"चित्र:Sri-ramcharitmanas.jpg": अवतरणों में अंतर
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विवरण (Description) | गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित रामचरितमानस |
अन्य विवरण | गोस्वामी तुलसीदास [1497 (1532?) - 1623] एक महान कवि थे। उनका जन्म राजापुर, (वर्तमान बाँदा ज़िला) उत्तर प्रदेश में हुआ था। |
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चित्र का इतिहास
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दिनांक/समय | अंगुष्ठ नखाकार (थंबनेल) | आकार | सदस्य | टिप्पणी | |
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वर्तमान | 12:38, 5 अक्टूबर 2013 | 555 × 736 (403 KB) | गोविन्द राम (वार्ता | योगदान) |
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चित्र का उपयोग
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- अकथ अलौकिक तीरथराऊ
- अति कृपाल रघुनायक
- अनुसुइया के पद गहि सीता
- अनूप रूप भूपतिं
- आतुर सभय गहेसि पद जाई
- उघरहिं बिमल बिलोचन ही के
- उदासीन अरि मीत हित
- उपजहिं एक संग जग माहीं
- उमा राम गुन गूढ़
- एक बार चुनि कुसुम सुहाए
- एक रचना
- एक समय सब सहित समाजा
- ऐसेहु पति कर किएँ अपमाना
- कहि न जाइ कछु नगर बिभूती
- काहूँ बैठन कहा न ओही
- कीन्ह मोह बस द्रोह
- कुंद इंदु सम देह
- खल अघ अगुन साधु गुन गाहा
- गुरु पद रज मृदु मंजुल अंजन
- छन सुख लागि जनम सत कोटी
- जग पतिब्रता चारि बिधि अहहीं
- जथा सुअंजन अंजि
- जब तें रामु ब्याहि घर आए
- जासु कृपा अज सिव सनकादी
- जो सुमिरत सिधि होइ
- तमेकमद्भुतं प्रभुं
- तेज कृसानु रोष महिषेसा
- त्वदंघ्रि मूल ये नरा
- दिनेश वंश मंडनं
- दिब्य बसन भूषन पहिराए
- दुख सुख पाप पुन्य दिन राती
- देखि राम छबि नयन जुड़ाने
- धीरज धर्म मित्र अरु नारी
- नमामि इंदिरा पतिं
- नमामि भक्त वत्सलं
- नारद देखा बिकल जयंता
- निकाम श्याम सुंदरं
- निज कृत कर्म जनित फल पायउँ
- नील सरोरुह स्याम
- पठंति ये स्तवं इदं
- पति प्रतिकूल जनम जहँ जाई
- पर अकाजु लगि तनु परिहरहीं
- पुनि प्रनवउँ पृथुराज समाना
- पुर नर भरत प्रीति मैं गाई
- पुलकित गात अत्रि उठि धाए
- प्रभु आसन आसीन भरि
- प्रलंब बाहु विक्रमं
- प्रेरित मंत्र ब्रह्मसर धावा
- बंदउँ गुरु पद कंज
- बंदउँ प्रथम महीसुर चरना
- बंदउँ संत असज्जन चरना
- बंदउँ संत समान चित
- बंदऊँ गुरु पद पदुम परागा
- बचन बज्र जेहि सदा पिआरा
- बटु बिस्वास अचल निज धरमा
- बहुरि बंदि खल गन सतिभाएँ
- बालमीक नारद घटजोनी
- बिधि निषेधमय कलिमल हरनी
- बिधि हरि हर कबि कोबिद बानी
- बिनती करि मुनि नाइ
- बिनु अवसर भय तें रह जोई
- बिनु सतसंग बिबेक न होई
- भजामि भाव वल्लभं
- भल अनभल निज निज करतूती
- भलेउ पोच सब बिधि उपजाए
- भलो भलाइहि पै
- भा निरास उपजी मन त्रासा
- मज्जन फल पेखिअ ततकाला
- मति कीरति गति भूति भलाई
- मध्यम परपति देखइ कैसें
- मनोज वैरि वंदितं
- मातु पिता भ्राता हितकारी
- मित्र करइ सत रिपु कै करनी
- मुक्ति जन्म महि जान
- मुद मंगलमय संत समाजू
- मुदित मातु सब सखीं सहेली
- मूक होइ बाचाल पंगु
- मैं अपनी दिसि कीन्ह निहोरा
- रघुपति चित्रकूट बसि नाना
- रामचरितमानस
- रामचरितमानस चतुर्थ सोपान (किष्किंधा काण्ड)
- रामचरितमानस तृतीय सोपान (अरण्यकाण्ड)
- रामचरितमानस द्वितीय सोपान (अयोध्या काण्ड)
- रामचरितमानस प्रथम सोपान (बालकाण्ड)
- रिधि सिधि संपति नदीं सुहाई
- विविक्त वासिनः सदा
- श्री गुर पद नख मनि गन जोती
- श्री गुरु चरन सरोज रज
- संत सरल चित जगत
- संतत मो पर कृपा करेहू
- सकल मुनिन्ह सन बिदा कराई
- सठ सुधरहिं सतसंगति पाई
- सब कें उर अभिलाषु
- सहज अपावनि नारि पति
- साधु चरित सुभ चरित कपासू
- सीता चरन चोंच हति भागा
- सुकृति संभु तन बिमल बिभूती
- सुनि जानकीं परम सुखु पावा
- सुनि समुझहिं जन मुदित
- सुनु सीता तव नाम
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