"गणेश बन्दीजन": अवतरणों में अंतर
(''''गणेश बन्दीजन''' लाल कवि के पौत्र गुलाब कवि के पुत्र ...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
गोविन्द राम (वार्ता | योगदान) |
||
(एक दूसरे सदस्य द्वारा किए गए बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
'''गणेश बन्दीजन''' [[लाल कवि]] के पौत्र गुलाब कवि के पुत्र थे। इन्होंने ने 'वाल्मीकि रामायण श्लोकार्थ प्रकाश' | '''गणेश बन्दीजन''' [[लाल कवि]] के पौत्र गुलाब कवि के पुत्र थे। [[संवत्]] 1850 से लेकर 1910 तक वर्तमान थे। ये [[काशी]] के महाराज उदित नारायण सिंह के दरबार में थे और महाराज ईश्वरीप्रसाद नारायण सिंह के समय तक जीवित रहे। | ||
==रचना कार्य== | |||
इन्होंने ने तीन ग्रंथ लिखे थे- | |||
#'वाल्मीकि रामायण श्लोकार्थ प्रकाश'<ref>बालकांड समग्र और किष्किंधा के पाँच अध्याय</ref> | |||
#'प्रद्युम्न विजय नाटक' | |||
#'हनुमत पच्चीसी' | |||
‘साहित्य सागर’ नाम से साहित्य शास्त्र का भी ग्रन्थ इन्होंने रचा था।<ref>{{cite web |url=http://www.kashikatha.com/%E0%A4%B5%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B5/%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B0/ |title=काशी कथा, साहित्यकार|accessmonthday= 10 जनवरी|accessyear=2014 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref> | |||
;प्रद्युम्न विजय नाटक | |||
इनके द्वारा लिखा गया 'प्रद्युम्न विजय नाटक' समग्र पद्यबद्ध है और अनेक प्रकार के [[छंद|छंदों]] में सात अंकों में समाप्त हुआ है। इसमें [[दैत्य|दैत्यों]] के 'वज्रनाभपुर' नामक नगर में [[प्रद्युम्न]] के जाने और प्रभावती से [[गंधर्व विवाह]] होने की कथा है। यद्यपि इसमें पात्र प्रवेश, विष्कंभक, प्रवेशक आदि [[नाटक]] के अंग रखे गए हैं पर इतिवृत्त का भी वर्णन पद्य में होने के कारण नाटकत्व नहीं आया है। | |||
<poem>ताही के उपरांत, कृष्ण इंद्र आवत भए। | |||
भेंटि परस्पर कांत, बैठ सभासद मध्य तहँ | |||
बोले हरि इंद्र सों बिनै कै कर जोरि दोऊ, | |||
आजु दिगबिजय हमारे हाथ आयो है। | |||
मेरे गुरु लोग सब तोषित भए हैं आजु, | |||
पूरो तप, दान, भाग्य सफल सुहायो है | |||
कारज समस्त सरे, मंदिर में आए आप, | |||
देवन के देव मोहि धान्य ठहरायो है। | |||
सो सुन पुरंदर उपेंद्र लखि आदर सों, | |||
बोले सुनौ बंधु! दानवीर नाम पायो है</poem> | |||
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} | |||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
<references/> | <references/> | ||
{{cite book | last =आचार्य| first =रामचंद्र शुक्ल| title =हिन्दी साहित्य का इतिहास| edition =| publisher =कमल प्रकाशन, नई दिल्ली| location =भारतडिस्कवरी पुस्तकालय | language =हिन्दी | pages =पृष्ठ सं. 259-60| chapter =प्रकरण 3}} | |||
==बाहरी कड़ियाँ== | |||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{ | {{भारत के कवि}} | ||
[[Category: | [[Category:कवि]][[Category:काशी]] | ||
[[Category:रीति_काल]] | |||
[[Category:रीतिकालीन कवि]] | |||
[[Category:चरित कोश]] | |||
[[Category:साहित्य कोश]] | |||
__INDEX__ | __INDEX__ | ||
__NOTOC__ |
15:06, 9 मई 2015 के समय का अवतरण
गणेश बन्दीजन लाल कवि के पौत्र गुलाब कवि के पुत्र थे। संवत् 1850 से लेकर 1910 तक वर्तमान थे। ये काशी के महाराज उदित नारायण सिंह के दरबार में थे और महाराज ईश्वरीप्रसाद नारायण सिंह के समय तक जीवित रहे।
रचना कार्य
इन्होंने ने तीन ग्रंथ लिखे थे-
- 'वाल्मीकि रामायण श्लोकार्थ प्रकाश'[1]
- 'प्रद्युम्न विजय नाटक'
- 'हनुमत पच्चीसी'
‘साहित्य सागर’ नाम से साहित्य शास्त्र का भी ग्रन्थ इन्होंने रचा था।[2]
- प्रद्युम्न विजय नाटक
इनके द्वारा लिखा गया 'प्रद्युम्न विजय नाटक' समग्र पद्यबद्ध है और अनेक प्रकार के छंदों में सात अंकों में समाप्त हुआ है। इसमें दैत्यों के 'वज्रनाभपुर' नामक नगर में प्रद्युम्न के जाने और प्रभावती से गंधर्व विवाह होने की कथा है। यद्यपि इसमें पात्र प्रवेश, विष्कंभक, प्रवेशक आदि नाटक के अंग रखे गए हैं पर इतिवृत्त का भी वर्णन पद्य में होने के कारण नाटकत्व नहीं आया है।
ताही के उपरांत, कृष्ण इंद्र आवत भए।
भेंटि परस्पर कांत, बैठ सभासद मध्य तहँ
बोले हरि इंद्र सों बिनै कै कर जोरि दोऊ,
आजु दिगबिजय हमारे हाथ आयो है।
मेरे गुरु लोग सब तोषित भए हैं आजु,
पूरो तप, दान, भाग्य सफल सुहायो है
कारज समस्त सरे, मंदिर में आए आप,
देवन के देव मोहि धान्य ठहरायो है।
सो सुन पुरंदर उपेंद्र लखि आदर सों,
बोले सुनौ बंधु! दानवीर नाम पायो है
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ बालकांड समग्र और किष्किंधा के पाँच अध्याय
- ↑ काशी कथा, साहित्यकार (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 10 जनवरी, 2014।
आचार्य, रामचंद्र शुक्ल “प्रकरण 3”, हिन्दी साहित्य का इतिहास (हिन्दी)। भारतडिस्कवरी पुस्तकालय: कमल प्रकाशन, नई दिल्ली, पृष्ठ सं. 259-60।
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख