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| <quiz display=simple> | | <quiz display=simple> |
| {निम्न में से कौन [[लक्ष्मण]] एवं [[शत्रुघ्न]] की [[माता]] थीं?
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| +[[सुमित्रा]]
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| -[[कौशल्या]]
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| -[[कैकेयी]]
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| -इनमें से कोई नहीं
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| ||'सुमित्रा' [[रामायण]] की प्रमुख पात्र और राजा [[दशरथ]] की तीन महारानियों में से एक हैं। सुमित्रा [[अयोध्या]] के राजा दशरथ की पत्नी तथा [[लक्ष्मण]] एवं [[शत्रुघ्न]] की माता थीं। महारानी [[कौशल्या]] पट्टमहिषी थीं। महारानी [[कैकेयी]] महाराज को सर्वाधिक प्रिय थीं और शेष में सुमित्रा जी ही प्रधान थीं। महाराज दशरथ प्राय: कैकेयी के महल में ही रहा करते थे। सुमित्रा महारानी कौशल्या के सन्निकट रहना तथा उनकी सेवा करना ही अपना [[धर्म]] समझती थीं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[सुमित्रा]]
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| {निम्न में से [[इन्द्र]] के विमान का नाम क्या है?
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| |type="()"}
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| -पाञ्जन्य
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| -[[ऐरावत]]
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| -पवनहंस
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| +[[पुष्पक विमान|पुष्पक]]
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| ||'पुष्पक विमान' का उल्लेख [[रामायण]] में मिलता है, जिसमें बैठकर [[रावण]] ने [[सीता]] हरण किया था। रामायण में वर्णित है कि युद्ध के बाद [[श्रीराम]], [[सीता]], [[लक्ष्मण]] तथा अन्य लोगों के साथ दक्षिण में स्थित [[लंका]] से [[अयोध्या]] '[[पुष्पक विमान]]' द्वारा ही आये थे। पुष्पक विमान रावण ने अपने भाई [[कुबेर]] से बलपूर्वक हासिल किया था। मान्यता है कि पुष्पक विमान का प्रारुप एवं निर्माण विधि [[अंगिरा|ब्रह्मर्षि अंगिरा]] ने बनायी और निर्माण एवं साज-सज्जा भगवान [[विश्वकर्मा]] द्वारा की गयी थी। इसी से वह 'शिल्पी' कहलाये थे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[पुष्पक विमान]]
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| {[[समुद्र मंथन]] से क्या प्राप्त नहीं हुआ था?
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| |type="()"}
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| -[[ऐरावत]]
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| -[[कामधेनु]]
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| -[[पारिजात]]
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| +सिमंतक मणि
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| {[[श्रीराम]] द्वारा परित्याग कर देने के बाद गर्भवती [[सीता]] किसके [[आश्रम]] में रही थीं?
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| |type="()"}
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| -[[विश्वामित्र]]
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| -[[वसिष्ठ]]
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| +[[वाल्मीकि]]
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| -[[तुलसीदास]]
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| ||[[संस्कृत]] भाषा के आदि कवि और आदि काव्य '[[रामायण]]' के रचयिता के रूप में [[वाल्मीकि]] की प्रसिद्धि है। इनके [[पिता]] महर्षि [[कश्यप]] के पुत्र [[वरुण देवता|वरुण]] या [[आदित्य देवता|आदित्य]] थे। [[उपनिषद]] के विवरण के अनुसार ये भी अपने भाई [[भृगु]] की भांति परम ज्ञानी थे। वनवास के समय भगवान श्री [[राम]] ने स्वयं इन्हें दर्शन देकर कृतार्थ किया। जब [[सीता]] जी का राम ने त्याग कर दिया, तब सीता ने अपने वनवास का अन्तिम काल इनके आश्रम पर व्यतीत किया। महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में ही [[लव कुश|लव]] और [[लवकुश|कुश]] का जन्म हुआ। वाल्मीकि जी ने उन्हें [[रामायण]] का गान सिखाया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें- [[वाल्मीकि]]
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| {[[श्लोक]] शब्द का अर्थ क्या होता है?
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| |type="()"}
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| -गीत
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| -[[छंद]]
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| -पंक्ति
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| +दुःख
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| {[[रामायण]] के अनुसार [[हनुमान]] कितनी बार [[लंका]] गये थे?
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| |type="()"}
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| -एक बार
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| -दो बार
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| +तीन बार
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| -चार बार
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| {[[राम]] ने [[लंका]] में अपना दूत किसे बनाकर भेजा था?
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| |type="()"}
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| -[[हनुमान]]
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| -[[सुग्रीव]]
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| +[[अंगद (बाली पुत्र)|अंगद]]
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| -[[विभीषण]]
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| ||अंगद [[बालि]] के पुत्र थे। वानरराज [[बालि]] इनसे सर्वाधिक प्रेम करता था। [[अंगद (बाली पुत्र)|अंगद]] परम बुद्धिमान, अपने [[पिता]] के समान बलशाली तथा भगवान [[श्रीराम]] के परम [[भक्त]] थे। भगवान श्रीराम का अंगद के शौर्य और बुद्धिमत्ता पर पूर्ण विश्वास था, इसीलिये उन्होंने [[रावण]] की सभा में युवराज अंगद को अपना दूत बनाकर भेजा। रावण भी नीतिज्ञ था और उसने भेदनीति से काम लेते हुए अंगद से कहा- "बाली मेरा मित्र था। ये [[राम]]-[[लक्ष्मण]] बाली को मारने वाले हैं। यह बड़ी लज्जा की बात है कि तुम अपने पितृघातियों के लिये दूतकर्म कर रहे हो।" किंतु रावण की इन सब बातों से अंगद विचलित नहीं हुए और उसके बहकावे में नहीं आये।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें- [[अंगद (बाली पुत्र)|अंगद]]
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| {[[हनुमान]] किसके पेट के भीतर जाकर वापस आ गये थे?
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| |type="()"}
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| -[[ताड़का]]
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| +सुरसा
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| -[[पूतना]]
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| -[[शूर्पणखा]]
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| {[[बालि]] की पत्नी का नाम क्या था?
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| |type="()"}
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| +[[तारा (बालि की पत्नी)|तारा]]
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| -[[राधा]]
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| -[[मंदोदरी]]
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| -विपाशा
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| {सर्गों की गणना करने पर सम्पूर्ण [[रामायण]] में कितने सर्ग मिलते हैं?
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| |type="()"}
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| -621
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| -651
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| +645
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| -655
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| ||[[चित्र:Ramayana.jpg|right|100px|राम, लक्ष्मण तथा सीता]][[रामायण]] [[कवि]] [[वाल्मीकि]] द्वारा लिखा गया [[संस्कृत]] का एक अनुपम [[महाकाव्य]] है। इसके 24,000 [[श्लोक]] [[हिन्दू]] स्मृति का वह अंग हैं, जिसके माध्यम से [[रघुवंश]] के राजा [[राम]] की गाथा कही गयी है। रामायण के कुल सात अध्याय हैं, इस प्रकार सात काण्डों में महर्षि वाल्मीकि ने रामायण को निबद्ध किया है। इन सात काण्डों में कथित सर्गों की गणना करने पर सम्पूर्ण रामायण में 645 सर्ग मिलते हैं। सर्गानुसार श्लोकों की संख्या 23,440 आती है, जो 24,000 से 560 [[श्लोक]] कम है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[रामायण]]
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| {[[राम]] और [[लक्ष्मण]] को आश्रमों की रक्षा करने के लिए वन में कौन-से ब्रह्मऋषि ले गये थे? | | {[[राम]] और [[लक्ष्मण]] को आश्रमों की रक्षा करने के लिए वन में कौन-से ब्रह्मऋषि ले गये थे? |
| |type="()"} | | |type="()"} |
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| -[[भरत]] | | -[[भरत]] |
| +[[शत्रुघ्न]] | | +[[शत्रुघ्न]] |
| ||[[चित्र:Madan-Mohan-Temple-4.jpg|right|100px|मदन मोहन मन्दिर, वृन्दावन]][[अयोध्या]] के [[राजा दशरथ]] के पुत्र [[शत्रुघ्न]] का शौर्य भी अनुपम था। वनवास के बाद एक दिन [[ऋषि|ऋषियों]] ने भगवान [[श्रीराम]] की सभा में उपस्थित होकर [[लवणासुर]] के अत्याचारों का वर्णन किया और उसका वध करके उसके अत्याचारों से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना की। [[शत्रुघ्न]] ने भगवान श्रीराम की आज्ञा से वहाँ जाकर प्रबल पराक्रमी लवणासुर का वध किया और 'मधुरापुरी', आधुनिक [[मथुरा]], को बसाकर वहाँ बहुत दिनों तक शासन किया। भगवान राम के परमधाम पधारने के समय मथुरा में अपने पुत्रों का राज्यभिषेक करके शत्रुघ्न [[अयोध्या]] पहुँच गये।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[शत्रुघ्न]] | | ||[[चित्र:Madan-Mohan-Temple-4.jpg|right|90px|मदन मोहन मन्दिर, वृन्दावन]][[अयोध्या]] के [[राजा दशरथ]] के पुत्र [[शत्रुघ्न]] का शौर्य भी अनुपम था। वनवास के बाद एक दिन [[ऋषि|ऋषियों]] ने भगवान [[श्रीराम]] की सभा में उपस्थित होकर [[लवणासुर]] के अत्याचारों का वर्णन किया और उसका वध करके उसके अत्याचारों से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना की। [[शत्रुघ्न]] ने भगवान श्रीराम की आज्ञा से वहाँ जाकर प्रबल पराक्रमी लवणासुर का वध किया और 'मधुरापुरी', आधुनिक [[मथुरा]], को बसाकर वहाँ बहुत दिनों तक शासन किया। भगवान राम के परमधाम पधारने के समय मथुरा में अपने पुत्रों का राज्यभिषेक करके शत्रुघ्न [[अयोध्या]] पहुँच गये।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[शत्रुघ्न]] |
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| {[[हनुमान]] ने [[अशोक वाटिका]] में [[सीता]] को किस वृक्ष के नीचे बैठा देखा? | | {[[हनुमान]] ने [[अशोक वाटिका]] में [[सीता]] को किस वृक्ष के नीचे बैठा देखा? |
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| -[[अशोक वृक्ष|अशोक]] | | -[[अशोक वृक्ष|अशोक]] |
| -[[पीपल]] | | -[[पीपल]] |
| | ||[[चित्र:Marriage.jpg|right|100px|राम-सीता विवाह]][[जनक|राजा जनक]] की पुत्री का नाम [[सीता]] इसलिए था कि वे जनक को हल कर्षित रेखाभूमि से प्राप्त हुई थीं। उनका [[विवाह]] [[दशरथ]] के पुत्र और [[अयोध्या]] के ज्येष्ठ राजकुमार [[राम]] से हुआ था। '[[अशोक वाटिका]]' प्राचीन राजाओं के भवन के समीप की विशेष वाटिका कहलाती थी। '[[वाल्मीकि रामायण]]' के अनुसार अशोक वाटिका [[लंका]] में स्थित एक सुंदर उद्यान था, जिसमें [[रावण]] ने [[सीता]] को बंदी बनाकर रखा था 'अरण्यकाण्ड' से ज्ञात होता है कि रावण पहले सीता को अपने राजप्रासाद में लाया था और वहीं रखना चाहता था, किंतु सीता की अडिगता तथा अपने प्रति उसका तिरस्कारभाव देखकर रावण ने उन्हें धीरे-धीरे मना लेने के विचार से प्रासाद से कुछ दूर अशोक वाटिका में एक वृक्ष के नीचे क़ैद कर दिया था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[अशोक वाटिका]] |
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| {[[मेघनाद]] का दूसरा नाम क्या था? | | {[[मेघनाद]] का दूसरा नाम क्या था? |
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| +[[इन्द्रजित]] | | +[[इन्द्रजित]] |
| -दशानन | | -दशानन |
| ||'मेघनाद' [[लंका]] के राजा [[रावण]] का बेटा था। मेघनाद ने युवास्था में ही दैत्यों के गुरु [[शुक्राचार्य]] की सहायता से 'सप्तयज्ञ' किए और [[शिव]] के आशीर्वाद से रथ, दिव्यास्त्र और तामसी माया प्राप्त की थी। उसने [[राम]] की सेना से मायावी युद्ध किया था। कभी वह अंतर्धान हो जाता तो कभी प्रकट हो जाता। [[विभीषण]] प्रज्ञास्त्र द्वारा उन दोनों को होश में लाया तथा वानर राज [[सुग्रीव]] ने अभिमन्त्रित विशल्या नामक औषधि से उन्हें स्वस्थ किया। [[मेघनाद]] को 'इन्द्रजित' कहकर भी पुकारा जाता था, क्योंकि उसने युद्ध में देवराज [[इन्द्र]] को भी पराजित किया था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें- [[इन्द्रजित]] | | ||'मेघनाद' अथवा 'इन्द्रजित' [[लंका]] के राजा [[रावण]] का पुत्र था। जब [[मेघनाद]] का जन्म हुआ था तो वह मेघ गर्जन के समान ज़ोर से रोया, इसी से उसका नाम 'मेघनाद' रखा गया। उसने युवास्था में ही [[दैत्य|दैत्यों]] के गुरु [[शुक्राचार्य]] की सहायता से 'सप्तयज्ञ' किए और भगवान [[शिव]] के आशीर्वाद से रथ, दिव्यास्त्र और तामसी माया प्राप्त की थी। [[इन्द्रजित]] ने [[राम]] की सेना से मायावी युद्ध किया था। कभी वह अंतर्धान हो जाता तो कभी प्रकट हो जाता। मेघनाद विशाल भयानक [[वट|वटवृक्ष]] के पास भूतों को बलि देकर युद्ध में जाता था, इसी से वह अदृश्य होकर युद्ध कर सकने में समर्थ था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें- [[इन्द्रजित]] |
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