"पारिजात -अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध'": अवतरणों में अंतर
गोविन्द राम (वार्ता | योगदान) No edit summary |
गोविन्द राम (वार्ता | योगदान) No edit summary |
||
(इसी सदस्य द्वारा किए गए बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{बहुविकल्प|बहुविकल्पी शब्द=पारिजात |लेख का नाम=पारिजात (बहुविकल्पी)}} | |||
{| style="background:transparent; float:right" | |||
|- | |||
| | |||
{{सूचना बक्सा कविता | {{सूचना बक्सा कविता | ||
|चित्र=Ayodhya-Singh-Upadhyay.jpg | |चित्र=Ayodhya-Singh-Upadhyay.jpg | ||
पंक्ति 15: | पंक्ति 19: | ||
|बाहरी कड़ियाँ= | |बाहरी कड़ियाँ= | ||
}} | }} | ||
|- | |||
| {{पारिजात}} | |||
|} | |||
'''पारिजात''' एक विशाल ग्रंथ है जिसमें विविध विषयों पर कविताएँ संकलित हैं। [[अयोध्यासिंह उपाध्याय|अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध']] ने [[महाकाव्य|महाकाव्यों]] की परम्परा में 'पारिजात' को भी प्रस्तुतु किया है। हरिऔध जी ने इस संग्रह का नाम पहले स्वर्गीय संगीत रखा था पर बाद में पारिजात रख दिया। पारिजात यानी नन्दन कानन का कल्पतरु जो कामनाओं की पूर्ति करने वाला है। उसी तरह पारिजात में भी पाठक को मनोवांछित कविताएँ मिल जाएंगी, यही सोचकर हरिऔध जी ने संग्रह का नाम रखा है। [[कवि]] के इस विश्वास के मूल में पारिजात का विषय-वैविध्य है। हरिऔध जी ने पारिजात को महाकाव्य के रूप में प्रस्तुत किया है। | '''पारिजात''' एक विशाल ग्रंथ है जिसमें विविध विषयों पर कविताएँ संकलित हैं। [[अयोध्यासिंह उपाध्याय|अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध']] ने [[महाकाव्य|महाकाव्यों]] की परम्परा में 'पारिजात' को भी प्रस्तुतु किया है। हरिऔध जी ने इस संग्रह का नाम पहले स्वर्गीय संगीत रखा था पर बाद में पारिजात रख दिया। पारिजात यानी नन्दन कानन का कल्पतरु जो कामनाओं की पूर्ति करने वाला है। उसी तरह पारिजात में भी पाठक को मनोवांछित कविताएँ मिल जाएंगी, यही सोचकर हरिऔध जी ने संग्रह का नाम रखा है। [[कवि]] के इस विश्वास के मूल में पारिजात का विषय-वैविध्य है। हरिऔध जी ने पारिजात को महाकाव्य के रूप में प्रस्तुत किया है। | ||
==15 सर्गों में विभक्त == | ==15 सर्गों में विभक्त == | ||
पंक्ति 31: | पंक्ति 38: | ||
[[Category:साहित्य कोश]] | [[Category:साहित्य कोश]] | ||
[[Category:अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध']] | [[Category:अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध']] | ||
[[Category:पारिजात]] | [[Category:पारिजात]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ | ||
__NOTOC__ | __NOTOC__ |
06:32, 6 अप्रैल 2013 के समय का अवतरण
पारिजात | एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- पारिजात (बहुविकल्पी) |
| ||||||||||||||||||||||||
पारिजात एक विशाल ग्रंथ है जिसमें विविध विषयों पर कविताएँ संकलित हैं। अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध' ने महाकाव्यों की परम्परा में 'पारिजात' को भी प्रस्तुतु किया है। हरिऔध जी ने इस संग्रह का नाम पहले स्वर्गीय संगीत रखा था पर बाद में पारिजात रख दिया। पारिजात यानी नन्दन कानन का कल्पतरु जो कामनाओं की पूर्ति करने वाला है। उसी तरह पारिजात में भी पाठक को मनोवांछित कविताएँ मिल जाएंगी, यही सोचकर हरिऔध जी ने संग्रह का नाम रखा है। कवि के इस विश्वास के मूल में पारिजात का विषय-वैविध्य है। हरिऔध जी ने पारिजात को महाकाव्य के रूप में प्रस्तुत किया है।
15 सर्गों में विभक्त
यह ग्रंथ पंद्रह सर्गों में निबद्ध है- गेयगान, अकल्पनीय की कल्पना, दृश्य जगत, अंतर्गत, अंतर्जगत, सांसारिकता, स्वर्ग कर्म विपाक, प्रलय प्रयत्न, कांत कल्पना, सत्य का स्वरूप, और परमानंद। इस काव्य ग्रंथ के सभी सर्ग स्वतंत्र हैं। पारिजात में न तो कोई कथा है और न ही कोई कथा क्रम। प्रत्येक सर्ग में शीर्षक से सम्बंधित विषयों की काव्यात्मक प्रस्तुति की गयी है।
पहले सर्ग गेयगान में कवि ने दशावतार की तर्ज पर दिव्य दस मूर्तियों का वर्णन किया है। ये दिव्य दस मूर्तियाँ है- राजा राममोहन राय, बाल गंगाधर तिलक, गोपाल कृष्ण गोखले, मदन मोहन मालवीय, मोहनदास करमचंद गाँधी। वस्तुत: यह आधुनिक भारत के दस निर्माताओं का प्रशस्ति गायन है। इन नामों से नये बनते हुए भारत के प्रति कवि के नज़रिये का भी अंदाज़ लगता है। यहीं पर हरिऔध जी ने भारतीय संस्कृति के वैभव का बखान किया है। दूसरे सर्ग में ईश्वर को लेकर अनेक संकल्पनाएँ की गयी हैं। तीसरे से छठे सर्ग में विविध रूपों यथा आकाश, हिमांचल, समुद्र, धरती आदि का विस्तृत वर्णन है। सातवें और आठवें सर्ग में मनुष्य के अंतर्जगत तथा नवें सर्ग में मनुष्य की सांसारिक वृत्तियों का विवेचन है। दसवें से तेरहवें सर्ग तक स्वर्ग-नर्क-प्रलय आदि संकल्पनाओं का विवेचन है। चौदहवें सर्ग में सत्य का स्वरूप जान लेने के बाद पाठक पंद्रहवें सर्ग में परमानंद तक पहुँचता है। पारिजात में विषय 'वैविध्य के साथ उनके शैलीगत' वैविध्य के भी दर्शन होते हैं। हरिऔध ने जितने भी शैलीगत प्रयोग किये थे सब पारिजात में एक साथ मिल जाते हैं।[1]
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध' रचनावली भाग-1 (हिंदी) गूगल बुक्स। अभिगमन तिथि: 5 अप्रैल, 2013।
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख