"सोहन सिंह भकना": अवतरणों में अंतर
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'''बाबा सोहन सिंह भकना''' (जन्म- [[जनवरी]], [[1870]], [[अमृतसर]]; मृत्यु- [[20 दिसम्बर]], [[1968]]) [[भारत]] की आज़ादी के लिए संघर्षरत क्रांतिकारियों में से एक थे। वे [[अमेरिका]] में गठित ' | {{सूचना बक्सा स्वतन्त्रता सेनानी | ||
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'''बाबा सोहन सिंह भकना''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Sohan Singh Bhakna'', जन्म- [[जनवरी]], [[1870]], [[अमृतसर]]; मृत्यु- [[20 दिसम्बर]], [[1968]]) [[भारत]] की आज़ादी के लिए संघर्षरत क्रांतिकारियों में से एक थे। वे [[अमेरिका]] में गठित '[[ग़दर पार्टी]]' के प्रसिद्ध नेता थे। [[लाला हरदयाल]] ने अमेरिका में 'पैसिफ़िक कोस्ट हिन्दी एसोसियेशन' नाम की एक संस्था बनाई थी, जिसका अध्यक्ष सोहन सिंह भकना को बनाया गया था। इसी संस्था के द्वारा 'गदर' नामक समाचार पत्र भी निकाला गया और इसी के नाम पर आगे चलकर संस्था का नाम भी 'ग़दर पार्टी' रखा गया। अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों के कारण सोहन सिंह जी को गिरफ्तार कर आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई थी। [[अंग्रेज़]] सरकार उन्हें पूरे 16 वर्ष तक जेल में रखना चाहती थी, किंतु उनके स्वास्थ्य को गिरता देख सरकार को उन्हें रिहा करना पड़ा। | |||
==जन्म तथा शिक्षा== | ==जन्म तथा शिक्षा== | ||
बाबा सोहन सिंह भकना का जन्म [[जनवरी]], 1870 ई. में [[अमृतसर ज़िला|अमृतसर ज़िले]], [[पंजाब]] के 'खुतराई खुर्द' नामक गाँव में एक संपन्न किसान परिवार में हुआ था। उनके [[पिता]] का नाम भाई करम | बाबा सोहन सिंह भकना का जन्म [[जनवरी]], 1870 ई. में [[अमृतसर ज़िला|अमृतसर ज़िले]], [[पंजाब]] के 'खुतराई खुर्द' नामक गाँव में एक संपन्न किसान परिवार में हुआ था। उनके [[पिता]] का नाम भाई करम सिंह और [[माँ]] का नाम राम कौर था। सोहन सिंह जी को अपने पिता का प्यार अधिक समय तक प्राप्त नहीं हो सका। जब वे मात्र एक वर्ष के थे, तभी पिता का देहांत हो गया। उनकी माँ रानी कौर ने ही उनका पालन-पोषण किया। आंरभ में उन्हें धार्मिक शिक्षा दी गई। ये शिक्षा उन्होंने गाँव के ही गुरुद्वारे से प्राप्त की। ग्यारह वर्ष की उम्र में प्राइमरी स्कूल में भर्ती होकर उन्होंने उर्दू पढ़ना आंरभ किया। | ||
====विवाह==== | ====विवाह==== | ||
जब सोहन सिंह दस वर्ष के थे, तभी उनका विवाह बिशन कौर के साथ हो गया, जो [[लाहौर]] के समीप के एक | जब सोहन सिंह दस वर्ष के थे, तभी उनका विवाह बिशन कौर के साथ हो गया, जो [[लाहौर]] के समीप के एक ज़मींदार कुशल सिंह की पुत्री थीं। सोहन सिंह जी ने सोलह वर्ष की उम्र में अपनी स्कूली शिक्षा पूर्ण की। वे [[उर्दू भाषा|उर्दू]] और [[फ़ारसी भाषा|फ़ारसी]] में दक्ष थे। युवा होने पर सोहन सिंह बुरे लोगों की संगत में पड़ गये। उन्होंने अपनी संपूर्ण पैतृक संपत्ति शराब पीने और अन्य व्यर्थ के कार्यों में गवाँ दी। कुछ समय बाद उनका संपर्क बाबा केशवसिंह से हुआ। उनसे मिलने के बाद उन्होंने शराब आदि का त्याग कर दिया। | ||
==विदेश यात्रा== | ==विदेश यात्रा== | ||
अपनी आजीविका की खोज में अब सोहन सिंह [[अमेरिका]] जा पहँचे। उनके [[भारत]] छोड़ने से पहले ही [[लाला लाजपतराय]] आदि अन्य देशभक्त राष्ट्रीय आंदोलन आंरभ कर चुके थे। इसकी भनक बाबा सोहन सिंह के कानों तक भी पहुँच चुकी थी। सोहन सिंह 40 वर्ष की उम्र में सन [[1907]] में अमेरिका पहुँचे। वहाँ उन्हें एक मिल में काम मिल गया। लगभग 200 [[पंजाब]] निवासी वहाँ पहले से ही काम कर रहे थे। किंतु इन लोगों को वेतन बहुत कम मिलता था और विदेशी उन्हें तिरस्कार की दृष्टि से देखते थे। सोहन सिंह जी को यह समझते देर नहीं लगी कि उनका यह अपमान [[भारत]] में अंग्रेज़ों की | अपनी आजीविका की खोज में अब सोहन सिंह [[अमेरिका]] जा पहँचे। उनके [[भारत]] छोड़ने से पहले ही [[लाला लाजपतराय]] आदि अन्य देशभक्त राष्ट्रीय आंदोलन आंरभ कर चुके थे। इसकी भनक बाबा सोहन सिंह के कानों तक भी पहुँच चुकी थी। सोहन सिंह 40 वर्ष की उम्र में सन [[1907]] में अमेरिका पहुँचे। वहाँ उन्हें एक मिल में काम मिल गया। लगभग 200 [[पंजाब]] निवासी वहाँ पहले से ही काम कर रहे थे। किंतु इन लोगों को वेतन बहुत कम मिलता था और विदेशी उन्हें तिरस्कार की दृष्टि से देखते थे। सोहन सिंह जी को यह समझते देर नहीं लगी कि उनका यह अपमान [[भारत]] में अंग्रेज़ों की ग़ुलामी के कारण हो रहा है। अतः उन्होंने देश की आज़ादी के लिए स्वयं के संगठन का निर्माण करना आरम्भ कर दिया। | ||
====क्रांतिकारी गतिविधियाँ==== | ====क्रांतिकारी गतिविधियाँ==== | ||
क्रांतिकारी [[लाला हरदयाल]] अमेरिका में ही थे। उन्होंने 'पैसिफ़िक कोस्ट हिन्दी एसोसियेशन' नामक एक संस्था बनाई। बाबा सोहन सिंह उसके अधयक्ष और लाला हरदयाल मंत्री बने। सब भारतीय इस संस्था में सम्मिलित हो गए। सन [[1857]] के स्वाधीनता संग्राम की स्मृति में इस संस्था ने 'गदर' नाम का पत्र भी प्रकाशित किया। इसके अतिरिक्त 'ऐलाने जंग', 'नया जमाना' जैसे प्रकाशन भी किए गए। आगे चलकर संस्था का नाम भी ' | क्रांतिकारी [[लाला हरदयाल]] अमेरिका में ही थे। उन्होंने 'पैसिफ़िक कोस्ट हिन्दी एसोसियेशन' नामक एक संस्था बनाई। बाबा सोहन सिंह उसके अधयक्ष और लाला हरदयाल मंत्री बने। सब भारतीय इस संस्था में सम्मिलित हो गए। सन [[1857]] के स्वाधीनता संग्राम की स्मृति में इस संस्था ने 'गदर' नाम का पत्र भी प्रकाशित किया। इसके अतिरिक्त 'ऐलाने जंग', 'नया जमाना' जैसे प्रकाशन भी किए गए। आगे चलकर संस्था का नाम भी 'ग़दर पार्टी' कर दिया गया। 'ग़दर पार्टी' के अंतर्गत बाबा सोहन सिंह ने क्रांतिकारियों को संगाठित करने तथा [[अस्त्र शस्त्र|अस्त्र-शस्त्र]] एकत्र करके भारत भेजने की योजना को कार्यन्वित करने में आगे बढ़ कर भाग लिया। '[[कामागाटामारू प्रकरण]]' जहाज़ वाली घटना भी इस सिलसिले का ही एक हिस्सा थी। | ||
==गिरफ्तारी== | ==गिरफ्तारी== | ||
भारतीय सेना की कुछ टुकड़ियों को क्रांति में भाग लेने के तैयार किया गया था। किन्तु मुखबिरों और कुछ देशद्रोहियों | भारतीय सेना की कुछ टुकड़ियों को क्रांति में भाग लेने के तैयार किया गया था। किन्तु मुखबिरों और कुछ देशद्रोहियों द्वारा भेद खोल देने से यह सारा किया धरा बेकार गया। बाबा सोहन सिंह भकना एक अन्य जहाज़ से [[कलकत्ता]] (वर्तमान कोलकाता) पहुँचे थे। [[13 अक्टूबर]], [[1914]] ई. को उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया गया। यहाँ से उन्हें पूछताछ के लिए लाहौर जेल भेज दिया गया। इन सब क्रांतिकारियों पर [[लाहौर]] में मुकदमा चलाया गया, जो 'प्रथम लाहौर षड़यंत्र केस' के नाम से प्रसिद्ध है। | ||
====आजीवन कारावास==== | ====आजीवन कारावास==== | ||
बाबा सोहन सिंह को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई और उन्हें [[अंडमान-निकोबार द्वीप समूह|अंडमान]] भेज दिया गया। वहाँ से वे [[कोयम्बटूर]] और भखदा जेल भेजे गए। उस समय यहाँ [[महात्मा गाँधी]] भी बंद थे। फिर वे [[लाहौर]] जेल ले जाए गए। इस दौरान उन्होंने एक लम्बे समय तक यातनापूर्ण जीवन व्यतीत किया। | बाबा सोहन सिंह को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई और उन्हें [[अंडमान-निकोबार द्वीप समूह|अंडमान]] भेज दिया गया। वहाँ से वे [[कोयम्बटूर]] और भखदा जेल भेजे गए। उस समय यहाँ [[महात्मा गाँधी]] भी बंद थे। फिर वे [[लाहौर]] जेल ले जाए गए। इस दौरान उन्होंने एक लम्बे समय तक यातनापूर्ण जीवन व्यतीत किया। | ||
====रिहाई==== | ====रिहाई==== | ||
16 वर्ष जेल मे बिताने पर भी [[अंग्रेज़]] सरकार का इरादा उन्हें जेल में ही सड़ा ड़लने का था। इस पर बाबा सोहन सिंह ने अनशन आरम्भ कर दिया। इससे उनका स्वास्थ्य बिगड़ने लगा। यह देखकर अततः अंग्रेज़ी सरकार ने उन्हें गिहा कर दिया। | 16 वर्ष जेल मे बिताने पर भी [[अंग्रेज़]] सरकार का इरादा उन्हें जेल में ही सड़ा ड़लने का था। इस पर बाबा सोहन सिंह ने अनशन आरम्भ कर दिया। इससे उनका स्वास्थ्य बिगड़ने लगा। यह देखकर अततः अंग्रेज़ी सरकार ने उन्हें गिहा कर दिया। | ||
==निधन== | |||
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05:25, 20 दिसम्बर 2017 के समय का अवतरण
सोहन सिंह भकना
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पूरा नाम | सोहन सिंह भकना |
अन्य नाम | बाबा सोहन सिंह भकना |
जन्म | जनवरी, 1870 |
जन्म भूमि | अमृतसर |
मृत्यु | 20 दिसम्बर, 1968 |
मृत्यु स्थान | खुतराई खुर्द, अमृतसर, पंजाब |
पति/पत्नी | भाई करम सिंह, राम कौर |
नागरिकता | भारतीय |
प्रसिद्धि | स्वतंत्रता सेनानी |
जेल यात्रा | 13 अक्टूबर, 1914 |
विशेष योगदान | सोहन सिंह जी ने क्रांतिकारियों को संगाठित करने तथा अस्त्र-शस्त्र एकत्र करके भारत भेजने की योजना को कार्यन्वित लिया। |
अन्य जानकारी | लाला हरदयाल ने अमेरिका में 'पैसिफ़िक कोस्ट हिन्दी एसोसियेशन' नामक एक संस्था बनाई थी, जिसके अध्यक्ष सोहन सिंह जी थे। |
बाबा सोहन सिंह भकना (अंग्रेज़ी: Sohan Singh Bhakna, जन्म- जनवरी, 1870, अमृतसर; मृत्यु- 20 दिसम्बर, 1968) भारत की आज़ादी के लिए संघर्षरत क्रांतिकारियों में से एक थे। वे अमेरिका में गठित 'ग़दर पार्टी' के प्रसिद्ध नेता थे। लाला हरदयाल ने अमेरिका में 'पैसिफ़िक कोस्ट हिन्दी एसोसियेशन' नाम की एक संस्था बनाई थी, जिसका अध्यक्ष सोहन सिंह भकना को बनाया गया था। इसी संस्था के द्वारा 'गदर' नामक समाचार पत्र भी निकाला गया और इसी के नाम पर आगे चलकर संस्था का नाम भी 'ग़दर पार्टी' रखा गया। अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों के कारण सोहन सिंह जी को गिरफ्तार कर आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई थी। अंग्रेज़ सरकार उन्हें पूरे 16 वर्ष तक जेल में रखना चाहती थी, किंतु उनके स्वास्थ्य को गिरता देख सरकार को उन्हें रिहा करना पड़ा।
जन्म तथा शिक्षा
बाबा सोहन सिंह भकना का जन्म जनवरी, 1870 ई. में अमृतसर ज़िले, पंजाब के 'खुतराई खुर्द' नामक गाँव में एक संपन्न किसान परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम भाई करम सिंह और माँ का नाम राम कौर था। सोहन सिंह जी को अपने पिता का प्यार अधिक समय तक प्राप्त नहीं हो सका। जब वे मात्र एक वर्ष के थे, तभी पिता का देहांत हो गया। उनकी माँ रानी कौर ने ही उनका पालन-पोषण किया। आंरभ में उन्हें धार्मिक शिक्षा दी गई। ये शिक्षा उन्होंने गाँव के ही गुरुद्वारे से प्राप्त की। ग्यारह वर्ष की उम्र में प्राइमरी स्कूल में भर्ती होकर उन्होंने उर्दू पढ़ना आंरभ किया।
विवाह
जब सोहन सिंह दस वर्ष के थे, तभी उनका विवाह बिशन कौर के साथ हो गया, जो लाहौर के समीप के एक ज़मींदार कुशल सिंह की पुत्री थीं। सोहन सिंह जी ने सोलह वर्ष की उम्र में अपनी स्कूली शिक्षा पूर्ण की। वे उर्दू और फ़ारसी में दक्ष थे। युवा होने पर सोहन सिंह बुरे लोगों की संगत में पड़ गये। उन्होंने अपनी संपूर्ण पैतृक संपत्ति शराब पीने और अन्य व्यर्थ के कार्यों में गवाँ दी। कुछ समय बाद उनका संपर्क बाबा केशवसिंह से हुआ। उनसे मिलने के बाद उन्होंने शराब आदि का त्याग कर दिया।
विदेश यात्रा
अपनी आजीविका की खोज में अब सोहन सिंह अमेरिका जा पहँचे। उनके भारत छोड़ने से पहले ही लाला लाजपतराय आदि अन्य देशभक्त राष्ट्रीय आंदोलन आंरभ कर चुके थे। इसकी भनक बाबा सोहन सिंह के कानों तक भी पहुँच चुकी थी। सोहन सिंह 40 वर्ष की उम्र में सन 1907 में अमेरिका पहुँचे। वहाँ उन्हें एक मिल में काम मिल गया। लगभग 200 पंजाब निवासी वहाँ पहले से ही काम कर रहे थे। किंतु इन लोगों को वेतन बहुत कम मिलता था और विदेशी उन्हें तिरस्कार की दृष्टि से देखते थे। सोहन सिंह जी को यह समझते देर नहीं लगी कि उनका यह अपमान भारत में अंग्रेज़ों की ग़ुलामी के कारण हो रहा है। अतः उन्होंने देश की आज़ादी के लिए स्वयं के संगठन का निर्माण करना आरम्भ कर दिया।
क्रांतिकारी गतिविधियाँ
क्रांतिकारी लाला हरदयाल अमेरिका में ही थे। उन्होंने 'पैसिफ़िक कोस्ट हिन्दी एसोसियेशन' नामक एक संस्था बनाई। बाबा सोहन सिंह उसके अधयक्ष और लाला हरदयाल मंत्री बने। सब भारतीय इस संस्था में सम्मिलित हो गए। सन 1857 के स्वाधीनता संग्राम की स्मृति में इस संस्था ने 'गदर' नाम का पत्र भी प्रकाशित किया। इसके अतिरिक्त 'ऐलाने जंग', 'नया जमाना' जैसे प्रकाशन भी किए गए। आगे चलकर संस्था का नाम भी 'ग़दर पार्टी' कर दिया गया। 'ग़दर पार्टी' के अंतर्गत बाबा सोहन सिंह ने क्रांतिकारियों को संगाठित करने तथा अस्त्र-शस्त्र एकत्र करके भारत भेजने की योजना को कार्यन्वित करने में आगे बढ़ कर भाग लिया। 'कामागाटामारू प्रकरण' जहाज़ वाली घटना भी इस सिलसिले का ही एक हिस्सा थी।
गिरफ्तारी
भारतीय सेना की कुछ टुकड़ियों को क्रांति में भाग लेने के तैयार किया गया था। किन्तु मुखबिरों और कुछ देशद्रोहियों द्वारा भेद खोल देने से यह सारा किया धरा बेकार गया। बाबा सोहन सिंह भकना एक अन्य जहाज़ से कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) पहुँचे थे। 13 अक्टूबर, 1914 ई. को उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया गया। यहाँ से उन्हें पूछताछ के लिए लाहौर जेल भेज दिया गया। इन सब क्रांतिकारियों पर लाहौर में मुकदमा चलाया गया, जो 'प्रथम लाहौर षड़यंत्र केस' के नाम से प्रसिद्ध है।
आजीवन कारावास
बाबा सोहन सिंह को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई और उन्हें अंडमान भेज दिया गया। वहाँ से वे कोयम्बटूर और भखदा जेल भेजे गए। उस समय यहाँ महात्मा गाँधी भी बंद थे। फिर वे लाहौर जेल ले जाए गए। इस दौरान उन्होंने एक लम्बे समय तक यातनापूर्ण जीवन व्यतीत किया।
रिहाई
16 वर्ष जेल मे बिताने पर भी अंग्रेज़ सरकार का इरादा उन्हें जेल में ही सड़ा ड़लने का था। इस पर बाबा सोहन सिंह ने अनशन आरम्भ कर दिया। इससे उनका स्वास्थ्य बिगड़ने लगा। यह देखकर अततः अंग्रेज़ी सरकार ने उन्हें गिहा कर दिया।
निधन
रिहाई के बाद बाबा सोहन सिंह 'कम्युनिस्ट पार्टी' का प्रचार करने लगे। द्वितीय विश्व युद्ध आंरभ होने पर सरकार ने उन्हें फिर गिरफ्तार कर लिया था, लेकिन सन 1943 में रिहा कर दिया। 20 दिसम्बर, 1968 को बाबा सोहन सिंह भकना का देहांत हो गया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
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