"इतिहास सामान्य ज्ञान 61": अवतरणों में अंतर
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-[[धर्मपरायण कुट्टवन]] | -[[धर्मपरायण कुट्टवन]] | ||
+[[नेदुनजेरल आदन]] | +[[नेदुनजेरल आदन]] | ||
||'नेदुनजेरल आदन' को [[दक्षिण भारत]] के [[चेर वंश]] के सबसे प्रतापी राजाओं में गिना जाता है। वह [[उदियनजेरल]] का पुत्र था। नेदुनजेरल आदन ने अपना अंतिम युद्ध [[चोल]] नरेश [[करिकाल]] के विरुद्ध लड़ा था। इस युद्ध में करिकाल के द्वारा नेदुनजेरल आदन को पराजय का मुँह देखना पड़ा। अपनी इस पराजय से नेदुनजेरल आदन बहुत ही दु:खी हुआ और अन्दर से टूट गया। इस पराजय के फलस्वरूप उसने आत्महत्या कर ली। नेदुनजेरल आदन की रानी उसके साथ ही सती हो गई। | ||'नेदुनजेरल आदन' को [[दक्षिण भारत]] के [[चेर वंश]] के सबसे प्रतापी राजाओं में गिना जाता है। वह [[उदियनजेरल]] का पुत्र था। नेदुनजेरल आदन ने अपना अंतिम युद्ध [[चोल]] नरेश [[करिकाल]] के विरुद्ध लड़ा था। इस युद्ध में करिकाल के द्वारा नेदुनजेरल आदन को पराजय का मुँह देखना पड़ा। अपनी इस पराजय से नेदुनजेरल आदन बहुत ही दु:खी हुआ और अन्दर से टूट गया। इस पराजय के फलस्वरूप उसने आत्महत्या कर ली। नेदुनजेरल आदन की रानी उसके साथ ही [[सती]] हो गई। अधिक जानकारी के लिए देखें :- [[नेदुनजेरल आदन]] | ||
{[[भीमराव आम्बेडकर]] की पढ़ाई-लिखाई में किसने सर्वाधिक सहयोग दिया? | {[[भीमराव आम्बेडकर]] की पढ़ाई-लिखाई में किसने सर्वाधिक सहयोग दिया? | ||
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+[[बड़ौदा]] के महाराज ने | +[[बड़ौदा]] के महाराज ने | ||
-[[नाभा]] के महाराज ने | -[[नाभा]] के महाराज ने | ||
||[[चित्र:Dr.Bhimrao-Ambedkar.jpg|right|100px|भीमराव अम्बेडकर]]'[[डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर]]' को अछूत समझी जाने वाली जाति में जन्म लेने के कारण अपने स्कूली जीवन में अनेक बार अपमानजनक स्थितियों का सामना करना पड़ा। इन सब स्थितियों का धैर्य और वीरता से सामना करते हुए उन्होंने स्कूली शिक्षा समाप्त की। अब भीमराव अम्बेडकर की कॉलेज की पढ़ाई शुरू हो चुकी थी। इसी बीच उनके [[पिता]] का हाथ भी काफ़ी तंग हो गया। पढ़ाई के ख़र्चे में कमी होनी प्रारम्भ हो गई। एक मित्र उन्हें [[बड़ौदा]] के शासक [[गायकवाड़]] के यहाँ ले गए। गायकवाड़ ने उनके लिए स्कॉलरशिप की व्यवस्था कर दी और अम्बेडकर ने अपनी कॉलेज की शिक्षा पूरी की। [[1907]] में मैट्रिकुलेशन पास करने के बाद बड़ौदा महाराज की आर्थिक सहायता से वे 'एलिफ़िन्सटन कॉलेज' से [[1912]] ई. में ग्रेजुएट होकर निकले। | ||[[चित्र:Dr.Bhimrao-Ambedkar.jpg|right|100px|भीमराव अम्बेडकर]]'[[डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर]]' को अछूत समझी जाने वाली जाति में जन्म लेने के कारण अपने स्कूली जीवन में अनेक बार अपमानजनक स्थितियों का सामना करना पड़ा। इन सब स्थितियों का धैर्य और वीरता से सामना करते हुए उन्होंने स्कूली शिक्षा समाप्त की। अब भीमराव अम्बेडकर की कॉलेज की पढ़ाई शुरू हो चुकी थी। इसी बीच उनके [[पिता]] का हाथ भी काफ़ी तंग हो गया। पढ़ाई के ख़र्चे में कमी होनी प्रारम्भ हो गई। एक मित्र उन्हें [[बड़ौदा]] के शासक [[गायकवाड़]] के यहाँ ले गए। गायकवाड़ ने उनके लिए स्कॉलरशिप की व्यवस्था कर दी और अम्बेडकर ने अपनी कॉलेज की शिक्षा पूरी की। [[1907]] में मैट्रिकुलेशन पास करने के बाद बड़ौदा महाराज की आर्थिक सहायता से वे 'एलिफ़िन्सटन कॉलेज' से [[1912]] ई. में ग्रेजुएट होकर निकले। अधिक जानकारी के लिए देखें :- [[बड़ौदा]], [[भीमराव आम्बेडकर]] | ||
{[[महाराष्ट्र]] में 'गणपति उत्सव' आरंभ करने का श्रेय किसको प्राप्त है? | {[[महाराष्ट्र]] में 'गणपति उत्सव' आरंभ करने का श्रेय किसको प्राप्त है? | ||
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-[[शिवाजी]] | -[[शिवाजी]] | ||
-[[विपिन चन्द्र पाल]] | -[[विपिन चन्द्र पाल]] | ||
||[[चित्र:Lokmanya-Bal-Gangadhar-Tilak.jpg|बाल गंगाधर तिलक|90px|right]]'बाल गंगाधर तिलक' प्रसिद्ध विद्वान, गणितज्ञ, दार्शनिक और उग्र राष्ट्रवादी व्यक्ति थे, जिन्होंने [[भारत]] की स्वतंत्रता की नींव रखने में सहायता की। उन्होंने 'इंडियन होमरूल लीग' की स्थापना सन [[1914]] ई. में की थी। '[[बाल गंगाधर तिलक]]' के जीवन काल के दौरान पुरानी परंपराओं और संस्थाओं के प्रति जनता में नई जागरूकता प्रकट हो रही थी। इसके सबसे स्पष्ट उदाहरण थे- पुरानी धार्मिक आराधना, [[गणेश चतुर्थी|गणपति-पूजन]] और [[शिवाजी]] के जीवन से जुड़े प्रसंगों पर महोत्सवों का आयोजन। तिलक का जीवन घटना-प्रधान रहा था। वे मौलिक विचारों के व्यक्ति थे। वे संघर्षशील और परिश्रमशील जीवन जीने में विश्वास करते थे। | ||[[चित्र:Lokmanya-Bal-Gangadhar-Tilak.jpg|बाल गंगाधर तिलक|90px|right]]'बाल गंगाधर तिलक' प्रसिद्ध विद्वान, गणितज्ञ, दार्शनिक और उग्र राष्ट्रवादी व्यक्ति थे, जिन्होंने [[भारत]] की स्वतंत्रता की नींव रखने में सहायता की। उन्होंने '[[इंडियन होमरूल लीग]]' की स्थापना सन [[1914]] ई. में की थी। '[[बाल गंगाधर तिलक]]' के जीवन काल के दौरान पुरानी परंपराओं और संस्थाओं के प्रति जनता में नई जागरूकता प्रकट हो रही थी। इसके सबसे स्पष्ट उदाहरण थे- पुरानी धार्मिक आराधना, [[गणेश चतुर्थी|गणपति-पूजन]] और [[शिवाजी]] के जीवन से जुड़े प्रसंगों पर महोत्सवों का आयोजन। तिलक का जीवन घटना-प्रधान रहा था। वे मौलिक विचारों के व्यक्ति थे। वे संघर्षशील और परिश्रमशील जीवन जीने में विश्वास करते थे। अधिक जानकारी के लिए देखें :- [[बाल गंगाधर तिलक]] | ||
{किस [[राष्ट्रकूट वंश|राष्ट्रकूट]] शासक ने [[एलोरा की गुफ़ाएँ|एलोरा]] के [[पर्वत|पर्वतों]] को काटकर प्रसिद्ध 'कैलाश मन्दिर' का निर्माण करवाया था? | {किस [[राष्ट्रकूट वंश|राष्ट्रकूट]] शासक ने [[एलोरा की गुफ़ाएँ|एलोरा]] के [[पर्वत|पर्वतों]] को काटकर प्रसिद्ध 'कैलाश मन्दिर' का निर्माण करवाया था? | ||
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-[[ध्रुव धारावर्ष]] | -[[ध्रुव धारावर्ष]] | ||
-[[कृष्ण तृतीय]] | -[[कृष्ण तृतीय]] | ||
||[[चालुक्य वंश|चालुक्यों]] की शक्ति को अविकल रूप से नष्ट करके [[राष्ट्रकूट]] राजा [[कृष्ण प्रथम]] ने [[कोंकण]] और [[वेंगि]] की भी विजय की थी। लेकिन कृष्ण प्रथम की ख्याति उसकी विजय यात्राओं के कारण उतनी नहीं है, जितनी कि उस 'कैलाश मन्दिर' के कारण है, जिसका निर्माण उसने [[एलोरा]] में पहाड़ काटकर कराया था। एलोरा के गुहा मन्दिरों में कृष्ण प्रथम द्वारा निर्मित 'कैलाश मन्दिर' बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है और उसकी कीर्ति को चिरस्थायी रखने के लिए पर्याप्त है। | ||[[चित्र:Ellora-Caves-Aurangabad-Maharashtra-3.jpg|एलोरा की गुफ़ाएं, औरंगाबाद|90px|right]][[चालुक्य वंश|चालुक्यों]] की शक्ति को अविकल रूप से नष्ट करके [[राष्ट्रकूट]] राजा [[कृष्ण प्रथम]] ने [[कोंकण]] और [[वेंगि]] की भी विजय की थी। लेकिन कृष्ण प्रथम की ख्याति उसकी विजय यात्राओं के कारण उतनी नहीं है, जितनी कि उस 'कैलाश मन्दिर' के कारण है, जिसका निर्माण उसने [[एलोरा]] में पहाड़ काटकर कराया था। एलोरा के गुहा मन्दिरों में कृष्ण प्रथम द्वारा निर्मित 'कैलाश मन्दिर' बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है और उसकी कीर्ति को चिरस्थायी रखने के लिए पर्याप्त है। अधिक जानकारी के लिए देखें :- [[कृष्ण प्रथम]] | ||
{[[वेंगी]] के [[चालुक्य वंश]] का संस्थापक कौन था? | {[[वेंगी]] के [[चालुक्य वंश]] का संस्थापक कौन था? | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
+विष्णुवर्धन | +[[कुब्ज विष्णुवर्धन]] | ||
-[[विजयादित्य]] | -[[विजयादित्य]] | ||
-इन्द्रवर्धन | -इन्द्रवर्धन | ||
-[[जयसिंह जगदेकमल्ल | -[[जयसिंह जगदेकमल्ल]] | ||
||जिस समय [[वातापी कर्नाटक|वातापी]] के प्रसिद्ध [[चालुक्य राजवंश|चालुक्य]] सम्राट [[पुलकेशी द्वितीय]] ने सातवीं सदी के पूर्वार्ध में दक्षिणापथ में अपने विशाल साम्राज्य की स्थापना की, उसने अपने छोटे भाई विष्णुवर्धन को [[वेंगि]] का शासन करने के लिए नियुक्त किया। विष्णुवर्धन की स्थिति एक प्रान्तीय शासक के समान थी और वह पुलकेशी द्वितीय की ओर से ही [[कृष्णा नदी|कृष्णा]] और [[गोदावरी नदी|गोदावरी]] नदियों के मध्यवर्ती प्रदेश का शासन करता था। पर उसका पुत्र [[जयसिंह चालुक्य|जयसिंह प्रथम]] पूर्णतया स्वतंत्र हो गया था और इस प्रकार पूर्वी चालुक्य वंश का प्रादुर्भाव हुआ। इस वंश के स्वतंत्र राज्य का प्रारम्भ काल सातवीं सदी के मध्य भाग में था। | ||जिस समय [[वातापी कर्नाटक|वातापी]] के प्रसिद्ध [[चालुक्य राजवंश|चालुक्य]] सम्राट [[पुलकेशी द्वितीय]] ने सातवीं सदी के पूर्वार्ध में दक्षिणापथ में अपने विशाल साम्राज्य की स्थापना की, उसने अपने छोटे भाई [[कुब्ज विष्णुवर्धन]] को [[वेंगि]] का शासन करने के लिए नियुक्त किया। विष्णुवर्धन की स्थिति एक प्रान्तीय शासक के समान थी और वह पुलकेशी द्वितीय की ओर से ही [[कृष्णा नदी|कृष्णा]] और [[गोदावरी नदी|गोदावरी]] नदियों के मध्यवर्ती प्रदेश का शासन करता था। पर उसका पुत्र [[जयसिंह चालुक्य|जयसिंह प्रथम]] पूर्णतया स्वतंत्र हो गया था और इस प्रकार पूर्वी चालुक्य वंश का प्रादुर्भाव हुआ। इस वंश के स्वतंत्र राज्य का प्रारम्भ काल सातवीं सदी के मध्य भाग में था। अधिक जानकारी के लिए देखें :- [[चालुक्य वंश]] | ||
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- इस विषय से संबंधित लेख पढ़ें:- इतिहास प्रांगण, इतिहास कोश, ऐतिहासिक स्थान कोश
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