"आशा का दीपक -रामधारी सिंह दिनकर": अवतरणों में अंतर
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replace - " सन " to " सन् ") |
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replacement - " दुख " to " दु:ख ") |
||
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 31: | पंक्ति 31: | ||
{{Poemopen}} | {{Poemopen}} | ||
<poem> | <poem> | ||
वह प्रदीप जो दीख रहा है झिलमिल दूर | वह प्रदीप जो दीख रहा है झिलमिल दूर नहीं है; | ||
थक कर बैठ गये क्या भाई मन्जिल दूर | थक कर बैठ गये क्या भाई मन्जिल दूर नहीं है। | ||
चिन्गारी बन गयी लहू की बून्द गिरी जो पग से; | चिन्गारी बन गयी लहू की बून्द गिरी जो पग से; | ||
चमक रहे पीछे मुड़ देखो चरण-चिह्न जगमग से। | चमक रहे पीछे मुड़ देखो चरण-चिह्न जगमग से। | ||
बाकी होश तभी तक, जब तक जलता तूर | बाकी होश तभी तक, जब तक जलता तूर नहीं है; | ||
थक कर बैठ गये क्या भाई मन्जिल दूर | थक कर बैठ गये क्या भाई मन्जिल दूर नहीं है। | ||
अपनी हड्डी की मशाल से हृदय चीरते तम का; | अपनी हड्डी की मशाल से हृदय चीरते तम का; | ||
सारी रात चले तुम | सारी रात चले तुम दु:ख झेलते कुलिश का। | ||
एक खेय है शेष, किसी विध पार उसे कर जाओ; | एक खेय है शेष, किसी विध पार उसे कर जाओ; | ||
वह देखो, उस पार चमकता है मन्दिर प्रियतम का। | वह देखो, उस पार चमकता है मन्दिर प्रियतम का। |
14:00, 2 जून 2017 के समय का अवतरण
| ||||||||||||||||||
|
वह प्रदीप जो दीख रहा है झिलमिल दूर नहीं है; |
संबंधित लेख