"मेरे दुश्मन, मेरे भाई, मेरे हमसाये": अवतरणों में अंतर
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सन्नाटे की गहरी छाँव, ख़ामोशी से जलते गाँव | सन्नाटे की गहरी छाँव, ख़ामोशी से जलते गाँव | ||
ये नदियों पर टूटे हुए पुल, धरती घायल और व्याकुल | ये नदियों पर टूटे हुए पुल, धरती घायल और व्याकुल | ||
ये खेत ग़मों से झुलसे हुए, ये | ये खेत ग़मों से झुलसे हुए, ये ख़ाली रस्ते सहमे हुए | ||
ये मातम करता सारा समां, | ये मातम करता सारा समां, | ||
ये जलते घर, ये काला धुआं | ये जलते घर, ये काला धुआं |
12:28, 14 मई 2013 के समय का अवतरण
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जंग तो चंद रोज होती है, ज़िन्दगी बरसों तलक रोती है |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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