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'''शकील बदायूँनी''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Shakeel Badayuni'', जन्म: [[3 अगस्त]] [[1916]] [[बदायूँ]] - मृत्यु: [[20 अप्रॅल]] [[1970]]) महान शायर और गीतकार थे। तहजीब के शहर [[लखनऊ]] ने फ़िल्म जगत को कई हस्तियां दी है जिनमें से एक गीतकार शकील बदायूँनी भी है।
'''शकील बदायूँनी''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Shakeel Badayuni'', जन्म: [[3 अगस्त]] [[1916]] [[बदायूँ]] - मृत्यु: [[20 अप्रॅल]] [[1970]]) महान् शायर और गीतकार थे। तहजीब के शहर [[लखनऊ]] ने फ़िल्म जगत को कई हस्तियां दी हैं, जिनमें से एक गीतकार शकील बदायूँनी भी हैं। अपनी शायरी की बेपनाह कामयाबी से उत्साहित होकर उन्होंने अपनी आपूर्ति विभाग की सरकारी नौकरी छोड़ दी थी और वर्ष [[1946]] में [[दिल्ली]] से [[मुंबई]] आ गये थे। शकील बदायूँनी को अपने गीतों के लिये लगातार तीन बार फ़िल्मफेयर पुरस्कार से नवाजा गया। उन्हें अपना पहला फ़िल्मफेयर पुरस्कार वर्ष [[1960]] में प्रदर्शित "चौदहवी का चांद" फ़िल्म के 'चौदहवीं का चांद हो या आफताब हो..' गाने के लिये दिया गया था।
==जीवन परिचय==
==जीवन परिचय==
[[उत्तर प्रदेश]] के [[बदायूँ]] कस्बे में [[3 अगस्त]] 1916 को जन्मे शकील अहमद उर्फ शकील बदायूँनी का लालन पालन और शिक्षा नवाबों के शहर लखनऊ में हुई। लखनऊ ने उन्हें एक शायर के रूप में शकील अहमद से शकील बदायूँनी बना दिया। अपने दूर के एक रिश्तेदार और उस जमाने के मशहूर शायर जिया उल कादिरी से शकील बदायूँनी ने शायरी के गुर सीखे। शकील बदायूँनी ने अपनी शायरी में जिंदगी की हकीकत को बयाँ किया। उन्होंने ऐसे गीतों की रचना की जो ज्यादा रोमांटिक नहीं होते हुये भी दिल की गहराइयों को छू जाते थे।<ref name="JYI">{{cite web |url=http://in.jagran.yahoo.com/cinemaaza/cinema/memories/201_201_8123.html |title=शकील की शायरी में जिंदगी की हकीकत |accessmonthday=17 जुलाई |accessyear=2012 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=जागरण याहू इंडिया |language=हिन्दी }} </ref>
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====आरम्भिक जीवन====
====आरम्भिक जीवन====
[[अलीगढ़]] से बी.ए पास करने के बाद वर्ष 1942 मे वह [[दिल्ली]] पहुंचे जहाँ उन्होंने आपूर्ति विभाग में आपूर्ति अधिकारी के रूप में अपनी पहली नौकरी की। इस बीच वह मुशायरों में भी हिस्सा लेते रहे जिससे उन्हें पूरे देश भर में शोहरत हासिल हुई। अपनी शायरी की बेपनाह कामयाबी से उत्साहित शकील बदायूँनी ने आपूर्ति विभाग की नौकरी छोड़ दी और वर्ष 1946 में दिल्ली से [[मुंबई]] आ गये।  
[[अलीगढ़]] से बी.ए. पास करने के बाद [[वर्ष]] 1942 मे वह [[दिल्ली]] पहुंचे जहाँ उन्होंने आपूर्ति विभाग में आपूर्ति अधिकारी के रूप में अपनी पहली नौकरी की। इस बीच वह मुशायरों में भी हिस्सा लेते रहे जिससे उन्हें पूरे देश भर में शोहरत हासिल हुई। अपनी शायरी की बेपनाह कामयाबी से उत्साहित शकील बदायूँनी ने आपूर्ति विभाग की नौकरी छोड़ दी और वर्ष 1946 में दिल्ली से [[मुंबई]] आ गये।
==सिने जगत में प्रवेश==
==सिने जगत में प्रवेश==
मुंबई में उनकी मुलाकात उस समय के मशहूर निर्माता ए.आर.कारदार उर्फ कारदार साहब और महान संगीतकार [[नौशाद]] से हुई। यहाँ उनके कहने पर उन्होंने 'हम दिल का अफसाना दुनिया को सुना देंगे हर दिल में मोहब्बत की आग लगा देंगे...' गीत लिखा। यह गीत नौशाद साहब को काफी पसंद आया जिसके बाद उन्हें तुरंत ही कारदार साहब की दर्द के लिये साईन कर लिया गया।<ref name="JYI"/>
मुंबई में उनकी मुलाकात उस समय के मशहूर निर्माता ए.आर.कारदार उर्फ कारदार साहब और महान् संगीतकार [[नौशाद]] से हुई। यहाँ उनके कहने पर उन्होंने 'हम दिल का अफ़साना दुनिया को सुना देंगे, हर दिल में मोहब्बत की आग लगा देंगे...' गीत लिखा। यह गीत नौशाद साहब को काफ़ी पसंद आया जिसके बाद उन्हें तुरंत ही कारदार साहब की दर्द के लिये साईन कर लिया गया।<ref name="JYI"/>
====प्रमुख गीत====
====प्रमुख गीत====
शकील बदायूँनी ने करीब तीन दशक के फ़िल्मी जीवन में लगभग 90 फ़िल्मों के लिये गीत लिखे। उनके फ़िल्मी सफर पर एक नजर डालने से पता चलता है कि उन्होंने सबसे ज्यादा फ़िल्में संगीतकार नौशाद के साथ ही की। वर्ष 1947 में अपनी पहली ही फ़िल्म दर्द के गीत 'अफसाना लिख रही हूँ...' की अपार सफलता से शकील बदायूँनी कामयाबी के शिखर पर जा बैठे। शकील बदायूँनी के रचित प्रमुख गीत निम्नलिखित हैं-
शकील बदायूँनी ने क़रीब तीन दशक के फ़िल्मी जीवन में लगभग 90 फ़िल्मों के लिये गीत लिखे। उनके फ़िल्मी सफर पर एक नजर डालने से पता चलता है कि उन्होंने सबसे ज्यादा फ़िल्में संगीतकार नौशाद के साथ ही की। वर्ष 1947 में अपनी पहली ही फ़िल्म दर्द के गीत 'अफ़साना लिख रही हूँ...' की अपार सफलता से शकील बदायूँनी कामयाबी के शिखर पर जा बैठे। शकील बदायूँनी के रचित प्रमुख गीत निम्नलिखित हैं-
# अफसाना लिख रही हूँ... (दर्द)  
[[चित्र:Shakeel-Badayuni-Stamp.jpg|thumb|250px|शकील बदायूँनी के सम्मान में [[डाक टिकट]]]]
# चौदहवीं का चांद हो या आफताब हो... (चौदहवीं का चांद)  
# अफ़साना लिख रही हूँ... (दर्द)  
# जरा नजरों से कह दो जी निशाना चूक न जाये.. (बीस साल बाद, 1962)  
# चौदहवीं का चांद हो या आफ़ताब हो... (चौदहवीं का चांद)  
# जरा नज़रों से कह दो जी निशाना चूक न जाये.. (बीस साल बाद, 1962)  
# [[नन्हा मुन्ना राही हूँ|नन्हा मुन्ना राही हूं देश का सिपाही हूं...]] (सन ऑफ़ इंडिया)  
# [[नन्हा मुन्ना राही हूँ|नन्हा मुन्ना राही हूं देश का सिपाही हूं...]] (सन ऑफ़ इंडिया)  
# गाये जा गीत मिलन के.. (मेला)
# गाये जा गीत मिलन के.. (मेला)
# सुहानी रात ढल चुकी.. (दुलारी)
# सुहानी रात ढल चुकी.. (दुलारी)
# ओ दुनिया के रखवाले.. (बैजू बावरा)
# ओ दुनिया के रखवाले.. ([[बैजू बावरा (फ़िल्म)|बैजू बावरा]])
# दुनिया में हम आयें है तो जीना ही पडे़गा (मदर इंडिया)  
# दुनिया में हम आये हैं तो जीना ही पडे़गा (मदर इंडिया)  
# दो सितारो का जमीं पे है मिलन आज की रात.. (कोहिनूर)
# दो सितारों का जमीं पर है मिलन आज की रात.. (कोहिनूर)
# प्यार किया तो डरना क्या...([[मुग़ले आज़म]])
# प्यार किया तो डरना क्या...([[मुग़ले आज़म]])
# ना जाओ सइयां छुड़ा के बहियां.. (साहब बीबी और गुलाम, 1962)
# ना जाओ सइयां छुड़ा के बहियां.. (साहब बीबी और ग़ुलाम, 1962)
# नैन लड़ जइहें तो मन वा में कसक होइबे करी.. (गंगा जमुना)
# नैन लड़ जइहें तो मन वा मा कसक होइबे करी.. (गंगा जमुना)
# दिल लगाकर हम ये समझे जिंदगी क्या चीज है.. (जिंदगी और मौत, 1965)
# दिल लगाकर हम ये समझे ज़िंदगी क्या चीज़ है.. (ज़िंदगी और मौत, 1965)
==बदायूँनी के जोड़ीदार==
==बदायूँनी के जोड़ीदार==
शकील बदायूँनी की जोड़ी प्रसिद्ध संगीतकार [[नौशाद]] और हेमंत कुमार के साथ खूब जमी। शकील बदायूँनी ने हेमन्त कुमार के संगीत निर्देशन में बेकरार कर के हमें यूं न जाइये.., कहीं दीप जले कहीं दिल.. जरा नजरों से कह दो जी.. निशाना चूक ना जाये.. (बीस साल बाद, 1962) और भंवरा बड़ा नादान है बगियन का मेहमान है.., ना जाओ सइयां छुड़ा के बहियां.. (साहब बीबी और गुलाम, 1962), जब जाग उठे अरमान तो कैसे नींद आये.. (जिंदगी और मौत, 1963) जैसे गीत आये। सी रामचंद्र के संगीत से सजा उनका दिल लगाकर हम ये समझे जिंदगी क्या चीज है.. (जिंदगी और मौत, 1965) गीत आज भी बहुत पसंद किया जाता है।  
शकील बदायूँनी की जोड़ी प्रसिद्ध संगीतकार [[नौशाद]] और [[हेमंत कुमार]] के साथ खूब जमी। शकील बदायूँनी ने हेमन्त कुमार के संगीत निर्देशन में बेकरार कर के हमें यूं न जाइये.., कहीं दीप जले कहीं दिल.. जरा नजरों से कह दो जी.. निशाना चूक ना जाये.. (बीस साल बाद, 1962) और भंवरा बड़ा नादान है बगियन का मेहमान है.., ना जाओ सइयां छुड़ा के बहियां.. (साहब बीबी और ग़ुलाम, 1962), जब जाग उठे अरमान तो कैसे नींद आये.. (ज़िंदगी और मौत, 1963) जैसे गीत आये। [[सी. रामचन्द्र]] के संगीत से सजा उनका दिल लगाकर हम ये समझे ज़िंदगी क्या चीज़ है.. (ज़िंदगी और मौत, 1965) गीत आज भी बहुत पसंद किया जाता है।  
निर्माता-निर्देशक ए.आर.कारदार की फ़िल्मों में भी शकील बदायूँनी के लिखे गीतों का अहम योगदान रहा है। इन दोनों की जोड़ी की सबसे पहली फ़िल्म वर्ष 1947 में प्रदर्शित फ़िल्म दर्द थी और शकील बदायूँनी की पहली ही फ़िल्म थी जो सुपरहिट भी हुई थी। इसके बाद इन दोनों की जोड़ी ने दुलारी, दिल्लगी, दास्तान, जादू, दीवाना, दिले नादान, दिल दिया दर्द लिया जैसी कई सुपरहिट फ़िल्मों मे एक साथ काम किया। कारदार साहब के अलावा उन्होंने [[गुरुदत्त]], [[महबूब खान]], के आसिफ, राज खोसला, नितिन बोस की फ़िल्मों को भी अपने गीत से सजाया है। अभिनय सम्राट [[दिलीप कुमार]] की फ़िल्मों की कामयाबी में भी शकील बदायूँनी के रचित गीतों का अहम योगदान रहा है। इन दोनों की जोड़ी वाली फ़िल्मों में मेला, बाबुल, दीदार, आन, अमर, उड़न खटोला, कोहिनूर, मुग़ले आज़म, गंगा जमुना, लीडर, दिल दिया दर्द लिया, राम और श्याम, संघर्ष और आदमी शामिल है।<ref name="JYI"/>  
निर्माता-निर्देशक ए.आर.कारदार की फ़िल्मों में भी शकील बदायूँनी के लिखे गीतों का अहम योगदान रहा है। इन दोनों की जोड़ी की सबसे पहली फ़िल्म वर्ष 1947 में प्रदर्शित फ़िल्म दर्द थी और शकील बदायूँनी की पहली ही फ़िल्म थी जो सुपरहिट भी हुई थी। इसके बाद इन दोनों की जोड़ी ने दुलारी, दिल्लगी, दास्तान, जादू, दीवाना, दिले नादान, दिल दिया दर्द लिया जैसी कई सुपरहिट फ़िल्मों मे एक साथ काम किया। कारदार साहब के अलावा उन्होंने [[गुरुदत्त]], [[महबूब खान]], के आसिफ, [[राज खोसला]], [[नितिन बोस]] की फ़िल्मों को भी अपने गीत से सजाया है। अभिनय सम्राट [[दिलीप कुमार]] की फ़िल्मों की कामयाबी में भी शकील बदायूँनी के रचित गीतों का अहम योगदान रहा है। इन दोनों की जोड़ी वाली फ़िल्मों में मेला, बाबुल, दीदार, आन, अमर, उड़न खटोला, कोहिनूर, मुग़ले आज़म, गंगा जमुना, लीडर, दिल दिया दर्द लिया, राम और श्याम, संघर्ष और आदमी शामिल है।<ref name="JYI"/>
==सम्मान और पुरस्कार==
==सम्मान और पुरस्कार==
शकील बदायूँनी को अपने गीतों के लिये लगातार तीन बार फ़िल्मफेयर पुरस्कार से नवाजा गया। उन्हें अपना पहला फ़िल्मफेयर पुरस्कार वर्ष 1960 में प्रदर्शित चौदहवी का चांद फ़िल्म के चौदहवीं का चांद हो या आफताब हो.. गाने के लिये दिया गया था। वर्ष 1961 में प्रदर्शित फ़िल्म 'घराना' के गाने हुस्न वाले तेरा जवाब नहीं.. के लिये भी सर्वश्रेष्ठ गीतकार का फ़िल्म फेयर पुरस्कार दिया गया। इसके अलावा 1962 में भी शकील बदायूँनी फ़िल्म 'बीस साल बाद' में कहीं दीप जले कहीं दिल.. गाने के लिये फ़िल्म फेयर अवार्ड से सम्मानित किया गया।
शकील बदायूँनी को अपने गीतों के लिये लगातार तीन बार फ़िल्मफेयर पुरस्कार से नवाजा गया। उन्हें अपना पहला फ़िल्मफेयर पुरस्कार वर्ष 1960 में प्रदर्शित चौदहवी का चांद फ़िल्म के चौदहवीं का चांद हो या आफताब हो.. गाने के लिये दिया गया था। वर्ष 1961 में प्रदर्शित फ़िल्म 'घराना' के गाने हुस्न वाले तेरा जवाब नहीं.. के लिये भी सर्वश्रेष्ठ गीतकार का फ़िल्म फेयर पुरस्कार दिया गया। इसके अलावा 1962 में भी शकील बदायूँनी फ़िल्म 'बीस साल बाद' में कहीं दीप जले कहीं दिल.. गाने के लिये फ़िल्म फेयर अवार्ड से सम्मानित किया गया।

08:58, 20 मार्च 2024 के समय का अवतरण

शकील बदायूँनी
शकील बदायूँनी
शकील बदायूँनी
पूरा नाम शकील अहमद 'बदायूँनी'
जन्म 3 अगस्त 1916
जन्म भूमि बदायूँ, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 20 अप्रॅल, 1970
अभिभावक मोहम्मद जमाल अहमद (पिता)
कर्म भूमि मुम्बई
कर्म-क्षेत्र गीतकार, शायर
मुख्य फ़िल्में दर्द, चौदहवीं का चांद, मेला, मदर इंडिया, दुलारी, मुग़ले आज़म आदि।
शिक्षा बी.ए.
पुरस्कार-उपाधि लगातार तीन बार फ़िल्मफेयर पुरस्कार
नागरिकता भारतीय
मुख्य गीत अफ़साना लिख रही हूँ..., सुहानी रात ढल चुकी..., प्यार किया तो डरना क्या..., नन्हा मुन्ना राही हूँ...
अद्यतन‎

शकील बदायूँनी (अंग्रेज़ी: Shakeel Badayuni, जन्म: 3 अगस्त 1916 बदायूँ - मृत्यु: 20 अप्रॅल 1970) महान् शायर और गीतकार थे। तहजीब के शहर लखनऊ ने फ़िल्म जगत को कई हस्तियां दी हैं, जिनमें से एक गीतकार शकील बदायूँनी भी हैं। अपनी शायरी की बेपनाह कामयाबी से उत्साहित होकर उन्होंने अपनी आपूर्ति विभाग की सरकारी नौकरी छोड़ दी थी और वर्ष 1946 में दिल्ली से मुंबई आ गये थे। शकील बदायूँनी को अपने गीतों के लिये लगातार तीन बार फ़िल्मफेयर पुरस्कार से नवाजा गया। उन्हें अपना पहला फ़िल्मफेयर पुरस्कार वर्ष 1960 में प्रदर्शित "चौदहवी का चांद" फ़िल्म के 'चौदहवीं का चांद हो या आफताब हो..' गाने के लिये दिया गया था।

जीवन परिचय

उत्तर प्रदेश के बदायूँ क़स्बे में 3 अगस्त 1916 को जन्मे शकील अहमद उर्फ शकील बदायूँनी का लालन पालन और शिक्षा नवाबों के शहर लखनऊ में हुई। लखनऊ ने उन्हें एक शायर के रूप में शकील अहमद से शकील बदायूँनी बना दिया। अपने दूर के एक रिश्तेदार और उस जमाने के मशहूर शायर जिया उल कादिरी से शकील बदायूँनी ने शायरी के गुर सीखे। शकील बदायूँनी ने अपनी शायरी में ज़िंदगी की हकीकत को बयाँ किया। उन्होंने ऐसे गीतों की रचना की जो ज्यादा रोमांटिक नहीं होते हुये भी दिल की गहराइयों को छू जाते थे।[1]

आरम्भिक जीवन

अलीगढ़ से बी.ए. पास करने के बाद वर्ष 1942 मे वह दिल्ली पहुंचे जहाँ उन्होंने आपूर्ति विभाग में आपूर्ति अधिकारी के रूप में अपनी पहली नौकरी की। इस बीच वह मुशायरों में भी हिस्सा लेते रहे जिससे उन्हें पूरे देश भर में शोहरत हासिल हुई। अपनी शायरी की बेपनाह कामयाबी से उत्साहित शकील बदायूँनी ने आपूर्ति विभाग की नौकरी छोड़ दी और वर्ष 1946 में दिल्ली से मुंबई आ गये।

सिने जगत में प्रवेश

मुंबई में उनकी मुलाकात उस समय के मशहूर निर्माता ए.आर.कारदार उर्फ कारदार साहब और महान् संगीतकार नौशाद से हुई। यहाँ उनके कहने पर उन्होंने 'हम दिल का अफ़साना दुनिया को सुना देंगे, हर दिल में मोहब्बत की आग लगा देंगे...' गीत लिखा। यह गीत नौशाद साहब को काफ़ी पसंद आया जिसके बाद उन्हें तुरंत ही कारदार साहब की दर्द के लिये साईन कर लिया गया।[1]

प्रमुख गीत

शकील बदायूँनी ने क़रीब तीन दशक के फ़िल्मी जीवन में लगभग 90 फ़िल्मों के लिये गीत लिखे। उनके फ़िल्मी सफर पर एक नजर डालने से पता चलता है कि उन्होंने सबसे ज्यादा फ़िल्में संगीतकार नौशाद के साथ ही की। वर्ष 1947 में अपनी पहली ही फ़िल्म दर्द के गीत 'अफ़साना लिख रही हूँ...' की अपार सफलता से शकील बदायूँनी कामयाबी के शिखर पर जा बैठे। शकील बदायूँनी के रचित प्रमुख गीत निम्नलिखित हैं-

शकील बदायूँनी के सम्मान में डाक टिकट
  1. अफ़साना लिख रही हूँ... (दर्द)
  2. चौदहवीं का चांद हो या आफ़ताब हो... (चौदहवीं का चांद)
  3. जरा नज़रों से कह दो जी निशाना चूक न जाये.. (बीस साल बाद, 1962)
  4. नन्हा मुन्ना राही हूं देश का सिपाही हूं... (सन ऑफ़ इंडिया)
  5. गाये जा गीत मिलन के.. (मेला)
  6. सुहानी रात ढल चुकी.. (दुलारी)
  7. ओ दुनिया के रखवाले.. (बैजू बावरा)
  8. दुनिया में हम आये हैं तो जीना ही पडे़गा (मदर इंडिया)
  9. दो सितारों का जमीं पर है मिलन आज की रात.. (कोहिनूर)
  10. प्यार किया तो डरना क्या...(मुग़ले आज़म)
  11. ना जाओ सइयां छुड़ा के बहियां.. (साहब बीबी और ग़ुलाम, 1962)
  12. नैन लड़ जइहें तो मन वा मा कसक होइबे करी.. (गंगा जमुना)
  13. दिल लगाकर हम ये समझे ज़िंदगी क्या चीज़ है.. (ज़िंदगी और मौत, 1965)

बदायूँनी के जोड़ीदार

शकील बदायूँनी की जोड़ी प्रसिद्ध संगीतकार नौशाद और हेमंत कुमार के साथ खूब जमी। शकील बदायूँनी ने हेमन्त कुमार के संगीत निर्देशन में बेकरार कर के हमें यूं न जाइये.., कहीं दीप जले कहीं दिल.. जरा नजरों से कह दो जी.. निशाना चूक ना जाये.. (बीस साल बाद, 1962) और भंवरा बड़ा नादान है बगियन का मेहमान है.., ना जाओ सइयां छुड़ा के बहियां.. (साहब बीबी और ग़ुलाम, 1962), जब जाग उठे अरमान तो कैसे नींद आये.. (ज़िंदगी और मौत, 1963) जैसे गीत आये। सी. रामचन्द्र के संगीत से सजा उनका दिल लगाकर हम ये समझे ज़िंदगी क्या चीज़ है.. (ज़िंदगी और मौत, 1965) गीत आज भी बहुत पसंद किया जाता है। निर्माता-निर्देशक ए.आर.कारदार की फ़िल्मों में भी शकील बदायूँनी के लिखे गीतों का अहम योगदान रहा है। इन दोनों की जोड़ी की सबसे पहली फ़िल्म वर्ष 1947 में प्रदर्शित फ़िल्म दर्द थी और शकील बदायूँनी की पहली ही फ़िल्म थी जो सुपरहिट भी हुई थी। इसके बाद इन दोनों की जोड़ी ने दुलारी, दिल्लगी, दास्तान, जादू, दीवाना, दिले नादान, दिल दिया दर्द लिया जैसी कई सुपरहिट फ़िल्मों मे एक साथ काम किया। कारदार साहब के अलावा उन्होंने गुरुदत्त, महबूब खान, के आसिफ, राज खोसला, नितिन बोस की फ़िल्मों को भी अपने गीत से सजाया है। अभिनय सम्राट दिलीप कुमार की फ़िल्मों की कामयाबी में भी शकील बदायूँनी के रचित गीतों का अहम योगदान रहा है। इन दोनों की जोड़ी वाली फ़िल्मों में मेला, बाबुल, दीदार, आन, अमर, उड़न खटोला, कोहिनूर, मुग़ले आज़म, गंगा जमुना, लीडर, दिल दिया दर्द लिया, राम और श्याम, संघर्ष और आदमी शामिल है।[1]

सम्मान और पुरस्कार

शकील बदायूँनी को अपने गीतों के लिये लगातार तीन बार फ़िल्मफेयर पुरस्कार से नवाजा गया। उन्हें अपना पहला फ़िल्मफेयर पुरस्कार वर्ष 1960 में प्रदर्शित चौदहवी का चांद फ़िल्म के चौदहवीं का चांद हो या आफताब हो.. गाने के लिये दिया गया था। वर्ष 1961 में प्रदर्शित फ़िल्म 'घराना' के गाने हुस्न वाले तेरा जवाब नहीं.. के लिये भी सर्वश्रेष्ठ गीतकार का फ़िल्म फेयर पुरस्कार दिया गया। इसके अलावा 1962 में भी शकील बदायूँनी फ़िल्म 'बीस साल बाद' में कहीं दीप जले कहीं दिल.. गाने के लिये फ़िल्म फेयर अवार्ड से सम्मानित किया गया।

फ़िल्मफेयर पुरस्कार

  1. वर्ष 1960 में चौदहवीं का चांद हो या आफताब हो... (चौदहवीं का चांद)
  2. वर्ष 1961 में हुस्न वाले तेरा जवाब नहीं... (घराना)
  3. वर्ष 1962 में कहीं दीप जले कहीं दिल... (बीस साल बाद, 1962)

निधन

लगभग 54 वर्ष की उम्र मे 20 अप्रैल 1970 को उन्होंने अपनी अंतिम सांसें ली। शकील बदायूँनी की मृत्यु के बाद उनके मित्रों नौशाद, अहमद जकारिया और रंगून वाला ने उनकी याद मे एक ट्रस्ट 'यादें शकील' की स्थापना की ताकि उससे मिलने वाली रकम से उनके परिवार का खर्च चल सके।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 1.3 शकील की शायरी में ज़िंदगी की हकीकत (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) जागरण याहू इंडिया। अभिगमन तिथि: 17 जुलाई, 2012।

बाहरी कड़ियाँ

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