"घट-पल्लव": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
छो (Text replace - "महत्वपूर्ण" to "महत्त्वपूर्ण")
No edit summary
 
(2 सदस्यों द्वारा किए गए बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
{{पुनरीक्षण}}
'''घट-पल्लव''' [[भारतीय कला]] का महत्त्वपूर्ण आलंकारिक तत्त्व, जिसमें [[फूल]] और पत्तियों से भरा एक [[कलश]] होता है। [[वैदिक साहित्य]] में यह जीवन का प्रतीक और [[वनस्पति]] का स्रोत है, जो अब भी मान्य है।
'''घट-पल्लव''' [[भारतीय कला]] का महत्त्वपूर्ण आलंकारिक तत्त्व है, जिसमें [[फूल]] और पत्तियों से भरा एक [[कलश]] होता है। [[वैदिक साहित्य]] में यह जीवन का प्रतीक, वनस्पति का स्रोत है, जो अब भी मान्य हैं। भारतीय कला में लगभग आरंभ से ही यह तत्त्व विद्यमान था और सभी कालों में इसका प्रमुखता से उपयोग हुआ पांचवीं शताब्दी से विशेषकर [[उत्तरी भारत]] में, घट-पल्लव का उपयोग [[वास्तुशास्त्र]] में स्तंभ के आधार और शीर्ष के रूप में होने लगा तथा 15वीं शताब्दी तक इस प्रकार का उपयोग जारी रहा।


[[बौद्ध धर्म|बौद्ध]], [[हिंदू धर्म|हिंदू]] और [[जैन धर्म|जैन]] [[धर्म|धर्मो]] में भरे हुए घड़े (पूर्ण घट या पूर्ण कलश) का उपयोग [[देवता]] अथवा सम्मानित अतिथि के आनुष्ठानिक चढ़ावे के लिए भी होता है; पवित्र प्रतीक के रूप में धर्मस्थलों और भवनों की सज्जा में भी इसका प्रयोग होता है। पात्र को पानी, वनस्पति और अक्सर एक [[नारियल]] से भर दिया जाता है और इसके चारों ओर पवित्र धागा बांधा जाता है। समृद्धि और जीवन के स्रोत के प्रतीक के रूप में पूर्ण कलश (आनुष्ठानिक वस्तु और आलंकारिक तत्त्व, दोनों अर्थों में) को हिंदू मान्यता के संदर्भ में समृद्धि और सौभाग्य की देवी श्री या [[लक्ष्मी]] का प्रतीक भी माना जाता है।  
*भारतीय कला में लगभग आरंभ से ही घट-पल्लव विद्यमान था और सभी कालों में इसका प्रमुखता से उपयोग हुआ।
*पांचवीं [[शताब्दी]] से विशेषकर [[उत्तरी भारत]] में, घट-पल्लव का उपयोग [[वास्तुशास्त्र]] में स्तंभ के आधार और शीर्ष के रूप में होने लगा था। 15वीं शताब्दी तक इस प्रकार का उपयोग जारी रहा।
*[[बौद्ध धर्म|बौद्ध]], [[हिन्दू धर्म|हिन्दू]] और [[जैन धर्म|जैन]] [[धर्म|धर्मो]] में भरे हुए घड़े<ref>पूर्ण घट या पूर्ण कलश</ref> का उपयोग [[देवता]] अथवा सम्मानित अतिथि के आनुष्ठानिक चढ़ावे के लिए भी होता है; पवित्र प्रतीक के रूप में धर्मस्थलों और भवनों की सज्जा में भी इसका प्रयोग होता है।
*घट-पल्लव अलंकरण में पात्र को पानी, वनस्पति और अक्सर एक [[नारियल]] से भर दिया जाता है और इसके चारों ओर पवित्र धागा बांधा जाता है।
*समृद्धि और जीवन के स्रोत के प्रतीक के रूप में पूर्ण कलश<ref>आनुष्ठानिक वस्तु और आलंकारिक तत्त्व, दोनों अर्थों में</ref> को [[हिन्दू]] मान्यता के संदर्भ में समृद्धि और सौभाग्य की देवी 'श्री' या [[लक्ष्मी]] का प्रतीक भी माना जाता है।  


{{लेख प्रगति|आधार= |प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
{{लेख प्रगति|आधार= |प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
<references/>
==बाहरी कड़ियाँ==
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
[[Category:कला कोश]]
{{चित्रकला शैलियाँ}}
[[Category:प्राचीन संस्कृति]]
[[Category:कला कोश]][[Category:चित्रकला]][[Category:प्राचीन संस्कृति]][[Category:हिन्दू धर्म कोश]]
[[Category:नया पन्ना फ़रवरी-2012]]
 
__INDEX__
__INDEX__

11:38, 2 अगस्त 2014 के समय का अवतरण

घट-पल्लव भारतीय कला का महत्त्वपूर्ण आलंकारिक तत्त्व, जिसमें फूल और पत्तियों से भरा एक कलश होता है। वैदिक साहित्य में यह जीवन का प्रतीक और वनस्पति का स्रोत है, जो अब भी मान्य है।

  • भारतीय कला में लगभग आरंभ से ही घट-पल्लव विद्यमान था और सभी कालों में इसका प्रमुखता से उपयोग हुआ।
  • पांचवीं शताब्दी से विशेषकर उत्तरी भारत में, घट-पल्लव का उपयोग वास्तुशास्त्र में स्तंभ के आधार और शीर्ष के रूप में होने लगा था। 15वीं शताब्दी तक इस प्रकार का उपयोग जारी रहा।
  • बौद्ध, हिन्दू और जैन धर्मो में भरे हुए घड़े[1] का उपयोग देवता अथवा सम्मानित अतिथि के आनुष्ठानिक चढ़ावे के लिए भी होता है; पवित्र प्रतीक के रूप में धर्मस्थलों और भवनों की सज्जा में भी इसका प्रयोग होता है।
  • घट-पल्लव अलंकरण में पात्र को पानी, वनस्पति और अक्सर एक नारियल से भर दिया जाता है और इसके चारों ओर पवित्र धागा बांधा जाता है।
  • समृद्धि और जीवन के स्रोत के प्रतीक के रूप में पूर्ण कलश[2] को हिन्दू मान्यता के संदर्भ में समृद्धि और सौभाग्य की देवी 'श्री' या लक्ष्मी का प्रतीक भी माना जाता है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पूर्ण घट या पूर्ण कलश
  2. आनुष्ठानिक वस्तु और आलंकारिक तत्त्व, दोनों अर्थों में

संबंधित लेख