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'''ससुर खदेरी''' [[भारत]] के [[उत्तर प्रदेश]] राज्य की एक नदी है जो फतेहपुर जनपद के [[दोआब|दोआब क्षेत्र]] में बहती है। वर्तमान समय में 'ससुर खदेरी' नदी मानव समाज की नाहक छेड़छाड़ का शिकार हो अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। इस नदी की जलधारा का बहाव बदल कर पड़ोसी गांवों के लोग रेत में खेती-किसानी करने लगे हैं। परिणामस्वरूप भारी भरकम नदी का असली रूप ही गायब हो गया है।
'''ससुर खदेरी''' [[भारत]] के [[उत्तर प्रदेश]] राज्य की एक नदी है जो फतेहपुर जनपद के [[दोआब|दोआब क्षेत्र]] में बहती है। वर्तमान समय में 'ससुर खदेरी' नदी मानव समाज की नाहक छेड़छाड़ का शिकार हो अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। इस नदी की जलधारा का बहाव बदल कर पड़ोसी गांवों के लोग रेत में खेती-किसानी करने लगे हैं। परिणामस्वरूप भारी भरकम नदी का असली रूप ही गायब हो गया है।
==उद्गम==
==उद्गम==
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"एक दिन जब बहू मंदिर में भगवान की पूजा में व्यस्त थी, उसी समय उसका ससुर वहां पहुंचा और उसकी अस्मत लूटना चाही। वह अपनी अस्मत बचाते हुए भागने लगी, उसका ससुर उसे खदेड़ता चला गया। इस पुजारिन की रक्षा के लिए झील से एक तेज जलधारा निकली थी, जो ससुर-बहू के पीछे-पीछे बह रही थी। थक कर बहू ने कौशाम्बी ज़िले की सीमा में [[यमुना नदी]] में कूद कर जान दे दी। पीछे से बह रही जलधारा ने ससुर को भी यमुना में धकेल दिया, जिससे उसकी भी मौत हो गई थी। तभी से लोग इस नदी को 'ससुर खदेरी' नदी के नाम से पुकारने लगे।"
"एक दिन जब बहू मंदिर में भगवान की पूजा में व्यस्त थी, उसी समय उसका ससुर वहां पहुंचा और उसकी अस्मत लूटना चाही। वह अपनी अस्मत बचाते हुए भागने लगी, उसका ससुर उसे खदेड़ता चला गया। इस पुजारिन की रक्षा के लिए झील से एक तेज जलधारा निकली थी, जो ससुर-बहू के पीछे-पीछे बह रही थी। थक कर बहू ने कौशाम्बी ज़िले की सीमा में [[यमुना नदी]] में कूद कर जान दे दी। पीछे से बह रही जलधारा ने ससुर को भी यमुना में धकेल दिया, जिससे उसकी भी मौत हो गई थी। तभी से लोग इस नदी को 'ससुर खदेरी' नदी के नाम से पुकारने लगे।"


ग्रामीणों के मुताबिक, दो दशक पहले तक इस नदी की जलधारा बहुत चौड़ी थी और बरसात में आई बाढ़ से कई गांव प्रभावित हुआ करते थे, अब पड़ोसी गांव के दबंग किसान नदी की जलधारा को बदल दिए हैं और तहलटी के टीलों को जेसीबी मशीन के जरिए रेत में मिलाकर खेती-किसानी कर रहे हैं। पहले लोग नदी को सती का दर्जा देकर पूजा-अर्चना किया करते थे।
ग्रामीणों के मुताबिक़, दो दशक पहले तक इस नदी की जलधारा बहुत चौड़ी थी और बरसात में आई बाढ़ से कई गांव प्रभावित हुआ करते थे, अब पड़ोसी गांव के दबंग किसान नदी की जलधारा को बदल दिए हैं और तहलटी के टीलों को जेसीबी मशीन के जरिए रेत में मिलाकर खेती-किसानी कर रहे हैं। पहले लोग नदी को सती का दर्जा देकर पूजा-अर्चना किया करते थे।<ref>{{cite web |url=http://www.merikhabar.com/News/Uttar_Pradesh_Doaba_Area_River_N41474.html |title=अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही 'ससुर खदेरी' नदी |accessmonthday= |accessyear= |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=मेरी खबर डॉट कॉम |language=हिन्दी }}</ref>
 




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ससुर खदेरी नदी

ससुर खदेरी भारत के उत्तर प्रदेश राज्य की एक नदी है जो फतेहपुर जनपद के दोआब क्षेत्र में बहती है। वर्तमान समय में 'ससुर खदेरी' नदी मानव समाज की नाहक छेड़छाड़ का शिकार हो अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। इस नदी की जलधारा का बहाव बदल कर पड़ोसी गांवों के लोग रेत में खेती-किसानी करने लगे हैं। परिणामस्वरूप भारी भरकम नदी का असली रूप ही गायब हो गया है।

उद्गम

फतेहपुर जनपद के हथगाम इलाक़े के सेमरामानपुर गांव की जगन्नाथ झील से 'ससुर खदेरी' नदी का उद्गम हुआ है। नदी के उद्गम स्थान जगन्नाथ झील में झाड़-झाखड़ और घास-फूस उग आया है। लोगों में मान्यता है कि 'सतीत्व' के लिए चर्चित इस नदी का जलस्तर तभी घटा करता था, जब पास-पड़ोस के गांवों की महिलाएं झुंड में आरती और पूजा-अर्चना कर मान मनौव्वल करती थीं लेकिन, अब हालात हैं कि भारी भरकम जलधारा सिमट कर नाले में बदल गई है।

एक किंवदन्ती

'ससुर खदेरी' नदी की प्रचलित किंवदन्ती के बारे में सेमरामानपुर गांव की बुजुर्ग महिला दुजिया के अनुसार, "सैकड़ों साल पहले जगन्नाथ झील के किनारे ऊंचे टीले में जगन्नाथ धाम का एक मंदिर था। गांव की एक बहू रोजाना तड़के झील में स्नान कर मंदिर में विराजमान भगवान जगन्नाथ की पूजा करने जाया करती थी, उसका ससुर अपराधी किस्म का था।" "एक दिन जब बहू मंदिर में भगवान की पूजा में व्यस्त थी, उसी समय उसका ससुर वहां पहुंचा और उसकी अस्मत लूटना चाही। वह अपनी अस्मत बचाते हुए भागने लगी, उसका ससुर उसे खदेड़ता चला गया। इस पुजारिन की रक्षा के लिए झील से एक तेज जलधारा निकली थी, जो ससुर-बहू के पीछे-पीछे बह रही थी। थक कर बहू ने कौशाम्बी ज़िले की सीमा में यमुना नदी में कूद कर जान दे दी। पीछे से बह रही जलधारा ने ससुर को भी यमुना में धकेल दिया, जिससे उसकी भी मौत हो गई थी। तभी से लोग इस नदी को 'ससुर खदेरी' नदी के नाम से पुकारने लगे।"

ग्रामीणों के मुताबिक़, दो दशक पहले तक इस नदी की जलधारा बहुत चौड़ी थी और बरसात में आई बाढ़ से कई गांव प्रभावित हुआ करते थे, अब पड़ोसी गांव के दबंग किसान नदी की जलधारा को बदल दिए हैं और तहलटी के टीलों को जेसीबी मशीन के जरिए रेत में मिलाकर खेती-किसानी कर रहे हैं। पहले लोग नदी को सती का दर्जा देकर पूजा-अर्चना किया करते थे।[1]


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही 'ससुर खदेरी' नदी (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) मेरी खबर डॉट कॉम।

बाहरी कड़ियाँ

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