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'''मुद्राराक्षस''' चौथी शती के उत्तरार्द्ध एवं पांचवी शती ई. के पूर्वार्द्ध में [[संस्कृत]] का एक ऐतिहासिक [[नाटक]] है। इसके रचनाकार [[विशाखदत्त]] थे। इस नाटक में इसमें इतिहास और राजनीति का सुन्दर समन्वय प्रस्तुत किया गया है। विशाखदत्त ऐतिहासिक प्रवृत्ति के लेखक हैं। इनके नाटक [[वीर रस]] प्रधान हैं। 'मुद्राराक्षस' में प्रेमकथा, नायिका, विदूषक आदि का अभाव है तथा इस दृष्टि से यह [[संस्कृत साहित्य]] में अपना अलग स्थान रखता है। इस [[ग्रंथ]] के चरित्र-चित्रण में विशेष निपुणता का प्रदर्शन मिलता है।
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==परिचय==
मुद्राराक्षस का जन्म 21 जून, सन 1933 में [[लखनऊ]] ([[उत्तर प्रदेश]]) के पास बेहटा नामक [[गाँव]] में हुआ था। उनका मूल नाम सुहास वर्मा था। उन्होंने [[1950]] के आसपास से लिखना शुरू किया था। कहानी, उपन्यास, कविता, आलोचना, पत्रकारिता, संपादन, नाट्य लेखन, मंचन, निर्देशन जैसी विधाओं में उन्होंने सृजन कार्य किया।
==लेखन कार्य==
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;सम्पादन
'ज्ञानोदय' और 'अनुव्रत' जैसी तमाम प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिकाओं का कुशल सम्पादन कार्य भी मुद्राराक्षस जी ने किया था।
==प्रमुख रचनाएँ==
मुद्राराक्षस जी की कुछ प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं-
#'''कृतियाँ''' - आला अफसर, कालातीत, नारकीय, दंडविधान, हस्तक्षेप।
#'''संपादन''' - नयी सदी की पहचान (श्रेष्ठ दलित कहानियाँ)।
#'''बाल साहित्य''' - सरला, बिल्लू और जाला।
==प्रकाशित पुस्तकें==
सन [[1951]] से मुद्राराक्षस की प्रारंभिक रचनाएं छपनी शुरू हुईं। करीब दो साल में ही वे एक चर्चित लेखक हो गए थे। [[कहानी]], [[कविता]], [[उपन्यास]], आलोचना, [[नाटक]], [[इतिहास]], [[संस्कृति]] और समाज शास्त्रीय क्षेत्र जैसी अनेक विधाओं में ऐतिहासिक हस्तक्षेप उनके लेखन की बड़ी पहचान है। इन सभी विधाओं में उनकी 65 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।<ref>{{cite web |url=http://www.bhaskar.com/news/UP-LUCK-senior-writer-mudra-rakshak-died-in-lucknow-5348159-NOR.html |title=साहित्यकार मुद्राराक्षस का अंतिम संस्कार |accessmonthday=15 जून |accessyear=2016 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=दैनिक भास्कर |language=हिन्दी }}</ref>
==पुरस्कार व सम्मान==
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==राजनीति और विवादों से नाता==
साहित्यकार मुद्राराक्षस का राजनीति और विवादों से भी पुराना रिश्ता रहा। कई बार राजनीति के भी मैदान में उतरे, साथ ही सामाजिक आंदोलनों से भी जुड़े रहे। उन्होंने [[नरेंद्र मोदी|मोदी]] सरकार के कार्यकाल पर उंगली उठाई। अभिव्यक्ति की आज़ादी, साम्प्रदायिकता, जातिवाद, महिला-उत्पीड़न जैसे गंभीर मुद्दों पर वे अपनी बेबाकी से राय रखते थे। [[साहित्य]]-[[संस्कृति]] की दुनिया में मुद्राराक्षस का नाम लोगों के लिए आदर्श का काम करता है।<ref>{{cite web |url= http://www.patrika.com/news/lucknow/senior-litterateur-mudrarakshas-passes-away-1322727/|title=मुद्राराक्षस से जुड़ी दिलचस्प बातें |accessmonthday= 15 जून|accessyear=2016 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=पत्रिका.कॉम |language= हिन्दी}}</ref>
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मुद्राराक्षस जी का निधन [[13 जून]], [[2016]] को सोमवार के दिन हुआ। परिवारीजन के मुताबिक़ उनकी तबीयत पिछले कुछ दिनों से काफ़ी खराब चल रही थी। उन्हें [[मधुमेह]] की बीमारी थी। साथ ही सांस लेने में तकलीफ हो रही थी।


*विशाखदत्त के इस नाटक में [[चाणक्य]] और [[चन्द्रगुप्त मौर्य]] संबंधी ख्यात वृत्त के आधार पर चाणक्य की राजनीतिक सफलताओं का अपूर्व विश्लेषण मिलता है।
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*'मुद्राराक्षस' की रचना पूर्ववर्ती संस्कृत-नाट्य परंपरा से सर्वथा भिन्न रूप में हुई। लेखक ने भावुकता, कल्पना आदि के स्थान पर जीवन-संघर्ष के यथार्थ अंकन पर बल दिया है।
*इस महत्त्वपूर्ण नाटक को [[हिन्दी]] में सर्वप्रथम अनूदित करने का श्रेय [[भारतेंदु हरिश्चंद्र]] को प्राप्त है। यद्यपि कुछ अन्य लेखकों ने भी 'मुद्राराक्षस' का अनुवाद किया, किंतु जो ख्याति भारतेंदु हरिश्चंद्र के अनुवाद को प्राप्त हुई, वह किसी अन्य को नहीं मिल सकी।
*इस नाट्य कृति में [[इतिहास]] और राजनीति का सुन्दर समन्वय प्रस्तुत किया गया है। इसमें [[नन्द वंश]] के नाश, [[चन्द्रगुप्त मौर्य]] के राज्यारोहण, राक्षस के सक्रिय विरोध, चाणक्य की राजनीति विषयक सजगता और अन्ततः राक्षस द्वारा चन्द्रगुप्त के प्रभुत्व की स्वीकृति का उल्लेख हुआ है।
*'मुद्राराक्षस' में [[साहित्य]] और राजनीति के तत्त्वों का मणिकांचन योग मिलता है, जिसका कारण सम्भवतः यह है कि विशाखदत्त का जन्म राजकुल में हुआ था। वे सामन्त बटेश्वरदत्त के पौत्र और महाराज पृथु के पुत्र थे।
*'मुद्राराक्षस' की कुछ प्रतियों के अनुसार विशाखदत्त महाराज भास्करदत्त के पुत्र थे।
*[[संस्कृत]] की भाँति [[हिन्दी]] में भी 'मुद्राराक्षस' के कथानक को लोकप्रियता प्राप्त हुई है, जिसका श्रेय भारतेन्दु हरिश्चन्द्र को है।
*इस नाटक के रचना काल के विषय में तीव्र मतभेद हैं, अधिकांश विद्धान इसे चौथी-पाँचवी शती की रचना मानते हैं, किन्तु कुछ ने इसे सातवीं-आठवीं शती की कृति माना है।
 
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मुद्राराक्षस एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- मुद्राराक्षस (बहुविकल्पी)
मुद्राराक्षस
मुद्राराक्षस
मुद्राराक्षस
पूरा नाम मुद्राराक्षस
जन्म 21 जून, 1933
जन्म भूमि लखनऊ, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 13 जून, 2016
कर्म भूमि भारत
मुख्य रचनाएँ 'आला अफसर', 'दंडविधान', 'हस्तक्षेप', 'कालातीत' तथा 'नारकीय' आदि।
भाषा हिन्दी
प्रसिद्धि नाटककार, उपन्यासकार, व्यंग्यकार, कहानीकार तथा आलोचक।
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी सन 1951 से मुद्राराक्षस की प्रारंभिक रचनाएं छपनी शुरू हुईं। करीब दो साल में ही वे एक चर्चित लेखक हो गए थे। 'ज्ञानोदय' और 'अनुव्रत' जैसी तमाम प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिकाओं का कुशल सम्पादन कार्य भी मुद्राराक्षस जी ने किया था।
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची

मुद्राराक्षस (जन्म- 21 जून, 1933, लखनऊ; मृत्यु- 13 जून, 2016) भारत के प्रसिद्ध लेखक, उपन्यासकार, नाटककार, आलोचक तथा व्यंग्यकार थे। उनके साहित्य का अंग्रेज़ी सहित दूसरी भाषाओं में भी अनुवाद हुआ है। वे अकेले ऐसे लेखक थे, जिनके सामाजिक सरोकारों के लिए उन्हें जन संगठनों द्वारा सिक्कों से तोलकर सम्मानित किया गया था। कहानी, कविता, उपन्यास, आलोचना, नाटक, इतिहास, संस्कृति और समाज शास्त्रीय क्षेत्र जैसी अनेक विधाओं में ऐतिहासिक हस्तक्षेप उनके लेखन की बड़ी पहचान है।

परिचय

मुद्राराक्षस का जन्म 21 जून, सन 1933 में लखनऊ (उत्तर प्रदेश) के पास बेहटा नामक गाँव में हुआ था। उनका मूल नाम सुहास वर्मा था। उन्होंने 1950 के आसपास से लिखना शुरू किया था। कहानी, उपन्यास, कविता, आलोचना, पत्रकारिता, संपादन, नाट्य लेखन, मंचन, निर्देशन जैसी विधाओं में उन्होंने सृजन कार्य किया।

लेखन कार्य

मुद्राराक्षस ने 10 से भी ज्यादा नाटक, 12 उपन्यास, पांच कहानी संग्रह, तीन व्यंग्य संग्रह, तीन इतिहास किताबें और पांच आलोचना सम्बन्धी पुस्तकें लिखी हैं। इसके अतिरिक्त उन्होंने 20 से ज्यादा नाटकों का निर्देशन भी किया।

सम्पादन

'ज्ञानोदय' और 'अनुव्रत' जैसी तमाम प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिकाओं का कुशल सम्पादन कार्य भी मुद्राराक्षस जी ने किया था।

प्रमुख रचनाएँ

मुद्राराक्षस जी की कुछ प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं-

  1. कृतियाँ - आला अफसर, कालातीत, नारकीय, दंडविधान, हस्तक्षेप।
  2. संपादन - नयी सदी की पहचान (श्रेष्ठ दलित कहानियाँ)।
  3. बाल साहित्य - सरला, बिल्लू और जाला।

प्रकाशित पुस्तकें

सन 1951 से मुद्राराक्षस की प्रारंभिक रचनाएं छपनी शुरू हुईं। करीब दो साल में ही वे एक चर्चित लेखक हो गए थे। कहानी, कविता, उपन्यास, आलोचना, नाटक, इतिहास, संस्कृति और समाज शास्त्रीय क्षेत्र जैसी अनेक विधाओं में ऐतिहासिक हस्तक्षेप उनके लेखन की बड़ी पहचान है। इन सभी विधाओं में उनकी 65 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।[1]

पुरस्कार व सम्मान

मुद्राराक्षस अकेले ऐसे लेखक थे, जिनके सामाजिक सरोकारों के लिए उन्हें जन संगठनों द्वारा सिक्कों से तोलकर सम्मानित किया गया था। 'विश्व शूद्र महासभा' द्वारा 'शूद्राचार्य' और 'अंबेडकर महासभा' द्वारा उन्हें 'दलित रत्न' की उपाधियाँ प्रदान की गई थीं।[2] मुद्राराक्षस को 'संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार' से भी नवाजा गया था।

राजनीति और विवादों से नाता

साहित्यकार मुद्राराक्षस का राजनीति और विवादों से भी पुराना रिश्ता रहा। कई बार राजनीति के भी मैदान में उतरे, साथ ही सामाजिक आंदोलनों से भी जुड़े रहे। उन्होंने मोदी सरकार के कार्यकाल पर उंगली उठाई। अभिव्यक्ति की आज़ादी, साम्प्रदायिकता, जातिवाद, महिला-उत्पीड़न जैसे गंभीर मुद्दों पर वे अपनी बेबाकी से राय रखते थे। साहित्य-संस्कृति की दुनिया में मुद्राराक्षस का नाम लोगों के लिए आदर्श का काम करता है।[3]

निधन

मुद्राराक्षस जी का निधन 13 जून, 2016 को सोमवार के दिन हुआ। परिवारीजन के मुताबिक़ उनकी तबीयत पिछले कुछ दिनों से काफ़ी खराब चल रही थी। उन्हें मधुमेह की बीमारी थी। साथ ही सांस लेने में तकलीफ हो रही थी।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. साहित्यकार मुद्राराक्षस का अंतिम संस्कार (हिन्दी) दैनिक भास्कर। अभिगमन तिथि: 15 जून, 2016।
  2. नाटककार मुद्राराक्षस का निधन (हिन्दी) खबरइण्डिया। अभिगमन तिथि: 15 जून, 2016।
  3. मुद्राराक्षस से जुड़ी दिलचस्प बातें (हिन्दी) पत्रिका.कॉम। अभिगमन तिथि: 15 जून, 2016।

संबंधित लेख

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