"गोकरननाथ मिश्र": अवतरणों में अंतर
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'''गोकरननाथ मिश्र''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Gokrannath Mishra'' जन्म- [[20 दिसम्बर]], [[1871]], [[उत्तर प्रदेश]]; मृत्यु- [[जुलाई]], [[1929]]) प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ, नेता और न्यायविद थे। वर्ष [[1898]] की लखनऊ कांग्रेस में उन्होंने पहली बार भाग लिया था। इसके बाद उन्होंने वर्ष [[1920]] तक [[कांग्रेस]] के होने वाले हर एक अधिवेशन में भाग लिया। गोकरननाथ मिश्र नरम विचारों वाले व्यक्ति थे, यही कारण था कि | '''गोकरननाथ मिश्र''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Gokrannath Mishra'' जन्म- [[20 दिसम्बर]], [[1871]], [[उत्तर प्रदेश]]; मृत्यु- [[जुलाई]], [[1929]]) प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ, नेता और न्यायविद थे। [[वर्ष]] [[1898]] ई. की लखनऊ कांग्रेस में उन्होंने पहली बार भाग लिया था। इसके बाद उन्होंने वर्ष [[1920]] तक [[कांग्रेस]] के होने वाले हर एक अधिवेशन में भाग लिया। गोकरननाथ मिश्र नरम विचारों वाले व्यक्ति थे, यही कारण था कि जब [[महात्मा गाँधी]] ने '[[असहयोग आन्दोलन]]' प्रारम्भ किया, तब वे [[कांग्रेस]] से अलग हो गये। उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में भी बहुत योगदान दिया था। | ||
==जन्म तथा शिक्षा== | ==जन्म तथा शिक्षा== | ||
गोकरननाथ मिश्र का जन्म 20 दिसम्बर, 1871 ई. में [[उत्तर प्रदेश]] के [[हरदोई ज़िला|हरदोई ज़िले]] में हुआ था। वे एक सनातनी [[ब्राह्मण]] [[परिवार]] से सम्बन्ध रखते थे। गोकरननाथ जी प्रारम्भ से ही प्रखर बुद्धि के प्रतिभाशाली छात्र रहे थे। उन्होंने अपनी स्नातक की परीक्षा बहुत ही अच्छे अंकों के साथ उत्तीर्ण की थी, इसीलिए उन्हें [[इंग्लैंण्ड]] जाकर आगे का अध्ययन करने के लिये नियमित छात्रवृत्ति भी मिलनी थी। किंतु प्राचीन रूढ़ीवादी विचारों वाले उनके दादा-दादी ने गोकरननाथ के विदेश जाने का बहुत विरोध किया, जिसके फलस्वरूप गोकरननाथ मिश्र आगे की उच्च शिक्षा के लिए [[इंग्लैंण्ड]] नहीं जा सके। बाद में उन्होंने '[[लखनऊ विश्वविद्यालय]]' में प्रवेश ले लिया और यहाँ से एम.एस.सी. की परीक्षा उत्तीर्ण की और फिर यहीं से ही क़ानून की डिग्री भी प्राप्त की।<ref name="ab">{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन= |संपादन=|पृष्ठ संख्या=241|url=}}</ref> | गोकरननाथ मिश्र का जन्म 20 दिसम्बर, 1871 ई. में [[उत्तर प्रदेश]] के [[हरदोई ज़िला|हरदोई ज़िले]] में हुआ था। वे एक सनातनी [[ब्राह्मण]] [[परिवार]] से सम्बन्ध रखते थे। गोकरननाथ जी प्रारम्भ से ही प्रखर बुद्धि के प्रतिभाशाली छात्र रहे थे। उन्होंने अपनी स्नातक की परीक्षा बहुत ही अच्छे अंकों के साथ उत्तीर्ण की थी, इसीलिए उन्हें [[इंग्लैंण्ड]] जाकर आगे का अध्ययन करने के लिये नियमित छात्रवृत्ति भी मिलनी थी। किंतु प्राचीन रूढ़ीवादी विचारों वाले उनके दादा-दादी ने गोकरननाथ के विदेश जाने का बहुत विरोध किया, जिसके फलस्वरूप गोकरननाथ मिश्र आगे की उच्च शिक्षा के लिए [[इंग्लैंण्ड]] नहीं जा सके। बाद में उन्होंने '[[लखनऊ विश्वविद्यालय]]' में प्रवेश ले लिया और यहाँ से एम.एस.सी. की परीक्षा उत्तीर्ण की और फिर यहीं से ही क़ानून की डिग्री भी प्राप्त की।<ref name="ab">{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन= |संपादन=|पृष्ठ संख्या=241|url=}}</ref> | ||
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'लखनऊ विश्वविद्यालय' से क़ानून की डिग्री प्राप्त करने के बाद गोकरननाथ मिश्र जी ने वकालत शुरू करने के साथ ही व्यावसायिक जीवन में कदम रखा। शीघ्र ही अपनी वकालत से उनकी प्रसिद्धि प्रदेश के प्रमुख वकीलों में होने लगी। इसके साथ ही अब वे [[कांग्रेस]] के कार्यों मे भी भाग लेने लगे। | 'लखनऊ विश्वविद्यालय' से क़ानून की डिग्री प्राप्त करने के बाद गोकरननाथ मिश्र जी ने वकालत शुरू करने के साथ ही व्यावसायिक जीवन में कदम रखा। शीघ्र ही अपनी वकालत से उनकी प्रसिद्धि प्रदेश के प्रमुख वकीलों में होने लगी। इसके साथ ही अब वे [[कांग्रेस]] के कार्यों मे भी भाग लेने लगे। | ||
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वर्ष [[1898]] की लखनऊ कांग्रेस में उन्होंने पहली बार भाग लिया। अब उनका सम्बन्ध [[गंगाप्रसाद वर्मा]], [[मदन मोहन मालवीय]], [[मोतीलाल नेहरू]] और विशन नारायण दर जैसे तत्कालीन | वर्ष [[1898]] की लखनऊ कांग्रेस में उन्होंने पहली बार भाग लिया। अब उनका सम्बन्ध [[गंगाप्रसाद वर्मा]], [[मदन मोहन मालवीय]], [[मोतीलाल नेहरू]] और विशन नारायण दर जैसे तत्कालीन महान् नेताओं से हो गया। [[1920]] तक वे नियमित रूप से कांग्रेस के अधिवेशनों में जाते रहे और लोकहित के प्रश्न उठाते रहे। वर्ष [[1915]] से [[1913]] तक वे [[उत्तर प्रदेश]] में कौंसिल के सदस्य भी रहे। गोकरननाथ मिश्र नरम राजनीतिक विचारों के नेता थे। इसलिये [[महात्मा गाँधी|राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी]] के '[[असहयोग आन्दोलन]]' आरंभ करने पर वे [[कांग्रेस]] से अलग हो गये।<ref name="ab"/> | ||
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[[1925]] में उन्हें 'अवध चीफ़ कोर्ट' का न्यायाधीश नियुक्त किया गया। गोकरननाथ मिश्र सदा किसानों और निर्बल वर्गों का पक्ष लेते थे। समस्त विरोधों के बाद भी अपनी विधवा पुत्री का [[विवाह]] करके उन्होंने तत्कालीन रूढ़िवाद से जकड़े समाज के समक्ष एक उच्च उदाहरण प्रस्तुत किया था। शिक्षा के क्षेत्र में [[लखनऊ]] का महिला विद्यालय उनके योगदान का स्मारक है। | [[1925]] में उन्हें 'अवध चीफ़ कोर्ट' का न्यायाधीश नियुक्त किया गया। गोकरननाथ मिश्र सदा किसानों और निर्बल वर्गों का पक्ष लेते थे। समस्त विरोधों के बाद भी अपनी विधवा पुत्री का [[विवाह]] करके उन्होंने तत्कालीन रूढ़िवाद से जकड़े समाज के समक्ष एक उच्च उदाहरण प्रस्तुत किया था। शिक्षा के क्षेत्र में [[लखनऊ]] का महिला विद्यालय उनके योगदान का स्मारक है। | ||
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05:13, 20 दिसम्बर 2017 के समय का अवतरण
गोकरननाथ मिश्र
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पूरा नाम | गोकरननाथ मिश्र |
जन्म | 20 दिसम्बर, 1871 |
जन्म भूमि | उत्तर प्रदेश |
मृत्यु | जुलाई, 1929 |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | राजनीतिज्ञ, न्यायविद |
शिक्षा | एम.एस.सी. (स्नातकोत्तर) |
विद्यालय | लखनऊ विश्वविद्यालय |
विशेष योगदान | वर्ष 1915 से 1913 तक वे उत्तर प्रदेश में कौंसिल के सदस्य रहे। |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | गोकरननाथ मिश्र सदा किसानों और निर्बल वर्गों का पक्ष लेते थे। समस्त विरोधों के बाद भी अपनी विधवा पुत्री का विवाह करके उन्होंने तत्कालीन रूढ़िवाद से जकड़े समाज के समक्ष एक उच्च उदाहरण प्रस्तुत किया था। |
गोकरननाथ मिश्र (अंग्रेज़ी: Gokrannath Mishra जन्म- 20 दिसम्बर, 1871, उत्तर प्रदेश; मृत्यु- जुलाई, 1929) प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ, नेता और न्यायविद थे। वर्ष 1898 ई. की लखनऊ कांग्रेस में उन्होंने पहली बार भाग लिया था। इसके बाद उन्होंने वर्ष 1920 तक कांग्रेस के होने वाले हर एक अधिवेशन में भाग लिया। गोकरननाथ मिश्र नरम विचारों वाले व्यक्ति थे, यही कारण था कि जब महात्मा गाँधी ने 'असहयोग आन्दोलन' प्रारम्भ किया, तब वे कांग्रेस से अलग हो गये। उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में भी बहुत योगदान दिया था।
जन्म तथा शिक्षा
गोकरननाथ मिश्र का जन्म 20 दिसम्बर, 1871 ई. में उत्तर प्रदेश के हरदोई ज़िले में हुआ था। वे एक सनातनी ब्राह्मण परिवार से सम्बन्ध रखते थे। गोकरननाथ जी प्रारम्भ से ही प्रखर बुद्धि के प्रतिभाशाली छात्र रहे थे। उन्होंने अपनी स्नातक की परीक्षा बहुत ही अच्छे अंकों के साथ उत्तीर्ण की थी, इसीलिए उन्हें इंग्लैंण्ड जाकर आगे का अध्ययन करने के लिये नियमित छात्रवृत्ति भी मिलनी थी। किंतु प्राचीन रूढ़ीवादी विचारों वाले उनके दादा-दादी ने गोकरननाथ के विदेश जाने का बहुत विरोध किया, जिसके फलस्वरूप गोकरननाथ मिश्र आगे की उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंण्ड नहीं जा सके। बाद में उन्होंने 'लखनऊ विश्वविद्यालय' में प्रवेश ले लिया और यहाँ से एम.एस.सी. की परीक्षा उत्तीर्ण की और फिर यहीं से ही क़ानून की डिग्री भी प्राप्त की।[1]
व्यावसायिक जीवन की शुरुआत
'लखनऊ विश्वविद्यालय' से क़ानून की डिग्री प्राप्त करने के बाद गोकरननाथ मिश्र जी ने वकालत शुरू करने के साथ ही व्यावसायिक जीवन में कदम रखा। शीघ्र ही अपनी वकालत से उनकी प्रसिद्धि प्रदेश के प्रमुख वकीलों में होने लगी। इसके साथ ही अब वे कांग्रेस के कार्यों मे भी भाग लेने लगे।
कांग्रेस का साथ
वर्ष 1898 की लखनऊ कांग्रेस में उन्होंने पहली बार भाग लिया। अब उनका सम्बन्ध गंगाप्रसाद वर्मा, मदन मोहन मालवीय, मोतीलाल नेहरू और विशन नारायण दर जैसे तत्कालीन महान् नेताओं से हो गया। 1920 तक वे नियमित रूप से कांग्रेस के अधिवेशनों में जाते रहे और लोकहित के प्रश्न उठाते रहे। वर्ष 1915 से 1913 तक वे उत्तर प्रदेश में कौंसिल के सदस्य भी रहे। गोकरननाथ मिश्र नरम राजनीतिक विचारों के नेता थे। इसलिये राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के 'असहयोग आन्दोलन' आरंभ करने पर वे कांग्रेस से अलग हो गये।[1]
योगदान
1925 में उन्हें 'अवध चीफ़ कोर्ट' का न्यायाधीश नियुक्त किया गया। गोकरननाथ मिश्र सदा किसानों और निर्बल वर्गों का पक्ष लेते थे। समस्त विरोधों के बाद भी अपनी विधवा पुत्री का विवाह करके उन्होंने तत्कालीन रूढ़िवाद से जकड़े समाज के समक्ष एक उच्च उदाहरण प्रस्तुत किया था। शिक्षा के क्षेत्र में लखनऊ का महिला विद्यालय उनके योगदान का स्मारक है।
'बोर्ड ऑफ़ इण्डिया मेडिसिन' के अध्यक्ष
उत्तर प्रदेश सरकार ने आयुर्वेद तथा यूनानी तिब्बी चिकित्सा पद्धतियों के विकास की व्यवस्था करने तथा उनके व्यवसाय को विनियमित करने, सुव्यवस्थित करने तथा संगठित करने हेतु सन 1925 में जस्टिस गोकरननाथ मिश्र की अध्यक्षता मे एक समिति गठित की थी, जिसकी संस्तुति के आधार पर 1926 में 'बोर्ड ऑफ़ इण्डिया मेडिसिन' की स्थापना कर भारतीय चिकित्सा प्रणालियों के विकास के लिए उपाय तथा साधन प्रस्तुत करने, वैद्यों तथा हकीमों का पंजीकरण करने, आयुर्वेद/यूनानी चिकित्सालयों तथा विद्यालयों को अनुदान देने, भारतीय चिकित्सा प्रणालियों के अध्ययन व अभ्यास के सम्बंध में नियंत्रण करने का कार्यभार सौपा गया। इस बोर्ड के प्रथम अध्यक्ष पंडित गोकरननाथ मिश्र एवं सन 1929 में जस्टिस सर सैय्यद वजीर हसन हुए थे, जो सन 1946 तक इस पद पर कार्यरत रहे।
निधन
ग़रीबों और निर्बलों के मददगार तथा राजनीति में प्रसिद्धि प्राप्त कर चुके गोकरननाथ मिश्र जी का निधन जुलाई, 1929 में हुआ।
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