"शेर दरवाज़ा लखनऊ": अवतरणों में अंतर
कात्या सिंह (वार्ता | योगदान) ('thumb|शेर दरवाज़ा, [[लखनऊ]] लखनऊ के आज ग्लो...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
गोविन्द राम (वार्ता | योगदान) No edit summary |
||
(एक दूसरे सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{सूचना बक्सा ऐतिहासिक इमारत | |||
[[लखनऊ]] के | |चित्र=Sher darwaja.jpg | ||
|चित्र का नाम=शेर दरवाज़ा | |||
|विवरण='शेर दरवाज़ा' [[1857 का स्वतंत्रता संग्राम|सन् 1857 की जनक्रांति]] का केंद्र बिंदु रहा है। ब्रिटिश सेनाधिकारी 'ब्रिगेडियर जनरल नील' को उसी द्वार के पीछे क्रांतिकारियों ने मार डाला था। | |||
|राज्य=[[उत्तर प्रदेश]] | |||
|नगर=[[लखनऊ]] | |||
|निर्माता= | |||
|स्वामित्व= | |||
|प्रबंधक= | |||
|निर्माण= | |||
|वास्तुकार= | |||
|वास्तु शैली= | |||
|पुन: निर्माण= | |||
|स्थापना= | |||
|पुन: स्थापना= | |||
|भौगोलिक स्थिति= | |||
|मार्ग स्थिति= | |||
|प्रसिद्धि= | |||
|एस.टी.डी. कोड= | |||
|मानचित्र लिंक= | |||
|संबंधित लेख= | |||
|शीर्षक 1= | |||
|पाठ 1= | |||
|शीर्षक 2= | |||
|पाठ 2= | |||
|अन्य जानकारी=शेर दरवाज़ा आज भी शेर दरवाज़ा है क्योंकि सिंहद्वार पर बने ये शेर हिंदुस्तानी सपूतों की दास्तान से जुड़े हैं जिन्होंने गदर में अपनी बहादुरी के कमाल दिखाए। | |||
|बाहरी कड़ियाँ= | |||
|अद्यतन= | |||
}} | |||
[[लखनऊ]] ग्लोब वाले पार्क के दक्षिण में उपेक्षित सा पड़ा हुआ एक केसरिया फाटक है जिस पर '''शेरों का एक जोड़ा''' बैठा हुआ है। इसी वजह से इस डेढ़ सौ साल पुराने द्वार को 'शेर दरवाज़ा' कहा जाता है। [[1857 का स्वतंत्रता संग्राम|गदर]] से पहले इस दरवाज़े के साथ ख़ास बाज़ार की मशहूर बस्ती थी, जहां बारह इमामों की एक दरगाह भी हुआ करती थी, जिसे बादशाह ने '''[[नसीरुद्दीन हैदर]]''' के अहद में बनवाया था, लेकिन अब उस दरगाह और बाज़ार का नामोनिशान भी नहीं रह गया है। | |||
==इतिहास== | ==इतिहास== | ||
शेर | '''शेर दरवाज़ा''' [[1857 का स्वतंत्रता संग्राम|सन् 1857 की जनक्रांति]] का केंद्र बिंदु रहा है। ब्रिटिश सेनाधिकारी 'ब्रिगेडियर जनरल नील' को उसी द्वार के पीछे क्रांतिकारियों ने मार डाला था। शेर दरवाज़े से 15 गज की दूरी पर कभी पत्थर का एक स्मारक बना हुआ करता था जो जनरल नील के जख्मी होकर गिरने का स्थान था। अंग्रेज़ी शासन काल में जनरल नील की शहादत का कर्ज अदा करने के लिए ब्रिटिश पदाधिकारियों ने इस द्वार को 'नील गेट' कहना शुरू कर दिया था। हजरतगंज से आकर [[छतर मंज़िल |छतर मंजिलों]] के बीच से जाने वाली सड़क को '''नील रोड''' का नाम दिया गया था। | ||
==वर्तमान में== | ==वर्तमान में== | ||
शेर दरवाज़ा आज भी शेर दरवाज़ा है क्योंकि सिंहद्वार पर बने ये शेर हिंदुस्तानी सपूतों की दास्तान से जुड़े हैं जिन्होंने गदर में अपनी बहादुरी के कमाल दिखाए। [[26 सितंबर]] सन् 1[[1857|857]] को मद्रास रेजीमेंट का जनरल नील जब [[मोती महल लखनऊ|मोती महल]] से [[रेज़ीडेंसी संग्रहालय लखनऊ|रेज़ीडेंसी]] की तरफ जा रहा था, एक हिंदुस्तानी ने उस पर बंदूक से वार कर दिया। जनरल नील उसी जगह गिर गया। मरने के बाद उसे बेली गारद के अहाते में दफना दिया गया था। | |||
{{लेख प्रगति|आधार= | {{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} | ||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
<references/> | <references/> | ||
==बाहरी कड़ियाँ== | ==बाहरी कड़ियाँ== | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{उत्तर प्रदेश के पर्यटन स्थल | {{उत्तर प्रदेश के पर्यटन स्थल}} | ||
[[Category:उत्तर प्रदेश]] | [[Category:उत्तर प्रदेश]] | ||
[[Category: | [[Category:उत्तर_प्रदेश_के_पर्यटन स्थल]] | ||
[[Category: | [[Category:पर्यटन कोश]] | ||
[[Category:लखनऊ]] | [[Category:लखनऊ]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ | ||
__NOTOC__ | __NOTOC__ |
13:09, 4 मार्च 2014 के समय का अवतरण
शेर दरवाज़ा लखनऊ
| |
विवरण | 'शेर दरवाज़ा' सन् 1857 की जनक्रांति का केंद्र बिंदु रहा है। ब्रिटिश सेनाधिकारी 'ब्रिगेडियर जनरल नील' को उसी द्वार के पीछे क्रांतिकारियों ने मार डाला था। |
राज्य | उत्तर प्रदेश |
नगर | लखनऊ |
अन्य जानकारी | शेर दरवाज़ा आज भी शेर दरवाज़ा है क्योंकि सिंहद्वार पर बने ये शेर हिंदुस्तानी सपूतों की दास्तान से जुड़े हैं जिन्होंने गदर में अपनी बहादुरी के कमाल दिखाए। |
लखनऊ ग्लोब वाले पार्क के दक्षिण में उपेक्षित सा पड़ा हुआ एक केसरिया फाटक है जिस पर शेरों का एक जोड़ा बैठा हुआ है। इसी वजह से इस डेढ़ सौ साल पुराने द्वार को 'शेर दरवाज़ा' कहा जाता है। गदर से पहले इस दरवाज़े के साथ ख़ास बाज़ार की मशहूर बस्ती थी, जहां बारह इमामों की एक दरगाह भी हुआ करती थी, जिसे बादशाह ने नसीरुद्दीन हैदर के अहद में बनवाया था, लेकिन अब उस दरगाह और बाज़ार का नामोनिशान भी नहीं रह गया है।
इतिहास
शेर दरवाज़ा सन् 1857 की जनक्रांति का केंद्र बिंदु रहा है। ब्रिटिश सेनाधिकारी 'ब्रिगेडियर जनरल नील' को उसी द्वार के पीछे क्रांतिकारियों ने मार डाला था। शेर दरवाज़े से 15 गज की दूरी पर कभी पत्थर का एक स्मारक बना हुआ करता था जो जनरल नील के जख्मी होकर गिरने का स्थान था। अंग्रेज़ी शासन काल में जनरल नील की शहादत का कर्ज अदा करने के लिए ब्रिटिश पदाधिकारियों ने इस द्वार को 'नील गेट' कहना शुरू कर दिया था। हजरतगंज से आकर छतर मंजिलों के बीच से जाने वाली सड़क को नील रोड का नाम दिया गया था।
वर्तमान में
शेर दरवाज़ा आज भी शेर दरवाज़ा है क्योंकि सिंहद्वार पर बने ये शेर हिंदुस्तानी सपूतों की दास्तान से जुड़े हैं जिन्होंने गदर में अपनी बहादुरी के कमाल दिखाए। 26 सितंबर सन् 1857 को मद्रास रेजीमेंट का जनरल नील जब मोती महल से रेज़ीडेंसी की तरफ जा रहा था, एक हिंदुस्तानी ने उस पर बंदूक से वार कर दिया। जनरल नील उसी जगह गिर गया। मरने के बाद उसे बेली गारद के अहाते में दफना दिया गया था।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख