"अपनी आज़ादी को हम": अवतरणों में अंतर
गोविन्द राम (वार्ता | योगदान) No edit summary |
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replace - " रुख " to " रुख़ ") |
||
पंक्ति 28: | पंक्ति 28: | ||
वक़्त की आवाज़ के हम साथ चलते जाएंगे | वक़्त की आवाज़ के हम साथ चलते जाएंगे | ||
हर क़दम पर ज़िन्दगी का | हर क़दम पर ज़िन्दगी का रुख़ बदलते जाएंगे | ||
गर वतन में भी मिलेगा कोई गद्दारे वतन | गर वतन में भी मिलेगा कोई गद्दारे वतन | ||
अपनी ताकत से हम उसका सर कुचलते जाएंगे | अपनी ताकत से हम उसका सर कुचलते जाएंगे |
13:50, 3 फ़रवरी 2013 के समय का अवतरण
|
अपनी आज़ादी को हम हरगिज़ मिटा सकते नहीं |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख