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'''बख्शी ग्रन्थावली-6''' [[हिंदी]] के प्रसिद्ध साहित्यकार [[पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी]] की 'बख्शी ग्रन्थावली' का छठा खण्ड है। इस खंड में संस्मरणात्मक निबन्धों का सृजन किया गया है।
'''बख्शी ग्रन्थावली-6''' [[हिंदी]] के प्रसिद्ध साहित्यकार [[पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी]] की 'बख्शी ग्रन्थावली' का छठा खण्ड है। इस खंड में संस्मरणात्मक निबन्धों का सृजन किया गया है।


बख्शी जी ने अपने संस्मरणात्मक निबन्धों में बाल्यकाल से लेकर अपने जीवन के अन्तिम क्षणों तक सम्पर्क में आने वाले व्यक्तियों के संस्मरण लिखे हैं। बख्शी जी के संस्मरणपरक निबन्धों की विशेषता यह है कि यह विशेष व्यक्तियों पर सीमित न होकर लोकजीवन के अतिशय सामान्य व्यक्तियों तक फैले हुए हैं।  अतएव इनमें वैचारिक विविधता है ही, साथ ही साथ जीवन के विविध पक्षों का लोकार्पण भी सम्भव हो सका है। मानवीय जीवन की ऐसी ताज़ी स्मृतियाँ [[हिन्दी]] के अन्य संस्मरणमूलक निबन्धों में नहीं मिलती हैं। बख्शी ने जीवित व्यक्तियों के सम्बन्ध में भी अपनी प्रतिक्रियाएँ लिखकर अपने निबन्धों को और प्रामाणिक बनाया है। बख्शी की रचनाओं में कहीं भी न तो किसी व्यक्ति की आलोचना मिलती है और न जीवन के प्रति निराशा का भाव। इस दृष्टिकोण के कारण इनके संस्मरणमूलक निबन्ध पाठकों के लिए प्रेरणास्रोत्र एवं मार्गदर्शक का काम करते हैं। [[हिन्दी साहित्य]] में इस प्रकार के निबन्धों का सर्वथा अभाव है। बख्शी के संस्मरणात्मक निबन्ध हर दृष्टि से हिन्दी साहित्य में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं।<ref>{{cite web |url=http://vaniprakashanblog.blogspot.in/2012/06/blog-post_07.html |title=सम्पूर्ण बख्शी ग्रन्थावली आठ खण्डों में  |accessmonthday=13 दिसम्बर |accessyear=2012 |last=श्रीवास्तव  |first=डॉ. नलिनी |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=वाणी प्रकाशन (ब्लॉग) |language=हिंदी }}</ref>
बख्शी जी ने अपने संस्मरणात्मक निबन्धों में बाल्यकाल से लेकर अपने जीवन के अन्तिम क्षणों तक सम्पर्क में आने वाले व्यक्तियों के संस्मरण लिखे हैं। बख्शी जी के संस्मरणपरक निबन्धों की विशेषता यह है कि यह विशेष व्यक्तियों पर सीमित न होकर लोकजीवन के अतिशय सामान्य व्यक्तियों तक फैले हुए हैं।  अतएव इनमें वैचारिक विविधता है ही, साथ ही साथ जीवन के विविध पक्षों का लोकार्पण भी सम्भव हो सका है। मानवीय जीवन की ऐसी ताज़ी स्मृतियाँ [[हिन्दी]] के अन्य संस्मरणमूलक निबन्धों में नहीं मिलती हैं। बख्शी ने जीवित व्यक्तियों के सम्बन्ध में भी अपनी प्रतिक्रियाएँ लिखकर अपने निबन्धों को और प्रामाणिक बनाया है। बख्शी की रचनाओं में कहीं भी न तो किसी व्यक्ति की आलोचना मिलती है और न जीवन के प्रति निराशा का भाव। इस दृष्टिकोण के कारण इनके संस्मरणमूलक निबन्ध पाठकों के लिए प्रेरणास्रोत्र एवं मार्गदर्शक का काम करते हैं। [[हिन्दी साहित्य]] में इस प्रकार के निबन्धों का सर्वथा अभाव है। बख्शी के संस्मरणात्मक निबन्ध हर दृष्टि से हिन्दी साहित्य में अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं।<ref>{{cite web |url=http://vaniprakashanblog.blogspot.in/2012/06/blog-post_07.html |title=सम्पूर्ण बख्शी ग्रन्थावली आठ खण्डों में  |accessmonthday=13 दिसम्बर |accessyear=2012 |last=श्रीवास्तव  |first=डॉ. नलिनी |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=वाणी प्रकाशन (ब्लॉग) |language=हिंदी }}</ref>


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08:01, 1 अगस्त 2013 के समय का अवतरण

बख्शी ग्रन्थावली-6
बख्शी ग्रन्थावली-6
बख्शी ग्रन्थावली-6
लेखक पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी
मूल शीर्षक बख्शी ग्रन्थावली
संपादक डॉ. नलिनी श्रीवास्तव
प्रकाशक वाणी प्रकाशन
ISBN 81-8143-515-X
देश भारत
भाषा हिंदी
विधा संस्मरणात्मक निबन्ध

बख्शी ग्रन्थावली-6 हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी की 'बख्शी ग्रन्थावली' का छठा खण्ड है। इस खंड में संस्मरणात्मक निबन्धों का सृजन किया गया है।

बख्शी जी ने अपने संस्मरणात्मक निबन्धों में बाल्यकाल से लेकर अपने जीवन के अन्तिम क्षणों तक सम्पर्क में आने वाले व्यक्तियों के संस्मरण लिखे हैं। बख्शी जी के संस्मरणपरक निबन्धों की विशेषता यह है कि यह विशेष व्यक्तियों पर सीमित न होकर लोकजीवन के अतिशय सामान्य व्यक्तियों तक फैले हुए हैं।  अतएव इनमें वैचारिक विविधता है ही, साथ ही साथ जीवन के विविध पक्षों का लोकार्पण भी सम्भव हो सका है। मानवीय जीवन की ऐसी ताज़ी स्मृतियाँ हिन्दी के अन्य संस्मरणमूलक निबन्धों में नहीं मिलती हैं। बख्शी ने जीवित व्यक्तियों के सम्बन्ध में भी अपनी प्रतिक्रियाएँ लिखकर अपने निबन्धों को और प्रामाणिक बनाया है। बख्शी की रचनाओं में कहीं भी न तो किसी व्यक्ति की आलोचना मिलती है और न जीवन के प्रति निराशा का भाव। इस दृष्टिकोण के कारण इनके संस्मरणमूलक निबन्ध पाठकों के लिए प्रेरणास्रोत्र एवं मार्गदर्शक का काम करते हैं। हिन्दी साहित्य में इस प्रकार के निबन्धों का सर्वथा अभाव है। बख्शी के संस्मरणात्मक निबन्ध हर दृष्टि से हिन्दी साहित्य में अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. श्रीवास्तव, डॉ. नलिनी। सम्पूर्ण बख्शी ग्रन्थावली आठ खण्डों में (हिंदी) (एच.टी.एम.एल) वाणी प्रकाशन (ब्लॉग)। अभिगमन तिथि: 13 दिसम्बर, 2012।

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