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'''पीट तथा जैव मिट्टी''' भारी [[वर्षा]] और उच्च आर्द्रता से युक्त क्षेत्रों में पाई जाती हैं।
'''पीट या जैविक मिट्टी''' भारी [[वर्षा]] और उच्च आर्द्रता से युक्त क्षेत्रों में पाई जाती हैं। यह मिट्टी लगभग एक लाख वर्ग किमी क्षेत्र में पाई जाती है। इन मिट्टियों में वनस्पति की अच्छी बढ़वार होती है।
*इन मिट्टियों में वनस्पति की अच्छी बढ़वार होती है।
*दलदली क्षेत्रों में अधिक मात्रा में जैविक पदार्थों में जमा हो जाने से इस मिट्टी का निर्माण होता है।
* इस प्रकार की मिट्टी काली, भारी एवं अम्लीय होती हे।
*[[बिहार]] का उत्तरी भाग, [[उत्तराखंड]] के दक्षिणी भाग, [[बंगाल]] के तटीय क्षेत्रों, [[उड़ीसा]] और [[तमिलनाडु]] में ये मृदाएँ अधिकांशत: पाई जाती हैं।
*[[बिहार]] का उत्तरी भाग, [[उत्तराखंड]] के दक्षिणी भाग, [[बंगाल]] के तटीय क्षेत्रों, [[उड़ीसा]] और [[तमिलनाडु]] में ये मृदाएँ अधिकांशत: पाई जाती हैं।
*ये मृदाएँ हल्की और कम [[उर्वरक]] का उपभोग करने वाली फ़सलों की खेती के लिए उपयुक्त हैं।
*ये मृदाएँ हल्की और कम [[उर्वरक]] का उपभोग करने वाली फ़सलों की खेती के लिए उपयुक्त हैं।
*जल की मात्रा कम होते ही इस मिट्टी [[चावल]] की कृषि की जाती है।
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08:41, 26 मई 2012 के समय का अवतरण

पीट या जैविक मिट्टी भारी वर्षा और उच्च आर्द्रता से युक्त क्षेत्रों में पाई जाती हैं। यह मिट्टी लगभग एक लाख वर्ग किमी क्षेत्र में पाई जाती है। इन मिट्टियों में वनस्पति की अच्छी बढ़वार होती है।

  • दलदली क्षेत्रों में अधिक मात्रा में जैविक पदार्थों में जमा हो जाने से इस मिट्टी का निर्माण होता है।
  • इस प्रकार की मिट्टी काली, भारी एवं अम्लीय होती हे।
  • बिहार का उत्तरी भाग, उत्तराखंड के दक्षिणी भाग, बंगाल के तटीय क्षेत्रों, उड़ीसा और तमिलनाडु में ये मृदाएँ अधिकांशत: पाई जाती हैं।
  • ये मृदाएँ हल्की और कम उर्वरक का उपभोग करने वाली फ़सलों की खेती के लिए उपयुक्त हैं।
  • जल की मात्रा कम होते ही इस मिट्टी चावल की कृषि की जाती है।
  • तराई प्रदेश में इस मिट्टी में गन्ने की भी कृषि की जाती है।

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