब कहलाए?
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-ज्ञान प्राप्त करने के बाद
-ज्ञान प्राप्त करने के बाद
-उपर्युक्त में से कोई नहीं
-उपर्युक्त में से कोई नहीं
 
||[[चित्र:Mahaveer.jpg|right|100px|महावीर]][[कलिंग]] नरेश की कन्या यशोदा से [[महावीर]] का [[विवाह]] हुआ था। किंतु 30 वर्ष की उम्र में ही अपने ज्येष्ठ बंधु की आज्ञा लेकर इन्होंने घर-बार छोड़ दिया और तपस्या करके '[[कैवल्य ज्ञान]]' प्राप्त किया। महावीर ने [[पार्श्वनाथ तीर्थंकर|पार्श्वनाथ]] के आरंभ किए तत्वज्ञान को परिमार्जित करके उसे [[जैन दर्शन]] का स्थायी आधार प्रदान किया। महावीर ऐसे धार्मिक नेता थे, जिन्होंने राज्य का या किसी बाहरी शक्ति का सहारा लिए बिना ही केवल अपनी श्रद्धा के बल पर [[जैन धर्म]] की पुन: प्रतिष्ठा की। [[आधुनिक काल]] में जैन धर्म की व्यापकता और उसके [[दर्शन]] का पूरा श्रेय महावीर को दिया जाता है। भगवान महावीर ने अपनी इन्द्रियों को जीत लिया था, जिस कारण इन्हें 'जीतेंद्र' भी कहा जाता है। - अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[महावीर]]
{[[अलाउद्दीन ख़िलजी]] का मूल नाम क्या था?
|type="()"}
-अबू रैहान
-इमामुद्दीन रैहान
+अली गुरशास्प
-फ़रीद ख़ाँ
||अलाउद्दीन ख़िलजी 1296 से 1316 ई. तक [[दिल्ली]] का सुल्तान था। वह [[ख़िलजी वंश]] के संस्थापक [[जलालुद्दीन ख़िलजी]] का भतीजा और दामाद था। सुल्तान बनने के पहले उसे [[इलाहाबाद]] के निकट कड़ा की जागीर दी गयी। अलाउद्दीन ख़िलजी का बचपन का नाम 'अली गुरशास्प' था। जलालुद्दीन ख़िलजी के तख्त पर बैठने के बाद उसे 'अमीर-ए-तुजुक' का पद मिला था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[अलाउद्दीन ख़िलजी]]
 
{[[महावीर]] के निर्वाण के बाद जैन संघ का अगला अध्यक्ष कौन हुआ?
|type="()"}
-गोशल
-मल्लिनाथ
+सुधर्मन
-वज्र स्वामी
 
{किस शासक के काल में चतुर्थ [[बौद्ध संगीति]] का आयोजन [[कश्मीर]] में हुआ था?
|type="()"}
-[[अशोक]]
-[[चन्द्रगुप्त द्वितीय]]
+[[कनिष्क]]
-[[अजातशत्रु]]
||[[चित्र:Kanishka-Coin.jpg|right|100px|कनिष्क का सिक्का]]किंवदंतियों के अनुसार [[कनिष्क]] [[पाटलिपुत्र]] पर आक्रमण कर [[अश्वघोष]] नामक [[कवि]] तथा [[बौद्ध]] दार्शनिक को अपने साथ ले गया था और उसी के प्रभाव में आकर सम्राट की [[बौद्ध धर्म]] की ओर प्रवृत्ति हुई। इसके समय में [[कश्मीर]] में [[कुण्डलवन]] या [[जालंधर]] में चतुर्थ [[बौद्ध संगीति]], विद्वान वसुमित्र की अध्यक्षता में हुई। सम्राट कनिष्क की संरक्षता तथा आदेशानुसार इस संगीति में 500 बौद्ध विद्वानों ने भाग लिया और [[त्रिपिटक]] का पुन: संकलन संस्करण हुआ।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[कनिष्क]]
 
{आदि जैन ग्रंथों की [[भाषा]] क्या थी?
|type="()"}
-[[संस्कृत भाषा]]
+[[प्राकृत भाषा]]
-[[पालि भाषा]]
-[[अपभ्रंश भाषा]]
||[[प्राकृत भाषा]] भारतीय [[आर्य|आर्यों]] की [[भाषा]] का एक प्राचीन रूप है। इसके प्रयोग का समय 500 ई.पू. से 1000 ई. सन तक माना जाता है। धार्मिक कारणों से जब [[संस्कृत]] का महत्त्व कम होने लगा, तो प्राकृत भाषा अधिक व्यवहार में आने लगी। इसके चार रूप विशेषत: उल्लेखनीय हैं- 'अर्धमागधी प्राकृत', 'पैशाची प्राकृत', 'महाराष्ट्री प्राकृत' और 'शौरसेनी प्राकृत'।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[प्राकृत भाषा]]
 
{[[जैन धर्म]] के पाँचों व्रतों में से सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण व्रत कौन-सा है?
|type="()"}
-अमृषा (सत्य)
+अहिंसा
-अचौर्य (अस्तेय)
-अपरिग्रह
 
{सर्वप्रथम चारों [[आश्रम|आश्रमों]] के विषय में जानकारी कहाँ से मिलती है?
|type="()"}
+[[जाबालोपनिषद]] से
-[[छान्दोग्य उपनिषद]] से
-[[मुण्डकोपनिषद]] से
-[[कठोपनिषद]] से
||[[चित्र:Yajurveda.jpg|right|100px|यजुर्वेद का आवरण पृष्ठ]]शुक्ल यजुर्वेद के इस [[उपनिषद]] में कुल छह खण्ड हैं। प्रथम खण्ड में भगवान [[बृहस्पति ऋषि|बृहस्पति]] और [[ऋषि]] [[याज्ञवल्क्य]] के संवाद द्वारा प्राणविद्या का विवेचन किया गया है। द्वितीय खण्ड में [[अत्रि]] और याज्ञवल्क्य के संवाद द्वारा 'अविमुक्त' क्षेत्र को भृकुटियों के मध्य बताया गया है। तृतीय खण्ड में ऋषि याज्ञवल्क्य द्वारा मोक्ष-प्राप्ति का उपाय बताया गया है। चतुर्थ खण्ड में विदेहराज [[जनक]] के द्वारा संन्यास के विषय में पूछे गये प्रश्नों का उत्तर याज्ञवल्क्य देते हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[जाबालोपनिषद]]
</quiz>
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{{इतिहास सामान्य ज्ञान}}
{{इतिहास सामान्य ज्ञान}}
{{सामान्य ज्ञान प्रश्नोत्तरी}}
{{सामान्य ज्ञान प्रश्नोत्तरी}}
{{प्रचार}}
[[Category:सामान्य ज्ञान]]
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सामान्य ज्ञान प्रश्नोत्तरी
राज्यों के सामान्य ज्ञान


इस विषय से संबंधित लेख पढ़ें:- इतिहास प्रांगण, इतिहास कोश, ऐतिहासिक स्थान कोश

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1 मलिक काफ़ूर को हज़ार दीनारी कहा गया था, क्योंकि-

उसे 1000 दीनार में ख़रीदा गया था।
वह 1000 सैनिकों का प्रधान था।
उसके पास 1000 गाँवों का स्वामित्व था।
वह 1000 दीनार प्रतिदिन दान करता था।

2 हड़प्पा वासियों को निम्नलिखित में से किसका ज्ञान नहीं था?

कुओं का निर्माण
खम्भों का निर्माण
नालियों का निर्माण
मेहराबों का निर्माण

3 निम्न में से किस व्यक्ति को ‘बिना ताज का बादशाह’ कहा जाता है?

बाल गंगाधर तिलक
सुरेन्द्रनाथ बनर्जी
राजा राममोहन राय
महात्मा गाँधी

4 हड़प्पा काल में ताँबे के रथ की खोज किस स्थान से हुई थी?

कुनाल
राखीगढ़ी
दैमाबाद
बनवाली

5 महावीर स्वामी 'यती' कब कहलाए?

घर त्यागने के बाद
इन्द्रियों को जीतने के बाद
ज्ञान प्राप्त करने के बाद
उपर्युक्त में से कोई नहीं

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