|
|
(2 सदस्यों द्वारा किए गए बीच के 3 अवतरण नहीं दर्शाए गए) |
पंक्ति 8: |
पंक्ति 8: |
| | | | | |
| <quiz display=simple> | | <quiz display=simple> |
| {[[हिन्दू धर्म संस्कार|हिन्दू धर्म संस्कारों]] में दसवाँ संस्कार कौन-सा है?
| |
| |type="()"}
| |
| -[[समावर्तन संस्कार|समावर्तन]]
| |
| +[[उपनयन संस्कार|उपनयन]]
| |
| -[[विवाह संस्कार|विवाह]]
| |
| -[[केशान्त संस्कार|केशान्त]]
| |
| ||[[चित्र:Upanayana-1.jpg|right|80px|उपनयन संस्कार]]हिन्दू धर्म संस्कारों में '[[उपनयन संस्कार]]' दशम संस्कार है। 'उपनयन' का अर्थ है "पास या सन्निकट ले जाना। इसी को 'यज्ञोपवीत-संस्कार' भी कहते हैं। इस संस्कार में वटुक को '[[गायत्री मंत्र]]' की दीक्षा दी जाती है और यज्ञोपवीत धारण कराया जाता है। विशेषकर अपनी-अपनी शाखा के अनुसार वेदाध्ययन किया जाता है। यह संस्कार [[ब्राह्मण]] बालक का आठवें [[वर्ष]] में, [[क्षत्रिय]] बालक का ग्यारहवें वर्ष में और [[वैश्य]] बालक का बारहवें वर्ष में होता है। कन्याओं को इस संस्कार का अधिकार नहीं दिया गया है। केवल [[विवाह संस्कार]] ही उनके लिये द्विजत्व के रूप में परिणत करने वाला संस्कार माना गया है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[उपनयन संस्कार]]
| |
|
| |
| {[[विवाह]] की रस्म के दौरान दूल्हे को क्या माना जाता है?
| |
| |type="()"}
| |
| -[[ब्रह्मा]]
| |
| -[[शिव]] या [[महेश]]
| |
| +[[विष्णु]]
| |
| -[[राम]]
| |
| ||[[चित्र:God-Vishnu.jpg|right|90px|भगवान विष्णु]][[हिन्दू धर्म]] में भगवान [[विष्णु]] को सभी देवताओं में श्रेष्ठ माना गया है। सर्वव्यापक परमात्मा ही भगवान श्रीविष्णु हैं। यह सम्पूर्ण विश्व भगवान [[विष्णु]] की शक्ति से ही संचालित है। वे निर्गुण भी हैं और सगुण भी। '[[पद्मपुराण]]' के उत्तरखण्ड में वर्णन है कि भगवान विष्णु ही परमार्थ तत्त्व हैं। वे ही [[ब्रह्मा]] और [[शिव]] सहित समस्त सृष्टि के आदि कारण हैं। जहाँ ब्रह्मा को विश्व का सृजन करने वाला माना जाता है, वहीं शिव को संहारक माना गया है। [[विष्णु]] की सहचारिणी [[लक्ष्मी]] हैं, जो [[भक्त]] भगवान विष्णु के नामों का कीर्तन, स्मरण, उनके अर्चाविग्रह का दर्शन, वन्दन, गुणों का श्रवण और उनका पूजन करता है, उसके सभी पाप-ताप विनष्ट हो जाते हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[विष्णु]]
| |
|
| |
| {[[श्राद्ध]] के समय कौन-सी [[धातु]] सबसे अधिक पवित्र मानी जाती है?
| |
| |type="()"}
| |
| +[[चाँदी]]
| |
| -[[स्वर्ण]]
| |
| -[[ताँबा]]
| |
| -[[लोहा]]
| |
| ||[[चित्र:Silver.jpg|right|100px|चाँदी]]'चाँदी' [[सफ़ेद रंग]] की चमकदार [[धातु]] है। यह [[ऊष्मा]] व [[विद्युत]] की सबसे अच्छी सुचालक होती है। [[चाँदी]] का उपयोग सिक्के व [[आभूषण]] बनाने में, बर्तनों में चढ़ाने में, सिल्वर ब्रोमाइड (फ़ोटोग्राफ़ी में) बनाने में किया जाता है। चाँदी से बनी मिश्र धातुयें अत्यधिक उपयोगी होती हैं। [[भारत]] में इसका बहुत कम उत्पादन होता है। भारत में इसके प्रमुख उत्पादक क्षेत्र हैं- [[राजस्थान]] में 'जावर माइन्स', [[कर्नाटक]] में [[चित्रदुर्ग ज़िला|चित्रदुर्ग]] तथा [[बेल्लारी ज़िला|बेल्लारी ज़िले]], [[आन्ध्र प्रदेश]] में [[कडपा ज़िला|कडपा]], [[गुंटूर ज़िला|गुंटूर]] तथा [[कुरनूल ज़िला|कुरनूल ज़िले]], [[झारखण्ड]] में [[संथाली भाषा|संथाल]] परगना तथा [[उत्तराखण्ड]] में [[अल्मोड़ा]]।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[चाँदी]], [[श्राद्ध]], [[धातु]]
| |
|
| |
| {निम्नलिखित में से किस महापुरुष को 'साबरमती का संत' कहा जाता है?
| |
| |type="()"}
| |
| -[[लाला लाजपत राय]]
| |
| -[[जवाहरलाल नेहरू|पण्डित जवाहरलाल नेहरू]]
| |
| -[[बाल गंगाधर तिलक]]
| |
| +[[महात्मा गाँधी]]
| |
| ||[[चित्र:Mahatma-Gandhi-2.jpg|right|100px|महात्मा गाँधी]]'महात्मा गाँधी' को ब्रिटिश शासन के ख़िलाफ़ '[[भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन]]' का सशक्त नेता और 'राष्ट्रपिता' माना जाता है। इनका पूरा नाम 'मोहनदास करमचंद गाँधी' था। राजनीतिक और सामाजिक प्रगति की प्राप्ति हेतु अपने अहिंसक विरोध के सिद्धांत के लिए [[महात्मा गाँधी]] को अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त हुई थी। गाँधीजी [[भारत]] एवं '[[भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन]]' के एक प्रमुख राजनीतिक एवं आध्यात्मिक नेता थे। '[[साबरमती आश्रम]]' से उनका अटूट रिश्ता था। इस आश्रम से वे आजीवन जुड़े रहे, इसीलिए उन्हें 'साबरमती का संत' की उपाधि भी मिली। गाँधीजी ने रचनात्मक कार्यों को खूब महत्व दिया। वह केवल राजनीतिक स्वतंत्रता ही नहीं चाहते थे, अपितु जनता की आर्थिक, सामाजिक और आत्मिक उन्नति भी चाहते थे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[महात्मा गाँधी]], [[गाँधी युग]]
| |
|
| |
| {किस महापुरुष के नाम के पश्चात 'महाप्रभु' शब्द लगाया जाता है?
| |
| |type="()"}
| |
| -[[ईश्वरचन्द्र विद्यासागर|विद्यासागर]]
| |
| -[[कबीर]]
| |
| +[[चैतन्य]]
| |
| -[[सूरदास]]
| |
| ||[[चित्र:Chetanya-Mahaprabhu.jpg|right|100px|चैतन्य महाप्रभु]]'चैतन्य महाप्रभु' [[भक्तिकाल]] के प्रमुख कवियों में से एक थे। इन्होंने [[वैष्णव|वैष्णवों]] के [[गौड़ीय सम्प्रदाय|गौड़ीय संप्रदाय]] की आधारशिला रखी थी। [[चैतन्य महाप्रभु]] ने भजन गायकी की एक नयी शैली को जन्म दिया तथा राजनीतिक अस्थिरता के दिनों में [[हिन्दू]]-[[मुस्लिम]] एकता की सद्भावना को बल दिया, जात-पात, ऊँच-नीच की भावना को दूर करने की शिक्षा दी तथा विलुप्त [[वृन्दावन]] को फिर से बसाया और अपने जीवन का अंतिम भाग वहीं व्यतीत किया। चैतन्य महाप्रभु को इनके अनुयायी [[कृष्ण]] का [[अवतार]] भी मानते रहे हैं। सन 1509 में जब ये अपने [[पिता]] का [[श्राद्ध]] करने [[गया]] गए थे, तब वहाँ इनकी मुलाक़ात ईश्वरपुरी नामक संत से हुई। उस संत ने इनसे 'कृष्ण-कृष्ण' रटने को कहा। तभी से इनका सारा जीवन बदल गया और ये हर समय भगवान श्रीकृष्ण की [[भक्ति]] में लीन रहने लगे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[चैतन्य महाप्रभु]]
| |
|
| |
| {निम्नलिखित में से कौन-सा नगर 'तीर्थराज' के नाम से प्रसिद्ध है? | | {निम्नलिखित में से कौन-सा नगर 'तीर्थराज' के नाम से प्रसिद्ध है? |
| |type="()"} | | |type="()"} |
पंक्ति 54: |
पंक्ति 14: |
| -[[काशी]] | | -[[काशी]] |
| -[[उज्जैन]] | | -[[उज्जैन]] |
| ||[[चित्र:Sangam-Allahabad.jpg|right|100px|प्रयाग]]'प्रयाग' का आधुनिक नाम [[इलाहाबाद]] है। [[प्रयाग]] [[उत्तर प्रदेश]] का प्राचीन तीर्थस्थान है, जिसका नाम [[अश्वमेध यज्ञ|अश्वमेध]] आदि अनेक [[यज्ञ]] होने से पड़ा था। यह [[गंगा]]-[[यमुना]] के [[संगम (इलाहाबाद)|संगम]] पर स्थित है तथा यहाँ का [[स्नान]] "त्रिवेणी स्नान" कहा जाता है। [[प्रयाग]] का [[मुस्लिम]] शासन में 'इलाहाबाद' नाम कर दिया गया था, परंतु 'प्रयाग' नाम आज भी प्रचलित है। यहाँ [[उत्तर प्रदेश]] का उच्च न्यायालय और एजी कार्यालय भी है। [[रामायण]] में इलाहाबाद, प्रयाग के नाम से वर्णित है। [[ब्रह्मपुराण]] का कथन है- 'प्रकृष्टता के कारण यह 'प्रयाग' है और प्रधानता के कारण यह 'राज' शब्द अर्थात 'तीर्थराज' से युक्त है। ऐसा माना जाता है कि इस संगम पर भूमिगत रूप से [[सरस्वती नदी]] भी आकर मिलती है। इलाहाबाद का उल्लेख [[भारत]] के धार्मिक ग्रन्थों में भी मिलता है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[प्रयाग]], [[कुम्भ मेला]], [[कल्पवास]] | | ||[[चित्र:Sangam-Allahabad.jpg|right|100px|प्रयाग]]'प्रयाग' का आधुनिक नाम [[इलाहाबाद]] है। [[प्रयाग]] [[उत्तर प्रदेश]] का प्राचीन तीर्थस्थान है, जिसका नाम [[अश्वमेध यज्ञ|अश्वमेध]] आदि अनेक [[यज्ञ]] होने से पड़ा था। यह [[गंगा]]-[[यमुना]] के [[संगम (इलाहाबाद)|संगम]] पर स्थित है तथा यहाँ का [[स्नान]] "त्रिवेणी स्नान" कहा जाता है। [[प्रयाग]] का [[मुस्लिम]] शासन में 'इलाहाबाद' नाम कर दिया गया था, परंतु 'प्रयाग' नाम आज भी प्रचलित है। यहाँ [[उत्तर प्रदेश]] का उच्च न्यायालय और एजी कार्यालय भी है। [[रामायण]] में इलाहाबाद, प्रयाग के नाम से वर्णित है। [[ब्रह्मपुराण]] का कथन है- 'प्रकृष्टता के कारण यह 'प्रयाग' है और प्रधानता के कारण यह 'राज' शब्द अर्थात् 'तीर्थराज' से युक्त है। ऐसा माना जाता है कि इस संगम पर भूमिगत रूप से [[सरस्वती नदी]] भी आकर मिलती है। इलाहाबाद का उल्लेख [[भारत]] के धार्मिक ग्रन्थों में भी मिलता है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[प्रयाग]], [[कुम्भ मेला]], [[कल्पवास]] |
|
| |
|
| {निम्न में से किस राज्य में '[[जगन्नाथ रथयात्रा]]' निकाली जाती है? | | {निम्न में से किस राज्य में '[[जगन्नाथ रथयात्रा]]' निकाली जाती है? |
पंक्ति 78: |
पंक्ति 38: |
| -[[रामकृष्ण परमहंस]] | | -[[रामकृष्ण परमहंस]] |
| +[[दयानन्द सरस्वती]] | | +[[दयानन्द सरस्वती]] |
| ||[[चित्र:Dayanand-Saraswati.jpg|right|90px|दयानन्द सरस्वती]]'स्वामी दयानन्द सरस्वती' [[आर्य समाज]] के प्रवर्तक और प्रखर सुधारवादी सन्यासी थे। प्राचीन [[ऋषि|ऋषियों]] के वैदिक सिद्धांतों के पक्षपाती [[दयानन्द सरस्वती]] का जन्म [[गुजरात]] की छोटी-सी रियासत 'मोरवी' के [[टंकारा]] नामक गाँव में हुआ था। [[मूल नक्षत्र]] में पैदा होने के कारण ही इनका नाम 'मूलशंकर' रखा गया था। स्वामी दयानंद सरस्वती ने अपने विचारों के प्रचार के लिए [[हिन्दी भाषा]] को अपनाया। उनकी सभी रचनाएँ और सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण ग्रंथ 'सत्यार्थ प्रकाश' मूल रूप में हिन्दी भाषा में लिखा गया है। स्वामीजी का कहना था- "मेरी [[आँख]] तो उस दिन को देखने के लिए तरस रही है, जब [[कश्मीर]] से [[कन्याकुमारी]] तक सब भारतीय एक ही [[भाषा]] बोलने और समझने लग जाएँगे।"{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[दयानन्द सरस्वती]] | | ||[[चित्र:Dayanand-Saraswati.jpg|right|90px|दयानन्द सरस्वती]]'स्वामी दयानन्द सरस्वती' [[आर्य समाज]] के प्रवर्तक और प्रखर सुधारवादी संन्यासी थे। प्राचीन [[ऋषि|ऋषियों]] के वैदिक सिद्धांतों के पक्षपाती [[दयानन्द सरस्वती]] का जन्म [[गुजरात]] की छोटी-सी रियासत 'मोरवी' के [[टंकारा]] नामक गाँव में हुआ था। [[मूल नक्षत्र]] में पैदा होने के कारण ही इनका नाम 'मूलशंकर' रखा गया था। स्वामी दयानंद सरस्वती ने अपने विचारों के प्रचार के लिए [[हिन्दी भाषा]] को अपनाया। उनकी सभी रचनाएँ और सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण ग्रंथ 'सत्यार्थ प्रकाश' मूल रूप में हिन्दी भाषा में लिखा गया है। स्वामीजी का कहना था- "मेरी [[आँख]] तो उस दिन को देखने के लिए तरस रही है, जब [[कश्मीर]] से [[कन्याकुमारी]] तक सब भारतीय एक ही [[भाषा]] बोलने और समझने लग जाएँगे।"{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[दयानन्द सरस्वती]] |
|
| |
|
| {[[ब्रह्मा]] के मुख से किस देवी की उत्पत्ति मानी जाती है? | | {[[ब्रह्मा]] के मुख से किस देवी की उत्पत्ति मानी जाती है? |