"संजय गाँधी": अवतरणों में अंतर
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'''संजय गाँधी''' (जन्म: [[14 दिसम्बर]], 1946; मृत्यु: [[23 जून]], 1980) | {{सूचना बक्सा राजनीतिज्ञ | ||
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'''संजय गाँधी''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Sanjay Gandhi'', जन्म: [[14 दिसम्बर]], [[1946]]; मृत्यु: [[23 जून]], [[1980]]) भारतीय नेता थे। संजय गाँधी [[इंदिरा गाँधी]] के छोटे पुत्र थे। [[भारत]] में [[आपातकाल]] के समय उनकी भूमिका बहुत विवादास्पद रही। अल्पायु में ही एक हेलिकॉप्टर दुर्घटना में उनकी मौत हो गयी। [[मेनका गाँधी]] संजय गाँधी की पत्नी और [[वरुण गांधी]] संजय गाँधी के पुत्र हैं। | |||
==जीवन परिचय== | ==जीवन परिचय== | ||
भारतीय राजनीति में संजय गाँधी का नाम एक ऐसे युवा नेता के रूप में दर्ज है जिसकी वजह से देश की राजनीति में कई बड़े परिवर्तन हुए। | भारतीय राजनीति में संजय गाँधी का नाम एक ऐसे युवा नेता के रूप में दर्ज है जिसकी वजह से देश की राजनीति में कई बड़े परिवर्तन हुए। भारत की सबसे प्रभावी व्यक्तित्व वाली प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी और [[फ़िरोज़ गाँधी]] के पुत्र संजय गाँधी को एक ऐसे व्यक्तित्व के रूप में जाना जाता है जिसने भारत के लोकतंत्र को तानाशाही में बदल दिया था। अपनी तेज तर्रार शैली और दृढ निश्चयी सोच की वजह से देश की युवा की पसंद बने इस नेता के फैसलों के आगे कई बार तात्कालिक प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी को भी पीछे हटने को मजबूर कर दिया। आलोचकों के निशाने पर रहने के बावजूद उनके कई फैसलों को आज तक सराहा जाता है। [[14 दिसंबर]] [[1946]] को जन्मे संजय गाँधी ने 70 के दशक की भारतीय राजनीति में कई उदाहरण पेश किये जिसे आज तक याद किया जाता है। भारतीय राजनीति में तेज़ी से उभरे संजय गाँधी [[23 जून]] [[1980]] को एक हवाई दुर्घटना शिकार हो गए।<ref name="hndpf"/> | ||
====परिवार==== | ====परिवार==== | ||
देश के सबसे बड़े | देश के सबसे बड़े राजनीतिक घराने [[नेहरू-गाँधी परिवार वृक्ष|नेहरू गाँधी परिवार]] में जन्मे संजय गाँधी [[भारत]] के पूर्व प्रधानमंत्री [[राजीव गाँधी]] के छोटे भाई थे| कहा जाता है कि बचपन से ही अपने जिद्दी स्वाभाव की वजह से वह माता पिता के तमाम प्रयासों के वाबजूद पढाई में रुचि नहीं लेते थे। जिस वजह से संजय गाँधी को देश के मशहूर स्कूल दून कालेज छोड़ना पड़ा जबकि उनके बड़े भाई राजीव ने अपनी 12वीं तक की पढ़ाई वहीं पूरी की थी। हर काम को अपने अंदाज़में करने के आदी संजय गाँधी ने व्यक्तिगत जीवन के साथ साथ देश का भविष्य तय करने वाले कुछ ऐसे फैसले लिए जिनकी वजह से देश को विषम परिस्थितियों से गुजरना पड़ा।<ref name="hndpf"/> | ||
====आपातकाल के समय==== | ====आपातकाल के समय==== | ||
राजनीतिक विशेषज्ञों की माने तो [[1975]] के आपातकाल में संजय गाँधी ही ऐसी ताकत साबित हुए थे जिसने राष्ट्रीय [[कांग्रेस]] के अस्तित्व को बचने की हिम्मत दिखाई थी। 19 माह के आपातकाल से उभरने के बाद वर्ष [[1977]] के चुनाव में भले ही कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा, लेकिन उसके बाद संजय गाँधी और इंदिरा गाँधी को गिरफ्तार कर जेल भेजने की तैयारियां भी की गई। हालाँकि तात्कालिक सरकार ज्यादा दिनों तक सत्ता सुख नहीं भोग सकी और वर्ष [[1979]] के चुनाव ने कांग्रेस की सत्ता में वापसी करवा दी।<ref name="hndpf"/> | |||
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कहा जाता है कि एक समय ऐसा था जब संजय गाँधी अपनी | कहा जाता है कि एक समय ऐसा था जब संजय गाँधी अपनी माँ इंदिरा गाँधी के सामानांतर अपनी सरकार चलाया करते थे और उनके फैसलों के आगे इंदिरा गाँधी को भी झुकना पड़ता था। संजय गाँधी ने कांग्रेस के कुछ नेताओं और अधिकारियों की दम पर देश की आर्थिक नीतियों और प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी के फैसलों को प्रभावित करना शुरू कर दिया था। जिसका एक बहुत बड़ा उदाहरण परिवार नियोजन की पुरुष नसबंदी योजना और देश के आम आदमी की कार कहलाने वाली मारुति 800 को देश में लाने का श्रेय संजय गाँधी को ही जाता है।<ref name="hndpf">{{cite web |url=http://hindi.pardaphash.com/news/%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%9C%E0%A4%AF-%E0%A4%97%E0%A4%BE%E0%A4%81%E0%A4%A7%E0%A5%80-%E0%A4%95%E0%A5%80-32%E0%A4%B5%E0%A5%80%E0%A4%82-%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%A3%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%A5%E0%A4%BF-%E0%A4%AA%E0%A4%B0-%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B6%E0%A5%87%E0%A4%B7/708224.html |title=संजय गाँधी की 32वीं पुण्यतिथि पर विशेष |accessmonthday=15 जून |accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=हिंदी पर्दाफाश |language=हिंदी }}</ref> | ||
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आजाद भारत के इतिहास में संजय गांधी इकलौते ऐसे राजनेता हैं जिनके व्यक्तित्व और क्रियाकलापों के बारे में जानने की जिज्ञासा भारतीय जनमानस में अब भी है, लेकिन उनके बारे में ज्यादा लिखित सामग्री उपलब्ध नहीं है, लिहाजा उनके बारे में सबसे ज्यादा किवदंतियां सुनी जाती रही हैं। संजय गांधी खुद कहा करते थे कि उनकी रैलियों के दौरान किसी को भी पैसे देकर रैली में नहीं लाया जाता है बल्कि ये लोगों की मेरे बारे में जानने और मुझको देखने की जिज्ञासा से मेरी रैली में खिंचे चले आते हैं। आपातकाल के दौरान संजय गांधी के तानाशाही रवैये को लेकर | आजाद [[भारत]] के [[इतिहास]] में संजय गांधी इकलौते ऐसे राजनेता हैं जिनके व्यक्तित्व और क्रियाकलापों के बारे में जानने की जिज्ञासा भारतीय जनमानस में अब भी है, लेकिन उनके बारे में ज्यादा लिखित सामग्री उपलब्ध नहीं है, लिहाजा उनके बारे में सबसे ज्यादा किवदंतियां सुनी जाती रही हैं। संजय गांधी खुद कहा करते थे कि उनकी रैलियों के दौरान किसी को भी पैसे देकर रैली में नहीं लाया जाता है बल्कि ये लोगों की मेरे बारे में जानने और मुझको देखने की जिज्ञासा से मेरी रैली में खिंचे चले आते हैं। आपातकाल के दौरान संजय गांधी के तानाशाही रवैये को लेकर काफ़ी कुछ लिखा गया है, उनके दोस्तों और युवा कांग्रेस कार्यकर्ताओं की ज्यादतियों के बारे में भी सैकड़ों लेख लिखे गए, किताबें भी आईं। इस बात की भी काफ़ी चर्चा हुई कि संजय गांधी की महात्वाकांक्षा इंदिरा गांधी को लगातार कमज़ोर करती रही। संजय गांधी को भारत में कई लोकतांत्रिक संस्थाओं को खत्म करने या कमज़ोर करने का भी जिम्मेदार माना जाता है। आपातकाल, उस दौरान सरकारी कामकाज, इंदिरा गांधी के दांव पेंच आदि के बारे में राजनीतिक टिप्पणीकार इतने उलझ गए कि संजय गांधी की जीवनी या उनपर कोई मुक्कमल किताब लिखने के बारे में सोचा ही नहीं गया। अगर सोचा गया होता तो संजय गांधी पर लिखने के लिए बेहद श्रम करना होता क्योंकि उनके व्यक्तित्व के कई पहलू हैं और विश्लेषण के अनेक विंदु। संजय गांधी को भगवान ने बहुत छोटी सी उम्र दी लेकिन उस छोटी उम्र में ही संजय ने देश को हिलाकर रख दिया था।<ref name="visfot">{{cite web |url=http://visfot.com/index.php/current-affairs/8534-sanjay-gandhi-story.html |title=संजय गांधी की अनकही कहानी |accessmonthday=15 जून |accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=विस्फ़ोट डॉट कॉम |language=हिंदी }}</ref> | ||
==एकमात्र जीवनी== | ==एकमात्र जीवनी== | ||
अब तक संजय गांधी की एकमात्र जीवनी लिखी गई है जिसका नाम है –द संजय स्टोरी- और उसके लेखक हैं – वरिष्ठ पत्रकार विनोद | अब तक संजय गांधी की एकमात्र जीवनी लिखी गई है जिसका नाम है –द संजय स्टोरी- और उसके लेखक हैं – वरिष्ठ पत्रकार [[विनोद मेहता]]। यह जीवनी भी ना तो प्रामाणिक होने का दावा करती है और ना ही आधिकारिक। संजय गांधी की जीवनी में विनोद मेहता ने बेहद वस्तुनिष्ठता के साथ संजय गांधी के बहाने उस दौर को भी परिभाषित किया है। आपातकाल की ज्यादतियों के अलावा मारुति कार प्रोजेकट के घपलों पर तो विस्तार से लिखा है लेकिन साथ ही आपातकाल हटने पर सरकारी कामकाज में ढिलाई पर भी अपने चुटीले अंदाज़में वार किया है। वो लिखते हैं- जिस दिन [[21 मार्च]] को आपातकाल हटाई गई उस दिन राजधानी एक्सप्रेस चार घंटे की देरी से पहुंची। [[कानपुर]] में एल आई सी के कर्मचारियों ने लंच टाइम में मोर्चा निकाला, [[दिल्ली]] के प्रेस क्लब में मुक्केबाजी हुई, [[कलकत्ता]] में दो फैमिली प्लानिंग वैन जलाई गई, [[मुम्बई]] के शाम के अखबारों में डांस क्लासेस के विज्ञापन छपे, तस्करी कर लाई जाने वाली व्हिस्की की कीमत दस रुपए कम हो गई। देश में हालात सामान्य हो गए। व्यगंयात्मक शैली में ये कहते हुए विनोद आपातकाल के दौर में इन हालातों के ठीक होने की तस्दीक करते हैं। <br /> | ||
विनोद मेहता की किताबों में कई तथ्य पुराने हैं- जैसे दून स्कूल में ही संजय को कमलनाथ जैसा दोस्त मिला जो लगातार दो साल तक फेल हो चुका था। स्कूल से वापस आने के बाद संजय गांधी की दोस्तों के साथ मस्ती | [[विनोद मेहता]] की किताबों में कई तथ्य पुराने हैं- जैसे दून स्कूल में ही संजय को कमलनाथ जैसा दोस्त मिला जो लगातार दो साल तक फेल हो चुका था। स्कूल से वापस आने के बाद संजय गांधी की दोस्तों के साथ मस्ती काफ़ी बढ़ गई थी और विनोद मेहता ने बिल्कुल फिक्शन के अंदाज़में उसको लिखा है जिसकी वजह से रोचकता अपने चरम पर पहुंच जाती है। संजय गांधी की इस किताब में जो सबसे दिलचस्प अध्याय है वो है मारुति कार के बारे में देखे गए संजय के सपने के बारे में। मारुति- सन ऑफ द विंड गॉड में विनोद मेहता ने संजय गांधी की किसी भी कीमत पर अपनी मन की करने, किसी भी कीमत पर अपनी चाहत को हासिल करने की, उस हासिल करने के बीच में रोड़े अटकाने वाले को हाशिए पर पहुंचा देने की मनोवृत्ति का साफ तौर पर चित्रण किया है। संजय गांधी की बचपन से मशीनों और उपकरणों में ख़ास रुचि थी जिसे देखकर [[नेहरू जी]] कहा करते थे कि उनका नाती एक बेहतरीन इंजीनियर बनेगा।<ref name="visfot"/> | ||
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संजय गाँधी
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पूरा नाम | संजय फ़िरोज़ गाँधी |
जन्म | 14 दिसम्बर, 1946 |
जन्म भूमि | दिल्ली |
मृत्यु | 23 जून, 1980 |
मृत्यु स्थान | दिल्ली |
मृत्यु कारण | हेलिकॉप्टर दुर्घटना |
अभिभावक | फ़िरोज़ गाँधी एवं इंदिरा गाँधी |
पति/पत्नी | मेनका गाँधी |
संतान | वरुण गाँधी |
नागरिकता | भारतीय |
पार्टी | कांग्रेस |
संबंधित लेख | जवाहरलाल नेहरू, नेहरू-गाँधी परिवार वृक्ष |
अन्य जानकारी | भारत में परिवार नियोजन की पुरुष नसबंदी योजना और देश के आम आदमी की कार कहलाने वाली मारुति 800 को देश में लाने का श्रेय संजय गाँधी को ही जाता है। |
संजय गाँधी (अंग्रेज़ी: Sanjay Gandhi, जन्म: 14 दिसम्बर, 1946; मृत्यु: 23 जून, 1980) भारतीय नेता थे। संजय गाँधी इंदिरा गाँधी के छोटे पुत्र थे। भारत में आपातकाल के समय उनकी भूमिका बहुत विवादास्पद रही। अल्पायु में ही एक हेलिकॉप्टर दुर्घटना में उनकी मौत हो गयी। मेनका गाँधी संजय गाँधी की पत्नी और वरुण गांधी संजय गाँधी के पुत्र हैं।
जीवन परिचय
भारतीय राजनीति में संजय गाँधी का नाम एक ऐसे युवा नेता के रूप में दर्ज है जिसकी वजह से देश की राजनीति में कई बड़े परिवर्तन हुए। भारत की सबसे प्रभावी व्यक्तित्व वाली प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी और फ़िरोज़ गाँधी के पुत्र संजय गाँधी को एक ऐसे व्यक्तित्व के रूप में जाना जाता है जिसने भारत के लोकतंत्र को तानाशाही में बदल दिया था। अपनी तेज तर्रार शैली और दृढ निश्चयी सोच की वजह से देश की युवा की पसंद बने इस नेता के फैसलों के आगे कई बार तात्कालिक प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी को भी पीछे हटने को मजबूर कर दिया। आलोचकों के निशाने पर रहने के बावजूद उनके कई फैसलों को आज तक सराहा जाता है। 14 दिसंबर 1946 को जन्मे संजय गाँधी ने 70 के दशक की भारतीय राजनीति में कई उदाहरण पेश किये जिसे आज तक याद किया जाता है। भारतीय राजनीति में तेज़ी से उभरे संजय गाँधी 23 जून 1980 को एक हवाई दुर्घटना शिकार हो गए।[1]
परिवार
देश के सबसे बड़े राजनीतिक घराने नेहरू गाँधी परिवार में जन्मे संजय गाँधी भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी के छोटे भाई थे| कहा जाता है कि बचपन से ही अपने जिद्दी स्वाभाव की वजह से वह माता पिता के तमाम प्रयासों के वाबजूद पढाई में रुचि नहीं लेते थे। जिस वजह से संजय गाँधी को देश के मशहूर स्कूल दून कालेज छोड़ना पड़ा जबकि उनके बड़े भाई राजीव ने अपनी 12वीं तक की पढ़ाई वहीं पूरी की थी। हर काम को अपने अंदाज़में करने के आदी संजय गाँधी ने व्यक्तिगत जीवन के साथ साथ देश का भविष्य तय करने वाले कुछ ऐसे फैसले लिए जिनकी वजह से देश को विषम परिस्थितियों से गुजरना पड़ा।[1]
आपातकाल के समय
राजनीतिक विशेषज्ञों की माने तो 1975 के आपातकाल में संजय गाँधी ही ऐसी ताकत साबित हुए थे जिसने राष्ट्रीय कांग्रेस के अस्तित्व को बचने की हिम्मत दिखाई थी। 19 माह के आपातकाल से उभरने के बाद वर्ष 1977 के चुनाव में भले ही कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा, लेकिन उसके बाद संजय गाँधी और इंदिरा गाँधी को गिरफ्तार कर जेल भेजने की तैयारियां भी की गई। हालाँकि तात्कालिक सरकार ज्यादा दिनों तक सत्ता सुख नहीं भोग सकी और वर्ष 1979 के चुनाव ने कांग्रेस की सत्ता में वापसी करवा दी।[1]
योगदान
कहा जाता है कि एक समय ऐसा था जब संजय गाँधी अपनी माँ इंदिरा गाँधी के सामानांतर अपनी सरकार चलाया करते थे और उनके फैसलों के आगे इंदिरा गाँधी को भी झुकना पड़ता था। संजय गाँधी ने कांग्रेस के कुछ नेताओं और अधिकारियों की दम पर देश की आर्थिक नीतियों और प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी के फैसलों को प्रभावित करना शुरू कर दिया था। जिसका एक बहुत बड़ा उदाहरण परिवार नियोजन की पुरुष नसबंदी योजना और देश के आम आदमी की कार कहलाने वाली मारुति 800 को देश में लाने का श्रेय संजय गाँधी को ही जाता है।[1]
व्यक्तित्व एवं लोकप्रियता
आजाद भारत के इतिहास में संजय गांधी इकलौते ऐसे राजनेता हैं जिनके व्यक्तित्व और क्रियाकलापों के बारे में जानने की जिज्ञासा भारतीय जनमानस में अब भी है, लेकिन उनके बारे में ज्यादा लिखित सामग्री उपलब्ध नहीं है, लिहाजा उनके बारे में सबसे ज्यादा किवदंतियां सुनी जाती रही हैं। संजय गांधी खुद कहा करते थे कि उनकी रैलियों के दौरान किसी को भी पैसे देकर रैली में नहीं लाया जाता है बल्कि ये लोगों की मेरे बारे में जानने और मुझको देखने की जिज्ञासा से मेरी रैली में खिंचे चले आते हैं। आपातकाल के दौरान संजय गांधी के तानाशाही रवैये को लेकर काफ़ी कुछ लिखा गया है, उनके दोस्तों और युवा कांग्रेस कार्यकर्ताओं की ज्यादतियों के बारे में भी सैकड़ों लेख लिखे गए, किताबें भी आईं। इस बात की भी काफ़ी चर्चा हुई कि संजय गांधी की महात्वाकांक्षा इंदिरा गांधी को लगातार कमज़ोर करती रही। संजय गांधी को भारत में कई लोकतांत्रिक संस्थाओं को खत्म करने या कमज़ोर करने का भी जिम्मेदार माना जाता है। आपातकाल, उस दौरान सरकारी कामकाज, इंदिरा गांधी के दांव पेंच आदि के बारे में राजनीतिक टिप्पणीकार इतने उलझ गए कि संजय गांधी की जीवनी या उनपर कोई मुक्कमल किताब लिखने के बारे में सोचा ही नहीं गया। अगर सोचा गया होता तो संजय गांधी पर लिखने के लिए बेहद श्रम करना होता क्योंकि उनके व्यक्तित्व के कई पहलू हैं और विश्लेषण के अनेक विंदु। संजय गांधी को भगवान ने बहुत छोटी सी उम्र दी लेकिन उस छोटी उम्र में ही संजय ने देश को हिलाकर रख दिया था।[2]
एकमात्र जीवनी
अब तक संजय गांधी की एकमात्र जीवनी लिखी गई है जिसका नाम है –द संजय स्टोरी- और उसके लेखक हैं – वरिष्ठ पत्रकार विनोद मेहता। यह जीवनी भी ना तो प्रामाणिक होने का दावा करती है और ना ही आधिकारिक। संजय गांधी की जीवनी में विनोद मेहता ने बेहद वस्तुनिष्ठता के साथ संजय गांधी के बहाने उस दौर को भी परिभाषित किया है। आपातकाल की ज्यादतियों के अलावा मारुति कार प्रोजेकट के घपलों पर तो विस्तार से लिखा है लेकिन साथ ही आपातकाल हटने पर सरकारी कामकाज में ढिलाई पर भी अपने चुटीले अंदाज़में वार किया है। वो लिखते हैं- जिस दिन 21 मार्च को आपातकाल हटाई गई उस दिन राजधानी एक्सप्रेस चार घंटे की देरी से पहुंची। कानपुर में एल आई सी के कर्मचारियों ने लंच टाइम में मोर्चा निकाला, दिल्ली के प्रेस क्लब में मुक्केबाजी हुई, कलकत्ता में दो फैमिली प्लानिंग वैन जलाई गई, मुम्बई के शाम के अखबारों में डांस क्लासेस के विज्ञापन छपे, तस्करी कर लाई जाने वाली व्हिस्की की कीमत दस रुपए कम हो गई। देश में हालात सामान्य हो गए। व्यगंयात्मक शैली में ये कहते हुए विनोद आपातकाल के दौर में इन हालातों के ठीक होने की तस्दीक करते हैं।
विनोद मेहता की किताबों में कई तथ्य पुराने हैं- जैसे दून स्कूल में ही संजय को कमलनाथ जैसा दोस्त मिला जो लगातार दो साल तक फेल हो चुका था। स्कूल से वापस आने के बाद संजय गांधी की दोस्तों के साथ मस्ती काफ़ी बढ़ गई थी और विनोद मेहता ने बिल्कुल फिक्शन के अंदाज़में उसको लिखा है जिसकी वजह से रोचकता अपने चरम पर पहुंच जाती है। संजय गांधी की इस किताब में जो सबसे दिलचस्प अध्याय है वो है मारुति कार के बारे में देखे गए संजय के सपने के बारे में। मारुति- सन ऑफ द विंड गॉड में विनोद मेहता ने संजय गांधी की किसी भी कीमत पर अपनी मन की करने, किसी भी कीमत पर अपनी चाहत को हासिल करने की, उस हासिल करने के बीच में रोड़े अटकाने वाले को हाशिए पर पहुंचा देने की मनोवृत्ति का साफ तौर पर चित्रण किया है। संजय गांधी की बचपन से मशीनों और उपकरणों में ख़ास रुचि थी जिसे देखकर नेहरू जी कहा करते थे कि उनका नाती एक बेहतरीन इंजीनियर बनेगा।[2]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 1.2 1.3 संजय गाँधी की 32वीं पुण्यतिथि पर विशेष (हिंदी) हिंदी पर्दाफाश। अभिगमन तिथि: 15 जून, 2013।
- ↑ 2.0 2.1 संजय गांधी की अनकही कहानी (हिंदी) विस्फ़ोट डॉट कॉम। अभिगमन तिथि: 15 जून, 2013।