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| <quiz display=simple> | | <quiz display=simple> |
| {[[आर्य|आर्यों]] की ठेठ बोली के नमूने मिलते हैं-
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| |type="()"}
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| +[[ब्राह्मण ग्रंथ|ब्राह्मण ग्रंथों]] व सूत्र ग्रंथों में
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| -[[पुराण|पुराणों]] में
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| -[[वेद|वेदों]] में
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| -[[रामायण]] में
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| ||[[यज्ञ|यज्ञों]] एवं [[कर्मकाण्ड|कर्मकाण्डों]] के विधान एवं इनकी क्रियाओं को भली-भांति समझने के लिए ही 'ब्राह्मण ग्रंथ' की रचना हुई। यहाँ 'ब्रह्म' का शाब्दिक अर्थ है- 'यज्ञ' अर्थात् [[यज्ञ]] के विषयों का अच्छी तरह से प्रतिपादन करने वाले [[ग्रंथ]] ही 'ब्राह्मण ग्रंथ' कहे गये हैं। ब्राह्मण ग्रन्थों में सर्वथा यज्ञों की वैज्ञानिक, अधिभौतिक तथा अध्यात्मिक मीमांसा प्रस्तुत की गयी है। यह ग्रंथ अधिकतर गद्य में लिखे हुए हैं। इनमें उत्तरकालीन समाज तथा संस्कृति के सम्बन्ध का ज्ञान प्राप्त होता है। ब्राह्मण ग्रन्थों से हमें [[परीक्षित]] के बाद और [[बिम्बिसार]] के पूर्व की घटनाओं का ज्ञान प्राप्त होता है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[ब्राह्मण ग्रंथ]]
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| {निम्न में से किस राज्य की [[राजभाषा]] [[हिन्दी]] नहीं है?
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| |type="()"}
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| +[[जम्मू-कश्मीर]]
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| -[[हरियाणा]]
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| -[[छत्तीसगढ़]]
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| -[[उत्तर प्रदेश]]
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| ||[[चित्र:Kashmir-Valley.jpg|right|100px|कश्मीर की घाटी]]पहले [[कश्मीर]] [[भारत]] की बड़ी रियासतों में से एक था। यह पूर्वात्तर में सिंक्यांग का स्वायत्त क्षेत्र व तिब्बती स्वायत्त क्षेत्र (दोनों [[चीन]] के भाग) से, दक्षिण में [[हिमाचल प्रदेश]] व [[पंजाब]] राज्यों से, पश्चिम में [[पाकिस्तान]] और पश्चिमोत्तर में पाकिस्तान अधिकृत भू-भाग से घिरा है। [[कश्मीरी भाषा]] [[संस्कृत]] से प्रभावित है और गिलगित की विभिन्न पहाड़ी जनजातियों के द्वारा बोली जाने वाली भारतीय आर्य भाषाओं की दर्दीय शाखा की है। [[उर्दू]], [[डोगरी भाषा|डोगरी]], कश्मीरी, लद्दाखी, बाल्टी, पहाड़ी, [[पंजाबी भाषा|पंजाबी]], गुजरी और ददरी भाषाओं का प्रयोग साधारण नागरिकों द्वारा किया जाता है। [[कश्मीर की घाटी]] के निवासी उर्दू या कश्मीरी बोलते हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[जम्मू-कश्मीर]]
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| {"हिन्दी साहित्य सम्मेलन" की स्थापना कब हुई थी?
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| |type="()"}
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| +[[1918]]
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| -[[1920]]
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| -[[1919]]
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| -[[1922]]
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| {"[[साहित्य अकादमी पुरस्कार हिन्दी|साहित्य अकादमी पुरस्कार]]" किस रचनाकार को प्राप्त नहीं हुआ?
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| |type="()"}
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| +[[प्रेमचन्द]]
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| -अरुण कमल
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| -मंगलेश डबराल
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| -[[रामधारी सिंह दिनकर]]
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| ||[[चित्र:Munshi-Premchand.jpg|right|90px|मुंशी प्रेमचन्द]]मुंशी प्रेमचन्द 'भारत के उपन्यास सम्राट' माने जाते हैं, जिनके युग का विस्तार सन [[1880]] से [[1936]] तक है। यह कालखण्ड [[भारत का इतिहास|भारत के इतिहास]] में बहुत महत्त्व का है। [[प्रेमचन्द]] का वास्तविक नाम "धनपत राय श्रीवास्तव" था। वे एक सफल लेखक, देशभक्त नागरिक, कुशल वक्ता, ज़िम्मेदार संपादक और संवेदनशील रचनाकार थे। मुंशी प्रेमचन्द की स्मृति में 'भारतीय डाक विभाग' की ओर से [[31 जुलाई]], [[1980]] को उनकी जन्मशती के अवसर पर 30 पैसे मूल्य का एक [[डाक टिकट]] जारी किया था। [[गोरखपुर]] के जिस स्कूल में वे शिक्षक थे, वहाँ 'प्रेमचन्द साहित्य संस्थान' की स्थापना की गई है। यहाँ उनसे संबंधित वस्तुओं का एक संग्रहालय भी है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[प्रेमचन्द]]
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| {[[आचार्य रामचंद्र शुक्ल]] ने "साक्षात् रसमूर्ति" किस [[कवि]] को कहा है?
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| |type="()"}
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| -[[मतिराम]]
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| -[[भूषण]]
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| +[[घनानन्द कवि|घनानन्द]]
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| -[[पद्माकर]]
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| ||'घनानन्द' [[हिन्दी भाषा]] के [[रीतिकाल|रीतिकालीन]] [[कवि]] थे। [[घनानन्द कवि|घनानन्द]] के जीवन के लगभग सभी महत्त्वपूर्ण तथ्य विवादास्पद हैं, जैसे- नाम, जन्म-स्थान, रचनाएँ, जन्म-तिथि इत्यादि। कुछ लोग इनका जन्म स्थान [[उत्तर प्रदेश]] के जनपद [[बुलन्दशहर]] को मानते हैं। माना जाता है कि इनका निधन अहमदशाह अब्दाली द्वारा [[मथुरा]] में किये गये कत्लेआम में हुआ था। घनानन्द शृंगार धारा के कवि थे। ये सखीभाव से [[श्रीकृष्ण]] की उपासना करते थे। विरक्त होने से पहले ये [[बहादुरशाह]] के मीर मुंशी थे। वहीं पर 'सुजान' नामक नर्तकी से इनका प्रेम हो गया था। इन्होंने अपनी प्रेमिका को सम्बोधित करके ही अपनी काव्य रचनायें की हैं। कुछ विद्वान इनकी रचनाओं में आध्यात्मिकता भी मानते हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[घनानन्द कवि|घनानन्द]]
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| {निम्नलिखित में से कौन 'राग दरबारी' उपन्यास के लेखक हैं?
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| -[[यशपाल]]
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| -[[भगवतीचरण वर्मा]]
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| +[[श्रीलाल शुक्ल]]
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| -[[अमृतलाल नागर]]
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| ||[[चित्र:Shrilal Shukla55.jpg|right|100px|श्रीलाल शुक्ल]]श्रीलाल शुक्ल प्रसिद्ध साहित्यकार थे, जिन्हें समकालीन कथा-साहित्य में उद्देश्यपूर्ण व्यंग्य लेखन के लिये जाना जाता है। उनके दस उपन्यास, चार कहानी संग्रह, नौ व्यंग्य संग्रह, दो विनिबंध, तथा एक आलोचना पुस्तक आदि उनकी कीर्ति को बनाये रखने के लिए पर्याप्त हैं। [[श्रीलाल शुक्ल]] का पहला [[उपन्यास]] 'सूनी घाटी का सूरज', [[1957]] में प्रकाशित हुआ था। उनका सबसे लोकप्रिय उपन्यास 'राग दरबारी', [[1968]] में छपा। 'राग दरबारी' का पन्द्रह भारतीय भाषाओं के अलावा [[अंग्रेज़ी]] में भी अनुवाद प्रकाशित हुआ। 'राग विराग' श्रीलाल शुक्ल का आखिरी उपन्यास था। उन्होंने [[हिन्दी साहित्य]] को कुल मिलाकर 25 रचनाएँ दी हैं। इनमें 'मकान', 'पहला पड़ाव', 'अज्ञातवास' और 'विश्रामपुर का संत' प्रमुख हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[श्रीलाल शुक्ल]]
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| {[[देवनागरी लिपि]] को संवैधानिक मान्यता किसने प्रदान की है?
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| |type="()"}
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| +[[संविधान]] ने
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| -[[राष्ट्रपति]] ने
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| -गृहमंत्री ने
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| -मुख्य न्यायधीश ने
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| ||[[चित्र:Emblem-of-India.png|right|80px|भारत का प्रतीक चिह्न]][[भारत]] अथवा 'इण्डिया' राज्यों का एक संघ है। यह संसदीय प्रणाली की सरकार वाला एक स्वतंत्र प्रभुसत्ता सम्पन्न समाजवादी लोकतंत्रात्मक गणराज्य है। यह गणराज्य [[भारत का संविधान|भारत के संविधान]] के अनुसार शासित है, जिसे संविधान सभा द्वारा [[26 नवम्बर]], [[1949]] को ग्रहण किया गया तथा जो [[26 जनवरी]], [[1950]] को प्रवृत्त हुआ। संविधान में सरकार के संसदीय स्वरूप की व्यवस्था की गई है, जिसकी संरचना कतिपय एकात्मक विशिष्टताओं सहित संघीय है। केन्द्रीय कार्यपालिका का सांविधानिक प्रमुख [[राष्ट्रपति]] है। भारत के संविधान की धारा 79 के अनुसार, केन्द्रीय [[संसद]] की परिषद में राष्ट्रपति तथा दो सदन है, जिन्हें राज्यों की परिषद ([[राज्य सभा]]) तथा लोगों का सदन ([[लोक सभा]]) के नाम से जाना जाता है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[भारत का संविधान]]
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| {निम्न में से उपबोली को क्या कहा जाता है?
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| |type="()"}
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| -[[राजभाषा]]
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| -सम्पर्क बोली
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| +स्थानीय बोली
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| -राष्ट्रभाषा
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| {मैक्समूलर ने 'इंडो जर्मनिक' नाम किस भाषा परिवार को दिया?
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| |type="()"}
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| +[[भारोपीय भाषा परिवार|भारोपीय भाषा]]
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| -वैदिक भाषा
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| -[[अपभ्रंश भाषा]]
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| -[[हिन्दी भाषा]]
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| ||'भारोपीय भाषा परिवार' विश्व में बोली जाने वाली भाषाओं में सर्वप्रमुख भाषा परिवार है। इसके बोलने वालों की संख्या विश्व में सबसे ज़्यादा है। इस [[भारोपीय भाषा परिवार]] की प्रमुख भाषाएँ [[संस्कृत भाषा|संस्कृत]], [[पालि भाषा|पालि]], [[प्राकृत भाषा|प्राकृत]], [[अपभ्रंश भाषा|अपभ्रंश]], [[हिन्दी भाषा|हिन्दी]], [[बंगाली भाषा|बंगाली]], [[फ़ारसी भाषा|फ़ारसी]], ग्रीक, लेटिन, [[अंग्रेज़ी भाषा|अंग्रेज़ी]], रूसी, जर्मन, पुर्तग़ाली और इतालवी इत्यादि हैं। इस भाषायी परिवार की भाषाएँ विश्व के बड़े भाग में बोली जाती हैं। अन्य परिवारों की तुलना में इसमें भाषाओं और बोलियों की संख्या बहुत अधिक है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[भारोपीय भाषा परिवार|भारोपीय भाषा]]
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| {निम्न में से सानुनासिक वर्ण कौन से हैं?
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| |type="()"}
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| -क् ज् ग् च्
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| +ङ ञ ण न् म्
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| -ख् द् ठ् म्
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| -ण् ज् थ् द्
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| {"[[काशी नागरी प्रचारिणी सभा]]" की स्थापना कब हुई? | | {"[[काशी नागरी प्रचारिणी सभा]]" की स्थापना कब हुई? |
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| -[[1860]] | | -[[1860]] |
| -[[1865]] | | -[[1865]] |
| ||[[चित्र:Dr. Shyam Sunder Das.jpg|right|90px|श्यामसुंदर दास]]'काशी नागरी प्रचारिणी सभा' [[हिन्दी भाषा]] और [[साहित्य]] तथा [[देवनागरी लिपि]] की उन्नति तथा प्रचार और प्रसार करने वाली देश की अग्रणी संस्था है। इसकी स्थापना 'क्वीन्स कॉलेज', [[वाराणसी]] के नौवीं कक्षा के तीन छात्रों- [[श्यामसुंदर दास]], पं. रामनारायण मिश्र और शिवकुमार सिंह ने कॉलेज के छात्रावास के बरामदे में बैठकर की थी। बाद में [[16 जुलाई]], [[1893]] को इसकी स्थापना की तिथि इन्हीं महानुभावों ने निर्धारित की और आधुनिक हिन्दी के जनक [[भारतेन्दु हरिश्चंद्र]] के फुफेरे भाई बाबू राधाकृष्ण दास इसके पहले अध्यक्ष हुए। [[काशी]] के 'सप्तसागर मुहल्ले' के घुड़साल में इसकी बैठक होती थी। बाद में इस संस्था का एक स्वतंत्र भवन बना।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[काशी नागरी प्रचारिणी सभा]] | | ||[[चित्र:Dr. Shyam Sunder Das.jpg|right|90px|श्यामसुंदर दास]] 'काशी नागरी प्रचारिणी सभा' [[हिन्दी]] [[भाषा]] और [[साहित्य]] तथा [[देवनागरी लिपि]] की उन्नति तथा प्रचार और प्रसार करने वाली देश की अग्रणी संस्था है। इसकी स्थापना 'क्वीन्स कॉलेज', [[वाराणसी]] के नौवीं कक्षा के तीन छात्रों- [[श्यामसुंदर दास]], पं. रामनारायण मिश्र और शिवकुमार सिंह ने कॉलेज के छात्रावास के बरामदे में बैठकर की थी। बाद में [[16 जुलाई]], [[1893]] को इसकी स्थापना की तिथि इन्हीं महानुभावों ने निर्धारित की और आधुनिक हिन्दी के जनक [[भारतेन्दु हरिश्चंद्र]] के फुफेरे भाई बाबू राधाकृष्ण दास इसके पहले अध्यक्ष हुए। [[काशी]] के 'सप्तसागर मुहल्ले' के घुड़साल में इसकी बैठक होती थी। बाद में इस संस्था का एक स्वतंत्र भवन बना।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[काशी नागरी प्रचारिणी सभा]] |
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| {"दक्षिण भारत हिन्दी समिति" की स्थापना कब हुई? | | {"दक्षिण भारत हिन्दी समिति" की स्थापना कब हुई? |
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| {[[अपभ्रंश भाषा|अपभ्रंश]] का सर्वप्रथम प्रयोग कहाँ पर हुआ? | | {[[अपभ्रंश भाषा|अपभ्रंश]] का सर्वप्रथम प्रयोग कहाँ पर हुआ? |
| |type="()"} | | |type="()"} |
| -जसहर चरिउ | | -[[जसहर चरिउ]] |
| -[[गीता]] | | -[[गीता]] |
| +[[महाभाष्य]] | | +[[महाभाष्य]] |
| -नागकुमार चरिउ | | -नागकुमार चरिउ |
| ||'महाभाष्य' [[पतंजलि (महाभाष्यकार)|महर्षि पतंजलि]] द्वारा रचित है। पतंजति ने [[पाणिनि]] के '[[अष्टाध्यायी]]' के कुछ चुने हुए सूत्रों पर भाष्य लिखा था, जिसे 'व्याकरण महाभाष्य' का नाम दिया गया। '[[महाभाष्य]]' वैसे तो [[व्याकरण]] का [[ग्रंथ]] माना जाता है, किन्तु इसमें कहीं-कहीं राजाओं-महाराजाओं एवं जनतंत्रों के घटनाचक्र का विवरण भी मिलता हैं। पतंजलि द्वारा कृत 'महाभाष्य' 84 अध्यायों में विभक्त है। इसका प्रथम अध्याय "पस्पशा" के नाम से जाना जाता है, जिसमें [[शब्द (व्याकरण)|शब्द]] स्वरूप का निरूपण किया गया है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[महाभाष्य]] | | ||'महाभाष्य' [[पतंजलि (महाभाष्यकार)|महर्षि पतंजलि]] द्वारा रचित है। पतंजलि ने [[पाणिनि]] के '[[अष्टाध्यायी]]' के कुछ चुने हुए सूत्रों पर भाष्य लिखा था, जिसे 'व्याकरण महाभाष्य' का नाम दिया गया। '[[महाभाष्य]]' वैसे तो [[व्याकरण]] का [[ग्रंथ]] माना जाता है, किन्तु इसमें कहीं-कहीं राजाओं-महाराजाओं एवं जनतंत्रों के घटनाचक्र का विवरण भी मिलता हैं। पतंजलि द्वारा कृत 'महाभाष्य' 84 अध्यायों में विभक्त है। इसका प्रथम अध्याय "पस्पशा" के नाम से जाना जाता है, जिसमें [[शब्द (व्याकरण)|शब्द]] स्वरूप का निरूपण किया गया है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[महाभाष्य]] |
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| {[[भाषा]] का निर्माण किससे होता है? | | {[[भाषा]] का निर्माण किससे होता है? |
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| -[[फणीश्वरनाथ रेणु]] | | -[[फणीश्वरनाथ रेणु]] |
| -[[चतुरसेन शास्त्री]] | | -[[चतुरसेन शास्त्री]] |
| ||[[चित्र:Dinkar.jpg|right|90px|रामधारी सिंह दिनकर]]रामधारी सिंह दिनकर [[हिन्दी]] के प्रसिद्ध कवियों में से एक हैं। दिनकर की गद्य कृतियों में मुख्य हैं- उनका विराट ग्रन्थ 'संस्कृति के चार अध्याय' ([[1956]] ई.), जिसमें उन्होंने प्रधानतया शोध और अनुशीलन के आधार पर मानव सभ्यता के इतिहास को चार मंजिलों में बाँटकर अध्ययन किया है। [[भाषा]] की भूलों के बावज़ूद शैली की प्रांजलता [[रामधारी सिंह दिनकर]] के गद्य को आकर्षित बना देती है। दिनकर की प्रसिद्ध आलोचनात्मक कृतियाँ हैं- 'मिट्टी की ओर' ([[1946]] ई.), 'काव्य की भूमिका' ([[1958]] ई.), 'पंत, प्रसाद और मैथिलीशरण' ([[1958]] ई.), हमारी सांस्कृतिक कहानी ([[1955]]) और 'शुद्ध कविता की खोज़' ([[1966]] ई.)।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[रामधारी सिंह दिनकर]] | | ||[[चित्र:Dinkar.jpg|right|90px|रामधारी सिंह दिनकर]] रामधारी सिंह दिनकर [[हिन्दी]] के प्रसिद्ध कवियों में से एक हैं। दिनकर की गद्य कृतियों में मुख्य हैं- उनका विराट ग्रन्थ '[[संस्कृति के चार अध्याय]]' ([[1956]] ई.), जिसमें उन्होंने प्रधानतया शोध और अनुशीलन के आधार पर मानव सभ्यता के इतिहास को चार मंजिलों में बाँटकर अध्ययन किया है। [[भाषा]] की भूलों के बावज़ूद शैली की प्रांजलता [[रामधारी सिंह दिनकर]] के गद्य को आकर्षित बना देती है। दिनकर की प्रसिद्ध आलोचनात्मक कृतियाँ हैं- 'मिट्टी की ओर' ([[1946]] ई.), 'काव्य की भूमिका' ([[1958]] ई.), 'पंत, प्रसाद और मैथिलीशरण' ([[1958]] ई.), हमारी सांस्कृतिक कहानी ([[1955]]) और 'शुद्ध कविता की खोज़' ([[1966]] ई.)।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[रामधारी सिंह दिनकर]] |
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| {{सामान्य ज्ञान प्रश्नोत्तरी}} | | {{सामान्य ज्ञान प्रश्नोत्तरी}} |
| [[Category:सामान्य ज्ञान]] | | [[Category:सामान्य ज्ञान]] |
| [[Category:हिन्दी भाषा]]
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| [[Category:सामान्य ज्ञान प्रश्नोत्तरी]] | | [[Category:सामान्य ज्ञान प्रश्नोत्तरी]] |
| | [[Category:हिन्दी सामान्य ज्ञान]] |
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