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| <quiz display=simple> | | <quiz display=simple> |
| {सम्पूर्ण [[महाभारत]] में [[श्लोक|श्लोकों]] की संख्या कितनी है?
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| +एक लाख
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| -91 हज़ार
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| -81 हज़ार
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| -51 हज़ार
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| ||[[चित्र:Krishna-Arjuna.jpg|right|90px|महाभारत युद्ध में श्रीकृष्ण और अर्जुन]]'महाभारत' [[हिन्दू|हिन्दुओं]] का एक प्रमुख काव्य ग्रंथ है, जो [[हिन्दू धर्म]] के उन धर्म-ग्रन्थों का समूह है, जिनकी मान्यता श्रुति से नीची श्रेणी की हैं और जो मानवों द्वारा उत्पन्न थे। यह कृति हिन्दुओं के इतिहास की एक गाथा है। पूरे [[महाभारत]] में एक लाख [[श्लोक]] हैं। विद्वानों में महाभारत काल को लेकर विभिन्न मत हैं, फिर भी अधिकतर विद्वान महाभारत काल को 'लौहयुग' से जोड़ते हैं। महाभारत में वर्णित 'कुरुवंश' 1200 से 800 ईसा पूर्व के दौरान शक्ति में रहा होगा। पौराणिक मान्यता को देखें तो पता लगता है कि [[अर्जुन]] के पोते [[परीक्षित]] और [[महापद्मनंद]] का काल 382 ईसा पूर्व ठहरता है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[महाभारत]]
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| {[[युधिष्ठिर|धर्मराज युधिष्ठिर]] [[महाभारत]] युद्ध में कितनी [[अक्षौहिणी|अक्षौहिणी सेना]] के स्वामी थे?
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| |type="()"}
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| -दस अक्षौहिणी
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| -ग्यारह अक्षौहिणी
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| +सात अक्षौहिणी
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| -नौ अक्षौहिणी
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| ||[[चित्र:Yudhishthir-Birla-mandir.jpg|right|90px|युधिष्ठिर]]'युधिष्ठिर' [[पाण्डु]] के पुत्र और पाँच [[पाण्डव|पाण्डवों]] में से सबसे बड़े भाई थे। वे [[महाभारत]] के नायकों में समुज्ज्वल चरित्र वाले ज्येष्ठ पाण्डव थे। [[युधिष्ठिर]] [[धर्मराज]] के अंश पुत्र थे। वे सत्यवादिता एवं धार्मिक आचरण के लिए विख्यात हैं। [[शान्तिपर्व महाभारत|शान्तिपर्व]] में सम्पूर्ण समाजनीति, राजनीति तथा धर्मनीति युधिष्ठिर और [[भीष्म]] के संवाद के रूप में प्रस्तुत की गयी है। युधिष्ठिर भाला चलाने में निपुण थे। उनके [[पिता]] ने [[यक्ष]] बनकर सरोवर पर उनकी परीक्षा भी ली थी। महाभारत युद्ध में धर्मराज युधिष्ठिर सात [[अक्षौहिणी]] सेना के स्वामी होकर [[कौरव|कौरवों]] के साथ युद्ध करने को तैयार हुए थे, जबकि परम क्रोधी [[दुर्योधन]] ग्यारह अक्षौहिणी सेना का स्वामी बना था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[युधिष्ठिर]], [[महाभारत]], [[अक्षौहिणी]]
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| {[[भीष्म|पितामह भीष्म]] का वास्तविक नाम क्या था?
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| |type="()"}
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| -[[परीक्षित]]
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| -[[संकर्षण]]
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| -[[शांतनु]]
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| +[[देवव्रत]]
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| ||[[चित्र:Bhishma1.jpg|right|100px|भीष्म की प्रतिज्ञा तुड़वाते श्रीकृष्ण]]पितामह भीष्म [[महाभारत]] के प्रमुख पात्र हैं। ये महाराजा [[शांतनु]] के पुत्र थे और इनका वास्तविक नाम '[[देवव्रत]]' था। अपने [[पिता]] को दिये गये वचन के कारण [[भीष्म]] ने आजीवन [[ब्रह्मचर्य]] का व्रत लिया था। इन्हें इच्छामृत्यु का वरदान प्राप्त था। महाभारत के युद्ध में भीष्म को [[कौरव]] पक्ष के प्रथम सेनानायक होने का गौरव प्राप्त हुआ था। [[कुरुक्षेत्र]] का युद्ध आरम्भ होने पर प्रधान सेनापति की हैसियत से भीष्म ने दस दिन तक घोर युद्ध किया। इसमें उन्होंने [[पाण्डव|पाण्डवों]] के बहुतेरे सेनापतियों और सैनिकों को मार गिराया था। इतने पर भी [[दुर्योधन]] उनसे कहा करता था कि पाण्डवों के साथ पक्षपात करने के कारण आप जी खोलकर युद्ध नहीं करते।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[भीष्म]]
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| {[[महर्षि व्यास]] निम्न में से किसके पुत्र थे?
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| |type="()"}
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| -[[माद्री]]
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| -[[कुंती]]
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| +[[सत्यवती]]
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| -[[अम्बालिका]]
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| ||[[चित्र:Vyasadeva-Sanjaya-Krishna.jpg|right|80px|संजय को दिव्यदृष्टि देते व्यास]]'सत्यवती' एक [[निषाद]] कन्या थी। [[हस्तिनापुर]] नरेश [[शांतनु]] से [[विवाह]] से पूर्व [[सत्यवती]] के [[पराशर|ऋषि पराशर]] से एक पुत्र उत्पन्न हुआ था, जिसका नाम '[[व्यास]]' था। [[व्यास]] साँवले रंग के थे तथा [[यमुना नदी]] के बीच स्थित एक [[द्वीप]] में उत्पन्न हुए थे। अतएव ये साँवले रंग के कारण 'कृष्ण' तथा जन्मस्थान के कारण 'द्वैपायन' कहलाये। [[सत्यवती]] ने बाद में राजा शान्तनु से विवाह किया, जिनसे उनके दो पुत्र हुए थे। इनमें बड़ा चित्रांगद एक युद्ध में मारा गया और छोटे पुत्र [[विचित्रवीर्य]] की मृत्यु संतानहीन हुई। इस कारण राजमाता सत्यवती [[हस्तिनापुर]] के उत्तराधिकारी के लिए चिंतित रहा करती थीं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[सत्यवती]], [[महर्षि व्यास]]
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| {[[पाण्डव|पाण्डवों]] ने अपनी राजधानी किसे बनाया था?
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| |type="()"}
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| +[[इन्द्रप्रस्थ]]
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| -[[हस्तिनापुर]]
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| -[[गान्धार]]
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| -[[कौशाम्बी]]
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| ||'इन्द्रप्रस्थ' अर्थात "इन्द्र की नगरी", [[प्राचीन भारत]] के पुरातन नगरों में से एक था, जो [[पांडव|पांडवों]] के राज्य [[हस्तिनापुर]] की राजधानी थी। आज इस क्षेत्र से तात्पर्य [[यमुना]] के किनारे [[दिल्ली]] में स्थित कुछ क्षेत्रों से लगाया जाता है। जब पांडवों के ज्येष्ठ भ्राता [[युधिष्ठिर]] को [[खांडवप्रस्थ]], जो हस्तिनापुर के उत्तर-पश्चिम में अवस्थित था, दिया गया, तब यह एक बंजर प्रदेश था। बाद में पांडवों ने इस स्थान पर [[मय दानव]] की सहायता से [[इन्द्रप्रस्थ]] नगरी को बसाया। [[अर्जुन]] ने मय दानव से युधिष्ठिर के लिए इन्द्रप्रस्थ में अनुपम सभा-भवन का निर्माण करने के लिय कहा था, जिसे मय दानव ने सिर झुकाकर स्वीकार किया। [[इन्द्रप्रस्थ]] अपने वैभव एवं समृद्धि की दृष्टि से [[मथुरा]] और [[द्वारका]] के समान प्रसिद्ध और समृद्ध था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[इन्द्रप्रस्थ]]
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| {निम्नलिखित में से किसे 'पांचाली' कहा जाता था?
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| |type="()"}
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| +[[द्रौपदी]]
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| -[[सुभद्रा]]
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| -[[उत्तरा]]
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| -इनमें से कोई नहीं
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| ||[[चित्र:Draupadi.jpg|right|100px|द्रौपदी ]]द्रौपदी [[पांचाल|पांचाल जनपद]] के [[द्रुपद|राजा द्रुपद]] की पुत्री थी। पांचाल पौराणिक [[सोलह महाजनपद|सोलह महाजनपदों]] में से एक था। [[द्रौपदी]] का जन्म द्रुपद के यहाँ सम्पन्न हुए एक यज्ञकुण्ड से हुआ था। अतः वह 'यज्ञसेनी' भी कहलाई। [[यज्ञ]] की [[अग्नि]] में से उत्पन्न होने के कारण ही वह कुछ क्रोधी स्वभाव की थी। द्रौपदी का [[विवाह]] [[कुंती]] के पुत्र पाँचों [[पाण्डव]] से हुआ था। पांडवों की पत्नी द्रौपदी को पांचाल की राजकुमारी होने के कारण ही "पांचाली" कहा गया था। स्वयंवर में [[अर्जुन]] ने द्रौपदी को जीत लिया था। जब वे भाइयों के साथ वापस घर आये तो कुंती से कहा कि "माँ हम भिक्षा ले आये"। इस पर कुंती ने कह दिया कि "पाँचों भाई आपस में बाँट लो"। इसीलिए द्रौपदी पाँचों पाण्डवों की पत्नी बनी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[द्रौपदी]]
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| {निम्नलिखित में से कौन-सा [[पाण्डव]] [[माद्री]] का पुत्र था?
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| |type="()"}
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| -[[भीम]]
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| -[[अर्जुन]]
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| +[[नकुल]]
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| -उपरोक्त में से कोई नहीं
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| ||नकुल [[महाभारत]] के मुख्य पात्रों में से एक थे। वे [[कुन्ती]] के नहीं अपितु [[माद्री]] के पुत्र थे। [[नकुल]] बहुत ही सुन्दर, रूपवान, धर्मशास्त्र, नीति तथा पशु-चिकित्सा में दक्ष थे। [[पाण्डव|पाण्डवों]] के [[अज्ञातवास]] के समय नकुल [[विराट]] के यहाँ 'ग्रंथिक' नाम से [[गाय]] चराने और घोड़ों की देखभाल का कार्य करते थे। [[द्रौपदी]] के अतिरिक्त इनकी स्त्री 'करेणुमती' [[चेदि जनपद|चेदि]] के राजा की कन्या थीं। 'निरमित्र' और 'शतानीक' नामक इनके दो पुत्र थे। नकुल को इस बात का अभिमान था कि एकमात्र मैं ही सबसे अधिक रूपवान हूँ। इसलिए स्वर्ग जाते समय वे मार्ग में ही धराशायी हो गए।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[नकुल]]
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| {निम्न नगरी में से किस एक का नाम 'मधुनगरी' भी था?
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| |type="()"}
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| -[[द्वारिका]]
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| +[[मथुरा]]
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| -[[पांचाल]]
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| -[[गोकुल]]
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| ||[[चित्र:Rath-Yatra-Rang-Ji-Temple-Vrindavan-Mathura-5.jpg|right|100px|रथ मेला, वृन्दावन, मथुरा]]मथुरा [[उत्तर प्रदेश]] राज्य का एक ऐतिहासिक एवं धार्मिक नगर है, जो पर्यटन स्थल के रूप में भी बहुत प्रसिद्ध है। [[मथुरा]] भगवान [[श्रीकृष्ण]] की जन्मस्थली और [[भारत]] की परम प्राचीन तथा जगद्-विख्यात नगरी है। पौराणिक साहित्य में मथुरा को अनेक नामों से संबोधित किया गया है, जैसे- '[[शूरसेन जनपद|शूरसेन नगरी]]', 'मधुपुरी', 'मधुनगरी', 'मधुरा' आदि। मथुरा जनपद [[उत्तर प्रदेश]] की पश्चिमी सीमा पर स्थित है। इसके पूर्व में [[एटा]], उत्तर में [[अलीगढ़]], दक्षिण-पूर्व में [[आगरा]], दक्षिण-पश्चिम में [[राजस्थान]] एवं पश्चिम-उत्तर में [[हरियाणा|हरियाणा राज्य]] स्थित हैं। [[मथुरा]], [[आगरा मण्डल]] का उत्तर-पश्चिमी ज़िला है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[मथुरा]]
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| {निम्नलिखित में से [[राधा]] किस [[गोप]] की पुत्री थीं?
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| |type="()"}
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| -[[नन्द]]
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| -[[वसुदेव]]
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| -[[उद्धव]]
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| +[[वृषभानु]]
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| ||[[चित्र:Radha-Krishna-1.jpg|right|80px|राधा-कृष्ण]][[राधा]] के [[पिता]] [[ब्रज]] के एक प्रतिष्ठित और प्रसिद्ध [[गोप]] थे। [[श्रीकृष्ण]] की विख्यात प्राणसखी और उपासिका राधा '[[वृषभानु]]' नामक गोप की पुत्री थीं। उन्हें कृष्ण की प्रेमिका और कहीं-कहीं पत्नी के रूप में माना जाता हैं। कृष्णभक्ति-काव्य में वृषभानु के चरित्र का गौण स्थान है। [[राधा]]-[[कृष्ण]] शाश्वत प्रेम का प्रतीक हैं। राधा की माता 'कीर्ति' के लिए 'वृषभानु पत्नी' शब्द का प्रयोग किया जाता है। राधा को कृष्ण की प्रेमिका और कहीं-कहीं पत्नी के रूप में माना जाता हैं। राधा को 'पद्मपुराण' में वृषभानु नाम के एक राजा की कन्या बताया है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[राधा]], [[वृषभानु]]
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| {[[श्रीकृष्ण]] ने [[कालिय नाग]] का दमन किस स्थान पर किया था?
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| |type="()"}
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| -[[ब्रह्माण्ड घाट महावन|ब्रह्माण्डघाट]]
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| -[[कंस टीला मथुरा|कंस टीला]]
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| +[[कालियदह]]
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| -[[निधिवन वृन्दावन|निधिवन]]
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| ||[[चित्र:Kaliya-Mardan-krishna.jpg|right|100px|फन पर नृत्यरत कृष्ण]]सनातन धर्म के अनुसार भगवान [[विष्णु]] सर्वपापहारी पवित्र और समस्त मनुष्यों को भोग तथा मोक्ष प्रदान करने वाले प्रमुख [[देवता]] हैं। [[श्रीकृष्ण]] इन्हीं का [[अवतार]] माने जाते हैं। जब कालिया नाग [[मथुरा]] में [[यमुना नदी]] के अन्दर अपने परिवार सहित आकर निवास करने लगा, तब यमुना का पानी जहरीला होने लगा, जिसे पीकर पशु आदि मरने लगे। श्रीकृष्ण ने सखाओं के साथ खेलते समय गेंद जानबूझकर यमुना में फेंक दी और स्वयं भी यमुना में कूद पड़े। [[श्रीकृष्ण]] ने कालिया नाग का '[[कालियदह]]' स्थान पर दमन किया। इस स्थान के निकट ही 'केलि-कदम्ब' है, जिस पर चढ़कर श्रीकृष्ण कालीयदह में बड़े वेग से कूदे थे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[कालियदह]], [[श्रीकृष्ण]]
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| {निम्नलिखित में से कौन दासी पुत्र थे? | | {निम्नलिखित में से कौन दासी पुत्र थे? |
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