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| '''गणपतिदेव''' (1199-1261 ई.) [[प्रोलराज द्वितीय]] का पौत्र था। यह [[काकतीय वंश]] का सबसे शक्तिशाली और सफल राजा था। गणपतिदेव ने दक्षिण में [[कांची]] तक अपने साम्राज्य का विस्तार किया था।
| | #REDIRECT [[गणपतिदेव]] |
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| *गणपतिदेव के साम्राज्य का विस्तार [[गोदावरी नदी|गोदावरी]] क्षेत्र से चिन्गेलपुत तथा येलगंदल से [[समुद्र]] तक था।
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| *वह एक सफल प्रशासक था, तथा उसने व्यापार और [[कृषि]] का विकास करने पर बहुत ज़ोर दिया।
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| *मोटु पटली, जो कि अब [[कृष्णा ज़िला|कृष्णा ज़िले]] में है, गणपतिदेव के राज्य का समुद्री बंदरगाह था।
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| *[[वारंगल]] शहर का निर्माण गणपतिदेव ने वहाँ पर दो क़िले बनवाकर पूरा किया था। बाद के समय में उसने यहाँ अपनी राजधानी स्थानांतरित की।
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| *गणपतिदेव के एक भी पुत्र नहीं था, किंतु उसकी दो पुत्रियाँ थीं- [[रुद्रमा देवी]] और गणपम्बा।
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| *अपने उत्तराधिकारी के रूप में गणपतिदेव ने रुद्रमा देवी को चुना था।
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| *रुद्रमा देवी का [[विवाह]] [[चालुक्य वंश]] के राजकुमार वीरभद्र के साथ हुआ था।
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| {{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
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| ==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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| <references/>
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| ==संबंधित लेख==
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| {{काकतीय वंश}}
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| [[Category:काकतीय वंश]][[Category:चरित कोश]][[Category:इतिहास कोश]]
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