"भागीरथी नदी": अवतरणों में अंतर
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भागीरथी [[भारत]] की एक नदी है जो [[उत्तरांचल]] में से बहती है। [[पुराण|पौराणिक]] गाथाओं के अनुसार भागीरथी गंगा की उस शाखा को कहते हैं जो [[गढ़वाल]] ([[उत्तर प्रदेश]]) में [[गंगोत्री]] से निकलकर [[देवप्रयाग]] में [[अलकनंदा]] में मिल जाती है व [[गंगा नदी|गंगा]] का नाम प्राप्त करती है। | '''भागीरथी''' [[भारत]] की एक नदी है जो [[उत्तरांचल]] में से बहती है। भागीरथी नदी, [[पश्चिम बंगाल]] राज्य, पूर्वोत्तर भारत, [[गंगा नदी]] के [[डेल्टा]] की पश्चिमी सीमा का निर्माण करती है। गंगा की एक सहायक भागीरथी जंगीपुर के ठीक पूर्वोत्तर में इससे अलग होती है और 190 किमी के प्रवाह के बाद नबद्वीप में जलांगी से मिलकर [[हुगली नदी]] बनाती है। [[पुराण|पौराणिक]] गाथाओं के अनुसार भागीरथी गंगा की उस शाखा को कहते हैं जो [[गढ़वाल]] ([[उत्तर प्रदेश]]) में [[गंगोत्री]] से निकलकर [[देवप्रयाग]] में [[अलकनंदा]] में मिल जाती है व [[गंगा नदी|गंगा]] का नाम प्राप्त करती है। | ||
गंगा का एक नाम जिसका संबंध महाराज [[भागीरथ]] से है। महाभारत में भी भागीरथी गंगा का वर्णन [[पांडव|पांडवों]] की तीर्थयात्रा के प्रसंग में हैं और [[बदरीनाथ]] का वर्णन भी है। | गंगा का एक नाम जिसका संबंध महाराज [[भागीरथ]] से है। महाभारत में भी भागीरथी गंगा का वर्णन [[पांडव|पांडवों]] की तीर्थयात्रा के प्रसंग में हैं और [[बदरीनाथ]] का वर्णन भी है। | ||
<blockquote>तत्रापश्यत् धर्मात्मा देव देवर्षिपूजितम्, नरनारायण-स्थानं भागीरथ्योपशोभितम्'</blockquote> | <blockquote>तत्रापश्यत् धर्मात्मा देव देवर्षिपूजितम्, नरनारायण-स्थानं भागीरथ्योपशोभितम्'</blockquote> | ||
==स्थिति== | ==स्थिति== | ||
भागीरथी [[गोमुख]] स्थान से 25 कि.मी. लम्बे गंगोत्री हिमनद से निकलती है। यह समुद्रतल से 618 मीटर की ऊँचाई पर, [[ | भागीरथी [[गोमुख]] स्थान से 25 कि.मी. लम्बे गंगोत्री [[हिमनद]] से निकलती है। यह समुद्रतल से 618 मीटर की ऊँचाई पर, [[ऋषिकेश]] से 70 किमी दूरी पर स्थित हैं। | ||
==टिहरी बाँध== | |||
[[चित्र:Devprayag-Bhagirathi-River.jpg|thumb|250px|[[अलकनंदा नदी|अलकनंदा]] और भागीरथी का संगम, [[देवप्रयाग]], [[उत्तराखंड]]]] | |||
भारत में टिहरी बाँध, टेहरी विकास परियोजना का एक प्राथमिक बाँध है, जो [[उत्तराखण्ड]] राज्य के टिहरी में स्थित है। यह बाँध भागीरथी नदी पर बनाया गया है। टिहरी बाँध की ऊँचाई 261 मीटर है, जो इसे विश्व का पाँचवा सबसे ऊँचा बाँध बनाती है। इस बाँध से 2400 मेगा वाट [[विद्युत]] उत्पादन, 270,000 हेक्टर क्षेत्र की सिंचाई और प्रतिदिन 102.20 करोड़ लीटर पेयजल [[दिल्ली]], [[उत्तर प्रदेश]] एवँ उत्तराखण्ड को उपलब्ध कराया जाना प्रस्तावित किया गया है। | |||
==इतिहास== | |||
16वीं शताब्दी तक भागीरथी में गंगा का मूल प्रवाह के बाद नबद्वीप में जलांगी से मिलकर हुगली नदी बनाती है। 16वीं शताब्दी तक भागीरथी में गंगा का मूल प्रवाह था, लेकिन इसके बाद गंगा का मुख्य बहाव पूर्व की ओर पद्मा में स्थानांतरित हो गया। इसके तट पर कभी बंगाल की राजधानी रहे [[मुर्शिदाबाद]] सहित बंगाल के कई महत्त्वपूर्ण मध्यकालीन नगर बसे। [[भारत]] में गंगा पर फ़रक्का बांध बनाया गया, ताकि गंगा-[[पद्मा नदी]] का कुछ पानी अपक्षय होती भागीरथी-हुगली नदी की ओर मोड़ा जा सके, जिस पर कलकत्ता (वर्तमान [[कोलकाता]]) पोर्ट कमिश्नर के कलकत्ता और हल्दिया बंदरगाह स्थित हैं। भागीरथी पर बहरामपुर में एक पुल बना है। | |||
==देवप्रयाग में भागीरथी व अलकनंदा का संगम== | ==देवप्रयाग में भागीरथी व अलकनंदा का संगम== | ||
==== | ====भागीरथी का देवप्रयाग पहुँचना==== | ||
गंगोत्री से निकली भागीरथी मार्ग में अनेक छोटी-बड़ी नदियों को अपने में समेटती हुई जब देवप्रयाग पहुँचती है तो बहुत | गंगोत्री से निकली भागीरथी मार्ग में अनेक छोटी-बड़ी नदियों को अपने में समेटती हुई जब देवप्रयाग पहुँचती है तो बहुत तेज़ गति से बहती है। लहरें उफन-उफन कर एक दूसरे से टकराती हैं। तूफ़ानी शोर के साथ भागीरथी का शुद्ध जल यहाँ बड़ी वेग से बहता हुआ श्वेत झाग सा बनाता है। भागीरथी यहाँ वास्तव में भागती हुई प्रतीत होती है। तेज़ीसे दौड़ती-भागती, कूदती उफनती नदी, बहुत वेग, बहुत तेज़ीसे अठखेलियाँ करती भागीरथी बहुत शानदार भव्य दृश्य प्रस्तुत करती है। | ||
[[चित्र:Bhagirathi-River-Gamukh.jpg|thumb|250px|भागीरथी के पास गोमुख]] | |||
====अलकनंदा==== | |||
पहाड़ों के एक ओर तेज़ वेग से भागती दौड़ती भागीरथी चली आ रही है तो दूसरी ओर शांत अलकनंदा चली आ रही है जो कि शांत, शीतल, मंद-मंद गति और निरंतर गतिशील होकर बहती हुई भागीरथी में मिल जाती है। | |||
==== | ====संगम==== | ||
देवप्रयाग में परस्पर मिलने से ठीक पहले भागीरथी अपनी तेज़ गति व तूफ़ानी अंदाज़में अलकनंदा की ओर लपकती हैं। अलकनंदा भी भागीरथी की ओर मुड़ने से पहले रुक जाती है। आगे चलकर अलकनंदा भागीरथी में मिल जाती है। बड़ी सहजता व सरलता से दोनों नदियाँ आपस में मिल जाती है। ऊपरी तौर पर ऐसा लगता है कि दोनों ओर से आती नदियाँ मिलकर एक नदी बनती प्रतीत होती है। इस संगम से ही भागीरथी अपना नाम यहाँ खो देती है और यहाँ पर यह गंगा नदी बन जाती है। | |||
देवप्रयाग में परस्पर मिलने से ठीक पहले भागीरथी अपनी | |||
==कथा== | ==कथा== | ||
भागीरथी नदी के सम्बन्ध में एक कथा विश्वविख्यात है। भागीरथ की तपस्या के | भागीरथी नदी के सम्बन्ध में एक कथा विश्वविख्यात है। भागीरथ की तपस्या के फलस्वरूप गंगा के अवतरण की कथा <ref>वाल्मीकि बालकाण्ड 38 से 44 अध्याय तक</ref> है। कथा के अंत में गंगा के भागीरथी नाम का उल्लेख है-<ref>बालकाण्ड44,6</ref> | ||
<blockquote>गंगा त्रिपथगा नाम दिव्या भागीरथीति च त्रीन्पथो भावयन्तीति तस्मान् त्रिपथगा स्मृता</blockquote> | <blockquote>गंगा त्रिपथगा नाम दिव्या भागीरथीति च त्रीन्पथो भावयन्तीति तस्मान् त्रिपथगा स्मृता</blockquote> | ||
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*सुमति- सुमति के गर्भ से एक तूंबा निकला जिसके फटने पर साठ हज़ार पुत्रों का जन्म हुआ। | *सुमति- सुमति के गर्भ से एक तूंबा निकला जिसके फटने पर साठ हज़ार पुत्रों का जन्म हुआ। | ||
*केशिनी- जिसके [[असमंजस]] नामक पुत्र हुआ। | *केशिनी- जिसके [[असमंजस]] नामक पुत्र हुआ। | ||
[[चित्र:Bhageerathi-River-8.jpg|thumb|250px|भागीरथी नदी|right]] | |||
सगर ने [[अश्वमेध यज्ञ]] किया। [[इन्द्र]] ने उसके यज्ञ का घोड़ा चुरा लिया तथा तपस्वी [[कपिल मुनि|कपिल]] के पास ले जाकर खड़ा किया। उधर सगर ने सुमति के पुत्रों को घोड़ा ढूंढ़ने के लिए भेजा। साठ हज़ार राजकुमारों को कहीं घोड़ा नहीं मिला तो उन्होंने सब ओर से पृथ्वी खोद डाली। पूर्व-उत्तर दिशा में [[कपिल मुनि|कपिल]] मुनि के पास घोड़ा देखकर उन्होंने शस्त्र उठाये और मुनि को बुरा-भला कहते हुए उधर बढ़े। फलस्वरूप उनके अपने ही शरीरों से आग निकली जिसने उन्हें भस्म कर दिया। केशिनी के पुत्र का नाम असमंजस तथा असमंजस के पुत्र का नाम [[अंशुमान]] था। असमंजस पूर्वजन्म में योगभ्रष्ट हो गया था, उसकी स्मृति खोयी नहीं थी, अत: वह सबसे विरक्त रह विचित्र कार्य करता रहा था। एक बार उसने बच्चों को [[सरयू नदी|सरयू]] में डाल दिया। पिता ने रुष्ट होकर उसे त्याग दिया। उसने अपने योगबल से बच्चों को जीवित कर दिया तथा स्वयं वन चला गया। यह देखकर सबको बहुत पश्चात्ताप हुआ। राजा सगर ने अपने पौत्र अंशुमान को घोड़ा खोजने भेजा। वह ढूंढ़ता-ढूंढ़ता कपिल मुनि के पास पहुंचा। उनके चरणों में प्रणाम कर उसने विनयपूर्वक स्तुति की। कपिल से प्रसन्न होकर उसे घोड़ा दे दिया तथा कहा कि भस्म हुए चाचाओं का उद्धार गंगाजल से होगा। अंशुमान ने जीवनपर्यंत तपस्या की किंतु वह गंगा को पृथ्वी पर नहीं ला पाया। तदनंतर उसके पुत्र [[दिलीप]] ने भी असफल तपस्या की। दिलीप के पुत्र [[भगीरथ]] के तप से प्रसन्न होकर गंगा ने पृथ्वी पर आना स्वीकार किया। गंगा के वेग को [[शिव]] ने अपनी जटाओं में संभाला। भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर गंगा समुद्र तक पहुंची। भागीरथ के द्वारा गंगा को पृथ्वी पर लाने के कारण यह भागीरथी कहलाई। समुद्र-संगम पर पहुंचकर उसने सगर के पुत्रों का उद्धार किया।<ref>[[श्रीमद्भागवत]], नवम स्कंध, अध्याय 8,9।1-15/ [[शिव पुराण]], 4।3।</ref> | |||
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक2|माध्यमिक=|पूर्णता=|शोध=}} | |||
==टीका टिप्पणी== | ==वीथिका== | ||
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चित्र:Bhagirathi-River-2.jpg|भागीरथी संगम | |||
चित्र:Bhagirathi-River-at-Gangotri.jpg|भागीरथी नदी-[[गंगोत्री]] में | |||
चित्र:Bhagirathi-River.jpg|भागीरथी नदी | |||
चित्र:Bhagirathi-River-7.jpg|भागीरथी नदी | |||
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | |||
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==संबंधित लेख== | |||
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08:23, 10 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण
भागीरथी भारत की एक नदी है जो उत्तरांचल में से बहती है। भागीरथी नदी, पश्चिम बंगाल राज्य, पूर्वोत्तर भारत, गंगा नदी के डेल्टा की पश्चिमी सीमा का निर्माण करती है। गंगा की एक सहायक भागीरथी जंगीपुर के ठीक पूर्वोत्तर में इससे अलग होती है और 190 किमी के प्रवाह के बाद नबद्वीप में जलांगी से मिलकर हुगली नदी बनाती है। पौराणिक गाथाओं के अनुसार भागीरथी गंगा की उस शाखा को कहते हैं जो गढ़वाल (उत्तर प्रदेश) में गंगोत्री से निकलकर देवप्रयाग में अलकनंदा में मिल जाती है व गंगा का नाम प्राप्त करती है।
गंगा का एक नाम जिसका संबंध महाराज भागीरथ से है। महाभारत में भी भागीरथी गंगा का वर्णन पांडवों की तीर्थयात्रा के प्रसंग में हैं और बदरीनाथ का वर्णन भी है।
तत्रापश्यत् धर्मात्मा देव देवर्षिपूजितम्, नरनारायण-स्थानं भागीरथ्योपशोभितम्'
स्थिति
भागीरथी गोमुख स्थान से 25 कि.मी. लम्बे गंगोत्री हिमनद से निकलती है। यह समुद्रतल से 618 मीटर की ऊँचाई पर, ऋषिकेश से 70 किमी दूरी पर स्थित हैं।
टिहरी बाँध
भारत में टिहरी बाँध, टेहरी विकास परियोजना का एक प्राथमिक बाँध है, जो उत्तराखण्ड राज्य के टिहरी में स्थित है। यह बाँध भागीरथी नदी पर बनाया गया है। टिहरी बाँध की ऊँचाई 261 मीटर है, जो इसे विश्व का पाँचवा सबसे ऊँचा बाँध बनाती है। इस बाँध से 2400 मेगा वाट विद्युत उत्पादन, 270,000 हेक्टर क्षेत्र की सिंचाई और प्रतिदिन 102.20 करोड़ लीटर पेयजल दिल्ली, उत्तर प्रदेश एवँ उत्तराखण्ड को उपलब्ध कराया जाना प्रस्तावित किया गया है।
इतिहास
16वीं शताब्दी तक भागीरथी में गंगा का मूल प्रवाह के बाद नबद्वीप में जलांगी से मिलकर हुगली नदी बनाती है। 16वीं शताब्दी तक भागीरथी में गंगा का मूल प्रवाह था, लेकिन इसके बाद गंगा का मुख्य बहाव पूर्व की ओर पद्मा में स्थानांतरित हो गया। इसके तट पर कभी बंगाल की राजधानी रहे मुर्शिदाबाद सहित बंगाल के कई महत्त्वपूर्ण मध्यकालीन नगर बसे। भारत में गंगा पर फ़रक्का बांध बनाया गया, ताकि गंगा-पद्मा नदी का कुछ पानी अपक्षय होती भागीरथी-हुगली नदी की ओर मोड़ा जा सके, जिस पर कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) पोर्ट कमिश्नर के कलकत्ता और हल्दिया बंदरगाह स्थित हैं। भागीरथी पर बहरामपुर में एक पुल बना है।
देवप्रयाग में भागीरथी व अलकनंदा का संगम
भागीरथी का देवप्रयाग पहुँचना
गंगोत्री से निकली भागीरथी मार्ग में अनेक छोटी-बड़ी नदियों को अपने में समेटती हुई जब देवप्रयाग पहुँचती है तो बहुत तेज़ गति से बहती है। लहरें उफन-उफन कर एक दूसरे से टकराती हैं। तूफ़ानी शोर के साथ भागीरथी का शुद्ध जल यहाँ बड़ी वेग से बहता हुआ श्वेत झाग सा बनाता है। भागीरथी यहाँ वास्तव में भागती हुई प्रतीत होती है। तेज़ीसे दौड़ती-भागती, कूदती उफनती नदी, बहुत वेग, बहुत तेज़ीसे अठखेलियाँ करती भागीरथी बहुत शानदार भव्य दृश्य प्रस्तुत करती है।
अलकनंदा
पहाड़ों के एक ओर तेज़ वेग से भागती दौड़ती भागीरथी चली आ रही है तो दूसरी ओर शांत अलकनंदा चली आ रही है जो कि शांत, शीतल, मंद-मंद गति और निरंतर गतिशील होकर बहती हुई भागीरथी में मिल जाती है।
संगम
देवप्रयाग में परस्पर मिलने से ठीक पहले भागीरथी अपनी तेज़ गति व तूफ़ानी अंदाज़में अलकनंदा की ओर लपकती हैं। अलकनंदा भी भागीरथी की ओर मुड़ने से पहले रुक जाती है। आगे चलकर अलकनंदा भागीरथी में मिल जाती है। बड़ी सहजता व सरलता से दोनों नदियाँ आपस में मिल जाती है। ऊपरी तौर पर ऐसा लगता है कि दोनों ओर से आती नदियाँ मिलकर एक नदी बनती प्रतीत होती है। इस संगम से ही भागीरथी अपना नाम यहाँ खो देती है और यहाँ पर यह गंगा नदी बन जाती है।
कथा
भागीरथी नदी के सम्बन्ध में एक कथा विश्वविख्यात है। भागीरथ की तपस्या के फलस्वरूप गंगा के अवतरण की कथा [1] है। कथा के अंत में गंगा के भागीरथी नाम का उल्लेख है-[2]
गंगा त्रिपथगा नाम दिव्या भागीरथीति च त्रीन्पथो भावयन्तीति तस्मान् त्रिपथगा स्मृता
रोहित के कुल में बाहुक का जन्म हुआ। शत्रुओं ने उसका राज्य छीन लिया। वह अपनी पत्नी सहित वन चला गया। वन में बुढ़ापे के कारण उसकी मृत्यु हो गयी। उसके गुरु ओर्व ने उसकी पत्नी को सती नहीं होने दिया क्योंकि वह जानता था कि वह गर्भवती है। उसकी सौतों को ज्ञात हुआ तो उन्होंने उसे विष दे दिया। विष का गर्भ पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। बालक विष (गर) के साथ ही उत्पन्न हुआ, इसलिए 'स+गर= सगर कहलाया। बड़ा होने पर उसका विवाह दो रानियों से हुआ-
- सुमति- सुमति के गर्भ से एक तूंबा निकला जिसके फटने पर साठ हज़ार पुत्रों का जन्म हुआ।
- केशिनी- जिसके असमंजस नामक पुत्र हुआ।
सगर ने अश्वमेध यज्ञ किया। इन्द्र ने उसके यज्ञ का घोड़ा चुरा लिया तथा तपस्वी कपिल के पास ले जाकर खड़ा किया। उधर सगर ने सुमति के पुत्रों को घोड़ा ढूंढ़ने के लिए भेजा। साठ हज़ार राजकुमारों को कहीं घोड़ा नहीं मिला तो उन्होंने सब ओर से पृथ्वी खोद डाली। पूर्व-उत्तर दिशा में कपिल मुनि के पास घोड़ा देखकर उन्होंने शस्त्र उठाये और मुनि को बुरा-भला कहते हुए उधर बढ़े। फलस्वरूप उनके अपने ही शरीरों से आग निकली जिसने उन्हें भस्म कर दिया। केशिनी के पुत्र का नाम असमंजस तथा असमंजस के पुत्र का नाम अंशुमान था। असमंजस पूर्वजन्म में योगभ्रष्ट हो गया था, उसकी स्मृति खोयी नहीं थी, अत: वह सबसे विरक्त रह विचित्र कार्य करता रहा था। एक बार उसने बच्चों को सरयू में डाल दिया। पिता ने रुष्ट होकर उसे त्याग दिया। उसने अपने योगबल से बच्चों को जीवित कर दिया तथा स्वयं वन चला गया। यह देखकर सबको बहुत पश्चात्ताप हुआ। राजा सगर ने अपने पौत्र अंशुमान को घोड़ा खोजने भेजा। वह ढूंढ़ता-ढूंढ़ता कपिल मुनि के पास पहुंचा। उनके चरणों में प्रणाम कर उसने विनयपूर्वक स्तुति की। कपिल से प्रसन्न होकर उसे घोड़ा दे दिया तथा कहा कि भस्म हुए चाचाओं का उद्धार गंगाजल से होगा। अंशुमान ने जीवनपर्यंत तपस्या की किंतु वह गंगा को पृथ्वी पर नहीं ला पाया। तदनंतर उसके पुत्र दिलीप ने भी असफल तपस्या की। दिलीप के पुत्र भगीरथ के तप से प्रसन्न होकर गंगा ने पृथ्वी पर आना स्वीकार किया। गंगा के वेग को शिव ने अपनी जटाओं में संभाला। भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर गंगा समुद्र तक पहुंची। भागीरथ के द्वारा गंगा को पृथ्वी पर लाने के कारण यह भागीरथी कहलाई। समुद्र-संगम पर पहुंचकर उसने सगर के पुत्रों का उद्धार किया।[3]
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वीथिका
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भागीरथी संगम
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भागीरथी नदी-गंगोत्री में
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भागीरथी नदी
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भागीरथी नदी
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ वाल्मीकि बालकाण्ड 38 से 44 अध्याय तक
- ↑ बालकाण्ड44,6
- ↑ श्रीमद्भागवत, नवम स्कंध, अध्याय 8,9।1-15/ शिव पुराण, 4।3।
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