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[[पहाड़ी भाषा]] में गुफ़ा को 'खोड़ी' कहते है। इस प्रकार पहाड़ी भाषा में 'शिवखोड़ी' का अर्थ होता है- भगवान शिव की गुफ़ा।       
[[पहाड़ी भाषा]] में गुफ़ा को 'खोड़ी' कहते है। इस प्रकार पहाड़ी भाषा में 'शिवखोड़ी' का अर्थ होता है- भगवान शिव की गुफ़ा।       
==स्थिति==   
==स्थिति==   
शिवखोड़ी तीर्थस्थल हरी-भरी पहाड़ियों के मध्य में स्थित है। यह रनसू से 3.5 किमी. की दूरी पर स्थित है। रनसू शिवखोड़ी का बेस कैम्प है। यहाँ से पैदल यात्रा कर आप वहाँ तक पहुंच सकते हैं। रनसू तहसील रयसी में आता है, जो कटरा से 80 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। कटरा [[वैष्णो देवी]] की यात्रा का बेस कैम्प है। जम्मू से यह 110 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। जम्मू से बस या कार के द्वारा रनसू तक पहुँच सकते है। वैष्णो देवी से आने वाले यात्रियों के लिए जम्मू-कश्मीर टूरिज़्म विभाग की ओर से बस सुविधा भी मुहैया कराई जाती है। कटरा से रनसू तक के लिए हल्के वाहन भी उपलब्ध हैं। रनसू गाँव रैयसी राजौरी मार्ग से 6 कि.मी. की दूरी पर स्थित है।
शिवखोड़ी तीर्थस्थल हरी-भरी पहाड़ियों के मध्य में स्थित है। यह रनसू से 3.5 किमी. की दूरी पर स्थित है। रनसू शिवखोड़ी का बेस कैम्प है। यहाँ से पैदल यात्रा कर आप वहाँ तक पहुंच सकते हैं। रनसू तहसील रयसी में आता है, जो कटरा से 80 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। कटरा [[वैष्णो देवी]] की यात्रा का बेस कैम्प है। जम्मू से यह 110 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। जम्मू से बस या कार के द्वारा रनसू तक पहुँच सकते है। वैष्णो देवी से आने वाले यात्रियों के लिए जम्मू-कश्मीर टूरिज़्म विभाग की ओर से बस सुविधा भी मुहैया कराई जाती है। कटरा से रनसू तक के लिए हल्के वाहन भी उपलब्ध हैं। रनसू गाँव रैयसी-[[राजौरी]] मार्ग से 6 कि.मी. की दूरी पर स्थित है।


[[जम्मू]] से प्राकृतिक सौंदर्य का आंनद उठाकर शिवखोड़ी तक जा सकते है। जम्‍मू से शिवखोड़ी जाने के रास्ते में काफ़ी सारे मनोहारी दृश्य मिलते हैं, जो कि यात्रियों का मन मोह लेते है। कलकल करते झरने, पहाड़ी सुन्दरता आदि पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं।  
[[जम्मू]] से प्राकृतिक सौंदर्य का आंनद उठाकर शिवखोड़ी तक जा सकते है। जम्‍मू से शिवखोड़ी जाने के रास्ते में काफ़ी सारे मनोहारी दृश्य मिलते हैं, जो कि यात्रियों का मन मोह लेते है। कलकल करते झरने, पहाड़ी सुन्दरता आदि पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं।  
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गुफ़ा का मुहाना काफ़ी बड़ा है। यह 20 फीट चौड़ा और 22 फीट ऊँचा है। गुफ़ा के मुहाने पर [[शेषनाग]] की आकृति के दर्शन होते है। [[अमरनाथ|अमरनाथ गुफा]] के समान शिवखोड़ी गुफ़ा में भी कबूतर दिख जाते हैं। संकीर्ण रास्ते से होकर यात्री गुफ़ा के मुख्य भाग में पहुँचते हैं। गुफा के मुख्य स्थान पर भगवान शंकर का 4 फीट ऊँचा [[शिवलिंग]] है। इसके ठीक ऊपर [[गाय]] के चार थन बने हुए हैं, जिन्हें [[कामधेनु]] के थन कहा जाता है। इनमें से निरंतर [[जल]] गिरता रहता है।  
गुफ़ा का मुहाना काफ़ी बड़ा है। यह 20 फीट चौड़ा और 22 फीट ऊँचा है। गुफ़ा के मुहाने पर [[शेषनाग]] की आकृति के दर्शन होते है। [[अमरनाथ|अमरनाथ गुफा]] के समान शिवखोड़ी गुफ़ा में भी कबूतर दिख जाते हैं। संकीर्ण रास्ते से होकर यात्री गुफ़ा के मुख्य भाग में पहुँचते हैं। गुफा के मुख्य स्थान पर भगवान शंकर का 4 फीट ऊँचा [[शिवलिंग]] है। इसके ठीक ऊपर [[गाय]] के चार थन बने हुए हैं, जिन्हें [[कामधेनु]] के थन कहा जाता है। इनमें से निरंतर [[जल]] गिरता रहता है।  


शिवलिंग के बाईं ओर माता [[पार्वती]] की आकृति है। यह आकृति ध्यान की मुद्रा में है। माता पार्वती की मूर्ति के साथ ही में गौरी कुण्ड है, जो हमेशा पवित्र जल से भरा रहता है। शिवलिंग के बाईं ओर ही भगवान [[कार्तिकेय]] की आकृति भी साफ दिखाई देती है। [[कार्तिकेय]] की प्रतिमा के ऊपर भगवान [[गणेश]] की पंचमुखी आकृति है। शिवलिंग के पास ही में [[राम |राम दरबार]] है। गुफ़ा के अन्दर ही हिन्दुओं के 33 करोड़ देवी-देवताओं की आकृति बनी हुई है। गुफ़ा के ऊपर की ओर छहमुखी [[शेषनाग]], [[त्रिशूल]] आदि की आकृति साफ दिखाई देती है। साथ-ही-साथ सुदर्शन चक्र की गोल आकृति भी स्‍पष्‍ट दिखाई देती है। गुफ़ा के दूसरे हिस्से में [[लक्ष्मी|महालक्ष्मी]], [[महाकाली]], [[सरस्वती]] के पिण्डी रूप में दर्शन होते हैं।
शिवलिंग के बाईं ओर माता [[पार्वती]] की आकृति है। यह आकृति ध्यान की मुद्रा में है। माता पार्वती की मूर्ति के साथ ही में गौरी कुण्ड है, जो हमेशा पवित्र जल से भरा रहता है। शिवलिंग के बाईं ओर ही भगवान [[कार्तिकेय]] की आकृति भी साफ़ दिखाई देती है। [[कार्तिकेय]] की प्रतिमा के ऊपर भगवान [[गणेश]] की पंचमुखी आकृति है। शिवलिंग के पास ही में [[राम |राम दरबार]] है। गुफ़ा के अन्दर ही हिन्दुओं के 33 करोड़ देवी-देवताओं की आकृति बनी हुई है। गुफ़ा के ऊपर की ओर छहमुखी [[शेषनाग]], [[त्रिशूल]] आदि की आकृति साफ़ दिखाई देती है। साथ-ही-साथ [[सुदर्शन चक्र]] की गोल आकृति भी स्‍पष्‍ट दिखाई देती है। गुफ़ा के दूसरे हिस्से में [[लक्ष्मी|महालक्ष्मी]], [[महाकाली]], [[सरस्वती]] के पिण्डी रूप में दर्शन होते हैं।
 
==नौ देवियों का स्थान==
==नौ देवियों का स्थान==
आगार जितो से चार किलोमीटर की दूरी पर नौ देवियों का एक स्थान है। ये देवियां नौ पिंडियों के रूप में एक गुफा में स्थित हैं। इस गुफा में जाने के लिए तंग रास्ता है। इससे लगभग 42 किलोमीटर दूर रास्ते में 'धनसार' नामक स्थान है। यहाँ एक शिवलिंग स्थापित है, उस पर चौबीसों घंटे पहाड़ी से बूँद-बूँद पानी गिरता रहता है। इस शिवलिंग पर रात दिन होने वाले जलाभिषेक को देखकर श्रद्धालु चकित रह जाते हैं। आगे जाने पर रास्ते में [[चिनाब नदी]] का एक पुल आता है। सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण होने के कारण यहाँ सुरक्षा की विशेष व्यवस्था रहती है। वाहनों से रनसू पहुँचने पर वहां से शिवखोड़ी जाने के लिए लगभग साढे़ तीन किलोमीटर पैदल यात्रा करनी पड़ती है। इस रास्ते को तय करने के लिए यहाँ घोड़े व पालकी की भी व्यवस्था है।
आगार जितो से चार किलोमीटर की दूरी पर नौ देवियों का एक स्थान है। ये देवियां नौ पिंडियों के रूप में एक गुफा में स्थित हैं। इस गुफा में जाने के लिए तंग रास्ता है। इससे लगभग 42 किलोमीटर दूर रास्ते में 'धनसार' नामक स्थान है। यहाँ एक शिवलिंग स्थापित है, उस पर चौबीसों घंटे पहाड़ी से बूँद-बूँद पानी गिरता रहता है। इस शिवलिंग पर रात दिन होने वाले जलाभिषेक को देखकर श्रद्धालु चकित रह जाते हैं। आगे जाने पर रास्ते में [[चिनाब नदी]] का एक पुल आता है। सामरिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण होने के कारण यहाँ सुरक्षा की विशेष व्यवस्था रहती है। वाहनों से रनसू पहुँचने पर वहां से शिवखोड़ी जाने के लिए लगभग साढे़ तीन किलोमीटर पैदल यात्रा करनी पड़ती है। इस रास्ते को तय करने के लिए यहाँ घोड़े व पालकी की भी व्यवस्था है।
==सावधानियाँ==
==सावधानियाँ==
रनसू से शिवखोड़ी जाते समय यात्रियों को रेनकोट, टॉर्च आदि अपने पास रखने चाहिए। ये चीजें यहाँ किराए पर भी मिल जाती हैं। श्रद्धालु यहाँ से जब शिवखोड़ी के लिए आगे बढ़ते हैं, तो रास्ते में एक नदी पड़ती है। नदी का जल [[दूध]] जैसा सफेद होने की वजह से इसे दूध गंगा भी कहते हैं। शिवखोड़ी स्थान पर पहुँचते ही सामने एक गुफ़ा दिखाई देती है। गुफ़ा में प्रवेश करने के लिए लगभग 60 सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं। गुफ़ा में प्रवेश करते ही लोगों के मुख से अनायास 'जय हो बाबा भोलेनाथ'-यह उद्घोष निकलता है।<ref>{{cite web |url=http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/3773993.cms |title=मन बार-बार कहता है चल शिवखोड़ी |accessmonthday=[[29 अगस्त]] |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी }}</ref>
रनसू से शिवखोड़ी जाते समय यात्रियों को रेनकोट, टॉर्च आदि अपने पास रखने चाहिए। ये चीज़ें यहाँ किराए पर भी मिल जाती हैं। श्रद्धालु यहाँ से जब शिवखोड़ी के लिए आगे बढ़ते हैं, तो रास्ते में एक नदी पड़ती है। नदी का जल [[दूध]] जैसा सफेद होने की वजह से इसे दूध गंगा भी कहते हैं। शिवखोड़ी स्थान पर पहुँचते ही सामने एक गुफ़ा दिखाई देती है। गुफ़ा में प्रवेश करने के लिए लगभग 60 सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं। गुफ़ा में प्रवेश करते ही लोगों के मुख से अनायास 'जय हो बाबा भोलेनाथ'-यह उद्घोष निकलता है।<ref>{{cite web |url=http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/3773993.cms |title=मन बार-बार कहता है चल शिवखोड़ी |accessmonthday=[[29 अगस्त]] |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी }}</ref>
==पौराणिक कथाएँ==  
==पौराणिक कथाएँ==  
====भस्मासुर की कथा====   
====भस्मासुर की कथा====   
इस गुफ़ा के संबंध में अनेक कथाएं प्रसिद्ध हैं। इन कथाओं में भस्मासुर से संबंधित कथा सबसे अधिक प्रचलित है। भस्मासुर [[असुर]] जाति का था। उसने भगवान [[शंकर]] की घोर तपस्या की थी, जिससे प्रसन्‍न होकर भगवान शंकर ने उसे वरदान दिया था कि वह जिस व्यक्ति के सिर पर हाथ रखेगा, वह भस्‍म हो जाएगा। वरदान प्राप्ति के बाद वह [[ऋषि]]-[[मुनि|मुनियों]] पर अत्याचार करने लगा। उसका अत्याचार इतना बढ़ गया था कि [[देवता]] भी उससे डरने लगे थे। देवता उसे मारने का उपाय ढूँढ़ने लगे। इसी उपाय के अंतर्गत [[नारद मुनि]] ने उसे देवी [[पार्वती]] का अपहरण करने के लिए प्रेरित किया। [[नारद मुनि]] ने भस्मासुर से कहा, वह तो अति बलवान है। इसलिए उसके पास तो पार्वती जैसी सुन्दरी होनी चाहिए, जो कि अति सुन्दर है। भस्मासुर के मन में लालच आ गया और वह पार्वती को पाने की इच्छा से भगवान शंकर के पीछे भागा। शंकर ने उसे अपने पीछे आता देखा तो वह पार्वती और [[नंदी]] को साथ में लेकर भागे और फिर शिवखोड़ी के पास आकर रूक गए। यहाँ भस्मासुर और भगवान शंकर के बीच में युद्ध प्रारंभ हो गया। यहाँ पर युद्ध होने के कारण ही इस स्थान का नाम '''रनसू''' पड़ा। '''रन का मतलब 'युद्ध' और सू का मतलब 'भूमि' होता है।''' इसी कारण इस स्थान को 'रनसू' कहा जाता है। रनसू शिवखोड़ी यात्रा का बेस कैम्प है। अपने ही दिए हुए वरदान के कारण वह उसे नहीं मार सकते थे। भगवान शंकर ने अपने [[त्रिशूल]] से शिवखोड़ी का निमार्ण किया। शंकर भगवान ने माता पार्वती के साथ गुफ़ा में प्रवेश किया और योग साधना में बैठ गये। इसके बाद भगवान [[विष्णु]] ने पार्वती का रूप धारण किया और भस्मासुर के साथ नृत्य करने लगे। [[नृत्य]] के दौरान ही उन्होंने अपने सिर पर हाथ रखा, उसी प्रकार भस्मासुर ने भी अपने सिर पर हाथ रखा, जिस कारण वह भस्म हो गया। इसके पश्चात भगवान [[विष्णु]] ने [[कामधेनु]] की मदद से गुफा के अन्दर प्रवेश किया फिर सभी देवी-देवताओं ने वहाँ भगवान शंकर की अराधना की। इसी समय भगवान शंकर ने कहा कि आज से यह स्थान 'शिवखोड़ी' के नाम से जाना जायेगा।
इस गुफ़ा के संबंध में अनेक कथाएं प्रसिद्ध हैं। इन कथाओं में भस्मासुर से संबंधित कथा सबसे अधिक प्रचलित है। भस्मासुर [[असुर]] जाति का था। उसने भगवान [[शंकर]] की घोर तपस्या की थी, जिससे प्रसन्‍न होकर भगवान शंकर ने उसे वरदान दिया था कि वह जिस व्यक्ति के सिर पर हाथ रखेगा, वह भस्‍म हो जाएगा। वरदान प्राप्ति के बाद वह [[ऋषि]]-[[मुनि|मुनियों]] पर अत्याचार करने लगा। उसका अत्याचार इतना बढ़ गया था कि [[देवता]] भी उससे डरने लगे थे। देवता उसे मारने का उपाय ढूँढ़ने लगे। इसी उपाय के अंतर्गत [[नारद मुनि]] ने उसे देवी [[पार्वती]] का अपहरण करने के लिए प्रेरित किया। [[नारद मुनि]] ने भस्मासुर से कहा, वह तो अति बलवान है। इसलिए उसके पास तो पार्वती जैसी सुन्दरी होनी चाहिए, जो कि अति सुन्दर है। भस्मासुर के मन में लालच आ गया और वह पार्वती को पाने की इच्छा से भगवान शंकर के पीछे भागा। शंकर ने उसे अपने पीछे आता देखा तो वह पार्वती और [[नंदी]] को साथ में लेकर भागे और फिर शिवखोड़ी के पास आकर रूक गए। यहाँ भस्मासुर और भगवान शंकर के बीच में युद्ध प्रारंभ हो गया। यहाँ पर युद्ध होने के कारण ही इस स्थान का नाम '''रनसू''' पड़ा। '''रन का मतलब 'युद्ध' और सू का मतलब 'भूमि' होता है।''' इसी कारण इस स्थान को 'रनसू' कहा जाता है। रनसू शिवखोड़ी यात्रा का बेस कैम्प है। अपने ही दिए हुए वरदान के कारण वह उसे नहीं मार सकते थे। भगवान शंकर ने अपने [[त्रिशूल]] से शिवखोड़ी का निमार्ण किया। शंकर भगवान ने माता पार्वती के साथ गुफ़ा में प्रवेश किया और योग साधना में बैठ गये। इसके बाद भगवान [[विष्णु]] ने पार्वती का रूप धारण किया और भस्मासुर के साथ नृत्य करने लगे। [[नृत्य]] के दौरान ही उन्होंने अपने सिर पर हाथ रखा, उसी प्रकार भस्मासुर ने भी अपने सिर पर हाथ रखा, जिस कारण वह भस्म हो गया। इसके पश्चात् भगवान [[विष्णु]] ने [[कामधेनु]] की मदद से गुफा के अन्दर प्रवेश किया फिर सभी देवी-देवताओं ने वहाँ भगवान शंकर की अराधना की। इसी समय भगवान शंकर ने कहा कि आज से यह स्थान 'शिवखोड़ी' के नाम से जाना जायेगा।
==प्रमुख त्योहार==
==प्रमुख त्योहार==
[[चित्र:Shivkhori.jpg|thumb|[[शिवलिंग]], शिवखोड़ी]]
[[चित्र:Shivkhori.jpg|thumb|[[शिवलिंग]], शिवखोड़ी]]
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[[जम्मू]] तक रेल द्वारा पहुँचकर शिवखोड़ी तक जा सकते है। जम्मू सभी राज्यों से रेल द्वारा जुड़ा हुआ है। बहुत ट्रेनें जम्मू तक जाती है। गर्मियों की छुट़्टियों मे रेल विभाग द्वारा विशेष रेल यहाँ के लिए चलाई जाती है।
[[जम्मू]] तक रेल द्वारा पहुँचकर शिवखोड़ी तक जा सकते है। जम्मू सभी राज्यों से रेल द्वारा जुड़ा हुआ है। बहुत ट्रेनें जम्मू तक जाती है। गर्मियों की छुट़्टियों मे रेल विभाग द्वारा विशेष रेल यहाँ के लिए चलाई जाती है।
====सड़क मार्ग====  
====सड़क मार्ग====  
रनसू गाँव, रयसी-राजौरी रोड़ पर स्थित है। रनसू गाँव शिवखोड़ी का बेस कैम्प है। यह [[वैष्णो देवी]] कटरा से भी सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है। वैष्णो देवी के लिए लगभग सभी राज्यों से बस सेवा है। आप यहाँ से 80 कि.मी. की दूरी तय कर शिवखोड़ी तक पहुँच सकते है। कटरा तक जाने के लिए बहुत-सी बसें उपलब्ध हैं। जम्मू-कश्मीर टूरिज़्म विभाग द्वारा भी शिवखोड़ी धाम के लिए बस सुविधा मुहैया कराई जाती है। टैक्सी और हल्के वाहनो द्वारा भी यहाँ तक पहुँचा जा सकता है। कटरा, [[उधमपुर ज़िला|उधमपुर]] और जम्मू से यात्री बस, कार, टैम्पू और वैन द्वारा शिवखोड़ी तक पहुँच सकते हैं।
रनसू गाँव, रयसी-[[राजौरी]] रोड़ पर स्थित है। रनसू गाँव शिवखोड़ी का बेस कैम्प है। यह [[वैष्णो देवी]] कटरा से भी सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है। वैष्णो देवी के लिए लगभग सभी राज्यों से बस सेवा है। आप यहाँ से 80 कि.मी. की दूरी तय कर शिवखोड़ी तक पहुँच सकते है। कटरा तक जाने के लिए बहुत-सी बसें उपलब्ध हैं। जम्मू-कश्मीर टूरिज़्म विभाग द्वारा भी शिवखोड़ी धाम के लिए बस सुविधा मुहैया कराई जाती है। टैक्सी और हल्के वाहनो द्वारा भी यहाँ तक पहुँचा जा सकता है। कटरा, [[उधमपुर ज़िला|उधमपुर]] और जम्मू से यात्री बस, कार, टैम्पू और वैन द्वारा शिवखोड़ी तक पहुँच सकते हैं।
==ठहरने की व्यवस्था==
==ठहरने की व्यवस्था==
श्रद्धालुओं की संख्या में वृद्धि को देखते हुए जम्मू-कश्मीर टूरिज़्म विभाग द्वारा यात्री निवास की व्यवस्था की गई है। ये यात्री निवास रनसू गाँव में हैं। रनसू शिवखोड़ी का बेस कैम्प है। यहाँ पर बहुत संख्या में निजी होटल भी हैं। यहाँ पर आपको सभी सुविधायें मिल जायेंगी।<ref>{{cite web |url=http://yatrasalah.com/touristPlaces.aspx?id=15 |title=शिवखोड़ी |accessmonthday=[[28 अगस्त]] |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=यात्रा सलाह |language=हिन्दी }}</ref>
श्रद्धालुओं की संख्या में वृद्धि को देखते हुए जम्मू-कश्मीर टूरिज़्म विभाग द्वारा यात्री निवास की व्यवस्था की गई है। ये यात्री निवास रनसू गाँव में हैं। रनसू शिवखोड़ी का बेस कैम्प है। यहाँ पर बहुत संख्या में निजी होटल भी हैं। यहाँ पर आपको सभी सुविधायें मिल जायेंगी।<ref>{{cite web |url=http://yatrasalah.com/touristPlaces.aspx?id=15 |title=शिवखोड़ी |accessmonthday=[[28 अगस्त]] |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=यात्रा सलाह |language=हिन्दी }}</ref>

07:33, 7 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण

शिवखोड़ी
शिवखोड़ी गुफ़ा
शिवखोड़ी गुफ़ा
विवरण शिवखोड़ी गुफ़ा जम्मू - कश्मीर राज्य के 'रयसी ज़िले' में स्थित है। यह भगवान शिव के प्रमुख पूज्यनीय स्थलों में से एक है।
राज्य जम्मू और कश्मीर
ज़िला रयसी
मार्ग स्थिति शिवखोड़ी रनसू से 3.5 किमी., कटरा से 80 किमी., जम्मू से यह 110 किमी. की दूरी पर स्थित है।
कैसे पहुँचें हवाई जहाज़, रेल, बस आदि से पहुँचा जा सकता है।
हवाई अड्डा जम्मू हवाई अड्डा
रेलवे स्टेशन जम्मू रेलवे स्टेशन
यातायात ऑटो रिक्शा, टैक्सी, बस
सावधानी रनसू से शिवखोड़ी जाते समय यात्रियों को रेनकोट, टॉर्च आदि अपने पास रखने चाहिए।
अन्य जानकारी महाशिवरात्रि का पावन पर्व शिव खोडी में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। हर वर्ष यहाँ पर तीन दिन के मेले का आयोजन किया जाता है।
बाहरी कड़ियाँ आधिकारिक वेबसाइट
अद्यतन‎

शिवखोड़ी गुफ़ा जम्मू-कश्मीर राज्य के 'रयसी ज़िले' में स्थित है। यह भगवान शिव के प्रमुख पूज्यनीय स्थलों में से एक है। यह पवित्र गुफ़ा 150 मीटर लंबी है। शिवखोड़ी गुफ़ा के अन्‍दर भगवान शंकर का 4 फीट ऊंचा शिवलिंग है। इस शिवलिंग के ऊपर पवित्र जल की धारा सदैव गिरती रहती है। यह एक प्राकृतिक गुफ़ा है। इस गुफ़ा के अंदर अनेक देवी -देवताओं की मनमोहक आकृतियां है। इन आकृतियों को देखने से दिव्य आनन्द की प्राप्ति होती है। शिवखोड़ी गुफ़ा को हिंदू देवी-देवताओं के घर के रूप में भी जाना जाता है।

अर्थ

पहाड़ी भाषा में गुफ़ा को 'खोड़ी' कहते है। इस प्रकार पहाड़ी भाषा में 'शिवखोड़ी' का अर्थ होता है- भगवान शिव की गुफ़ा।

स्थिति

शिवखोड़ी तीर्थस्थल हरी-भरी पहाड़ियों के मध्य में स्थित है। यह रनसू से 3.5 किमी. की दूरी पर स्थित है। रनसू शिवखोड़ी का बेस कैम्प है। यहाँ से पैदल यात्रा कर आप वहाँ तक पहुंच सकते हैं। रनसू तहसील रयसी में आता है, जो कटरा से 80 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। कटरा वैष्णो देवी की यात्रा का बेस कैम्प है। जम्मू से यह 110 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। जम्मू से बस या कार के द्वारा रनसू तक पहुँच सकते है। वैष्णो देवी से आने वाले यात्रियों के लिए जम्मू-कश्मीर टूरिज़्म विभाग की ओर से बस सुविधा भी मुहैया कराई जाती है। कटरा से रनसू तक के लिए हल्के वाहन भी उपलब्ध हैं। रनसू गाँव रैयसी-राजौरी मार्ग से 6 कि.मी. की दूरी पर स्थित है।

जम्मू से प्राकृतिक सौंदर्य का आंनद उठाकर शिवखोड़ी तक जा सकते है। जम्‍मू से शिवखोड़ी जाने के रास्ते में काफ़ी सारे मनोहारी दृश्य मिलते हैं, जो कि यात्रियों का मन मोह लेते है। कलकल करते झरने, पहाड़ी सुन्दरता आदि पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं।

इतिहास

पौराणिक धार्मिक ग्रंथों में भी इस गुफ़ा के बारे में वर्णन मिलता है। इस गुफ़ा को खोजने का श्रेय एक मुस्लिम गड़रिये को जाता है। यह गड़रिया अपनी खोई हुई बकरी खोजते हुए इस गुफ़ा तक पहुँच गया। जिज्ञासावश वह गुफ़ा के अंदर चला गया, जहाँ उसने शिवलिंग को देखा। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार भगवान शंकर इस गुफ़ा में योग मुद्रा में बैठे हुए हैं। गुफ़ा के अन्दर अन्य देवी-देवताओं की आकृति भी मौजूद हैं।

गुफ़ा का आकार

गुफ़ा का आकार भगवान शंकर के डमरू के आकार का है। जिस तरह से डमरू दोनों तरफ से बड़ा होता है और बीच में से छोटा होता है, उसी प्रकार गुफ़ा भी दोनों तरफ़ से बड़ी है और बीच में छोटी है। गुफ़ा का मुहाना 100 मी. चौड़ा है। परंतु अंदर की ओर बढ़ने पर यह संकीर्ण होता जाता है। गुफ़ा अपने अन्दर काफ़ी सारे प्राकृतिक सौंदर्य दृश्य समेटे हुए है।

गुफ़ा का मुहाना काफ़ी बड़ा है। यह 20 फीट चौड़ा और 22 फीट ऊँचा है। गुफ़ा के मुहाने पर शेषनाग की आकृति के दर्शन होते है। अमरनाथ गुफा के समान शिवखोड़ी गुफ़ा में भी कबूतर दिख जाते हैं। संकीर्ण रास्ते से होकर यात्री गुफ़ा के मुख्य भाग में पहुँचते हैं। गुफा के मुख्य स्थान पर भगवान शंकर का 4 फीट ऊँचा शिवलिंग है। इसके ठीक ऊपर गाय के चार थन बने हुए हैं, जिन्हें कामधेनु के थन कहा जाता है। इनमें से निरंतर जल गिरता रहता है।

शिवलिंग के बाईं ओर माता पार्वती की आकृति है। यह आकृति ध्यान की मुद्रा में है। माता पार्वती की मूर्ति के साथ ही में गौरी कुण्ड है, जो हमेशा पवित्र जल से भरा रहता है। शिवलिंग के बाईं ओर ही भगवान कार्तिकेय की आकृति भी साफ़ दिखाई देती है। कार्तिकेय की प्रतिमा के ऊपर भगवान गणेश की पंचमुखी आकृति है। शिवलिंग के पास ही में राम दरबार है। गुफ़ा के अन्दर ही हिन्दुओं के 33 करोड़ देवी-देवताओं की आकृति बनी हुई है। गुफ़ा के ऊपर की ओर छहमुखी शेषनाग, त्रिशूल आदि की आकृति साफ़ दिखाई देती है। साथ-ही-साथ सुदर्शन चक्र की गोल आकृति भी स्‍पष्‍ट दिखाई देती है। गुफ़ा के दूसरे हिस्से में महालक्ष्मी, महाकाली, सरस्वती के पिण्डी रूप में दर्शन होते हैं।

नौ देवियों का स्थान

आगार जितो से चार किलोमीटर की दूरी पर नौ देवियों का एक स्थान है। ये देवियां नौ पिंडियों के रूप में एक गुफा में स्थित हैं। इस गुफा में जाने के लिए तंग रास्ता है। इससे लगभग 42 किलोमीटर दूर रास्ते में 'धनसार' नामक स्थान है। यहाँ एक शिवलिंग स्थापित है, उस पर चौबीसों घंटे पहाड़ी से बूँद-बूँद पानी गिरता रहता है। इस शिवलिंग पर रात दिन होने वाले जलाभिषेक को देखकर श्रद्धालु चकित रह जाते हैं। आगे जाने पर रास्ते में चिनाब नदी का एक पुल आता है। सामरिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण होने के कारण यहाँ सुरक्षा की विशेष व्यवस्था रहती है। वाहनों से रनसू पहुँचने पर वहां से शिवखोड़ी जाने के लिए लगभग साढे़ तीन किलोमीटर पैदल यात्रा करनी पड़ती है। इस रास्ते को तय करने के लिए यहाँ घोड़े व पालकी की भी व्यवस्था है।

सावधानियाँ

रनसू से शिवखोड़ी जाते समय यात्रियों को रेनकोट, टॉर्च आदि अपने पास रखने चाहिए। ये चीज़ें यहाँ किराए पर भी मिल जाती हैं। श्रद्धालु यहाँ से जब शिवखोड़ी के लिए आगे बढ़ते हैं, तो रास्ते में एक नदी पड़ती है। नदी का जल दूध जैसा सफेद होने की वजह से इसे दूध गंगा भी कहते हैं। शिवखोड़ी स्थान पर पहुँचते ही सामने एक गुफ़ा दिखाई देती है। गुफ़ा में प्रवेश करने के लिए लगभग 60 सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं। गुफ़ा में प्रवेश करते ही लोगों के मुख से अनायास 'जय हो बाबा भोलेनाथ'-यह उद्घोष निकलता है।[1]

पौराणिक कथाएँ

भस्मासुर की कथा

इस गुफ़ा के संबंध में अनेक कथाएं प्रसिद्ध हैं। इन कथाओं में भस्मासुर से संबंधित कथा सबसे अधिक प्रचलित है। भस्मासुर असुर जाति का था। उसने भगवान शंकर की घोर तपस्या की थी, जिससे प्रसन्‍न होकर भगवान शंकर ने उसे वरदान दिया था कि वह जिस व्यक्ति के सिर पर हाथ रखेगा, वह भस्‍म हो जाएगा। वरदान प्राप्ति के बाद वह ऋषि-मुनियों पर अत्याचार करने लगा। उसका अत्याचार इतना बढ़ गया था कि देवता भी उससे डरने लगे थे। देवता उसे मारने का उपाय ढूँढ़ने लगे। इसी उपाय के अंतर्गत नारद मुनि ने उसे देवी पार्वती का अपहरण करने के लिए प्रेरित किया। नारद मुनि ने भस्मासुर से कहा, वह तो अति बलवान है। इसलिए उसके पास तो पार्वती जैसी सुन्दरी होनी चाहिए, जो कि अति सुन्दर है। भस्मासुर के मन में लालच आ गया और वह पार्वती को पाने की इच्छा से भगवान शंकर के पीछे भागा। शंकर ने उसे अपने पीछे आता देखा तो वह पार्वती और नंदी को साथ में लेकर भागे और फिर शिवखोड़ी के पास आकर रूक गए। यहाँ भस्मासुर और भगवान शंकर के बीच में युद्ध प्रारंभ हो गया। यहाँ पर युद्ध होने के कारण ही इस स्थान का नाम रनसू पड़ा। रन का मतलब 'युद्ध' और सू का मतलब 'भूमि' होता है। इसी कारण इस स्थान को 'रनसू' कहा जाता है। रनसू शिवखोड़ी यात्रा का बेस कैम्प है। अपने ही दिए हुए वरदान के कारण वह उसे नहीं मार सकते थे। भगवान शंकर ने अपने त्रिशूल से शिवखोड़ी का निमार्ण किया। शंकर भगवान ने माता पार्वती के साथ गुफ़ा में प्रवेश किया और योग साधना में बैठ गये। इसके बाद भगवान विष्णु ने पार्वती का रूप धारण किया और भस्मासुर के साथ नृत्य करने लगे। नृत्य के दौरान ही उन्होंने अपने सिर पर हाथ रखा, उसी प्रकार भस्मासुर ने भी अपने सिर पर हाथ रखा, जिस कारण वह भस्म हो गया। इसके पश्चात् भगवान विष्णु ने कामधेनु की मदद से गुफा के अन्दर प्रवेश किया फिर सभी देवी-देवताओं ने वहाँ भगवान शंकर की अराधना की। इसी समय भगवान शंकर ने कहा कि आज से यह स्थान 'शिवखोड़ी' के नाम से जाना जायेगा।

प्रमुख त्योहार

शिवलिंग, शिवखोड़ी

महाशिवरात्रि का पावन पर्व, जो कि भगवान शिव को समर्पित है, शिवखोडी में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। हर वर्ष यहाँ पर तीन दिन के मेले का आयोजन किया जाता है। कुछ वर्षो से यहाँ पर आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या में काफ़ी वृद्धि हुई है। अलग-अलग राज्यों से आकर श्रद्धालु यहाँ पर भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। शिवरात्रि का त्योहार फरवरी के अन्तिम सप्ताह या मार्च के प्रथम सप्ताह में मनाया जाता है।

यातायात और परिवहन

पवित्र गुफ़ा तक पहुँचने का एक रास्ता रनसू गाँव से होकर जाता है। रनसू गाँव जम्मू से सड़क मार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है। और जम्मू सभी राज्यों से सड़क, रेल व वायु मार्ग से जुड़ा हुआ है।

वायु मार्ग

शिवखोड़ी का निकटतम हवाई अड्डा जम्मू में है जो कि शिवखोड़ी से 110 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। इंडियन एयरलाइंस, जेट एयरवेस, एयर सहारा व स्‍पाइसजेट कि रोज़ाना उड़ानें यहाँ के लिए हैं।

रेल मार्ग

जम्मू तक रेल द्वारा पहुँचकर शिवखोड़ी तक जा सकते है। जम्मू सभी राज्यों से रेल द्वारा जुड़ा हुआ है। बहुत ट्रेनें जम्मू तक जाती है। गर्मियों की छुट़्टियों मे रेल विभाग द्वारा विशेष रेल यहाँ के लिए चलाई जाती है।

सड़क मार्ग

रनसू गाँव, रयसी-राजौरी रोड़ पर स्थित है। रनसू गाँव शिवखोड़ी का बेस कैम्प है। यह वैष्णो देवी कटरा से भी सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है। वैष्णो देवी के लिए लगभग सभी राज्यों से बस सेवा है। आप यहाँ से 80 कि.मी. की दूरी तय कर शिवखोड़ी तक पहुँच सकते है। कटरा तक जाने के लिए बहुत-सी बसें उपलब्ध हैं। जम्मू-कश्मीर टूरिज़्म विभाग द्वारा भी शिवखोड़ी धाम के लिए बस सुविधा मुहैया कराई जाती है। टैक्सी और हल्के वाहनो द्वारा भी यहाँ तक पहुँचा जा सकता है। कटरा, उधमपुर और जम्मू से यात्री बस, कार, टैम्पू और वैन द्वारा शिवखोड़ी तक पहुँच सकते हैं।

ठहरने की व्यवस्था

श्रद्धालुओं की संख्या में वृद्धि को देखते हुए जम्मू-कश्मीर टूरिज़्म विभाग द्वारा यात्री निवास की व्यवस्था की गई है। ये यात्री निवास रनसू गाँव में हैं। रनसू शिवखोड़ी का बेस कैम्प है। यहाँ पर बहुत संख्या में निजी होटल भी हैं। यहाँ पर आपको सभी सुविधायें मिल जायेंगी।[2]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. मन बार-बार कहता है चल शिवखोड़ी (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 29 अगस्त, 2011।
  2. शिवखोड़ी (हिन्दी) यात्रा सलाह। अभिगमन तिथि: 28 अगस्त, 2011।

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