"हरिकृष्ण 'जौहर'": अवतरणों में अंतर
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'''हरिकृष्ण 'जौहर'''' (जन्म- [[1880]], [[काशी]], [[उत्तर प्रदेश]]; मृत्यु- [[11 फ़रवरी]], [[1945]], [[काशी]]) का नाम [[हिन्दी]] के आरम्भिक [[उपन्यास]] लेखकों में बड़े आदर के साथ लिया जाता है। इनका तिलस्मी तथा जासूसी उपन्यास लेखकों में महत्त्वपूर्ण स्थान है। हरिकृष्ण 'जौहर' ने तिलस्मी उपन्यासों की दिशा में [[बाबू देवकीनंदन खत्री]] द्वारा स्थापित उपन्यास परंपरा को विकसित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया था। | '''हरिकृष्ण 'जौहर'''' (जन्म- [[1880]], [[काशी]], [[उत्तर प्रदेश]]; मृत्यु- [[11 फ़रवरी]], [[1945]], [[काशी]]) का नाम [[हिन्दी]] के आरम्भिक [[उपन्यास]] लेखकों में बड़े आदर के साथ लिया जाता है। इनका तिलस्मी तथा जासूसी उपन्यास लेखकों में महत्त्वपूर्ण स्थान है। हरिकृष्ण 'जौहर' ने तिलस्मी उपन्यासों की दिशा में [[बाबू देवकीनंदन खत्री]] द्वारा स्थापित उपन्यास परंपरा को विकसित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया था। | ||
==जन्म तथा शिक्षा== | |||
==जन्म तथा | हरिकृष्ण 'जौहर' का जन्म [[1880]] ई. में [[उत्तर प्रदेश]] की प्रसिद्ध धार्मिक नगरी [[काशी]] (वर्तमान [[बनारस]]) के एक खत्री [[परिवार]] में हुआ था। इनके पिता का नाम मुंशी रामकृष्ण था, जो कोहली काशी के महाराज ईश्वरीप्रसाद नारायण सिंह के प्रधानमंत्री थे। शैशवास्था में ही जौहर के [[माता]]-[[पिता]] का स्वर्गवास हो गया। इनकी प्रारंभिक शिक्षा [[फ़ारसी भाषा|फ़ारसी]] के माध्यम से हुई। | ||
हरिकृष्ण 'जौहर' का जन्म 1880 में काशी (वर्तमान [[बनारस]]) के एक खत्री परिवार में हुआ था। | ==लेखन कार्य== | ||
आरंभ में इन्होंने [[उर्दू]] में लिखने का कार्य प्रारम्भ किया, जिस कारण अपना उपनाम 'जौहर' रख लिया। ‘राजे हैरत', 'हरीफ़’, ‘पुर असर जादू’ नामक उपन्यास लिखा और 'जौहर' उपनाम रखा।<ref>{{cite web |url=http://www.kashikatha.com/%E0%A4%B5%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B5/%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B0/ |title=काशी के साहित्यकार|accessmonthday= 11 जनवरी|accessyear=2014 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref> हरिकृष्ण जी की पहली [[हिन्दी]] रचना 'कुसुमलता' नामक उपन्यास है, जो चार भागों में है और उसकी पृष्ठभूमि 'अय्यरी' तथा 'तिलस्मी' है। | |||
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[[काशी]] के मामूरगंज नामक स्थान पर [[हिन्दी]] प्रेस की स्थापना हरिकृष्ण 'जौहर' ने की और ‘आधार’ नामक हिन्दी साहित्यिक पत्र निकाला, जो 'हिटलर चेम्बरलिन सन्धि' के बाद बन्द कर दिया गया। | [[काशी]] के मामूरगंज नामक स्थान पर [[हिन्दी]] प्रेस की स्थापना हरिकृष्ण 'जौहर' ने की और ‘आधार’ नामक हिन्दी साहित्यिक पत्र निकाला, जो 'हिटलर चेम्बरलिन सन्धि' के बाद बन्द कर दिया गया। एक पत्रकार के रूप में हरिकृष्ण 'जौहर' को काफ़ी ख्याति मिली। युद्ध संबंधी समाचार आप बहुत ही सजीव देते थे। इस दिशा में ये कहा करते थे- "हम केवल युद्ध लिखने के लिए ही पत्र का संपादन कर रहे हैं।" पत्रकार के अतिरिक्त ये सफल उपन्यासकार भी थे। इनका 'कुसुमलता' नामक तिलस्मी उपन्यास [[देवकीनंदन खत्री]] की परंपरा में है। 'काला बाघ', 'गवाह गायब' लिखकर इन्होंने जासूसी साहित्य में एक नए चरण की स्थापना की। | ||
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हरिकृष्ण 'जौहर'
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पूरा नाम | हरिकृष्ण 'जौहर' |
जन्म | 1880 |
जन्म भूमि | काशी, उत्तर प्रदेश |
मृत्यु | 11 फ़रवरी, 1945 |
मृत्यु स्थान | काशी |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | लेखन |
मुख्य रचनाएँ | ‘राजे हैरत', 'हरीफ़’, 'जापान वृतांत', 'अफ़ग़ानिस्तान का इतिहास', 'विज्ञान व वाजीगर', 'भारत के देशी राज्य' आदि। |
भाषा | हिन्दी, फ़ारसी, उर्दू |
प्रसिद्धि | उपन्यास लेखक |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | आपने काशी के मामूरगंज नामक स्थान पर हिन्दी प्रेस की स्थापना की और ‘आधार’ नामक हिन्दी साहित्यिक पत्र निकाला, जो 'हिटलर चेम्बरलिन सन्धि' के बाद बन्द कर दिया गया। |
इन्हें भी देखें | कवि सूची, साहित्यकार सूची |
हरिकृष्ण 'जौहर' (जन्म- 1880, काशी, उत्तर प्रदेश; मृत्यु- 11 फ़रवरी, 1945, काशी) का नाम हिन्दी के आरम्भिक उपन्यास लेखकों में बड़े आदर के साथ लिया जाता है। इनका तिलस्मी तथा जासूसी उपन्यास लेखकों में महत्त्वपूर्ण स्थान है। हरिकृष्ण 'जौहर' ने तिलस्मी उपन्यासों की दिशा में बाबू देवकीनंदन खत्री द्वारा स्थापित उपन्यास परंपरा को विकसित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया था।
जन्म तथा शिक्षा
हरिकृष्ण 'जौहर' का जन्म 1880 ई. में उत्तर प्रदेश की प्रसिद्ध धार्मिक नगरी काशी (वर्तमान बनारस) के एक खत्री परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम मुंशी रामकृष्ण था, जो कोहली काशी के महाराज ईश्वरीप्रसाद नारायण सिंह के प्रधानमंत्री थे। शैशवास्था में ही जौहर के माता-पिता का स्वर्गवास हो गया। इनकी प्रारंभिक शिक्षा फ़ारसी के माध्यम से हुई।
लेखन कार्य
आरंभ में इन्होंने उर्दू में लिखने का कार्य प्रारम्भ किया, जिस कारण अपना उपनाम 'जौहर' रख लिया। ‘राजे हैरत', 'हरीफ़’, ‘पुर असर जादू’ नामक उपन्यास लिखा और 'जौहर' उपनाम रखा।[1] हरिकृष्ण जी की पहली हिन्दी रचना 'कुसुमलता' नामक उपन्यास है, जो चार भागों में है और उसकी पृष्ठभूमि 'अय्यरी' तथा 'तिलस्मी' है।
तिलिस्मी उपन्यास
हिंदी के आरंभिक उपन्यास लेखकों में बाबू हरिकृष्ण 'जौहर' का तिलस्मी तथा जासूसी उपन्यास लेखकों में महत्वपूर्ण स्थान है। तिलस्मी उपन्यासों की दिशा में हरिकृष्ण ने बाबू देवकीनंदन खत्री द्वारा स्थापित उपन्यास परंपरा को विकसित करने में महत्वपूर्ण योग दिया। आधुनिक जीवन की विषमाओं एवं सभ्य समाज के यथार्थ जीवन का प्रदर्शन करने के लिए ही बाबू हरिकृष्ण 'जौहर' ने जासूरी उपन्यासों का निर्माण किया। 'काला बाघ' और 'गवाह गायब' आपके इस दिशा में महत्वपूर्ण उपन्यास हैं।[2]
सम्पादक
'भारत जीवन प्रेस' की ओर से प्रकाशित 'भारत जीवन' नामक पत्र का संपादन इन्होंने किया था। काशी से प्रकाशित मित्र उपन्यास तरंग द्विजराज पत्रिका का संकलन किया तथा अजमेर से प्रकाशित 'राजस्थान पत्र' और बम्बई के 'वेकटेश्वर समाचार' के संपादक भी रहे।
कृतियाँ
हरिकृष्ण 'जौहर' की प्रमुख कृतियाँ इस प्रकार हैं-
- 'जापान वृतांत'
- 'अफ़ग़ानिस्तान का इतिहास'
- 'भारत के देशी राज्य'
- 'रूस जापान युद्ध'
- 'प्लासी की लड़ाई'
- 'सागर साम्राज्य सिख इतिहास'
- 'नेपोलियन वोनापार्ट'
- 'भूगर्भ के सेरे'
- 'विज्ञान व वाजीगर'
- 'कबीर तथा मैसूर'
हिन्दी प्रेस की स्थापना
काशी के मामूरगंज नामक स्थान पर हिन्दी प्रेस की स्थापना हरिकृष्ण 'जौहर' ने की और ‘आधार’ नामक हिन्दी साहित्यिक पत्र निकाला, जो 'हिटलर चेम्बरलिन सन्धि' के बाद बन्द कर दिया गया। एक पत्रकार के रूप में हरिकृष्ण 'जौहर' को काफ़ी ख्याति मिली। युद्ध संबंधी समाचार आप बहुत ही सजीव देते थे। इस दिशा में ये कहा करते थे- "हम केवल युद्ध लिखने के लिए ही पत्र का संपादन कर रहे हैं।" पत्रकार के अतिरिक्त ये सफल उपन्यासकार भी थे। इनका 'कुसुमलता' नामक तिलस्मी उपन्यास देवकीनंदन खत्री की परंपरा में है। 'काला बाघ', 'गवाह गायब' लिखकर इन्होंने जासूसी साहित्य में एक नए चरण की स्थापना की।
सात्विक जीवन
हरिकृष्ण 'जौहर' का जीवन बड़ा सात्विक था। चाय, सिगरेट से इनको भारी नफ़रत थी। अपने जीवन के संबंध में वे प्राय: कहा करते थे- "काग़ज़ ओढ़ना और बिछाना, काग़ज़ से ही खाना, काग़ज़ लिखते पढ़ते साधु काग़ज़ में मिल जाना।"
निधन
जब हरिकृष्ण जी मुम्बई में वेंकटेश्वर समाचार पत्र के संपादक के रूप में कार्य कर रहे थे, तभी इनकी ठोड़ी में साधारण सी चोट लग गई। इसी चोट ने भयानक टिटनस रोग का रूप धारण कर लिया। अधिक अस्वस्थ होने पर 19 सितंबर, 1944 को हरिकृष्ण जी काशी चले आए और यहीं 11 फ़रवरी, 1945 में आपका स्वर्गवास हो गया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ काशी के साहित्यकार (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 11 जनवरी, 2014।
- ↑ हिन्दी के लघु उपन्यास (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 11 जनवरी, 2014।
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