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*मधुमेह – [[मधुमेह]] के रोगी जिनके लिए मिठाई, चीनी इत्यादि वर्जित है, सीमित मात्रा में खजूर का इस्तेमाल कर सकते हैं। खजूर में वह अवगुण नहीं है, जो गन्ने वाली चीनी में पाए जाते हैं। | *मधुमेह – [[मधुमेह]] के रोगी जिनके लिए मिठाई, चीनी इत्यादि वर्जित है, सीमित मात्रा में खजूर का इस्तेमाल कर सकते हैं। खजूर में वह अवगुण नहीं है, जो गन्ने वाली चीनी में पाए जाते हैं। | ||
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*पुराने घाव – पुराने घावों के लिए खजूर की गुठली को जलाकर भस्म बना लें। घावों पर इस भस्म को लगाने से घाव भर जाते हैं। | *पुराने घाव – पुराने घावों के लिए खजूर की गुठली को जलाकर भस्म बना लें। घावों पर इस भस्म को लगाने से घाव भर जाते हैं। | ||
*आंखों के रोग – खजूर की गुठली का सुरमा आंखों में डालने से आंखों के रोग दूर होते हैं। आंख की पलक पर गुहेरी रोग हो जाता है। खजूर की गुठली को रगड़कर गुहेरी पर लगाए। आराम मिलेगा। | *आंखों के रोग – खजूर की गुठली का सुरमा आंखों में डालने से आंखों के रोग दूर होते हैं। आंख की पलक पर गुहेरी रोग हो जाता है। खजूर की गुठली को रगड़कर गुहेरी पर लगाए। आराम मिलेगा। | ||
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*जिनकी पाचन शक्ति अच्छी हो वे खजूर खाएं, क्योंकि यह पचाने में समय लेती है। छुहारे, पुरा वर्ष उपलब्ध रहते है। खजूर केवल सर्दी में तीन महीने। जब जो उपलब्ध हो, उसका सेवन करें। | *जिनकी पाचन शक्ति अच्छी हो वे खजूर खाएं, क्योंकि यह पचाने में समय लेती है। छुहारे, पुरा वर्ष उपलब्ध रहते है। खजूर केवल सर्दी में तीन महीने। जब जो उपलब्ध हो, उसका सेवन करें। | ||
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07:50, 3 जनवरी 2016 के समय का अवतरण
खजूर (अंग्रेज़ी: Date Palm) पामी (Palmae) कुल के अंतर्गत फीनिक्स (Phoenix) जाति की कई उपजातियों को प्राय: खजूर नाम दिया जाता है। इनमें फीनिक्स डैक्टिलिफेरा (P.dactylifera) और फीनिक्स सिल्वेस्ट्रिस (Sylvestris) विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। पहला उत्तरी, अफ़्रीका तथा दक्षिणी-पश्चिमी एशिया का देशज है और सिंध, पंजाब, बलूचिस्तान तथा कई अरब देशों में इसकी खेती की जाती है। इस विदेशी जाति के ताजे पके फल को खजूर, पिंडखजूर तमर या खुर्मा और पके, सूखे फल को छुहारा, खारिक अथवा डेट (Date) कहते हैं। दूसरी जाति का भारतीय खजूर भारत में अनेक जगह लगाया हुआ मिलता है। इसके फल भी पकने पर खाए जाते हैं, परंतु ताड़ी की तरह इससे निकलने वाले खजूरी रस और उससे तैयार किए हुए मद्य तथा गुड़ का प्रचुर उपयोग होता है।[1]
खजूर के वृक्ष
भारतीय खजूर के वृक्ष 30-40 फुट ऊँचे होते हैं। इनका तना गिरी हुई पुरानी पत्तियों के कड़े पत्राधारों से ढका रहता है। पत्तियाँ 12 - 15 फुट तक लंबी, पक्षाकार और पत्रक 6 - 18 इंच तक लंबे तथा 1 इंच तक चौड़े, गुच्छबद्ध तथा नीचे वाले काँटों में परिवर्तित होते हैं। पुष्प छोटे, एकलिंगी, अलग अलग सशाख मंजरियों में निकले हुए रहते हैं, जो आधार पर कड़े पत्रकोशों से ढके रहते हैं। नर मंजरियाँ सघन, श्वेत और सुगंधित तथा नारी मंजरियाँ एवं उनमें लगने वाले फल नारंगपीत वर्ण के होते हैं। फल लगभग एक इंच बड़े, मधुर, परंतु अत्यल्प मज्जावाले होते हैं।[1]
खजूर के फल का रस
खजूर के फल का रस मधुर, गुरु, शीतल तथा क्षत, क्षतक्षय तथा रक्तपित्त को दूर करने वाला होता है। छुहारा (सूखाफल) पौष्टिक, बाजीकर, उष्णताजनक और वातनाड़ी के लिये बलदायक होता है। खजूरी शीतल, मूत्रजनक और पौष्टिक होती हैं। सड़ाने से इसमें मद्य बनता और अमलत्व उत्पन्न होता है। इससे खींचा हुआ मद्य दीपक, पाचक और उत्तेजक होता है। इसके रस से तैयार गुड़ गन्ने के गुड़ से अधिक पौष्टिक और सारक होता है। पत्तियों का उपयोग चटाई तथा टोकरियाँ बनाने में होता है।[1]
खजूर के प्रकार
खजूर 2 प्रकार के होते हैं- खजूर और पिण्ड खजूर। पिण्ड खजूर का फल खजूर के फल से अधिक गूदेदार व काफ़ी बड़ा होता है। यही फल सूखने पर छुहारा कहलाता है। खजूर एक पौष्टिक मेवा भी है। खजूर के पेड़ के ताजे रस को नीरा और बासी को ताड़ी कहते हैं।[2]
खजूर के गुण
खजूर स्वादिष्ट, पौष्टिक, मीठा, शीतल, तृप्तिकारक (इच्छा को शांत करने वाला), स्निग्ध, वात, पित्त और कफ को दूर करने वाला होता है। यह टी.बी, रक्त पित्त, सूजन एवं फेफड़ों की सूजन के लिए लाभकारी होता है। यह शरीर एवं नाड़ी को शक्तिशाली बनाता है। सिर दर्द, बेहोशी, कमज़ोरी, भ्रम, पेट दर्द, शराब के दोषों को दूर करने के लिए इसका प्रयोग अत्यंत लाभकारी होता है। यह दमा, खांसी, बुखार, मूत्र रोग के लिए भी लाभकारी है।
- रंग : खजूर का रंग काला व लाल होता है।
- स्वाद : खजूर का स्वाद मीठा और वाकस होता है।
- प्रकृति : खजूर शीतल और ठंडा होता है।
- हानिकारक : खजूर का अधिक उपयोग करना ख़ून को जला देता है।
- दोषों को दूर करने वाला : खजूर के साथ बादाम खाने से खजूर में मौजूद दोष दूर होते हैं।
- तुलना : खजूर की तुलना किशमिश से की जा सकती है।[2]
पोषक तत्त्वों से भरपूर
सर्दियों की मेवा के रूप में प्रकृति ने हमें बहुत सी चीज़ें दी हैं, जिनमें खजूर की मिठास का भी प्रमुख स्थान रहा है। सर्दियों में खजूर का सेवन स्वास्थ्य को उत्तम बनाता है तथा बहुत से रोगों को भी भगाता है। विश्व भर में इसे खाया जाता है। यह अपने स्वाद तथा औषधीय गुणों के लिए लोकप्रिय फल है। खजूर खाने से शरीर की आवश्यक धातुओं को बल मिलता है। खजूर में छुहारे से अधिक पौष्टिकता होती है। खजूर में 60 से 70 प्रतिशत तक शर्करा होती है, जो गन्ने की चीनी की अपेक्षा बहुत पौष्टिक व गुणकारी वस्तु है। खजूर खाने में तो बहुत स्वादिष्ट होती ही है, सेहत की दृष्टि से भी यह बहुत गुणकारी है। इसके अलावा विभिन्न बीमारियों में भी खजूर का सेवन बहुत लाभ पहुंचाता है।[3]
विभिन्न रोगों में लाभदायक
- खजूर शीतल, मधुर तथा खांसी, अतिसार, भूख न लगना, शराब से होने वाले रोग, मूर्छा, कफ से जुड़ी तकलीफें, रक्त पित्त, ज्वार, प्यास जैसे रोग खजूर से शांत होते है। यह दिल, दिमाग, कमर दर्द तथा आंखों की कमज़ोरी के लिए बहुत गुणकारी है। यह छाती में एकत्रित कफ को निकालता है।
- कमज़ोरी – खजूर का सेवन बल प्रदान करता है। दुबले-पतले व्यक्ति, कमज़ोर व्यक्ति इसे खाकर लाभ उठा सकते हैं। खजूर 200 ग्राम, चिलगोजा गिरी 60 ग्राम, बादाम गिरी 60 ग्राम, काले चनों का चूर्ण 240 ग्राम, गाय का घी 500 ग्राम, दूध दो लीटर और चीनी या गुड़ 500 ग्राम। इन सबका पाक बनाकर 50 ग्राम प्रतिदिन गाय के दूध के साथ खाने से हर प्रकार की शारीरिक वं मानसिक कमज़ोरी दूर होती है।
- बिस्तर पर पेशाब – छुहारे खाने से पेशाब का रोग दूर होता है। बुढ़ापे में पेशाब बार-बार आता हो तो दिन में दो छुहारे खाने से लाभ होगा। छुहारे वाला दूध भी लाभकारी है। यदि बच्चा बिस्तर पर पेशाब करता हो तो उसे भी रात को छुहारे वाला दूध पिलाएं। यह मसानों को शक्ति पहुंचाते हैं।
- मासिक धर्म : छुहारे खाने से मासिक धर्म खुलकर आता है और कमर दर्द में भी लाभ होता है।
- दांतों का गलना – छुहारे खाकर गर्म दूध पीने से कैल्सियम की कमी से होने वाले रोग, जैसे दांतों की कमज़ोरी, हड्डियों का गलना इत्यादि रूक जाते हैं।
- रक्तचाप – कम रक्तचाप वाले रोगी 3-4 खजूर गर्म पानी में धोकर गुठली निकाल दें। इन्हें गाय के गर्म दूध के साथ उबाल लें। उबले हुए दूध को सुबह-शाम पीएं। कुछ ही दिनों में कम रक्तचाप से छुटकारा मिल जायेगी।
- कब्ज – सुबह-शाम तीन छुहारे खाकर बाद में गर्म पानी पीने से कब्ज दूर होती है। खजूर का अचार भोजन के साथ खाया जाए तो अजीर्ण रोग नहीं होता तथा मुंह का स्वाद भी ठीक रहता है। खजूर का अचार बनाने की विधि थोड़ी कठिन है, इसलिए बना-बनाया अचार ही ले लेना चाहिए।
- मधुमेह – मधुमेह के रोगी जिनके लिए मिठाई, चीनी इत्यादि वर्जित है, सीमित मात्रा में खजूर का इस्तेमाल कर सकते हैं। खजूर में वह अवगुण नहीं है, जो गन्ने वाली चीनी में पाए जाते हैं।
- पुराने घाव – पुराने घावों के लिए खजूर की गुठली को जलाकर भस्म बना लें। घावों पर इस भस्म को लगाने से घाव भर जाते हैं।
- आंखों के रोग – खजूर की गुठली का सुरमा आंखों में डालने से आंखों के रोग दूर होते हैं। आंख की पलक पर गुहेरी रोग हो जाता है। खजूर की गुठली को रगड़कर गुहेरी पर लगाए। आराम मिलेगा।
- खांसी – जुकाम हो जाने पर एक गिलास दूध में पांच दाने खजूर डालें। पांच दाने काली मिर्च। एक इलायची भी। अच्छी तरह उबालकर, उतारकर, एक चम्मच देसी घी डालकर रात को पी लें। सर्दी जुकाम ठीक हो जाएगा। छुहारे को घी में भूनकर दिन में 2-3 बार सेवन करने से खांसी और बलगम में राहत मिलती है।
- जुएं – खजूर की गुठली को पानी में घिसकर सिर पर लगाने से सिर की जुएं मर जाती हैं।
- मोटापा - खजूर का सेवन मोटापा लाता है तथा शरीर का भार बढ़ता है, अतः मोटे व्यक्ति सोचकर खाए। दुबले व्यक्ति भार बढ़ाने के लिए खा सकते हैं।
- दमा रोग है तो छुहारा चबा-चबाकर खातें हैं।
- घाव होने पर छुहारे की गुठली घिसकर लगाएं।
- इसका सेवन बाल लम्बे, घने तथा मुलायम करता है।
- खजूर गैस तथा एसिडिटी कम करने में सक्षम है।
- जिनकी पाचन शक्ति अच्छी हो वे खजूर खाएं, क्योंकि यह पचाने में समय लेती है। छुहारे, पुरा वर्ष उपलब्ध रहते है। खजूर केवल सर्दी में तीन महीने। जब जो उपलब्ध हो, उसका सेवन करें।
- यह वीर्य में वृद्धि करने वाली, शरीर को शक्ति देने वाली, खाने में सुस्वाद, रुचिकर, तृप्त कर देने वाली है।[3]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 1.2 सिंह, बच्चन “खण्ड- 3”, हिन्दी विश्वकोश (हिन्दी)। भारतडिस्कवरी पुस्तकालय: नागरीप्रचारिणी सभा, वाराणसी, पृष्ठ संख्या- 285-286।
- ↑ 2.0 2.1 खजूर (हिन्दी) (पी.एच.पी) jkhealthworld.com। अभिगमन तिथि: 3 मई, 2011।
- ↑ 3.0 3.1 पोषक तत्वों से भरपूर खजूर (हिन्दी) (पी.एच.पी) रांची एक्सप्रेस। अभिगमन तिथि: 3 मई, 2011।
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