"प्रियप्रवास द्वादश सर्ग": अवतरणों में अंतर
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यदि दिखा पड़ती जनता कहीं। | यदि दिखा पड़ती जनता कहीं। | ||
कु-पथ में पड़ के | कु-पथ में पड़ के दु:ख भोगती। | ||
पथ-प्रदर्शन थे करते उसे। | पथ-प्रदर्शन थे करते उसे। | ||
तुरत तो उस ठौर ब्रजेन्द्र जा॥56॥ | तुरत तो उस ठौर ब्रजेन्द्र जा॥56॥ | ||
पंक्ति 427: | पंक्ति 427: | ||
छोटे बड़े सकल का हित चाहते थे। | छोटे बड़े सकल का हित चाहते थे। | ||
अत्यन्त प्यार दिखला मिलते सबों से। | अत्यन्त प्यार दिखला मिलते सबों से। | ||
वे थे सहायक बड़े | वे थे सहायक बड़े दु:ख के दिनों में॥80॥ | ||
वे थे विनम्र बन के मिलते बड़ों से। | वे थे विनम्र बन के मिलते बड़ों से। | ||
पंक्ति 456: | पंक्ति 456: | ||
थे राज-पुत्र उनमें मद था न तो भी। | थे राज-पुत्र उनमें मद था न तो भी। | ||
वे दीन के सदन थे अधिकांश जाते। | वे दीन के सदन थे अधिकांश जाते। | ||
बातें-मनोरम सुना | बातें-मनोरम सुना दु:ख जानते थे। | ||
औ थे विमोचन उसे करते कृपा से॥86॥ | औ थे विमोचन उसे करते कृपा से॥86॥ | ||
पंक्ति 495: | पंक्ति 495: | ||
पूरी नहीं कर सके उचिताभिलाषा। | पूरी नहीं कर सके उचिताभिलाषा। | ||
नाना | नाना महान् जन भी इस मेदिनी में। | ||
होने निरस्त बहुधा नृप-नीतियों से। | होने निरस्त बहुधा नृप-नीतियों से। | ||
लोकोपकार-व्रत में अवलोक बाधा॥94॥ | लोकोपकार-व्रत में अवलोक बाधा॥94॥ |
11:19, 1 अगस्त 2017 के समय का अवतरण
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ऊधो को यों स-दुख जब थे गोप बातें सुनाते। |
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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