"भानु अथैया": अवतरणों में अंतर
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}} | }}'''भानुमति अन्नासाहेब राजोपाध्येय''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Bhanu Athaiya''; जन्म- [[28 अप्रैल]], [[1929]], [[कोल्हापुर]]; मृत्यु- [[15 अक्टूबर]], [[2020]], [[मुंबई]]) [[भारतीय सिनेमा]] में मशहूर ड्रेस डिज़ाइनर के रूप में जानी जाती थीं। वह ऐसी पहली भारतीय महिला रहीं, जिन्हें '[[ऑस्कर पुरस्कार]]' से नवाजा गया था। भानु अथैया साढ़े पाँच दशक तक [[हिन्दी सिनेमा]] में सक्रिय रहीं। इस दौरान उन्होंने ड्रेस डिज़ाइनिंग को नित नये आयाम दिये। उन्हें प्रसिद्ध फ़िल्म निर्माता-निर्देशक रिचर्ड एटनबरो की फ़िल्म "गाँधी" के लिए सर्वेश्रेष्ठ ड्रेस डिज़ाइनर का 'ऑस्कर' मिला था। भानु अथैया 100 से भी अधिक फ़िल्मों के लिए डिज़ाइनिंग कर रिकॉर्ड बुक में अपना नाम दर्ज करा चुकी थीं। फ़िल्म जगत् में अपने खट्टे-मीठे अनुभवों के साथ कॉस्ट्यूम डिज़ाइनिंग और फ़ैशन में आए बदलावों को उन्होंने हाल ही में प्रकाशित पुस्तक "भानु राजोपाध्ये अथैया-द आर्ट ऑफ़ कॉस्ट्यूम डिज़ाइन" में समेटने की कोशिश की थी। | ||
'''भानुमति अन्नासाहेब राजोपाध्येय''' ([[अंग्रेज़ी]]: Bhanu Athaiya; जन्म- [[28 अप्रैल]], [[1929]], [[कोल्हापुर]], [[ | |||
==जन्म तथा शिक्षा== | ==जन्म तथा शिक्षा== | ||
भानु अथैया का जन्म 28 अप्रैल, 1929 को महाराष्ट्र राज्य के कोल्हापुर में हुआ था। इनका पूरा नाम 'भानुमति अन्नासाहेब राजोपाध्येय' रखा गया था। इनके पिता का नाम अन्नासाहेब और माता शांताबाई राजोपाध्येय थीं। अपने [[माता]]-[[पिता]] की सात संतानों में भानु अथैया तीसरे स्थान पर थीं।<ref name="ab">{{cite web |url=http://srijangatha.com/SheshVishesh-6Aug2011#.UR8xlPJy30q |title=भानु अथैया|accessmonthday= 16 फ़रवरी|accessyear= 2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language= हिन्दी}}</ref> गौरतलब है कि आज़ादी के पहले उस दौर में कोल्हापुर जैसे छोटे शहर में भानु के माता-पिता ने अपनी बेटी को खूब पढ़ाया और उसकी रुचियों और प्रतिभा को देखते हुए उसे [[मुंबई]] के जे. जे. स्कूल ऑफ़ आर्ट्स में शिक्षा के लिए भेजा। यहाँ से उन्होंने स्नातक की उपाधि गोल्ड मेडल के साथ प्राप्त की। इसके बाद वे 'प्रोग्रेसिव आर्ट ग्रुप' की सदस्य के लिये भी नामित हुईं। माता-पिता ने जब अपनी बेटी भानु को रेखाचित्र बनाते देखा था तो उसे प्रोत्साहित किया और आग्रह किया कि वह [[गाँधीजी]] का रेखाचित्र बनाए। इसे संयोग ही कहा जायेगा कि बचपन में गाँधीजी का रेखाचित्र बनाने वाली भानु को ही कुछ दशक बाद सर रिचर्ड एटनबरो की अंतरराष्ट्रीय फ़िल्म 'गाँधी' की वेशभूषा बनाने के लिए ऑस्कर से नवाजा गया। | भानु अथैया का जन्म 28 अप्रैल, 1929 को महाराष्ट्र राज्य के कोल्हापुर में हुआ था। इनका पूरा नाम 'भानुमति अन्नासाहेब राजोपाध्येय' रखा गया था। इनके पिता का नाम अन्नासाहेब और माता शांताबाई राजोपाध्येय थीं। अपने [[माता]]-[[पिता]] की सात संतानों में भानु अथैया तीसरे स्थान पर थीं।<ref name="ab">{{cite web |url=http://srijangatha.com/SheshVishesh-6Aug2011#.UR8xlPJy30q |title=भानु अथैया|accessmonthday= 16 फ़रवरी|accessyear= 2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language= हिन्दी}}</ref> गौरतलब है कि आज़ादी के पहले उस दौर में कोल्हापुर जैसे छोटे शहर में भानु के माता-पिता ने अपनी बेटी को खूब पढ़ाया और उसकी रुचियों और प्रतिभा को देखते हुए उसे [[मुंबई]] के जे. जे. स्कूल ऑफ़ आर्ट्स में शिक्षा के लिए भेजा। यहाँ से उन्होंने स्नातक की उपाधि गोल्ड मेडल के साथ प्राप्त की। इसके बाद वे 'प्रोग्रेसिव आर्ट ग्रुप' की सदस्य के लिये भी नामित हुईं। माता-पिता ने जब अपनी बेटी भानु को रेखाचित्र बनाते देखा था तो उसे प्रोत्साहित किया और आग्रह किया कि वह [[गाँधीजी]] का रेखाचित्र बनाए। इसे संयोग ही कहा जायेगा कि बचपन में गाँधीजी का रेखाचित्र बनाने वाली भानु को ही कुछ दशक बाद सर रिचर्ड एटनबरो की अंतरराष्ट्रीय फ़िल्म 'गाँधी' की वेशभूषा बनाने के लिए ऑस्कर से नवाजा गया। | ||
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भानु अथैया ने वर्ष [[1953]] में ड्रेस डिज़ाइनिंग शुरू की और अगले 56 वर्षों में उन्होंने हिन्दू सिनेमा में ड्रेस डिज़ाइन के सौंदर्यशास्त्र को परिभाषित करने वाली एक असाधारण कार्य पद्धति का विकास किया। महिला पत्रिकाओं के लिये एक फ़ैशन विशेषज्ञ के रूप में स्वतंत्र कार्य करने के बाद भानु अथैया ने फ़िल्मों के लिये भी परिधान-डिज़ाइन करना आरंभ किया। फ़िल्म 'श्री 420' में अभिनेत्री [[नादिरा]] के लिये "मुड़-मुड़ के ना देख..." गाने के लिये तैयार किये गए गाउन ने उन्हें विशिष्ट पहचान दिलाई। यह गाना काफ़ी हिट हुआ और नादिरा हिन्दी सिनेमा की सर्वोत्कृष्ट अभिनेत्रियों में शुमार हो गईं। अभिनेत्रा [[साधना (अभिनेत्री)|साधना]] की कसावदार सलवार-कमीज को भी भानु अथैया ने ही डिज़ाइन किया था, जिसका जादू [[1970]] के दशक तक फ़ैशन के रूप में छाया रहा।<ref name="ab"/> | भानु अथैया ने वर्ष [[1953]] में ड्रेस डिज़ाइनिंग शुरू की और अगले 56 वर्षों में उन्होंने हिन्दू सिनेमा में ड्रेस डिज़ाइन के सौंदर्यशास्त्र को परिभाषित करने वाली एक असाधारण कार्य पद्धति का विकास किया। महिला पत्रिकाओं के लिये एक फ़ैशन विशेषज्ञ के रूप में स्वतंत्र कार्य करने के बाद भानु अथैया ने फ़िल्मों के लिये भी परिधान-डिज़ाइन करना आरंभ किया। फ़िल्म 'श्री 420' में अभिनेत्री [[नादिरा]] के लिये "मुड़-मुड़ के ना देख..." गाने के लिये तैयार किये गए गाउन ने उन्हें विशिष्ट पहचान दिलाई। यह गाना काफ़ी हिट हुआ और नादिरा हिन्दी सिनेमा की सर्वोत्कृष्ट अभिनेत्रियों में शुमार हो गईं। अभिनेत्रा [[साधना (अभिनेत्री)|साधना]] की कसावदार सलवार-कमीज को भी भानु अथैया ने ही डिज़ाइन किया था, जिसका जादू [[1970]] के दशक तक फ़ैशन के रूप में छाया रहा।<ref name="ab"/> | ||
==प्रसिद्धि== | ==प्रसिद्धि== | ||
ड्रेस डिज़ाइनर फ़िल्मों की कहानियों के अनुरूप ही परिधान-वस्त्र-अंलकार तैयार करते हैं और सिनेमा के प्रिय पात्र इन्हें पहन कर व ओढक़र अपनी ख़ास छवियाँ छोड़ जाते हैं। भानु अथैया ऐसी ही ड्रेस डिज़ाइनर हैं, जिनके परिधान चरित्रों में जान डाल देते हैं। भानु अथैया [[1982]] में प्रख्यात फ़िल्मकार रिचर्ड एटेनबरो की फ़िल्म 'गाँधी' में ऑस्कर अवार्ड पाने वाली पहली भारतीय हैं। उनके उत्कृष्ट डिज़ाइनों और अपने काम के प्रति लगन ने भारतीय सिनेमा को कॉस्ट्यूम डिज़ाइनिंग के लिए नई उपलब्धियाँ दीं। भानु अथैया ने 100 से भी अधिक फ़िल्मों में जाने-माने फ़िल्मकारों, जैसे- [[गुरुदत्त]], [[यश चोपड़ा]], [[राज कपूर]], आशुतोष गोवारिकर, कॉनरेड रूक्स और रिचर्ड एटेनबरो आदि के साथ काम किया। 'सी.आई.डी.' ([[1956]]), 'प्यासा' ([[1959]]), 'चौदहवी का चाँद' ([[1960]]) और 'साहब बीबी और | ड्रेस डिज़ाइनर फ़िल्मों की कहानियों के अनुरूप ही परिधान-वस्त्र-अंलकार तैयार करते हैं और सिनेमा के प्रिय पात्र इन्हें पहन कर व ओढक़र अपनी ख़ास छवियाँ छोड़ जाते हैं। भानु अथैया ऐसी ही ड्रेस डिज़ाइनर हैं, जिनके परिधान चरित्रों में जान डाल देते हैं। भानु अथैया [[1982]] में प्रख्यात फ़िल्मकार रिचर्ड एटेनबरो की फ़िल्म 'गाँधी' में ऑस्कर अवार्ड पाने वाली पहली भारतीय हैं। उनके उत्कृष्ट डिज़ाइनों और अपने काम के प्रति लगन ने भारतीय सिनेमा को कॉस्ट्यूम डिज़ाइनिंग के लिए नई उपलब्धियाँ दीं। भानु अथैया ने 100 से भी अधिक फ़िल्मों में जाने-माने फ़िल्मकारों, जैसे- [[गुरुदत्त]], [[यश चोपड़ा]], [[राज कपूर]], आशुतोष गोवारिकर, कॉनरेड रूक्स और रिचर्ड एटेनबरो आदि के साथ काम किया। 'सी.आई.डी.' ([[1956]]), 'प्यासा' ([[1959]]), 'चौदहवी का चाँद' ([[1960]]) और 'साहब बीबी और ग़ुलाम' ([[1964]]) जैसी सफल फ़िल्मों ने भानु अथैया को एक विशिष्ट पहचान दिलाई।<ref name="ab"/> भानु अथैया चरित्र और फ़िल्म के कथानक को ध्यान में रखकर परिधान डिज़ाइन करती हैं और मनमोहक छवियाँ चरित्रों में ढाल देती हैं। | ||
====पुरस्कार व सम्मान==== | ====पुरस्कार व सम्मान==== | ||
इन्हीं सफलतम कोशिशों के फलस्वरूप उन्होंने 'साहिब बीबी और | इन्हीं सफलतम कोशिशों के फलस्वरूप उन्होंने 'साहिब बीबी और ग़ुलाम', 'रेशमा और शेरा' आदि के लिए भी प्रशंसा बटोरी। भानु अथैया की सबसे बड़ी सफलता 'ऑस्कर अवार्ड' ([[1983]]) प्राप्त करना था। यह अवार्ड उन्हें फ़िल्म 'गाँधी' में वस्त्र डिज़ाइन के लिए दिया गया था। [[गुलज़ार]] की फ़िल्म 'लेकिन' के लिये भानु अथैया को वर्ष [[1990]] का सर्वोच्च कॉस्ट्यूम डिज़ाइनर अवार्ड मिला। भानु अथैया की हाल की सफलतम फ़िल्में हैं- जब्ब़ार पटेल की 'डॉ. बाबा साहेब अम्बेडकर' और आमिर ख़ान 'लगान', जिसने इन्हें दूसरा राष्ट्रीय पुरस्कार दिलाया। भानु अथैया ने टेलीविजन सीरियल्स और नाटकों के लिये भी परिधान डिज़ाइन किये हैं। इसके अतिरिक्त वर्ष [[1991]] में 'लेकिन' के लिए 'राष्ट्रीय फ़िल्म अवार्ड' और [[2009]] में 'लाइफ़ टाइम अचीवमेंट अवार्ड' भी इन्हें मिला। | ||
==प्रमुख फ़िल्में== | ==प्रमुख फ़िल्में== | ||
वे प्रमुख फ़िल्में जिनके लिए भानु अथैया ने वस्त्र डिज़ाइनिंग की थी, निम्नलिखित हैं- | वे प्रमुख फ़िल्में जिनके लिए भानु अथैया ने वस्त्र डिज़ाइनिंग की थी, निम्नलिखित हैं- | ||
#श्री 420 - [[1955]] | #श्री 420 - [[1955]] | ||
#साहिब, बीबी और | #साहिब, बीबी और ग़ुलाम - [[1962]] | ||
#वक्त - [[1965]] | #वक्त - [[1965]] | ||
#रेशमा और शेरा - [[1971]] | #रेशमा और शेरा - [[1971]] | ||
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#लगान - [[2001]] | #लगान - [[2001]] | ||
==किताब का प्रकाशन== | ==किताब का प्रकाशन== | ||
भानु अथैया ने अपनी फ़िल्मी यात्रा पर केंद्रित एक किताब भी जारी की है। फ़िल्मकार कुमार शाहनी ने 'द आर्ट ऑफ़ कॉस्ट्यूम डिज़ाइन' किताब का लोकार्पण किया। रिचर्ड एटनबरो ने भी इस किताब की प्रशंसा की है। एटनबरो ने [[लंदन]] से अपने संदेश में कहा कि "किसी व्यक्ति द्वारा ऐसे ज्ञान, दर्शन और उत्साह के साथ किए गए ऐतिहासिक कार्य का दस्तावेजीकरण | भानु अथैया ने अपनी फ़िल्मी यात्रा पर केंद्रित एक किताब भी जारी की है। फ़िल्मकार कुमार शाहनी ने 'द आर्ट ऑफ़ कॉस्ट्यूम डिज़ाइन' किताब का लोकार्पण किया। रिचर्ड एटनबरो ने भी इस किताब की प्रशंसा की है। एटनबरो ने [[लंदन]] से अपने संदेश में कहा कि "किसी व्यक्ति द्वारा ऐसे ज्ञान, दर्शन और उत्साह के साथ किए गए ऐतिहासिक कार्य का दस्तावेजीकरण महत्त्वपूर्ण था।" भानु अथैया के साथ अपने काम को याद करते हुए एटनबरो ने कहा कि "अपने सपनों की फ़िल्म 'गाँधी' बनाने के लिए मुझे 17 वर्ष का समय लगा, जबकि इस फ़िल्म में पर्दे पर दिखने वाले हज़ारों लोगों के भारतीय वस्त्र तैयार करने के लिए सही व्यक्ति के रूप में भानु अथैया के चुनाव में केवल 15 मिनट का समय लगा।" इस किताब में नौ अध्याय हैं। जिनमें भानु अथैया के [[कोल्हापुर]] में बिताए शुरुआती दिनों, उनका [[मुंबई]] आना, उनकी [[राज कपूर]] और [[गुरुदत्त]] से मुलाकात, फ़िल्मों में गहनों का जादू, चलन विकसित करने वाले वस्त्रों और डिज़ाइनर द्वारा प्राप्त पुरस्कारों और सम्मानों की जानकारी दी गई है।<ref>{{cite web |url=http://www.livehindustan.com/news/entertainment/entertainmentnews/article1-story-28-28-97394.html |title=भानु अथैया की फ़िल्मी यात्रा पर पुस्तक|accessmonthday=16 फ़रवरी|accessyear= 2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref> | ||
==प्रसिद्ध हस्तियों के लिए कार्य== | |||
भानु अथैया ने फ़िल्म 'गाइड' में [[वहीदा रहमान]], 'ब्रह्मचारी' में मुमताज, 'सत्यम शिवम सुंदरम' में जीनत अमान के वस्त्र डिजाइन किए थे। उन्होंने 130 फ़िल्मों में वस्त्र डिजाइन किए हैं और [[राज कपूर]], [[गुरुदत्त]], [[बी. आर. चोपड़ा]], [[यश चोपड़ा]], [[देवानंद]] और आशुतोष गोवारिकर जैसे फ़िल्मकारों के साथ काम किया है। भानु अथैया ने राज कपूर की 'मेरा नाम जोकर' से लेकर 'राम तेरी गंगा मैली' तक कई फ़िल्मों की ड्रेस डिज़ाइनिंग की। उन्होंने अपने समय की सफल फ़िल्म 'रजिया सुल्तान' से लेकर [[अमोल पालेकर]] के नाटकों तक के लिए वेशभूषा बनाई है। | भानु अथैया ने फ़िल्म 'गाइड' में [[वहीदा रहमान]], 'ब्रह्मचारी' में मुमताज, 'सत्यम शिवम सुंदरम' में जीनत अमान के वस्त्र डिजाइन किए थे। उन्होंने 130 फ़िल्मों में वस्त्र डिजाइन किए हैं और [[राज कपूर]], [[गुरुदत्त]], [[बी. आर. चोपड़ा]], [[यश चोपड़ा]], [[देवानंद]] और आशुतोष गोवारिकर जैसे फ़िल्मकारों के साथ काम किया है। भानु अथैया ने राज कपूर की 'मेरा नाम जोकर' से लेकर 'राम तेरी गंगा मैली' तक कई फ़िल्मों की ड्रेस डिज़ाइनिंग की। उन्होंने अपने समय की सफल फ़िल्म 'रजिया सुल्तान' से लेकर [[अमोल पालेकर]] के नाटकों तक के लिए वेशभूषा बनाई है। | ||
भानु अथैया का कहना है कि फ़िल्म कलाकार उनके कोलाबा स्थित घर पर चलने वाले वर्कशॉप पर अपने कपड़े डिज़ाइन करवाने आते हैं। वर्ष [[1964]] में 'संगम' में [[वैजयंती माला]] के लिए भानु की डिज़ाइन की गई क्रेप सिल्क [[साड़ी|साड़ियों]] को बेहद पसंद किया गया था। भानु कहती हैं कि फ़िल्म 'सत्यम शिवम सुंदरम' में एक ग्रामीण लड़की और दूसरी तरफ़ उसी लड़की को एक [[अप्सरा]] की तरह दिखाने के लिए ड्रेस डिज़ाइन करना काफ़ी चुनौतीपूर्ण काम था। [[1962]] में फ़िल्म 'साहिब, बीबी और ग़ुलाम' में [[मीना कुमारी]] को उनके चरित्र, ज़मींदार की पत्नी के रूप में उनका प्रेम हासिल करने की जद्दोजहद, को दर्शाने के लिए लाइट फ्लेटरिंग साड़ियाँ डिज़ाइन करनी थीं। फ़िल्म 'गाँधी' के लिए भानु अथैया को श्रेष्ठ कॉस्टयूम डिज़ाइनर का 'ऑस्कर पुरस्कार' मिला। वे बताती हैं कि [[गाँधीजी]] की भूमिका निभा रहे बेन किंग्सले को पारंपरिक काठियावाड़ी कपड़े पहनाने थे, जो कि गाँधीजी के पैतृक गाँव में पहने जाते थे। [[कस्तूरबा गाँधी|कस्तूरबा]] की भूमिका में रोहिणी हटंगड़ी ने हैंडलूम बॉर्डर की साड़ियाँ पहनी थीं। [[2001]] में फ़िल्म 'लगान' की ब्रिटिश अभिनेत्री रशेल के लिए टोपी, दस्ताने और दूसरी ऐसी चीज़ें ख़रीदने के लिए भानु अथैया को इंग्लैंड जाना पड़ा था।<ref>{{cite web |url=http://www.hindimedia.in/index.php?option=com_content&task=view&id=11100&Itemid=86 |title=भानु अथैया|accessmonthday=16 फ़रवरी|accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref> | |||
==ऑस्कर की सुरक्षा== | |||
50 के दशक से भारतीय सिनेमा में सक्रिय भानु अथैया ने 100 से ज़्यादा फ़िल्मों के लिए कॉस्ट्यूम डिज़ाइन किए। ऑस्कर के अलावा उन्हें दो राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिले थे। [[आमिर ख़ान]] की फ़िल्म 'लगान' और [[शाहरुख ख़ान]] की फ़िल्म 'स्वदेस' में उन्होंने आखिरी बार कॉस्ट्यूम डिज़ाइन किए थे। साल [[2012]] में भानु अथैया ने ऑस्कर ट्रॉफी को लौटाने की इच्छा जताई थी। वो चाहती थीं कि उनके जाने के बाद ऑस्कर ट्रॉफी को सुरक्षित स्थान पर रखा जाए। तब बीबीसी से बातचीत में भानु अथैया ने कहा था, "सबसे बड़ा सवाल ट्रॉफी की सुरक्षा का है, [[भारत]] में पहले कई अवॉर्ड गायब हुए है। मैने इतने सालों तक अवॉर्ड को इंजॉय किया है, चाहती हूँ कि वो आगे भी सुरक्षित रहे"। उन्होंने कहा था, "मैं अक्सर ऑस्कर ऑफिस जाती हूँ, मैने देखा कि वहां कई लोगों ने अपने ट्रॉफी रखे हैं। अमरीकी कॉस्ट्यूम डिजाइनर एडिथ हेड ने भी मरने से पहले अपने आठ ऑस्कर ट्रॉफियों को ऑस्कर ऑफिस में रखवाया था"।<ref>{{cite web |url= https://www.bbc.com/hindi/entertainment-54557379.amp|title=भानू अथैया ने जीता था भारत के लिए पहला ऑस्कर अवॉर्ड|accessmonthday=30 दिसंबर|accessyear=2020 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=bbc.com |language=हिंदी}}</ref> | |||
भानु अथैया ने ऑस्कर समारोह की उस शाम को याद करते हुए कहा था, "डोरोथी शिंडलेयर पवेलियन में हो रहे समारोह में गाड़ी से मेरे साथ फिल्म के लेखक भी जा रहे थे। उन्होंने कहा था कि उन्हें लगता है कि अवॉर्ड मुझे ही मिलेगा। दूसरे डिज़ाइनर्स भी यही कह रहे थे कि अवॉर्ड मुझे ही मिलेगा। मैंने पूछा कि ऐसा इतने विश्वास से आप कैसे कह सकते हैं? इस सवाल पर उन लोगों ने मुझे जवाब दिया कि आपकी फिल्म का दायरा इतना बड़ा है कि उससे हम प्रतियोगिता नहीं कर सकते है"। अवार्ड लेते वक्त मैंने सिर्फ यही कहा था कि "मैं सर रिचर्ड ऑटेनबरो का शुक्रिया अदा करती हूँ कि उन्होंने दुनिया का ध्यान भारत की तरफ खींचा... धन्यवाद अकादमी"। | |||
भानु अथैया चित्रकारी में गोल्ड मेडेलिस्ट भी थीं और यही वजह थी कि रिचर्ड ऑटेनबॉरो ने उन्हें अपनी फ़िल्म में चुना था। भानु अथैया का मानना था कि अगर उनकी ट्रॉफी ऑस्कर के दफ्तर में रखी जाएगी तो ज़्यादा लोग इसे देख पाएंगे। | |||
==मृत्यु== | |||
[[भारत]] की पहली [[ऑस्कर पुरस्कार|ऑस्कर]] विजेता और सिनेमा जगत की जानी-मानी कॉस्ट्यूम डिजाइनर भानु अथैया का 91 वर्ष की आयु में निधन [[15 अक्टूबर]], [[2020]] को [[मुंबई]], [[महाराष्ट्र]] में हुआ। | |||
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==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
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11:50, 31 दिसम्बर 2020 के समय का अवतरण
भानु अथैया
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पूरा नाम | भानुमति अन्नासाहेब राजोपाध्येय |
प्रसिद्ध नाम | भानु अथैया |
जन्म | 28 अप्रैल, 1929
(आयु- 95 वर्ष) |
जन्म भूमि | कोल्हापुर, महाराष्ट्र |
मृत्यु | 15 अक्टूबर, 2020 |
मृत्यु स्थान | मुंबई, महाराष्ट्र |
अभिभावक | पिता- अन्नासाहेब, माता- शांताबाई राजोपाध्येय |
पति/पत्नी | सत्येन्द्र अथैया |
कर्म भूमि | मुंबई, भारत |
कर्म-क्षेत्र | फ़िल्मों में ड्रेस डिज़ाइनर |
मुख्य फ़िल्में | 'गाँधी', 'साहिब, बीबी और ग़ुलाम', 'वक्त', 'रेशमा और शेरा', 'लेकिन', 'लगान', 'डॉ, बाबा साहेब अम्बेडकर' आदि। |
शिक्षा | स्नातक (गोल्ड मेडल) |
विद्यालय | जे. जे. स्कूल ऑफ़ आर्ट्स, मुंबई |
पुरस्कार-उपाधि | 'ऑस्कर अवार्ड' (1983), 'राष्ट्रीय फ़िल्म अवार्ड' (1991), 'लाइफ़ टाइम अचीवमेंट अवार्ड' (2009) |
प्रसिद्धि | ड्रेस डिज़ाइनर |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | भानु अथैया ने फ़िल्म 'गाइड' में वहीदा रहमान, 'ब्रह्मचारी' में मुमताज, 'सत्यम शिवम सुंदरम' में जीनत अमान के वस्त्र डिजाइन किए थे। |
भानुमति अन्नासाहेब राजोपाध्येय (अंग्रेज़ी: Bhanu Athaiya; जन्म- 28 अप्रैल, 1929, कोल्हापुर; मृत्यु- 15 अक्टूबर, 2020, मुंबई) भारतीय सिनेमा में मशहूर ड्रेस डिज़ाइनर के रूप में जानी जाती थीं। वह ऐसी पहली भारतीय महिला रहीं, जिन्हें 'ऑस्कर पुरस्कार' से नवाजा गया था। भानु अथैया साढ़े पाँच दशक तक हिन्दी सिनेमा में सक्रिय रहीं। इस दौरान उन्होंने ड्रेस डिज़ाइनिंग को नित नये आयाम दिये। उन्हें प्रसिद्ध फ़िल्म निर्माता-निर्देशक रिचर्ड एटनबरो की फ़िल्म "गाँधी" के लिए सर्वेश्रेष्ठ ड्रेस डिज़ाइनर का 'ऑस्कर' मिला था। भानु अथैया 100 से भी अधिक फ़िल्मों के लिए डिज़ाइनिंग कर रिकॉर्ड बुक में अपना नाम दर्ज करा चुकी थीं। फ़िल्म जगत् में अपने खट्टे-मीठे अनुभवों के साथ कॉस्ट्यूम डिज़ाइनिंग और फ़ैशन में आए बदलावों को उन्होंने हाल ही में प्रकाशित पुस्तक "भानु राजोपाध्ये अथैया-द आर्ट ऑफ़ कॉस्ट्यूम डिज़ाइन" में समेटने की कोशिश की थी।
जन्म तथा शिक्षा
भानु अथैया का जन्म 28 अप्रैल, 1929 को महाराष्ट्र राज्य के कोल्हापुर में हुआ था। इनका पूरा नाम 'भानुमति अन्नासाहेब राजोपाध्येय' रखा गया था। इनके पिता का नाम अन्नासाहेब और माता शांताबाई राजोपाध्येय थीं। अपने माता-पिता की सात संतानों में भानु अथैया तीसरे स्थान पर थीं।[1] गौरतलब है कि आज़ादी के पहले उस दौर में कोल्हापुर जैसे छोटे शहर में भानु के माता-पिता ने अपनी बेटी को खूब पढ़ाया और उसकी रुचियों और प्रतिभा को देखते हुए उसे मुंबई के जे. जे. स्कूल ऑफ़ आर्ट्स में शिक्षा के लिए भेजा। यहाँ से उन्होंने स्नातक की उपाधि गोल्ड मेडल के साथ प्राप्त की। इसके बाद वे 'प्रोग्रेसिव आर्ट ग्रुप' की सदस्य के लिये भी नामित हुईं। माता-पिता ने जब अपनी बेटी भानु को रेखाचित्र बनाते देखा था तो उसे प्रोत्साहित किया और आग्रह किया कि वह गाँधीजी का रेखाचित्र बनाए। इसे संयोग ही कहा जायेगा कि बचपन में गाँधीजी का रेखाचित्र बनाने वाली भानु को ही कुछ दशक बाद सर रिचर्ड एटनबरो की अंतरराष्ट्रीय फ़िल्म 'गाँधी' की वेशभूषा बनाने के लिए ऑस्कर से नवाजा गया।
विवाह
हिन्दी फ़िल्मों के जाने-माने गीतकार और एक कवि के रूप में पहचाने जाने वाले सत्येन्द्र अथैया के साथ भानु अथैया का विवाह सम्पन्न हुआ था। अथैया दम्पत्ति का यह रिश्ता अधिक दिनों तक नहीं चल सका। भानु अथैया ने दूसरा विवाह भी नहीं किया। इनकी एक बेटी भी हुई, जो अब अपने परिवार के साथ कोलकाता में रहती है।
फ़िल्मों के डिज़ाइनिंग का कार्य
भानु अथैया ने वर्ष 1953 में ड्रेस डिज़ाइनिंग शुरू की और अगले 56 वर्षों में उन्होंने हिन्दू सिनेमा में ड्रेस डिज़ाइन के सौंदर्यशास्त्र को परिभाषित करने वाली एक असाधारण कार्य पद्धति का विकास किया। महिला पत्रिकाओं के लिये एक फ़ैशन विशेषज्ञ के रूप में स्वतंत्र कार्य करने के बाद भानु अथैया ने फ़िल्मों के लिये भी परिधान-डिज़ाइन करना आरंभ किया। फ़िल्म 'श्री 420' में अभिनेत्री नादिरा के लिये "मुड़-मुड़ के ना देख..." गाने के लिये तैयार किये गए गाउन ने उन्हें विशिष्ट पहचान दिलाई। यह गाना काफ़ी हिट हुआ और नादिरा हिन्दी सिनेमा की सर्वोत्कृष्ट अभिनेत्रियों में शुमार हो गईं। अभिनेत्रा साधना की कसावदार सलवार-कमीज को भी भानु अथैया ने ही डिज़ाइन किया था, जिसका जादू 1970 के दशक तक फ़ैशन के रूप में छाया रहा।[1]
प्रसिद्धि
ड्रेस डिज़ाइनर फ़िल्मों की कहानियों के अनुरूप ही परिधान-वस्त्र-अंलकार तैयार करते हैं और सिनेमा के प्रिय पात्र इन्हें पहन कर व ओढक़र अपनी ख़ास छवियाँ छोड़ जाते हैं। भानु अथैया ऐसी ही ड्रेस डिज़ाइनर हैं, जिनके परिधान चरित्रों में जान डाल देते हैं। भानु अथैया 1982 में प्रख्यात फ़िल्मकार रिचर्ड एटेनबरो की फ़िल्म 'गाँधी' में ऑस्कर अवार्ड पाने वाली पहली भारतीय हैं। उनके उत्कृष्ट डिज़ाइनों और अपने काम के प्रति लगन ने भारतीय सिनेमा को कॉस्ट्यूम डिज़ाइनिंग के लिए नई उपलब्धियाँ दीं। भानु अथैया ने 100 से भी अधिक फ़िल्मों में जाने-माने फ़िल्मकारों, जैसे- गुरुदत्त, यश चोपड़ा, राज कपूर, आशुतोष गोवारिकर, कॉनरेड रूक्स और रिचर्ड एटेनबरो आदि के साथ काम किया। 'सी.आई.डी.' (1956), 'प्यासा' (1959), 'चौदहवी का चाँद' (1960) और 'साहब बीबी और ग़ुलाम' (1964) जैसी सफल फ़िल्मों ने भानु अथैया को एक विशिष्ट पहचान दिलाई।[1] भानु अथैया चरित्र और फ़िल्म के कथानक को ध्यान में रखकर परिधान डिज़ाइन करती हैं और मनमोहक छवियाँ चरित्रों में ढाल देती हैं।
पुरस्कार व सम्मान
इन्हीं सफलतम कोशिशों के फलस्वरूप उन्होंने 'साहिब बीबी और ग़ुलाम', 'रेशमा और शेरा' आदि के लिए भी प्रशंसा बटोरी। भानु अथैया की सबसे बड़ी सफलता 'ऑस्कर अवार्ड' (1983) प्राप्त करना था। यह अवार्ड उन्हें फ़िल्म 'गाँधी' में वस्त्र डिज़ाइन के लिए दिया गया था। गुलज़ार की फ़िल्म 'लेकिन' के लिये भानु अथैया को वर्ष 1990 का सर्वोच्च कॉस्ट्यूम डिज़ाइनर अवार्ड मिला। भानु अथैया की हाल की सफलतम फ़िल्में हैं- जब्ब़ार पटेल की 'डॉ. बाबा साहेब अम्बेडकर' और आमिर ख़ान 'लगान', जिसने इन्हें दूसरा राष्ट्रीय पुरस्कार दिलाया। भानु अथैया ने टेलीविजन सीरियल्स और नाटकों के लिये भी परिधान डिज़ाइन किये हैं। इसके अतिरिक्त वर्ष 1991 में 'लेकिन' के लिए 'राष्ट्रीय फ़िल्म अवार्ड' और 2009 में 'लाइफ़ टाइम अचीवमेंट अवार्ड' भी इन्हें मिला।
प्रमुख फ़िल्में
वे प्रमुख फ़िल्में जिनके लिए भानु अथैया ने वस्त्र डिज़ाइनिंग की थी, निम्नलिखित हैं-
- श्री 420 - 1955
- साहिब, बीबी और ग़ुलाम - 1962
- वक्त - 1965
- रेशमा और शेरा - 1971
- गाँधी - 1982
- लेकिन - 1990
- डॉ. बाबा साहेब अम्बेडकर - 2000
- लगान - 2001
किताब का प्रकाशन
भानु अथैया ने अपनी फ़िल्मी यात्रा पर केंद्रित एक किताब भी जारी की है। फ़िल्मकार कुमार शाहनी ने 'द आर्ट ऑफ़ कॉस्ट्यूम डिज़ाइन' किताब का लोकार्पण किया। रिचर्ड एटनबरो ने भी इस किताब की प्रशंसा की है। एटनबरो ने लंदन से अपने संदेश में कहा कि "किसी व्यक्ति द्वारा ऐसे ज्ञान, दर्शन और उत्साह के साथ किए गए ऐतिहासिक कार्य का दस्तावेजीकरण महत्त्वपूर्ण था।" भानु अथैया के साथ अपने काम को याद करते हुए एटनबरो ने कहा कि "अपने सपनों की फ़िल्म 'गाँधी' बनाने के लिए मुझे 17 वर्ष का समय लगा, जबकि इस फ़िल्म में पर्दे पर दिखने वाले हज़ारों लोगों के भारतीय वस्त्र तैयार करने के लिए सही व्यक्ति के रूप में भानु अथैया के चुनाव में केवल 15 मिनट का समय लगा।" इस किताब में नौ अध्याय हैं। जिनमें भानु अथैया के कोल्हापुर में बिताए शुरुआती दिनों, उनका मुंबई आना, उनकी राज कपूर और गुरुदत्त से मुलाकात, फ़िल्मों में गहनों का जादू, चलन विकसित करने वाले वस्त्रों और डिज़ाइनर द्वारा प्राप्त पुरस्कारों और सम्मानों की जानकारी दी गई है।[2]
प्रसिद्ध हस्तियों के लिए कार्य
भानु अथैया ने फ़िल्म 'गाइड' में वहीदा रहमान, 'ब्रह्मचारी' में मुमताज, 'सत्यम शिवम सुंदरम' में जीनत अमान के वस्त्र डिजाइन किए थे। उन्होंने 130 फ़िल्मों में वस्त्र डिजाइन किए हैं और राज कपूर, गुरुदत्त, बी. आर. चोपड़ा, यश चोपड़ा, देवानंद और आशुतोष गोवारिकर जैसे फ़िल्मकारों के साथ काम किया है। भानु अथैया ने राज कपूर की 'मेरा नाम जोकर' से लेकर 'राम तेरी गंगा मैली' तक कई फ़िल्मों की ड्रेस डिज़ाइनिंग की। उन्होंने अपने समय की सफल फ़िल्म 'रजिया सुल्तान' से लेकर अमोल पालेकर के नाटकों तक के लिए वेशभूषा बनाई है।
भानु अथैया का कहना है कि फ़िल्म कलाकार उनके कोलाबा स्थित घर पर चलने वाले वर्कशॉप पर अपने कपड़े डिज़ाइन करवाने आते हैं। वर्ष 1964 में 'संगम' में वैजयंती माला के लिए भानु की डिज़ाइन की गई क्रेप सिल्क साड़ियों को बेहद पसंद किया गया था। भानु कहती हैं कि फ़िल्म 'सत्यम शिवम सुंदरम' में एक ग्रामीण लड़की और दूसरी तरफ़ उसी लड़की को एक अप्सरा की तरह दिखाने के लिए ड्रेस डिज़ाइन करना काफ़ी चुनौतीपूर्ण काम था। 1962 में फ़िल्म 'साहिब, बीबी और ग़ुलाम' में मीना कुमारी को उनके चरित्र, ज़मींदार की पत्नी के रूप में उनका प्रेम हासिल करने की जद्दोजहद, को दर्शाने के लिए लाइट फ्लेटरिंग साड़ियाँ डिज़ाइन करनी थीं। फ़िल्म 'गाँधी' के लिए भानु अथैया को श्रेष्ठ कॉस्टयूम डिज़ाइनर का 'ऑस्कर पुरस्कार' मिला। वे बताती हैं कि गाँधीजी की भूमिका निभा रहे बेन किंग्सले को पारंपरिक काठियावाड़ी कपड़े पहनाने थे, जो कि गाँधीजी के पैतृक गाँव में पहने जाते थे। कस्तूरबा की भूमिका में रोहिणी हटंगड़ी ने हैंडलूम बॉर्डर की साड़ियाँ पहनी थीं। 2001 में फ़िल्म 'लगान' की ब्रिटिश अभिनेत्री रशेल के लिए टोपी, दस्ताने और दूसरी ऐसी चीज़ें ख़रीदने के लिए भानु अथैया को इंग्लैंड जाना पड़ा था।[3]
ऑस्कर की सुरक्षा
50 के दशक से भारतीय सिनेमा में सक्रिय भानु अथैया ने 100 से ज़्यादा फ़िल्मों के लिए कॉस्ट्यूम डिज़ाइन किए। ऑस्कर के अलावा उन्हें दो राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिले थे। आमिर ख़ान की फ़िल्म 'लगान' और शाहरुख ख़ान की फ़िल्म 'स्वदेस' में उन्होंने आखिरी बार कॉस्ट्यूम डिज़ाइन किए थे। साल 2012 में भानु अथैया ने ऑस्कर ट्रॉफी को लौटाने की इच्छा जताई थी। वो चाहती थीं कि उनके जाने के बाद ऑस्कर ट्रॉफी को सुरक्षित स्थान पर रखा जाए। तब बीबीसी से बातचीत में भानु अथैया ने कहा था, "सबसे बड़ा सवाल ट्रॉफी की सुरक्षा का है, भारत में पहले कई अवॉर्ड गायब हुए है। मैने इतने सालों तक अवॉर्ड को इंजॉय किया है, चाहती हूँ कि वो आगे भी सुरक्षित रहे"। उन्होंने कहा था, "मैं अक्सर ऑस्कर ऑफिस जाती हूँ, मैने देखा कि वहां कई लोगों ने अपने ट्रॉफी रखे हैं। अमरीकी कॉस्ट्यूम डिजाइनर एडिथ हेड ने भी मरने से पहले अपने आठ ऑस्कर ट्रॉफियों को ऑस्कर ऑफिस में रखवाया था"।[4]
भानु अथैया ने ऑस्कर समारोह की उस शाम को याद करते हुए कहा था, "डोरोथी शिंडलेयर पवेलियन में हो रहे समारोह में गाड़ी से मेरे साथ फिल्म के लेखक भी जा रहे थे। उन्होंने कहा था कि उन्हें लगता है कि अवॉर्ड मुझे ही मिलेगा। दूसरे डिज़ाइनर्स भी यही कह रहे थे कि अवॉर्ड मुझे ही मिलेगा। मैंने पूछा कि ऐसा इतने विश्वास से आप कैसे कह सकते हैं? इस सवाल पर उन लोगों ने मुझे जवाब दिया कि आपकी फिल्म का दायरा इतना बड़ा है कि उससे हम प्रतियोगिता नहीं कर सकते है"। अवार्ड लेते वक्त मैंने सिर्फ यही कहा था कि "मैं सर रिचर्ड ऑटेनबरो का शुक्रिया अदा करती हूँ कि उन्होंने दुनिया का ध्यान भारत की तरफ खींचा... धन्यवाद अकादमी"।
भानु अथैया चित्रकारी में गोल्ड मेडेलिस्ट भी थीं और यही वजह थी कि रिचर्ड ऑटेनबॉरो ने उन्हें अपनी फ़िल्म में चुना था। भानु अथैया का मानना था कि अगर उनकी ट्रॉफी ऑस्कर के दफ्तर में रखी जाएगी तो ज़्यादा लोग इसे देख पाएंगे।
मृत्यु
भारत की पहली ऑस्कर विजेता और सिनेमा जगत की जानी-मानी कॉस्ट्यूम डिजाइनर भानु अथैया का 91 वर्ष की आयु में निधन 15 अक्टूबर, 2020 को मुंबई, महाराष्ट्र में हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 1.2 भानु अथैया (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 16 फ़रवरी, 2013।
- ↑ भानु अथैया की फ़िल्मी यात्रा पर पुस्तक (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 16 फ़रवरी, 2013।
- ↑ भानु अथैया (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 16 फ़रवरी, 2013।
- ↑ भानू अथैया ने जीता था भारत के लिए पहला ऑस्कर अवॉर्ड (हिंदी) bbc.com। अभिगमन तिथि: 30 दिसंबर, 2020।
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